गोखरू है दिव्य वनौषधि – जाने इसका परिचय, फायदे, गुण एवं आयुर्वेद के अनुसार उपयोग विधि

गोखरू (गोक्षुर) / Gokharu in Hindi

गोक्षुर को दिव्य कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि मानव स्वास्थ्य के लिए यह अत्यंत फायदेमंद है | किडनी की समस्या, मूत्र विकार, पौरुष शक्ति, श्वास, खांसी, एलर्जी, अर्श, दर्द, प्रमेह, पत्थरी एवं शुक्र दौर्बल्य जैसे रोगों में दिव्य औषधि की तरह काम करती है |

आयुर्वेद चिकित्सा में इसके पंचांग, जड़ एवं फलों का अधिकतर प्रयोग किया जाता है | इसके सहयोग से आयुर्वेद के बहुत से शास्त्रोक्त विशिष्ट योग बनाये जाते है | जैसे – गोक्षुरादी चूर्ण, गोक्षुरादि गुग्गुलु, गोक्षुरादि क्वाथ, गोक्शुराध्यवलेह एवं त्रिकंटकादि क्वाथ आदि | आज हम गोखरू का वानस्पतिक परिचय, इसके औषधीय गुण, फायदे एवं विभिन्न रोगों में इसका उपयोग के बारे में बताएँगे |

वानस्पतिक परिचय / Botanical Introduction

gokharu in hindi
क्रेडिट – myshekhawati.blogspot.com

यह एक भूविशर्पी वनौषधि है जो सब ही प्रान्तों में विशेषकर राजस्थान, हरियाणा, बंगाल, बिहार एवं उतरप्रदेश में विशेषत: पाई जाती है | यह प्रसरणशील 1.5 से 3 फीट तक का भूमि पर फैला हुआ क्षुप होता है | इसकी मूल 10 से 15 सेमी लम्बी एवं हल्के भूरे रंग की होती है | यह किंचित सुगन्धित होती है |

गोखरू दो प्रकार का होता है – Types of Gokharu in hindi

  • छोटा गोखरू (लघु गोक्षुर)
  • बड़ा गोखरू (वृहत गोक्षुर)

छोटे गोखरू की पतियाँ चने के पतों के समान होती है | वृहत के पते थोड़े बड़े एवं आगे से किंचित नुकीले दिखाई पड़ते है | लघु के पत्रक आयताकार, 4 -7 के युग्म में होते है एवं बड़े गोखरू के 0.8 से 1.2 सेमी तक लम्बे होते है |

गोखरू के फुल
गोखरू के फुल

लघु गोक्षुर के पुष्प पांच पंखुडियो युक्त आकर में छोटे होते है एवं वृहत गोक्षुर के पुष्प पीले रंग के पत्रकोण में आते है | फल छोटे – छोटे , गोल, किंचित चिपटे होते है | उन पर 5 – 5 तीक्षण कांटे लगे होते है |

बीज प्रत्येक दल में बहुत से होते है | गोखरू के पौधे पर शरद ऋतू में फुल आते है एवं इसके पश्चात फलकाल शुरू होता है |

गोखरू के पर्याय एवं निरुक्ति / Different Names of Gokharu

  • संस्कृत – इक्षुगंधिक, कंटकफल, क्षुरक, गोकंटक, चन्रदुम, त्रिकंटक, पलंकसा, भक्षकंट, भुक्षुर, वनश्रृंगार एवं स्वादुकंटक आदि |
  • हिंदी – गोखरू , हाथचिकार, छोटा गोखरू आदि
  • मराठी – सराहे, काँटे गोखरू आदि
  • लेटिन – Tribulus terrestris Linn.
  • अंग्रेजी – Small caltrops
  • कुल – Zygophylaceae

