Mouktik Bhasma / Mouktik pishti | गुण, उपयोग एवं ज़बरदस्त फायदे

समुद्र में दो प्रकार की सीप होती है, एक वह जो मोती पैदा करती है और दूसरी वह जिसमें मोती पैदा नहीं होते | आयुर्वेद में मोती पैदा करने वाली सीप की भस्म बनाई जाती है जिसे Mouktik Bhasma कहते है एवं इसी सीप से पिष्टी भी तैयार की जाती है जिसे Mouktik pishti कहते हैं | मोती सीप आकार में बड़ी, दलदार, और मोती के समान चमक वाली होती है | इसका शोधन करके भस्म बनायीं जाती है |

आइये जानते हैं मौक्तिक भस्म एवं पिष्टी के बारे में :-

औषधि का नाम (Name of medicine)Mouktik Bhasma / Pishti
औषधि का प्रकार (Type)भस्म और पिष्टी
प्रधान द्रव्य (Main Ingredient)मौक्तिक शुक्ति (सीप)
औषधीय गुण (Medicinal properties)अस्थिपौषक, बल्य, रसायन, मेधावर्धक
प्रयोग (Uses)पित्तातिसार, जीर्ण ज्वर, नेत्र रोग
अम्लपित्त, श्वेत प्रदर, यकृत रोग
सेवन (Doses)दो से चार रत्ती शहद के साथ
नुकसान (Side effects)कोई ज्ञात दुष्प्रभाव नहीं
सावधानियां (Precautions)छोटे बच्चो एवं गर्भवती महिलाओं को
चिकित्सक की निगरानी में ही सेवन करना चाहिए
Mouktik bhasma

Mouktik Bhasma क्या है / Mouktik pishti के बारे में बताएं ?

मोती पैदा करने वाली सीप से बनाई जाने वाली भस्म को ही mouktik bhasma के नाम से जाना जाता है | इसे मुक्ता शुक्ति भस्म भी बोला जाता है | इस सीप से pishti भी बनाई जाती है जिसे Mouktik pishti कहते हैं | भस्म एवं पिष्टी प्रकरण की दवाओं का आयुर्वेद में विशेष महत्व है | ये आधुनिक समय में प्रचलित नैनो मेडिसिन की तरह प्रयोग में ली जाती है | गुणों में अत्यधिक तीव्र होने के कारण इनका उपयोग बहुत ध्यान से कराया जाता है |

(और पढ़ें :- आयुर्वेद की परिभाषाएं एवं सांकेतिक नाम की जानकारी)

Mouktik bhasma का उपयोग इसके कम तीव्र होने के कारण बच्चे बूढ़े महिलाएं सभी को कराया जा सकता है | वास्तव में मोती सीप चुने का सेंद्रिय कल्प होता है | यह कपर्दक भस्म, शंख भस्म की तरह ही होती है लेकिन उनकी अपेक्षा कम तीव्र होती है | अपने पित्तशामक गुणों के कारण पित्त प्रधान रोगों में इसका उपयोग विशेष लाभकारी होता है |

Mouktik bhasma एवं Mouktik pishti बनाने की विधि

मोती से बनने वाली इस भस्म को बनाने के लिए पहले मोती को शुद्ध करना होता है |

शोधन विधि :-

अच्छी श्रेणी की सीप को लेकर उसको मिटटी के घड़े में डाल ऊपर से जल और थोड़ा निम्बू का रस डाल मंद आंच पर एक घंटा पकाना होता है | इसके बाद साफ पानी से धोकर इसे सुखा लिया जाता है | इसके पीछे के काले छिलके को खुरच के साफ कर दिया जाता है |

