दाह रोग से तात्पर्य शरीर में किसी अंग या सम्पूर्ण शरीर में होने वाली जलन से है | इसे सामान्य भाषा में जलन कहा जाता है |
आयुर्वेद अनुसार जब भिन्न – भिन्न कारणों से पित्त कुपित होकर हाथ, पैरों के तलवे, आँखों या पुरे शरीर में जलन पैदा करता है तो यह दाह रोग कहलाता है |
अधिक तेलीय, मिर्च मसाले, गरम मसाले, पित्त वर्द्धक आहार आदि का अत्यधिक सेवन करने से पित्त प्रकुपित होकर जलन पैदा करता है |
यह शरीर के किसी एक अंग में हो सकती या पुरे शरीर में भी हो सकती है |
आयुर्वेद में दाह रोग के 7 प्रकार मानें है
- पित्त दाह
- रक्तदाह
- रक्तपूर्ण कोष्ठ दाह
- प्यास के कारण दाह
- मद्य दाह
- धातु क्षयज दाह
- मर्माभिघातज दाह
अब जानें इन 7 प्रकार के दाह का संक्षिप्त विवरण ताकि आप दाहरोग को और अधिक जान सकें |
पित्त दाह – यह एक गर्मी की बीमारी है | पित्त के दाह में पित्त ज्वर के समान लक्षण होते है | इसलिए इसकी चिकित्सा भी पित्त ज्वर की तरह करनी चाहिए |
रुधिर दाह के लक्षण – शरीर में जब खून बहुत अधिक मात्रा में बढ़ जाये तो यह भी जलन का एक कारण बनता है | शरीर में स्थित खून जब कुपित होता है तो दाह रोग पैदा करता है | ऐसा होने पर रोगी को सारा संसार जलता हुआ प्रतीत होता है |
रोगी को प्यास बहुत लगती है | दोनों आँखे और सारा शरीर लाल हो जाता है |
रक्तपूर्ण कोष्ठ दाह – किसी शस्त्र आदि से चोट लगने पर जब घाव हो जाते है | एवं घाव से अत्यंत मात्रा में खून निकलता है तो रोगी को दाह होने लगती है | ऐसे रोगी को महा दुस्तर प्रकार की जलन होती है | इसमें सद्योव्रण जैसे लक्षण प्रकट होते है | अत: चिकित्सा भी सद्योव्रण के जैसी करनी चाहिए |
मद्य दाह – अधिक शराब पीने से पित्त कुपित हो जाता है | उस कुपित पित्त की गर्मी शरीर में जलन पैदा करती है | इस प्रकार की दाह की चिकित्सा पित्त चिकित्सा की तरह की जाती है |
धातुक्षय दाह – रस, रक्त आदि धातुओं का ह्रास होने से भी दाह रोग पैदा होता है |
मर्माभिघातज – शरीर के कोमल स्थानों पर चोट लगने से जो जलन होती है वह मर्माभिघातज दाह में आती है | कोमल स्थान जैसे – मष्तिष्क, हृदय, जननांग, मूत्राशय आदि |
प्यास रोकने के दाह के लक्षण – पानी कम पीने या न पीने के कारण शरीर की पतली धातुएं क्रमश: कम हो जाती है | रोगी का गला, तालु, होठ आदि सुख जाते है | शरीर में जलन पैदा होती है |
दाह रोग को ठीक करने के घरेलु नुस्खे
- दूध में चन्दन आदि शीतल द्रव्यों का काढ़ा मिलाकर सेवन करने से दाह रोग में आराम मिलता है |
- चन्दन की तरह अन्य शीतल द्रव्यों का सेवन भी दाह में फायदेमंद रहता है |
- इस रोग में रोगी को लंघन करके शीतल आहार – विहार का सेवन करना चाइये | हल्का भोजन करना चाहिए
- पाचन को सुधारकर वमन – विरेचन करवाके रोगी के पेट को साफ करना चाहिए |
- जौ के सत्तू का लेप करने से दाह शांत हो जाती है |
- अनार एवं इम्मली को एक साथ पीसकर शरीर पर लगाने से दाह शांत हो जाती है |
- चन्दन का लेप शरीर पर करना चाहिए |
- पित्त को शांत करने के लिए कमल जल, शर्बत , मिश्री मिला ठंडा दूध और इम्मली का रस पीना लाभदायक होता है | इससे पित्त साम्यवस्था में आकर दाह ठीक हो जाती है |
- धनिये को रात में चन्द्रमा की रोशनी में पानी में भिगोकर रातभर के लिए छोड़ दें | सुबह छान कर सेवन करें | यह अत्यंत शीतलता देने वाला प्रयोग है |
- सौंफ को रात्रि में किसी मिटटी की हांड़ी में पानी में भिगो दें | सुबह मिश्री मिलाकर एवं सौंफ को पीसकर जल के साथ सेवन करें |
- गिलोय रस का सेवन भी पित्तज व्याधियों में लाभदायक होता है | इसका सेवन करने से सभी प्रकार की जलन ठीक होती है |
- चंदनादि क्वाथ, कांजिक तेल, दाहांतक क्वाथ, त्रिफ़लादि क्वाथ आदि का सेवन फायदेमंद रहता है |
धन्यवाद |