लोहासव (lohasava in hindi) आयुर्वेद चिकित्सा की क्लासिकल मेडिसिन है | लोहासव के फायदे एवं नुकसान जानने के लिए पढ़ें | लोहासव खून की कमी एवं मंदअग्नि में कारगर दवा है | इस आर्टिकल में हमने लोहासव की खुराक, घटक द्रव्य, लोहासव के फायदे एवं नुकसानों के बारे में बताया है |
दवा का नाम | लोहासव |
दवा का प्रकार | आसव-अरिष्ट |
मैन्युफैक्चरर | डाबर, बैद्यनाथ, धूतपापेश्वर, मोहता एवं अन्य |
घटक | लौह भस्म, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, त्रिफला, नागरमोथा आदि |
शेल्फ लाइफ | 3 साल |
फायदे / उपयोग | रक्ताल्पता, पीलिया, सुजन, निर्बलता, उदररोग, प्लीहावृद्धि |
मूल्य | 150 रूपए |
उपलब्धता | ऑनलाइन एवं ऑफलाइन |
ग्रन्थ सन्दर्भ | शारंगधर संहिता |
लोहासव के फायदे: यह शारंगधर संहिता में वर्णित एक प्रमुख रक्तवर्द्धक क्लासिकल दवा है | इसका इस्तेमाल आयुर्वेद चिकित्सा में विभिन्न रोगों के रोकथाम के लिए किया जाता है | यह दवा शरीर में रक्त की कमी, पीलिया, यकृत के विकार एवं प्लीहा वृद्धि आदि रोगों में कारगर दवा के रूप में आयुर्वेदिक चिकित्सक उपयोग में लेते है |
इस दवा को मुख्य रूप से आयरन टॉनिक के रूप में देखा जाता है लेकिन सिर्फ आयरन की कमी में ही यह उपयोगी नहीं है | इस दवा में अत्यंत अग्निप्रदीपक गुण विद्यमान होते है जो यकृत के कार्य को सुचारू करते है | अधिकतर खून की कमी एवं पीलिये जैसे रोग लीवर की निर्बलता के कारण होते है |
अत: यह दवा अगर अपच एवं अतिसार के सहित रक्त की कमी या पीलिये वाला रोगी हो तो काफी फायदेमंद साबित होती है |
चलिए अब लोहासव के घटक द्रव्यों के बारे में जान लेते है |
Post Contents
लोहासव के घटक | Ingredients of Lohasava in Hindi
कैसे बनती है लोहासव ?
यहाँ हम लोहासव बनाने की विधि बता रहें है | यह महज ज्ञान वर्द्धन के लिए बताया जा रहा है ताकि आप समझ सकें की आयुर्वेद की सिरप आसव अरिष्ट आदि दवाएं कैसे निर्मित होती है | इसका निर्माण करने के लिए निपुण वैद्य या आयुर्वेदिक फार्मासिस्ट की आवश्यकता पड़ती है | अत: इसे स्वयं बनाने का प्रयास न करें |
विधि – हरड, बहेड़ा एवं आंवले को छोड़कर शेष सभी ऊपर बताई गई औषधिय जड़ी – बूटियों को यवकूट करलेते है | हरड के साथ लौह भस्म को थोडा जल मिलाकर 3 दिन के लिए छोड़ दिया जाता है | फिर उसके साथ आंवले और बहेड़े का चूर्ण खरालकर जल मिलकर 4 दिन के लिए छोड़ देते है |
इसके पश्चात लौह भस्म मिले हुए त्रिफला और जौकुट औषधियों को मिलाकर 2048 तोले जल, 256 तोले शहद और 500 तोले गुड़ में अच्छी तरह मिला अमृतबान में भर मुखमुद्राकर 1 महीने के लिए निर्वात स्थान पर रख दिया जाता है | एक महीने पश्चात आसव परिपक्व होने पर इसे छान कर बोतलों में भर लिया जाता है |
इस प्रकार से लोहासव का निर्माण होता है |
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लोहासव के चिकित्सकीय उपयोग | Clinical Uses of Lohasava in Hindi
- एनीमिया (Anemia)
- सुजन (Swealing)
- दाह जलन (Inflammation)
