Post Contents
बवासीर रोग / Haemorrhoids
“अरिवत प्राणान शृंणाती इति अर्श: | “
बवासीर को अर्श और पाइल्स के नाम से भी जानते है | आयुर्वेद में कहा गया है कि शरीर में शत्रु के भांति मार्ग को अवरुद्ध कर पीड़ा उत्पन्न करने वाले रोग को ‘अर्श’ कहते है | बवासीर या अर्श गुदा मार्ग में होने वाला एक प्रकार का मासान्कुर होता है | आयुर्वेद में इसकी मासंज विकारो में गणना की गई है | यह पुरीषवह स्रोतस की व्याधि होती है | आयुर्वेद में इस रोग को महाव्याधि व अष्ट महागद में गिना गया है अर्थात इसे कृष्टसाध्य माना जाता है | यहाँ कृछ्र साध्य का अर्थ होता है – कष्टता से ठीक होने वाला रोग |
आधुनिक चिकत्सा में इसे Hemorrhoids कहते है | बवासीर मलाशय / गुदा का रोग है | गुदा पाचन तंत्र की बड़ी आंत का सबसे अंतिम भाग होता है | इसका कार्य शरीर के अवशिष्ट पदार्थों को मल के रूप में शरीर से बाहर निकालने का होता है | लेकिन किन्ही ज्ञात और अज्ञात कारणों से मल द्वार के चारों तरफ की रक्त शिराओं (Blood Vessels) की अतिवर्द्धि हो जाती है, इन शिराओं का सुजन वेरीकोज वैन्स की तरह होता है | इनका फैलाव गुदा मार्ग में आन्तरिक और बाह्य दोनों प्रकार से होने के कारण ये मल मार्ग को अवरुद्ध कर देती है | इन्ही बढ़ी हुई रक्त शिराओं को बवासीर रोग के रूप में जाना जाता है |
बवासीर एक सामान्यत: होने वाला रोग है | यह लगभग 4 वयस्कों में से 3 को कभी न कभी भिन्न – भिन्न रूपों में प्रभावित करता है | हर बार बवासीर के लक्षण प्रकट नहीं होते लेकिन कई बार यह खुजली, जलन, पीड़ा, और मल त्याग करते समय खून का गिरना आदि लक्षण प्रकट करता है | इस रोग को मुख्यत: दो भागों में विभक्त किया जाता है –
- खुनी बवासीर / आन्तरिक बवासीर (Internal Hemorrhoids)
- बादी बवासीर / बाह्य बवासीर (External Hemorrhoids)
खुनी बवासीर / Internal Hemorrhoids
खुनी बवासीर गुदा के अन्दर की तरफ से शुरू होता है | इस बवासीर का शुरुआत में पता नहीं चलता, इसीलिए इस प्रकार का बवासीर कष्टकारी नहीं होता | शुरुआत में खुनी बवासीर में खून मल के साथ आता है बाद में यह बूंद – बूंद गिरने लगता है | इसकी गंभीरता में खून पिचकारी के रूप में गिरने लगता है और शरीर में एनीमिया रोग हो जाता है | जब तक यह मस्सा बड़ा नहीं हो जाता तब तक पीड़ादायक नहीं होता है एवं अधिक बड़ा होने पर मल के साथ बाहर आने लगता है | इसे अंगुली से दबाने पर अन्दर चला जाता है एवं अंत में यह इतना बड़ा हो जाता है कि यह अन्दर नहीं जा पाता साथ ही तीव्र दर्द उत्पन्न करता है जो इसकी गंभीरता को प्रकट करता है |
बादी बवासीर / External Hemorrhoids
बादी बवासीर या एक्सटर्नल हेम्मोर्र्होइद्स में गुदा द्वार के चारों और की रक्त नलिकाओं में दबाव के कारण बनने वाली मस्से के जैसी सरंचना से गुदा द्वार संकरा हो जाता है | इससे मल निष्काशन में रूकावट होती है, मल कड़ा होने पर रक्तस्राव होता है | बादी बवासीर में कब्ज और गैस के कारण पेट ख़राब रहता है | इसमें मस्सा गुदा के चारों ओर की त्वचा के निचे स्थित होता है | इसमें खुजली, खून और दर्द होना आदि लक्षण होते है |
आयुर्वेद के आचार्य सुश्रुत एवं माधावकर ने बवासीर / अर्श के 6 प्रकार बताये है –
- वातिक अर्श
- पैतिक अर्श
- कफज अर्श
- रक्तार्श
- सन्नीपातज अर्श
- सहज अर्श
बवासीर के लक्षण क्या है ? / Symptoms of Hemorrhoids in Hindi
