4 बुखार उतारने का आयुर्वेदिक दवा एवं घरेलु उपचार

बुखार एक ऐसा रोग है जो सभी रोगों के पहले जन्म लेता है। यह सभी रोगों में बलवान और प्रधान रोग है। यह शरीर के तापमान को बढ़ा देता है, मन में बेचैनी और ग्लानि उत्पन्न कर देता है। शरीर को थका हुआ और बहोश सा बना देता है। भोजन के प्रति इच्छा खत्म हो जाती है। शरीर के तापमान को बढ़ाने के कारण इसे ज्वर या बुखार के नाम से जाना जाता है।

बुखार एक बहुत ही कठिन रोग है और यह सभी रोगों का राजा होता है। प्राणियों के जन्म के समय और मृत्यु के समय भी यह प्राणियों के शरीर में मौजूद होता है अर्थात प्राणी जब जन्म लेता है तब भी उसके शरीर में बुखार होती है और मरते समय भी कुछ अंश बुखार के होते हैं।

अब तक आप यह जान गए होंगे कि बुखार एक बहुत ही बड़ा रोग है, इसी कारण इसे सभी रोगों का राजा कहा जाता है। आज हम इस आर्टिकल में आपको बुखार उतारने का आयुर्वेदिक दवा के बारे में बताएंगे इसके साथ ही हम आपको बताएंगे कि बुखार क्या है और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई । इसके साथ ही इसके लक्षणों के बारे में भी विस्तार पूर्वक जानकारी देंगे तो चलिए जानते हैं –

बुखार जैसे रोग की उत्पत्ति कैसे हुई

कहा जाता है कि त्रेता युग में भगवान शंकर ने शांत रहने का संकल्प लिया था, उसी समय असुरों ने महात्माओं की तपस्या में विघ्न डालना शुरू किया और समर्थ रहते हुए भी दक्ष प्रजापति ने असुरों का प्रतिकार नहीं किया। प्रथम कारण यह था। 

दूसरी बात यह हुई कि उन्हीं दिनों दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ किया और देवताओं के आग्रह करने के बावजूद उस यज्ञ में उन्होंने शंकर जी को नहीं बुलाया। 

तीसरी अपेक्षा यह हुई कि यज्ञ की सफलता के लिए जो शंकर भगवान के प्रार्थना के मंत्र है उनका पाठ भी नहीं हुआ और न ही शिव को आहुति दी गई। एक क्रोध व्रत के समाप्त हो जाने पर जब दक्ष प्रजापति की उपेक्षा एवं अपमान की ओर भगवान शंकर का ध्यान गया तो वह शिव से रूद्र बन गए।उन्होंने अपने मस्तक के तृतीय नेत्र को खोल दिया और उसकी ज्वाला से राक्षसों को नष्ट कर दिया अर्थात उन्हें जला दिया और यज्ञ को नष्ट करने वाले क्रोध की अग्नि से संतप्त बालक को उत्पन्न किया।

उस बालक ने यज्ञ का विध्वंस कर दिया फिर तो जलन और व्याधियों से पीड़ित देवता और प्राणी पागलों की तरह इधर-उधर भागने लगे। दक्ष के तबेले में भी भयंकर कोहराम मच गया। इस आतंक से मुक्ति दिलाने वाला भगवान शंकर के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं था। यह सोचकर सप्त ऋषियों को साथ लेकर देवताओं ने शिव की रचनाओं से उनकी तब तक की स्तुति की जब तक कि वे अपने शिव अर्थात कल्याणकारी रूप में नहीं हो गए।

जब उस क्रोध के अवतारी बालक ने भगवान शंकर के शांत भाव को देखा तो उसने प्रार्थना की की अब मैं क्या करूं? तब भगवान शंकर ने आदेश दिया कि प्राणियों के जन्म एवं मरण के समय तथा जब वे अपथ्य करे, तब तुम उनके शरीर में  प्रविष्ट होकर ज्वर अर्थात बुखार के नाम से प्रसिद्ध होंगे। अर्थात इस प्रकार भगवान शंकर की क्रोध अग्नि से बुखार की उत्पत्ति हुई।

बुखार क्या होता है ? (What is Fever?)

