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द्राक्षारिष्ट / Draksharishta
आयुर्वेद में इसे उत्तम बलशाली औषधि माना जाता है | यह सामान्य विकृति के साथ श्वसन सम्बन्धी सभी विकारों में बेहद लाभदायक औषधि साबित होती है | भूख न लगना, शारीरिक कमजोरी, कब्ज, शारीरक थकावट, नींद की कमी आदि समस्याओं में लाभदायक होती है | श्वसन सम्बन्धी विकार जैसे – अस्थमा, जुकाम, टी.बी., खांसी एवं श्वसन मार्गों के संक्रमण को दूर करने के साथ – साथ श्वसन मार्गों के सुजन को भी कम करने में लाभदायक होती है | द्राक्षारिष्ट को एक आयुर्वेदिक टॉनिक के रूप में भी जाना जाता है | यह श्वसन एवं पाचन को ठीक करने में कारगर होती है | टॉनिक स्वरुप यह बीमारी के बाद आई कमजोरी एवं थकावट को दूर करने में लाभदायक होती है | आयुर्वेद चिकित्सा में इसे पाचन सुधारने, श्वसन विकार, खांसी, दमा, शारीरक कमजोरी, नींद की कमी, थकावट एवं अरुचि में प्रयोग प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है | इस आयुर्वेदिक सिरप का मुख्या घटक द्राक्षा है , इसके अलावा द्राक्षारिष्ट के निर्माण में 10 अन्य घटक द्रव्य पड़ते है |द्राक्षारिष्ट के घटक द्रव्य
- द्राक्षा (मुन्नका) – 2.400 किग्रा.
- गुड – 9.600 किग्रा
- धातकी पुष्प – 240 ग्राम
- इलायची – 48 ग्राम
- मरिच (कालीमिर्च) – 48 ग्राम
- पिप्पली – 48 ग्राम
- विडंग – 48 ग्राम
- दालचीनी – 48 ग्राम
- तेजपता – 48 ग्राम
- प्रियंगु – 48 ग्राम
- नागकेशर – 48 ग्राम
द्राक्षारिष्ट बनाने की विधि
सबसे पहले जल में द्राक्षा को डालकर मन्दाग्नि पर क्वाथ निर्माण किया जाता है | जब जल एक चौथाई बचे तब इसे निचे उतार कर ठंडा कर लिया जाता है | अब क्वाथ में स्थित मुन्नका को अच्छी तरह मसल कर छान लिया जाता है | इस क्वाथ जल को संधान पात्र में डालकर इसमें गुड मिलाया जाता है एवं गुड को जल में अच्छी तरह घोल लिया जाता है | अंत में धातकी पुष्प एवं प्रक्षेप द्रव्यों (बाकि बचे औषध द्रव्य) को डालकर , संधान पात्र को अच्छी तरह ढक देते है | अब इस संधान पात्र को निर्वात स्थान पर महीने भर के लिए रखा जाता है | एक महीने भर बाद इसका संधान परिक्षण विधि द्वारा परिक्षण किया जाता है | सफल होने पर इसे छान कर बोतलों में भर लिया जाता है | संधान परिक्षण करने की दो विधिय होती है एवं दोनों ही परिक्षण के लिए उपयोग में ली जाती है | एक विधि में संधान पात्र में कान लगाकर सुना जाता है जिसमे संधान पात्र से सन – सन की आवाज आना बंद हो जाने पर संधान हुआ माना जाता है | दूसरी विधि में पात्र में जलती हुई तीली ले जाई जाती है अगर तीली जल रही है तो इसे उचित संधान माना जाता है |द्राक्षारिष्ट के फायदे या स्वास्थ्य उपयोग
इसमें एंटीओक्सिडेंट गुण, पाचन , दीपन एवं बल्य गुण होते है | अत: विभिन्न प्रकार के रोगों में इसका उपयोग किया जाता है | आयुर्वेद में इसका निम्न रोगों के चिकित्सार्थ उपयोग किया जाता है |- श्वसन विकारों में
- अस्थमा के साथ शारीरक कमजोरी
- टी.बी.
- खांसी
- कफ विकार
- भूख की कमी
- नींद न आना
- रोग के कारण आई कमजोरी
- शारीरक थकावट
- हल्की कब्ज
- खून की कमी (Anemia)
- शारीरक कमजोरी के कारण चक्कर आना
- सिर दर्द
- इन्फ्लुएंजा
- निमोनिया आदि