- यकृत विकार (Liver Conditions)
- प्लीहा वृद्धि (Spleen conditions)
- मधुमेह (Diabetes)
- गुल्म (Gulma)
- अस्थमा (Asthma)
- पाइल्स (Piles)
- एनोरेक्सिया (Anorexia)
- कफ (Cough)
- पाचन विकार (Digestive)
- गृहणी (Grahani)
लोहासव के फायदे | Benefits of Lohasava in Hindi
अग्निप्रदीपक – यह दवा अत्यंत अग्निप्रदीपक है अर्थात अपचन एवं अजीर्ण जैसे रोगों में लाभदायक होती है | भूख न लगना एवं यकृत के विकारों में इसके सेवन से फायदा होता है |
रक्ताल्पता में लोहासव के फायदे – लोहासव एक बेहतरीन आयरन टॉनिक है | इसमें लौह भस्म होने के कारण शरिर में हुई आयरन की कमी को दूर करती है | रक्ताल्पता में लोहासव बहुत फायदेमंद आयुर्वेदिक औषधि है |
पाचन में फायदे – लोहासव में त्रिकटु एवं त्रिफला जैसे घटक होने के कारण, यह दवा पाचन संसथान के लिए बहुत फायदेमंद है | अपने अग्निप्रदीपक गुणों के कारण पाचन को सुधारने एवं भूख लगाने का कार्य करती है | अत: इसे पाचन के लिए फायदेमंद कहा जाता है |
त्वचा विकार – विभिन्न प्रकार के त्वचा विकारों में भी लोहासव फायदेमंद है | यह कुष्ठ आदि रोगों में पुरातन समय से ही चिकित्सार्थ उपयोग होते आई है |
प्लीहा रोग में है फायदेमंद लोहासव – प्लीहा की वृद्धि में लोहासव के सेवन से लाभ मिलता है | यह प्लीहा एवं यकृत को सुचारू रूप से कार्य करने के लिए सहयोग करती है | इसमें उपस्थित जड़ी – बूटियां स्प्लीन के लिए फायदेमंद होती है |
अस्थमा – अस्थमा रोग में दोषों का पाचन करके रक्त को शुद्ध करती है एवं अस्थमा रोग में लाभ देती है | अस्थमा रोग में भी बहुत से वैद्यों द्वारा इसका प्रयोग अन्य औषध योगों के साथ प्रयोग करवाया जाता है |
यकृत – यकृत के लिए यह दवा लाभदायक है | लोहासव यकृत के कार्य करने को सुचारू रूप से गतिशील करती है | अत: यकृत के लिए यह फायदेमंद दवा है |
लोहासव की खुराक एवं सेवन की विधि / Doses of Lohasava in Hindi
इसे 5 मिली की मात्रा में सुबह शाम वैद्य दिशानिर्देशों अनुसार लेना चाहिए | लोहासव को खाना खाने के बाद ही प्रयोग में लिया जाता है | मधुमेह एवं सवेदनशील रोगियों को बिना चिकित्सक सलाह इसका सेवन नहीं करना चाहिए | अधिकतम 45 दिन तक वैद्य सलाह से सेवन की जा सकती है |
सावधानियां या नुकसान | Precautions or Side effects of Lohasava
- लोहासव में लौह भस्म होती है अत: इसका सेवन निर्देशित मात्रा में ही करना चाहिए |
- अधिक मात्रा में सेवन करने से पेट दर्द, वमन आदि समस्याएँ हो सकती है |
- 5 साल से छोटे बच्चों को लोहासव का उपयोग नहीं करवाना चाहिए |
- 6 वर्ष से अधिक के बच्चों को वैद्य सलाह से भोजन पश्चात निर्धारित मात्रा में ही औषधि का सेवन करवाना उचित है |
- अगर इसे सिमित मात्रा में लिया जाये तो यह लम्बे समय तक लिए सुरक्षित औषधि है | इसके कोई ज्ञात साइड इफेक्ट्स नहीं है |
- गर्भवती महिलाओं को भी सेवन से पहले चिकित्सक से सलाह लेना उचित है |
- दूध पिलाने वाली माताएं भी वैद्य सलाह से सेवन कर सकती है |