अष्टविधा परीक्षा (Ashtavidha Pariksha) : रोग परिक्षण का आयुर्वेदिक तरीका | Ayurvedic Test in hindi

अष्टविधा परीक्षा / Ashtavidha Pariksha : किसी भी रोग का निदान करने से पहले रोग का कारण और प्रकृति जानने की आवश्यकता होती है | आधुनिक चिकित्सा के विकसित होने के साथ रोग परिक्षण (Disease diagnosis) के क्षेत्र में बहुत प्रगति हुयी है | आधुनिक मशीनो की सहायता से आज आप लगभग हर रोग के बारे में पता लगा सकते हैं एवं इससे रोग का निदान करने में या उसकी दवा निर्धारित करने में बहुत सहायता मिलती है |

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आयुर्वेद की बात करें तो प्राचीन समय से ही रोग परिक्षण विद्या मौजूद थी | बहुत से आयुर्वेद ग्रंथो एवं आचार्यों से इन आयुर्वेदिक टेस्ट के बारे में पता चलता है | उस समय जब इतनी टेक्नोलोजी नहीं थी उस समय भी हमारे ऋषि मुनियों ने अपने अनुभव से इस तरह के diagnosis या परिक्षण निर्धारित किये जिससे आसानी से रोग को समझा जा सके | आम तौर पर आप नाड़ी परीक्षा के बारे में आप जानते होंगे लेकिन इसके अलावा भी बहुत से आयुर्वेदिक टेस्ट / परिक्षण हैं जिनकी सहायता से विभिन्न प्रकार के रोगों के कारण एवं प्रकृति को निर्धारित करने में सहायता मिलती है | अष्टविधा परीक्षा में इन सभी प्रकार के परीक्षणों के बारे में बताया गया है |

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अर्थात पहले रोग का परिक्षण करना चाहिए उसके बाद ही औषधि निर्धारित करनी चाहिए | आयुर्वेद में डायग्नोसिस करना सिर्फ रोग का नामकरण करना नहीं होता बल्कि सभी तरह की जानकारी लेना होता है जिससे रोग को पूरी तरह समझा जा सके एवं उसके निदान के लिए उचित उपचार और दवा निर्धारित की जा सके |

अष्टविधा परीक्षा क्या है / आयुर्वेदिक टेस्ट क्या होते हैं एवं ये कितने विश्वसनीय हैं ?

जिस तरह से आधुनिक चिकित्सा में विभिन्न प्रकार के टेस्ट यथा ब्लड टेस्ट, यूरिन टेस्ट, सोनोग्राफी, एक्स रे आदि की सहायता से रोग एवं उसके कारणों का पता लगाया जाता है ऐसे ही आयुर्वेद में प्राचीन काल से ही विभिन्न प्रकार के परिक्षण रोग के बारे में पता लगाने एवं उसके निदान के लिए किया जाता था | निचे दी गयी सारणी से आप इन सभी आयुर्वेदिक टेस्ट के बारे में जान सकते हैं :-

परिक्षण का नाम
(Name of examination)
परिक्षण की विधि
(Method of examination)
द्विविधा परीक्षाप्रत्यक्ष एवं अनुमान
त्रिविधा परीक्षादर्शन, स्पर्शन एवं प्रश्न
चतुर्विधा परीक्षाअप्तोदेशा, प्रत्यक्ष, अनुमान एवं युक्ति
षडविधा परीक्षापंचेंद्रिया परीक्षा एवं प्रश्न परीक्षा
अष्टविधा परीक्षा नाड़ी, मल, मूत्र, जिह्वा, शब्द, स्पर्श, दृक(नेत्र), आकृति
नवविधा परीक्षादोष, औषध, देश, कला, सतम्य, अग्नि, सत्व, वाया और बल
दशविधा परीक्षाप्रकृति, विकृति, सार, समाधान, प्रमाण, सतम्य
सत्व, आहारशक्ति, व्यायामशक्ति, वाया
आयुर्वेदिक टेस्ट