आयुर्वेद अनुसार निरुक्ति / Nirukti According to Ayurveda

  1. गोक्षुर – गाय के खुर के सामान इसके कांटे होते है | अत: गोक्षुर कहलाता है |
  2. स्वादूकंटक – इसके कांटे मधुर होते है |
  3. श्वंद्ष्ट्र – कुते की दाढ़ के समान तीक्ष्ण एवं हिंसक होने से कहते है |
  4. चाणद्रुम – चने के पतों के समान पते होने के कारण कहा जाता है |
  5. पलंकषा – जो मांस का कर्षण करता है |

गोखरू में होते है ये औषधीय गुण / Medicinal Properties In Gokharu

आयुर्वेद अनुसार गोखरू की जड़ और फल शीतल, पौष्टिक, कामोद्दिपक, रसायन, भूख बढाने वाले, पत्थरी एवं मूत्र सम्बन्धी बिमारियों में लाभदायक है | प्रमेह, श्वास, खांसी हृदय रोग, बवासीर, रक्तदोष, कुष्ठ और त्रिदोष का नाश करते है |

गोक्षुर: शीतल: स्वादुर्बलकृदबस्तिशोधन:|
मधुरो दीपनो वृष्य: पुष्टिदश्चाश्मरीहर: |
प्रमेहश्वासकासर्श: कृच्छहृद्रोगवातनुत ||

यह रस में मधुर, गुणों में गुरु एवं स्निग्ध, विपाक में मधुर एवं तासीर में ठंडा होता है अर्थात इसका वीर्य शीत होता है | दोषकर्मानुसार यह वातपितशामक एवं कफ वृद्धक होता है | यह शरीर में शुक्र का वर्द्धन करता है एवं बल्य रसायन का कार्य करता है | सुदूर गाँवों में आज भी पौरुष शक्ति के लिए सर्दियों में गोखरू के लड्डू बना कर सेवन किया जाता है |

गोखरू (गोक्षुर) के फायदे / Gokharu Benefits in Hindi

  • मूत्र विकारों में यह फायदेमंद देशी दवा है | पेशाब की जलन एवं मूत्रकृच्छ की समस्या में इसके पंचांग का काढा बना कर सेवन करना फायदेमंद रहता है |
  • यह अच्छे दीपन एवं पाचन गुणों से युक्त है | अत: भूख की कमी में फायदा पहुंचता है |
  • प्रमेह के रोग में लाभ करता है |
  • यह बल्य है अत: इसके सेवन से शरीर में बल की वृद्धि होती है |
  • बढे हुए वात एवं पित का शमन (नष्ट) करता है |
  • उत्तम रसायन एवं वाजीकरण गुणों से परिपूर्ण आयुर्वेदिक वनौषधि है |
  • शुक्रवृद्धक का कार्य करता है अर्थात वीर्य की कमी एवं पतला होने पर सेवन करना फलदाई साबित होता है |
  • पत्थरी आदि को नष्ट करता है |
  • यह हृदय को बल देने वाला है अत: हृदय रोगों में लाभ पंहुचाता है |
  • अर्श एवं भगंदर में उपयोगी है |
  • शारीरिक सुजन में फायदेमंद है | इसका औषधीय सेवन करने से विशिष्ट अंगो की सुजन कम होती है |
  • यकृत विकारों में फायदेमंद है |

