हरीतकी (chebulic myrobalan) के आयुर्वेदिक गुण – धर्म एवं फायदे, उपयोग

हरीतकी आयुर्वेदिक औषधीय जड़ी – बूटी है | इसे हिंदी में हर्रा, हरड एवं हर्रे आदि नामों से जाना जाता है | यह पाचन विकार, कब्ज एवं गैस आदि की समस्या में विशेषकर लाभकारी जड़ी – बूटी है | इसमें पांचो रस विद्यमान होते है एवं कषाय रस प्रधान रूप में रहता है |

आयुर्वेदिक ग्रन्थ चरक संहिता में “दशेमानी” इसका वर्णन मिलता है | इसके अतिरिक्त अनेक व्याधियों में अन्य औषध द्रव्यों के साथ इसका उपयोग बताया गया है | सुश्रुत संहिता में विरेचन द्रव्यों का जहाँ वर्णन किया गया है वहाँ हरीतकी को ‘फलेषवपी हरीतकी’ कहा गया है |

“फलेषवपी हरीतकी” कहने से तात्पर्य यह है कि विरेचन करवाने में हरीतकी श्रेष्ठम औषधि है | तीव्र कब्ज की समस्या में हरीतकी को एरंड तेल में भुनकर इसका चूर्ण करवाके सेवन करवाने से मल त्याग हो जाता है | इस चूर्ण को एरंडभृष्ट हरीतकी नाम से जाना जाता है |

हरीतकी वानस्पतिक परिचय

हरीतकी

लेटिन नाम – Terminalia Chebula

कुल – Combreraceae

गण – त्रिफला, आमलाक्यादी, पुरुषकादि, ज्वरघ्न, कुष्ठघन

संस्कृत नाम – अभया, कायस्था, पथ्या, हरीतकी, शिवा, व्यस्था, श्रेयशी, अमृता, विजया, जीवन्ती, रोहिणी आदि |

इसका वृक्ष 50 से 80 फीट तक ऊँचा होता है | छाल गहरे भूरे रंग की लम्बाई में दरारें लिए होती है | छाल आधे इंच तक मोटी होती है | इसकी लकड़ी काफी मजबूत होती है | हरीतकी के पते 3 से 8 इंच लम्बे, 2 से 4 इंच चौड़े अंडाकार आकृति के होते है |

हरड़ के पुष्प छोटे पीताभ एवं सफेद रंग युक्त मंजरियों में आते है | इसके फल लम्बाई लिए हुए गोलाकार होते है | ये कच्ची अवस्था में हरे रंग के एवं पकने पर पीताभ धूसर रंग के होजाते है |

हरीतकी की प्रजातियाँ (भावप्रकाशनिघंटु)

भावप्रकाश निघंटु में हरड़ की सात प्रजातियाँ बताई गई है | यहाँ आप इस टेबल के माध्यम से इसकी प्रजातियाँ जान सकते है |

जातिउत्पति स्थानस्वरुपप्रयोग
01. विजया विन्ध्यपर्वत अलाबू वृत स्वरुप सर्वरोगहर
02.रोहिणी प्रत्येक स्थान गोलाकार घाव
03. पूतना सिंधु देश गुठली बड़ी होती है प्रलेपार्थ
04. अमृता चम्पादेश मांसल अर्थात गूदेदार शोधनार्थ
05. अभया चम्पादेश पांचरेखा युक्त आखों के रोग
06. चेतकी *हिमालय तीन रेखायुक्त चूर्ण के लिए
07. जीवन्ति सोरठ देश रंगीन सर्वरोगहर
* सफ़ेद = 6 अंगुल लम्बी / काली = 1 अंगुल लम्बी

हरीतकी के औषधीय गुण – धर्म

रस – पंचरसयुक्त (लवण रहित) कषाय रस प्रधान

गुण – लघु एवं रुक्ष

विपाक – मधुर

वीर्य (तासीर) – उष्ण

दोषकर्म – त्रिदोषहर

धातुकर्म – रसायन

मलकर्म – अनुलोमन

अन्यकर्म – आँखों के लिए उत्तम, आयुवर्द्धक एवं बृहन गुणों युक्त |

रोगोपयोग – श्वास, कास, प्रमेह, दीपन, मेध्य, रसायन, अर्श रोग, कुष्ठ रोग, सुजन में उपयोग, कृमि (पेट के कीड़े), गृहणी, कब्ज, ज्वरगुल्म, हिक्का, कंडू, हृदयरोग, पीलिया, शूल, यकृत एवं प्लीहा के रोग, अश्मरी, मूत्राघात, मूत्रकृच्छ (मूत्र त्याग में रूकावट), विरेचक, रक्तातिसार, प्रमेह नाशक आदि |

हरीतकी को खाने की विधि

रसायनगुणवर्धनार्थ अर्थात रसायन कर्म के लिए 6 ऋतुओं के आधार पर हरड़ का प्रयोग अर्थात सेवन निम्न बताये अनुसार किया जाता है | इस प्रकार से सेवन करना अधिक फायदेमंद होता है |