इन सभी आयुर्वेदिक परीक्षणों में सबसे ज्यादा प्रचलित परिक्षण अष्टविधा परीक्षा है | जैसा की आप जानते हैं आयुर्वेद में त्रिदोष (वात, पित्त एवं कफ़) को आधार बना रोग को समझा जाता है एवं उसका उचित उपचार किया जाता है | इन तीनो दोषों में असंतुलन होने पर विभिन्न रोग प्रकट होते हैं या ये कह लें किसी रोग के कारण ये दोष असंतुलित हो जाते हैं | इसका निर्धारण करने के लिए ही इन आयुर्वेदिक टेस्ट की जरूरत होती है |

जानिये क्या है अष्टविधा परीक्षा / Know about Ashtavidha Pariksha

आयुर्वेद में रोग परिक्षण की विधियों में अष्टविधा परीक्षा सर्वाधिक उपयोगी मानी जाती है | इसके बारे में महान आचार्य योगरत्नाकर ने सबसे पहले बताया था | यह वासत्व में आठ पहलुओं की परीक्षा है | इसमें नाड़ी, मल, मूत्र, जिह्वा, शब्द, स्पर्श, दृक(नेत्र) एवं आकृति का परिक्षण करके रोग दोष निर्धारण किया जाता है | यह आधुनिक समय में प्रचलित शारीरिक परीक्षा (Physical Examination) के बहुत करीब है | एक तरह से यह पूर्ण शारीरिक परिक्षण है |

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उद्देश्य / Aim :-

  • रोगी की नैदानिक स्थिति(Clinical condition) एवं ताकत (strength) के बारे में पता लगाने के लिए |
  • रोगसूचक पहलु (Diagnostic and prognostic aspect of disease) निर्धारित करने के लिए |
  • उचित औषधि एवं उपचार निर्धारित करने के लिए |
अष्टविधा परीक्षा नाड़ीपरिक्षण

अष्टविधा परीक्षा में कौन कौन सी परीक्षा शामिल होती हैं ?

  1. Nadi Pariksha (Pulse Examination)
  2. Mootra Pariksha (Urine Examination)
  3. Mala Pariksha (Stool Examination)
  4. Jihwa Pariksha (Tongue Examination)
  5. Shabda Pariksha (Voice Examination)
  6. Sparsha Pariksha (Skin Examination)
  7. Drika Pariksha (Eye Examination)
  8. Akriti Pariksha (Examination for physical constitution)

अष्टविधा परीक्षा में होने वाली परीक्षाओं के बारे में जानें :-

१. नाड़ी परीक्षा (Pulse examination) क्या है ?

यह आयुर्वेद में निदान परिक्षण की सबसे महत्वपूर्ण पद्धतियों में से एक है | पुराने समय में हमारे वैद्य सिर्फ नाड़ी का परिक्षण करके बीमारी का सही सही पता लगा लेते थे | अभी भी यह परिक्षण प्रचलित है | इसमें नाड़ी की गति, उसकी गुणवता, गति में असामान्यता, अनियमितता आदि तथ्यों का पता लगाकर किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है | इससे त्रिदोष असंतुलन का पता चलता है |

त्रिदोष क्या होतें हैं एवं इनका पता कैसे लगते हैं ?

  • वात दोष में नाड़ी परिक्षण – इसमें नाड़ी की गति तेज, अनियमित एवं सर्प की तरह होती है |
  • पित्त दोष में नाड़ी परिक्षण – इसमें नाड़ी अधिक धड़कती हुयी प्रतीत होती है एवं मध्य में कभी कभी कम हो जाती है | इसकी तुलना कूदते हुए मेंढक से की जा सकती है |
  • कफ़ दोष में नाड़ी का परिक्षण – इसमें नाड़ी की गति धीमी हो जाती है, एवं स्थिर रहती है |

कभी कभी नाड़ी अतिव्यापी (Overlapping) प्रतीत होती है एवं लगता है की कोई मोटी परत नाड़ी के साथ घूम रही है | यह आमा दोष का संकेत है इससे सभी auto immune रोगों का निदान करने में सहायता मिलती है |