गोखरू की उपयोग विधि एवं देशी प्रयोग / GOKHARU KE DESHI PRAYOG

  1. अश्मरी अर्थात पत्थरी होने पर पाषणभेद के साथ गोक्षुर के पंचांग का शीतनिर्यास अथवा काढ़ा बना कर सेवन करना लाभदायक है | इसके सेवन से पत्थरी जल्द ही कट कर निकल जाती है |
  2. पत्थरी में दूसरा देशी प्रयोग इसके पंचांग से सिद्ध घी का किया जाता है | पंचांग डालकर सिद्ध किये गए घी का सेवन करवाने से भी पत्थरी नष्ट होती है |
  3. गोक्षुर के चूर्ण को शहद के साथ चाटकर ऊपर से मेषी दूध का सेवन करने से सात दिन में ही पत्थरी निकल जाती है |
  4. पौरुष शक्ति के लिए गोखरू की खीर बना कर नियमित सेवन करना चाहिए | यह शरीर में धातुओं एवं वीर्य का वर्द्धन करती है , जिससे व्यक्ति में कमोदिपक गुण आते है |
  5. अश्वगंधा के चूर्ण के साथ समान मात्रा में गोक्षुर के चूर्ण को मिलाकर शहद के साथ चाटने से एवं ऊपर से दूध पीने से सभी प्रकार के शारीरिक दौर्बल्य का नाश होता है |
  6. रक्तपित में इसके चूर्ण को शहद के साथ प्रयोग करवाया जाता है | क्योंकि इसके मधुर एवं शीत गुण अद्योग रक्तपित का शमन करते है |
  7. गर्भाशय को बल देने एवं बृहन करने के गुणों के कारण गर्भस्थापन में इसका प्रयोग करवाया जाता है |
  8. गोखरू के साथ सोंठ का काढ़ा मिलाकर पिलाने से आमवात की समस्या से निजात मिलती है |
  9. अगर शरीर में कंही सुजन हो तो गोखरू के काढ़े में यवक्षार मिलाकर पिलाना चाहिए | यह शोथ अर्थात सुजन को दूर करने में कारगर नुस्खा है |
  10. स्वप्नदोष, धातुरोग एवं नपुंसकता में इसके पंचांग का फांट निकाल कर सेवन करवाना लाभदायक रहता है | यह अपने शुक्रल एवं बल्य गुणों के कारण इन समस्याओं से निजात दिलाने में सक्षम है |
  11. गोखरू, कौंच बीज, सफ़ेद मुसली, सेमल की कोमल जड़ें, आंवला एवं गिलोय का सत्व – इन सब को मिलाकर चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को वृद्धदंड चूर्ण कहते है | इसे एक तोला से 3 तोला तक नियमित दूध के साथ प्रयोग करवाने से सभी प्रकार के यौन विकार जैसे – शीघ्रपतन, नपुंसकता, धातुरोग एवं स्वप्नदोष में चमत्कारिक परिणाम मिलते है |
  12. कामशक्ति को बढाने के लिए गोखरू, शतावरी, तालमखाना, खिरेंटी के बीज, कौंच के बीज और गंगेरन – इन सभी को मिलाकर चूर्ण बना लें एवं इसमें से नियमित 1 तोला की मात्रा में समभाग मिश्री मिलाकर प्रयोग करने से कुच्छ ही दिनों में पुरुष में असीम कामशक्ति का संचार होता है | यह परीक्षित नुस्खा है |
  13. चीन में गोक्षुर को पौष्टिक और संकोचक माना जाता है | वहाँ इसे खांसी, खुजली, अनैच्छिक रक्तस्राव, रक्तकी कमी एवं नेत्र विकारों में प्रयोग करवाया जाता है | मसूड़ों की सुजन में गोखरू निर्यास के कुल्ले करवाए जाते है |

गोखरू की सेवन मात्रा, विधि एवं प्रयोज्य अंग

आयुर्वेद चिकित्सा अनुसार इससे निर्मिती चूर्ण को 1 से 3 ग्राम तक की मात्रा में सेवन करना चाहिए | काढ़े एवं स्वरस को 5 से 10 मिली. तक प्रयोग किया जा सकता है | आयुर्वेद की शास्त्रोक्त औषधियां जैसे – गोक्षुरादी गुग्गुलु, गोक्षुरादि चूर्ण, गोक्षुरादि क्वाथ, रसायन चूर्ण, दशमूल आदि इस वनौषधि के प्रयोग से ही बनाई जाती है |

चिकित्सा उपयोग एवं औषध निर्माण में इसकी जड़, फल, फुल, तना एवं सम्पूर्ण पंचांग का ही प्रयोग किया जाता है | बाजार में पतंजलि, डाबर, बैद्यनाथ आदि कम्पनियां इसकी शास्त्रोक्त औषधियां उपलब्ध करवाती है |

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