>> वृषा ऋतू – सैन्धव लवण के साथ

>> शरद ऋतू – शर्करा के साथ खाना चाहिए |

>> हेमंत ऋतू – शुंठी के साथ सेवन करना चाहिए |

>> शिशिर ऋतू – पिप्पली के साथ खाना चाहिए |

>> बसंत ऋतू – शहद के साथ सेवन करना चाहिए |

>> ग्रीष्म ऋतू – गुड़ के साथ |

प्रयोग भेदानुसार गुण

  • चर्विता (चबाकर खाने से) – जठराग्निवृद्धिकर
  • पेषिता (शिला पर पीसकर खाने से) – मलशोधन का कार्य करती है |
  • स्विन्ना (उबालकर) – संग्रहिनी |
  • भुनकर सेवन करने से – त्रिदोषहर
  • भोजन के साथ – बुद्धि, बल, त्रिदोष हर, मल – मूत्र का विरेचन करने वाली, इन्द्रिय को विकसित करने वाली |
  • सह्भोजने – अन्नपान सम्बन्धी दोष, वात-पित्त-कफ से उत्पन्न विकार को शीघ्र हरने वाली होती है |
  • सैन्धव नमक के साथ – कफ दोष को हरने वाली |
  • शर्करा के साथ – पित्त का नाश करने वाली |
  • गुड़ के साथ – समस्त व्याधियों का अंत करती है |
  • घी के साथ – वात सम्बन्धी रोग दूर करती है |

हरीतकी के फायदे / Haritaki Benefits in Hindi

  1. इसका उपयोग विरेचन अर्थात दस्त लगवाने लिए किया जाता है | विरेचन करवाने के लिए हरड़ का चूर्ण 3 से 6 ग्राम की मात्रा में गरम जल के साथ सेवन करवाने से दस्त लग जाते है |
  2. मंजन में इसके चूर्ण का सेवन फायदेमंद होता है | यह मसूड़ों की समस्याओं में लाभकारी है |
  3. स्रोतो शोधन के लिए हरीतकी चूर्ण में गोमूत्र की सात भावना देकर इसे एरंड तेल में भुनकर सेवन करने से मल त्याग होकर स्रोतों की शुद्धि होती है |
  4. मुख एवं गले के रोगों में इसके क्वाथ से गरारे करवाने से एवं कुल्ले करवाने से लाभ मिलता है |
  5. गृहणी रोग में उबालकर सेवन करना फायदेमंद होता है |
  6. सुजन एवं पीड़ा की समस्या में इसका लेप करने से लाभ मिलता है |
  7. घाव आदि की समस्या में हरीतकी का काढ़ा तैयार करके घाव को धोने से जल्द ही ठीक होता है |
  8. भूख की कमी में हरड़ को चबाकर खाने से खुलकर भूख लगती है |
  9. अर्श / बवासीर में छाछ के साथ एरंड तेल में भुनी हुई हरड़ को चूर्ण करके सेवन करवाने से आराम मिलता है | इसका प्रयोग रात्रि में करना चाहिए |
  10. गोमूत्र के साथ हरीतकी चूर्ण का सेवन करना चाहिए | इससे सुजन, पांडू, गुल्म, प्रमेह एवं खुजली आदि में आराम मिलता है |
  11. द्राक्षा के साथ समभाग हरीतकी का सेवन करने से रक्तपित्त, पित्तगुल्म एवं जीर्ण ज्वर का नाश होता है |
  12. शहद के साथ हरड़ चूर्ण का सेवन करने से विषमज्वर ठीक हो जाती है |
  13. एसिडिटी में द्राक्षा और हरीतकी चूर्ण को समभाग खिलाना चाहिए |
  14. मदात्य (शरीर में तीव्र दाह) में हरीतकी क्वाथ एवं दूध का सेवन करवाना चाहिए |
  15. गुल्म में गुड के साथ एवं हिचकी रोग में उष्णोदक के साथ हरड का सेवन करवाने से लाभ मिलता है |

प्रयोज्य अंग एवं सेवन की मात्रा

हरीतकी का मुख्यत: फल ही आयुर्वेद चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है | इसके द्वारा निर्मित चूर्ण का सेवन 3 से 6 ग्राम की मात्रा में किया जाता है | क्वाथ का सेवन 10 से 20 मिली की मात्रा में किया जा सकता है |

आयुर्वेदिक योग

इसके सहयोग से आयुर्वेद चिकित्सा की — अभयारिष्ट, एरंड भृष्ट हरीतकी, गोमूत्र हरीतकी, चित्रकहरीतकी, ब्रह्मरसायन, अगस्त्य हरीतकी, अभयादी मोदक, कंसहरीतकी, शिवाक्षर पाचन चूर्ण एवं हरीतकी चूर्ण आदि का निर्माण किया जाता है |

हरड़ (हरीतकी) का चूर्ण बनाने की विधि

हरड़ का चूर्ण बनाने के लिए सबसे पहले इसे मंद आंच पर भुना जाता है | जब यह अच्छी तरह भुन जाए तो इसे इमाम दस्ते में कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर लिया जाता है | अन्य विधियों के अनुसार सबसे पहले हरड़ को गोमूत्र से पूरित करके एवं भुनकर चूर्ण बना लिया जाता है |

हरीतकी से कब्ज के लिए बनने वाली प्रशिद्ध आयुर्वेदिक दवा एरंड भृष्ट हरीतकी बनाने के लिए सबसे पहले हरड़ को एरंड के तेल में अच्छी तरह भुना जाता है | भूनने के पश्चात इसका चूर्ण कर लिया जाता है | यही चूर्ण एरंड भृष्ट हरीतकी कहलाता है |

धन्यवाद |

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