नाड़ी परिक्षण में तर्जिनी ऊँगली (index finger) वात दोष को अंकित करती है, मध्यामा (Middle finger) पित्त को एवं अनामिका (Ring finger) कफ़ दोष को अंकित करती है |

विभिन्न रोगों में नाड़ी की गति / Pulse movements in different pathological conditions :-

रोग (Pathological condition)नाड़ी की गति (Pulse movements)
ज्वर गंभीर, उष्ण, वेगवती
काम क्रोधवेगवती
चिंता, भयक्षीण
मन्दाग्निमंद
रक्त दोषउष्ण, साम
आमगंभीर
दीप्ताग्निलघु, वेगवान
क्षुधिताचंचल
आम दोषगंभीर
असाध्य व्याधिकंपन, स्पंदन
तृप्तस्थिर
pulse movements

२. मूत्र परिक्षण (Urine examination) / Urine test in ayurveda

शरीर के अंदर आई किसी भी प्रकार की विकृति मूत्र परिक्षण के द्वारा पता की जा सकती है | भोजन एवं द्रव्यों के चयापचय के बाद मूत्र सबसे अंत में बनता है | शरीर में मौजूद रसायन, भोजन, स्वास्थ्य की स्थिति, द्रव्यों की स्थिति आदि मूत्र की प्रकृति को प्रभावित करते हैं | इसलिए किसी रोग हो जाने पर मूत्र की प्रकृति एवं उसके रासायनिक अवयव जरुर प्रभावित होते हैं |

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इसलिए मूत्र का परिक्षण करके रोग की प्रकृति एवं अन्य जरूरी जानकारी का पता लगाया जा सकता है | आयुर्वेद में निम्न तरह से मूत्र का परिक्षण करके दोषों का पता लगाया जाता है |

  • वात दोष प्रकुपित होने पर :- इसमें मूत्र हल्का पिला रंग लिए होता है एवं जल्दी सुख जाता है |
  • पित्त दोष प्रकुपित होने पर :- पित्त दोष प्रकुपित हो जाने पर मूत्र का रंग लाल हो जाता है |
  • कफ़ दोष बढ़ जाने पर :- इसमें मूत्र तैलीय, गंदा और बुलबुलों वाला होता है |

मूत्र परिक्षण करने के लिए सुबह के समय 4 बजे रोगी को जगाकर मूत्र लेकर उसका परिक्षण करना चाहिए |

३. मल परीक्षा क्या है / What is stool examination ayurveda

पाचन से जुडी समस्याएं मल (stool) का परिक्षण करके निर्धारित की जा सकती है | अगर वात प्रकुपित हो तो मल शुष्क, कठोर और धूमल होता है | कफ़ दोष प्रकुपित होने पर मल पीले नीले रंग का एवं बंधा हुवा रहता है | इसी तरह पित्त दोष श्वेत एवं पिच्छिला होता है |

४. जिह्वा परीक्षा कैसे करते हैं / How tongue examination done in ayurveda ?

जीभ का परिक्षण करके रोग एवं उसकी प्रकृति का पता लगाया जा सकता है | अलग अलग तरह के दोषों में जिह्वा की अलग अलग स्थितियां होती हैं | वात दोष में जीभ ठंडी, शुष्क एवं फटी हुयी रहती है | पित्त दोष जीभ लाल काले रंग की दिखाई देती है | कफ़ दोष में जीभ चिपचिपी रहती है |

५. शब्द परीक्षा / Voice examination

शब्द या वाणी की परीक्षा करके भी विभिन्न रोगों का पता लगाया जा सकता है | आधुनिक समय में किये जाने वाले Auscultation test की तरह ही आयुर्वेद में शब्द परिक्षण किया जाता है जिसकी सहायता से दोष निर्धारण किया जाता है | जैसे वात दोष में कर्कश एवं खुरदरी आवाज प्रतीत होती है | ऐसे ही पित्त दोष में आवाज फटी हुयी सी प्रतीत होती है एवं कफ़ दोष में आवाज भारी होती है |