बवासीर का सबसे प्रमुख लक्षण गुदा मार्ग से दर्द रहित खून बहना है एवं इससे पीड़ित व्यक्ति मल त्याग करते समय या शौचालय में गुदा मार्ग से रक्त को देख सकता है | शुरूआती अवस्था में यह रक्त बहने की समस्या बिना किसी दवाई के ठीक होती रहती है | वैसे गुदा मार्ग से खून का बहना अन्य कारण जैसे पेट दर्द, कब्ज, संक्रमण एवं ट्यूमर के कारण भी हो सकता है | अत: एसी स्थिति में चिकित्सक को दिखाना जरुरी होता है | बवासीर में निम्न वर्णित लक्षण प्रकट होते है –
- इस रोग में गुदा में अन्दर या बाहर की तरफ मस्से हो जाते है |
- इन मस्सो से खून निकलता रहता है |
- मल त्याग के साथ खून का आना इसका मुख्य लक्षण है |
- मस्सों में चुनचुनाहट एवं पीड़ा का अहसास होना |
- लम्बे समय से गुदा क्षेत्र में खुजली होना |
- गुदा से पतला दुर्गन्ध युक्त पीप स्राव का निकलना |
- बवासीर में रोगी को कभी मल कठिन तो कभी मल पतला आता है |
- गुदा मार्ग में मासंकुरों का उत्पन्न होना |
बवासीर के कारण
इस रोग के मुख्य कारण अज्ञात है | लेकिन यह पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ने वाला रोग है अत: अनुवांशिकता के कारण भी इस रोग से ग्रषित होने का खतरा रहता है | आयुर्वेद के अनुसार कब्ज एवं गरिष्ठ भोजन इस रोग का मुख्य कारण है | जब गुदा के आस पास एवं गुदा मार्ग में किन्ही कारणों से दबाव बढ़ता है तो कब्ज के कारण या गरिष्ठ भोजन के कारण व्यक्ति का मल कठोर हो जाता है , जिससे मल त्याग में परेशानी आती है एवं मल त्याग के समय इन सूजी हुई गुदा की वेंस में रगड के कारण खून आदि आने लगता है | जो आगे चलकर बवासीर का कारण बनता है | इसके आलावा इसके होने के निम्न कारण है –
- गर्भावस्था – गर्भावस्था में पाईल्स होना आम बात है जो गर्भावस्था के बाद अधिकतर अपने आप ठीक हो जाती है |
- मोटापे – मोटापे के कारण भी अर्श होने के सम्भावना रहती है क्योंकि अधिक वजन के कारण गुदा की नशे ढीली होकर लटक जाती है |
- लम्बे समय तक बैठे रहना या खड़े रहना भी बवासीर के कारण हो सकते है |
- कब्ज एवं अतिसार जैसे रोग भी बवासीर के कारण बनते है |
- low- fiber युक्त भोजन का अधिक सेवन करना |
- अधिक वजन उठाना
- शारीरिक श्रम के समय श्वास को रोकना जिसमे अधिक जोर लगता हो |
- गरिष्ठ एवं तले भुने भोज्य पदार्थों का सेवन अधिक करना |
- बुढ़ापा भी बवासीर का एक कारण माना जा सकता है |
बवासीर के मस्से का इलाज एवं उपचार
आयुर्वेद चिकित्सा के शल्य प्रधान ग्रंथो में बवासीर / अर्श की चिकित्सा के चार सिद्धांत वर्णित है –
- भेषज – भेषज से तात्पर्य है औषध चिकित्सा | बवासीर के अल्पदोष व अल्प उपद्रव अर्थात शुरूआती अवस्था में औषध द्वारा इसे नियंत्रित करना |
- क्षारकर्म – आयुर्वेद के अनुसार रक्तज , पितज और मृदु बवासीर में क्षारसूत्र चिकित्सा के माध्यम से रोग को नियंत्रित किया जाता है | यह चिकत्सा गुदा के रोगों के लिए अत्यंत प्रशिद्ध चिकत्सा है | इसे एक प्रकार की शल्य क्रिया मान सकते है | इसमें आयुर्वेदिक औषधियों से सिद्ध एक धागा होता है जिसे बवासीर के मस्से पर बांध दिया जाता है | धागे पर लगी औषधियों के प्रभाव एवं मस्से की प्रकृति के कारण जल्द ही बवासीर के मस्से का इलाज हो जाता है |
- अग्निकर्म – वातज, कफज, कर्कस एवं कठिन बवासीर के मस्से के इलाज के लिए अग्निकर्म किया जाता है |
- शस्त्रकर्म – तनुमूल एवं त्रिदोषज प्रधान बवासीर के मस्से का इलाज शस्त्रकर्म से किया जाता है |
Consider also taking natural piles supplement.