जब शरीर का तापमान बढ़ जाए तब उस बढ़े हुए  तापमान को बुखार का नाम दिया जाता है। सामान्य शरीर का तापमान 98.4 फारेनहाइट माना गया है जब यह तापमान इससे अधिक हो जाए तो उसे बुखार कहा जाता है। बुखार एक ऐसा रोग है जिसके होने से शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार से कष्ट उत्पन्न होते हैं।

रोगी हर समय बेचैनी अनुभव करता है, उसे भूख लगना बंद हो जाती है और वह हर समय थका हुआ रहता है। बुखार कई बार किसी अन्य रोग के उत्पन्न होने के कारण भी हो सकती है और कई बार बिना किसी रोग के कारण भी अपथ्य करने से भी बुखार उत्पन्न हो जाती है। बुखार हमारे शरीर में पित्त बढ़ने के कारण उत्पन्न होती है। आयुर्वेद के अनुसार बुखार के कई रूप है। 

बुखार के लक्षण | Symptoms of Fever

बुखार होने पर शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के लक्षण उत्पन्न होते हैं जैसे-

  • भोजन में रुचि का न होना।
  • प्यास अधिक लगना।
  • शरीर के अंग अंग में दर्द होना। 
  • शरीर में गर्मी का एहसास होना। 
  • शरीर की त्वचा के स्पर्श से ही उष्णता प्रतीत होना।
  • बेचैनी होना।
  • किसी काम में मन नहीं लगना और हर समय थकावट का अनुभव होना।

आदि लक्षण बुखार के होने पर दिखाई देते हैं।

बुखार उतारने का आयुर्वेदिक दवा | Bukhar Utarne ki Ayurvedic Dawa

बुखार उतारने के लिए आयुर्वेद में अनेक प्रकार की जड़ी बूटियों और दवा उपलब्ध है। आज हम आपको इस आर्टिकल में कुछ महत्वपूर्ण बुखार उतारने की आयुर्वेदिक दवा के बारे में बताएंगे तो चलिए जानते हैं बुखार उतारने का आयुर्वेदिक दवा के बारे में-

बैधनाथ महासुदर्शन घनवटी यह बैद्यनाथ कंपनी द्वारा निर्मित टैबलेट फॉर्म में है, जो बुखार की सुप्रसिद्ध दवा है इसके सेवन से जल्द ही बुखार और सर्दी-जुकाम से छुटकारा मिलता है। यह दवा विभिन्न जड़ी-बूटियों का मिश्रण होता है, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करते हैं और बुखार को कम करने में मदद करते हैं।

पतंजलि गिलोय जूस – पतंजलि गिलोय जूस एक प्राकृतिक आयुर्वेदिक उत्पाद है जो पतंजलि कंपनी द्वारा तैयार किया जाता है यह गिलोय (Tinospora cordifolia) के रस से बनाया जाता है। गिलोय को अमृत वल्लभी वटी भी कहा जाता है और यह विशेष कर सभी प्रकार की बुखार में उपयोगी दवा है। इसके साथ ही इसे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माना जाता है। इस जूस को इम्यूनिटी बढ़ाने, विषाक्तता को कम करने, बुखार के इलाज में मदद करने, और शरीर की संतुलितता को बनाए रखने के लिए प्रयोग किया जाता है। 

Ganesh Fevroline Syrup – गणेश फेवरोलिन सिरप एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक दवा है जो बुखार और सर्दी-जुकाम के इलाज में प्रयोग किया जाता है। यह बुखार को कम करने और सर्दी-जुकाम के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसके साथ ही यह हमारी पाचन शक्ति को मजबूत बनाता है जिससे हमारी इम्यूनिटी पावर भी मजबूत बनती है। 

ज्वरशूलहर रस – इस रसायन का उपयोग करने से समस्त प्रकार के बुखार में उत्कृष्ट लाभ देखने को मिलता है। चाहे वह बुखार मलेरिया से उत्पन्न हो या टाइफाइड से या अन्य किसी कारण से। इसके सेवन से सभी प्रकार की बुखार चाहे वह पुरानी हो या नई अर्थात कुछ ही समय से हो दूर हो जाती है। ज्वरशूलहर रस के सेवन से पसीना जाकर बुखार उतर जाती है। यदि इस रस का सेवन बुखार के लक्षण जब पूरी तरह से न दिखाई दे अर्थात शुरुआत में ही ग्रहण किया जाए तो उपद्रव शांत होकर बुखार को होने ही नहीं देते।

महत्वपूर्ण

उपरोक्त सभी आयुर्वेदिक दवा बुखार उतारने के लिए आयुर्वेद में उपयोग होती हैं । परन्तु इन सभी दवाओं का इस्तेमाल वैद्य परामर्श से करना चाहिए । हालाँकि उपरोक्त दवाओं के कोई ज्ञात प्रभाव नहीं हैं परन्तु गलत अनुपान एवं मात्रा में लेने से शारीरिक नुकसान की सम्भावना रहती हैं । अत: वैद्य परामर्श से ही इन औषधियों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए ।

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