६. स्पर्श परीक्षा / Skin examination

इस परिक्षण में त्वचा पर स्पर्श करने पर विभिन्न दोषों में अलग अलग तरह से बोध (feel) होता है | जैसे वात प्रकुपित होने पर त्वचा शुष्क एवं ठंडी लगती है, पित्तज विकार में त्वचा पर स्पर्श करने पर उष्ण और नम लगती है और इसी तरह कफ़ दोष में यह ठंडी एवं नम बोध होती है |

७. दृक परीक्षा / Eye examination

आँखों की स्थिति एवं उनका रंग देख के रोग एवं रोगी की स्थिति के बारे में पता लगाया जाता है | किसी भी तरह का रोग होने पर हमारी आँखे जरुर प्रभावित होती हैं | आयुर्वेद में आँखों का परिक्षण करके दोष का पता लगाया जाता है | वात प्रकुपित हो जाने पर आँखें लाल रंग की एवं शुष्क हो जाती हैं | पित्तज विकार में आँखों का रंग पिला एवं लाल होने लगता है तथा जलन होती है | कफ़ विकार में आँखों में बहुत पानी आता है एवं भारीपन महसूस होता है |

८. आकृति परीक्षा / General appearance

व्यक्ति के शरीर का परिक्षण करके रोग एवं दोष की प्रकृति को समझा जा सकता है | वात दोषित व्यक्ति की त्वचा शुष्क होती है, ये बीमार बहुत जल्दी हो जाते हैं, बाल पतले होते हैं एवं इन्हें ठंडा मौसम ज्यादा पसंद नहीं आता | पित्तज विकार वाले व्यक्ति के बाल झड़ने लग जाते हैं, इनमें आत्म विश्वास एवं क्रोध बहुत होता है, भूख प्यास ज्यादा लगती है | कफज प्रकृति के व्यक्ति की त्वचा तैलीय होती है, यह भूख प्यास को कंट्रोल कर लेते हैं |

निष्कर्ष / conclusion

अष्टविधा परीक्षा आयुर्वेद में बहुत महत्वपूर्ण है | किसी भी रोग का इलाज करने से पहले शरीर का परिक्षण कर प्रकुपित दोषों एवं रोग की प्रकृति का पता लगाना अति आवश्यक है | जिस तरह से आधुनिक चिकित्सा पद्धति में विभिन्न प्रकार के टेस्ट कर के रोग का पता लगाया जाता है उसी तरह आयुर्वेद में भी अष्टविधा परीक्षा में बताये गये परिक्षण करके रोग का निदान किया जाता है लेकिन इसके लिए प्रयाप्त अनुभव होना जरुरी है |

Frequently asked question / सवाल जवाब

क्या आयुर्वेद में भी आधुनिक चिकित्सा की तरह टेस्ट किये जाते हैं ?

प्राचीन समय से ही रोग के निदान के लिए आयुर्वेद में अष्टविधा परीक्षा जैसे परिक्षण प्रचलित हैं |

अष्टविधा परीक्षा से क्या पता चलता है ?

इसमें बताये गये परिक्षण करके रोगी की प्रकृति, प्रकुपित दोष एवं रोग की अवस्था का पता लगाया जा सकता है |

अष्टविधा परीक्षा में कौन कौन से परिक्षण होते हैं ?

इसमें नाड़ी, मूत्र, मल, जिह्वा, स्पर्श, शब्द, दृक एवं आकृति परिक्षण किया जाता है |

क्या अष्टविधा परीक्षा से बीमारी का सही सही पता लग जाता है ?

ये परिक्षण दोष का निर्धारण करने के लिए किये जाते हैं | इसमें प्रयाप्त अनुभव एव जानकारी होना बहुत जरुरी होता है |

क्या आयुर्वेदिक टेस्ट भी आधुनिक चिकित्सा में होने वाले टेस्ट की तरह ही हैं ?

आयुर्वेद में होने वाले टेस्ट मुख्यतः दोष निर्धारण के लिए किए जाते हैं यह आधुनिक परीक्षणों से अलग होते हैं |

धन्यवाद ||

reference / सन्दर्भ

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