भस्म विधि :-

एक हांड़ी में निचे आधा सेर ग्वारपाठे का गुदा भर लिया जाता है | इसके उपर अब सीप को रखकर गजपुट यंत्र में फूंक दिया जाता है | स्वांग शीतल होने पर इसे निकाल कागजी निम्बू के रस में मर्दन कर पुनः पुट दिया जाता है | इस विधि से मुलायम एवं उत्तम श्रेणी की भस्म तैयार होती है | बाद में इसे दूध की भावना देकर सुखा लिया जाता है |

पिष्टी विधि :-

शुद्ध मुक्ताशुक्ति को लेकर अच्छे साफ किये हुए लोहे के इमामदस्ते में कूट इसका चूर्ण बना लेते हैं | अब इसे चंदनादी अर्क के साथ पत्थर की खरल में मर्दन किया जाता है जब तक यह खूब महीन न हो जाये | इसके बाद छाया में सुखाकर कपड़छन कर शीशी में भर लिया जाता है | इस तरह से Mouktik pishti तैयार हो जाती है |

मौक्तिक भस्म या पिष्टी का सेवन कैसे करना चाहिए ?

यह भस्म कौड़ी भस्म, शंख भस्म आदि के समान ही गुणों वाली होती है लेकिन उनसे कम तीव्र होती है | इसलिए इसका सेवन छोटे बच्चो, महिलाओं एवं बुजुर्गो को भी कराया जा सकता है | इसकी 200 मिलीग्राम मात्रा का सेवन शहद, मक्खन या दूध के साथ किया जाता है |

ध्यान रखें :- भस्म औषधियों का सेवन बिना चिकित्सक की सलाह के न करें |

Mouktik bhasma / Pishti के गुण उपयोग एवं फायदे

यह भस्म जैसा आपने उपर पढ़ा अन्य भस्मो की अपेक्षा कम तीव्र है अतः इसका उपयोग करनें में दुष्प्रभाव होने की आशंका कम होती है एवं बड़े बुजुर्ग, बच्चे या महिला सभी इसका सेवन कर सकते हैं | यहाँ पर हम इसका रोगानुसार कैसे उपयोग करना चाहिए एवं Mouktik bhasma के क्या फायदे हैं के बारे में विस्तार से बताएँगे |

(और पढ़ें :- अस्थमा का आयुर्वेदिक इलाज)

इसका उपयोग निम्न रोगों के लिए अधिक किया जाता है :-

Mouktik bhasma के अम्लपित्त रोग में फायदे :-

अम्लपित्त की समस्या में मौक्तिक भस्म, स्वर्ण माक्षिक भस्म, दाड़िमअवलेह का उपयोग करने से पित्त शांत हो जाता है एवं खट्टी डकार आना, जलन आदि की समस्या से जल्द लाभ मिलता है |

पित्तातिसार में फायदे एवं उपयोग :-

इस रोग में मौक्तिक भस्म या पिष्टी को दाड़िम अवलेह या अनार के शर्बत के साथ उपयोग करने से शीघ्र लाभ मिलता है | पित्त जनित वमन की समस्या हो तो इसे मौसंबी के रस के साथ सेवन करना चाहिए |

पित्त जन्य गुल्म रोग में मौक्तिक भस्म का उपयोग कैसे करें ?

इस रोग में शहद या ताजा मक्खन के साथ इस भस्म का उपयोग करना फायदेमंद होता है |

क्षय रोग में यह भस्म क्या लाभ करती है ?

क्षय की समस्या में मौक्तिक शुक्ति भस्म, प्रवाल पिष्टी, गिलोय सत्व, आंवले का मुरब्बा एवं सितोपलादी चूर्ण का सेवन करने से बहुत लाभ होता है |

नेत्र रोगों में बहुत फायदेमंद है Mouktik bhasma

नेत्र विकारों में इसका सेवन त्रिफला घृत के साथ करने से बहुत लाभ मिलता है |

धन्यवाद ||

Reference :-

Standardization and quality control parameters for Muktā Bhasma (calcined pearl)

Mukta-sukti bhasma; nectar for acid peptic disorders, w.s.r to its anti-ulcer activity – an experimental study

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *