ब्रह्म रसायन : जैसा नाम वैसा काम चरितार्थ वाली आयुर्वेदिक क्लासिकल औषधि है | जिसका वर्णन चरक संहिता, रसतंत्र आदि आयुर्वेदिक ग्रंथो में किया गया है | यह बल्य, मेध्य, शरीर को ताकत देने वाली अति उत्तम बलवर्द्धक औषधि है | ब्रह्म रसायन शरीर के सभी विकारों का हरण करता है |
यह रोग मुक्त नूतन (नया) शरीर प्रदान करने वाला रसायन है | सभी उम्र के व्यक्तियों के लिए अत्यंत लाभदायी औषध है | आयुर्वेद में इसे रसायन एवं वाजीकरण औषधियों में गिना जाता है | इसके सेवन से सभी विकार दूर होकर दीर्घायु की प्राप्ति होती है | इसी लिए इसे ब्रह्म रसायन नाम से जाना जाता है |
प्राचीन समय में गृहस्थ, तपस्वी इसका सेवन त्रिगर्भा कुटी में रहकर करते थे | यह प्रयोग उन्हें बल, वीर्य, कांति एवं दीर्घायु प्रदान करता था | आज के समय में व्यक्ति त्रिगर्भा कुटी (त्रिगर्भा कुटी का अर्थ निचे बताया है) में तो प्रवेश करने में असमर्थ है लेकिन वर्तमान परिपेक्ष्य में भी ब्रह्म रसायन का सेवन करके अनगिनत लाभ उठा सकता है |
त्रिगर्भा कुटी क्या है ? : प्राचीन आचार्यों के अनुसार गाँव से बाहर खुली वायु में एवं विशुद्ध स्थान पर त्रिगर्भा कुटिया बनाई जाती थी | त्रिगर्भा का अर्थ होता है एक कुटिया के भीतर दूसरी कुटिया एवं दूसरी कुटिया के भीतर तीसरी कुटिया | इस प्रकार से रहने का विधान था |
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ब्रह्म रसायन के घटक द्रव्य / Ingredients of Brahma Rasayana
इस क्लासिकल आयुर्वेदिक रसायन के निर्माण में विभिन्न प्रकार की जड़ी – बूटियों का प्रयोग किया जाता है | इसका मुख्य द्रव्य ताजा पकी हुई हरड (हरीतकी) एवं ताजा पके आंवले होते है | चलिए जानते है इस रसायन में प्रयोग होने वाले आयुर्वेदिक द्रव्यों के बारे में –
- हरीतकी फल (ताजा पके हुए) { पिष्टी द्रव्य }
- आंवले (पके हुए) { पिष्टी द्रव्य }
- गो घृत {पिष्टी सेक के लिए}
निम्न सभी क्वाथ द्रव्य है जिनसे क्वाथ का निर्माण किया जाता है
- शालपर्णी
- पृष्णपर्णी
- छोटी कटेरी
- बड़ी कटेरी
- पुनर्नवा
- मुदगपर्णी
- जीवन्ति
- नरकट
- दर्भ
- कुश
- शालीधान्य (शाठी चावल)
- बेल छाल
- अरणी
- अरलु
- गंभारी छाल
- एरंड मूल
- पाढल छाल
- गोखरू
- जीवक
- ऋषभक
- मेदा
- शतावरी
प्रक्षेप द्रव्य – निम्न सभी प्रक्षेप द्रव्य
- ब्राह्मी
- पीपल
- शंखपुष्पि
- नागरमोथा
- बड़ामोथा
- वायविडंग
- सफ़ेद चन्दन
- अगर
- मुलहठी
- हल्दी
- बच
- नागकेशर
- छोटी इलायची
- दालचीनी
ब्रह्म रसायन बनाने की विधि / Manufacturing Method
इसे बनाने के लिए सबसे पहले ताजी हरीतकी एवं पके हुए आंवलों को की पिष्टी तैयार करके घी एवं तेल में सेक ली जाती है | फिर ऊपर बताये गए क्वाथ वाली जड़ी – बूटियों से क्वाथ कर निर्माण किया जाता है |
जब क्वाथ तैयार हो जाता है तब इसे छानकर अलग रख लिया जाता है | अब छने हुए क्वाथ को अग्नि पर चढ़ाकर मन्दाग्नि पर पाक करके क्वाथ को इतनी मात्रा में रखा जाता है कि इसमें चीनी मिलाकर चासनी तैयार की जा सके |
दो या तीन तार की चासनी बनाने के पश्चात इसमें सेकी हुई पिष्टी मिलाकर कुच्छ देर तक चलाया जाता है | अंत में प्रक्षेप द्रव्यों का कपडछान चूर्ण इसमें डालकर आंच से निचे उतार लिया जाता है |
ठन्डे होने के पश्चात शहद मिलाकर रख लिया जाता है | इस प्रकार से यह अवलेह ब्रह्म रसायन तैयार होता है |
ब्रह्म रसायन के फायदे / Health Benefits of Braham Rasayana in Hindi
इसे उत्तम बलकारक, आयुवर्द्धक, बुद्धि को तेज करने वाला एवं सम्पूर्ण शरीर का कायाकल्प करने वाली रसायन औषधि माना जाता है | तो चलिए जानते है ब्रह्म रसायन के फायदे |
- इस रसायन के सेवन से विभिन्न प्रकार के शारीरिक कष्ट मिटते है | यह शरीर में बल का संचार करती है |
- यौन कमजोरियों से पीड़ितों के लिए भी ब्रह्म रसायन अति उत्तम औषधि है | यह शरीर में वीर्य वर्द्धक का काम करती है |
- इम्युनिटी बढ़ाने के लिए भी अत्यंत लाभदायक औषधि है | जीर्ण रोगों से पीड़ित रोगियों के लिए ब्रह्म रसायन रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का कार्य करता है |
- स्मरण शक्ति बढ़ाने में ब्रह्म रसायन कार्यकारी औषधि है | आयुर्वेद ग्रंथो में इसे मेध्य, बुद्धि बढ़ाने वाला बताया गया है | अत: नियमित सेवन से स्मरण शक्ति की वृद्धि होती है |
- हृदय, लीवर, मष्तिष्क, यकृत, प्लीहा एवं आंतों को ताकत देने वाला रसायन है इसी लिए इसे सम्पूर्ण शरीर का कायाकल्प करने वाली औषधि माना जाता है |
- कमजोर पाचन को सुधारने में अत्यंत लाभ देता है |
- वातव्याधियों में भी इसके परिणाम सुखप्रद होते है |
- ब्रह्म रसायन का सेवन दीर्घायु प्रदान करता है | यह विभिन्न रोगों से मुक्त रखने वाला आयुर्वेद का अतिउत्तम रसायन है |
रसतंत्रसार एवं सिद्धप्रयोग संग्रह में ब्रह्म रसायन के बारे में लिखा गया है कि –
ब्रह्म रसायन की सेवन विधि
इसका सेवन 5 ग्राम तक की मात्रा में दूध के साथ नियमित सेवन करना चाहिए | सेवन के पश्चात चावल की खीर या दूध चावल खाने का विधान शास्त्रों में लिखा गया है | इस प्रकार से सेवन करने से यह अधिक गुणकारी साबित होता है | पाचन शक्ति अनुसार धीरे – धीरे इसकी मात्रा बढाई जा सकती है |
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