अश्वगंधारिष्ट (Ashwagandharishta in Hindi) – घटक द्रव्य, फायदे एवं बनाने की विधि

यह आयुर्वेद चिकित्सा की शास्त्रोक्त औषधि है | अश्वगंधारिष्ट एक आयुर्वेदिक टॉनिक है जो तनाव एवं थकान में उपयोगी है | यह शरीर को ताकत प्रदान करती है एवं स्वास्थ्य को बनाये रखने में सहायक है | लम्बी बीमारी से ग्रस्त रहने के कारण आई कमजोरी में इसे टॉनिक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है |

वात विकारों में इसे प्रमुख रूप से प्रयोग करवाया जाता है | यह पुरुषों के यौन विकार जैसे नपुंसकता एवं शुक्राणुओं की कमी में भी उपयोगी है |

इस आर्टिकल में हम इसके घटक द्रव्य (जड़ी – बूटियाँ), बनाने की विधि एवं फायदों के बारे में बताएँगे | अगर आप इसमें प्रयोग होने वाली जड़ी – बूटियाँ, बनाने की विधि एवं फायदों के बारे में जानना चाहते तो आइये जानते है –

अश्वगंधारिष्ट

अश्वगंधारिष्ट के घटक द्रव्य

यह आयुर्वेद की अरिष्ट कल्पना के तहत बनाई जाने वाली दवा है | अरिष्ट आयुर्वेद की वह कल्पना होती है जिसमे औषध द्रव्यों का क्वाथ बना कर उसे संधान प्रक्रिया के माध्यम से तैयार किया जाता है |

अश्वगंधा इसका मुख्य घटक द्रव्य है | इसके अलावा इस सिरप में कुल 28 अन्य औषध जड़ी – बूटियाँ इस्तेमाल में आती है |

  1. अश्वगंधा – 1200 ग्राम
  2. मुसली – 480 ग्राम
  3. हल्दी – 240 ग्राम
  4. दारुहल्दी – 240 ग्राम
  5. मंजिष्ठ – 240 ग्राम
  6. त्रिवृत – 240 ग्राम
  7. अर्जुन छाल – 240 ग्राम
  8. नागरमोथा – 240 ग्राम
  9. मुलेह्ठी – 240 ग्राम
  10. विदारीकंद – 240 ग्राम
  11. हरितकी – 240 ग्राम
  12. रास्ना – 240 ग्राम
  13. चित्रक मूल – 192 ग्राम
  14. अनंतमूल – 192 ग्राम
  15. रक्त चन्दन – 192 ग्राम
  16. श्वेत चन्दन – 192 ग्राम
  17. कृष्ण सारिवा मूल – 192 ग्राम
  18. वासा – 192 ग्राम

प्रक्षेप द्रव्य

  1. धातकी पुष्प – 384 ग्राम
  2. नागकेशर – 48 ग्राम
  3. पिप्पली – 48 ग्राम
  4. सौंठ – 48 ग्राम
  5. मरीच – 48 ग्राम
  6. दालचीनी – 96 ग्राम
  7. इलायची – 96 ग्राम
  8. प्रियंगु – 96 ग्राम
  9. तेजपता – 96 ग्राम
  10. शहद – 7200 ग्राम

लगभग 49.152 किग्रा जल जो क्वाथ निर्माण के पश्चात 6.144 किग्रा बचता है |

अश्वगंधारिष्ट को बनाने की विधि

इस दवा के निर्माण में सबसे पहले (1) अश्वगंधा से लेकर (18) वासा तक के सभी द्रव्यों को कूट पीसकर यवकूट कर लिया जाता है | ताकि इन सबसे क्वाथ का निर्माण किया जा सके | अब जल को मन्दाग्नि पर चढ़ा कर इन औषध द्रव्यों को जल में डाल दिया जाता |

अब मन्दाग्नि पर पाक करे | जब पानी का आठवां भाग बचे तब इसे आंच से उतार कर ठंडा कर लिया जाता है |

अच्छी तरह ठंडा होने पर इस निर्मित क्वाथ को संधान पात्र में डालकर ऊपर से शहद एवं बाकि बचे प्रक्षेप द्रव्य डालकर सवा महीने के लिए संधान के लिए रख दिया जाता है |

सवा महीने पश्चात संधान परिक्षण करके दवा को छान कर रख लिया जाता है | इस प्रकार से अश्वगंधारिष्ट का निर्माण होता है | अरिष्ट एवं आसव निर्माण में संधान परिक्षण आवश्यक होता है | अगर अच्छे से संधान हुआ है तभी इसे सेवन उपयोगी माना जाता है |

संधान परिक्षण के लिए जलती हुई माचिस की तिल्ली संधान पात्र के बीच तक ले जाई जाती है | अगर तिल्ली वहाँ भी जल रही है तो इसे अच्छी तरह संधान (खामिरिकृत) हुआ माना जाता है |

अश्वगंधारिष्ट के फायदे या स्वास्थ्य उपयोग

इसके सेवन से कमजोरी दूर होकर शरीर और दिमाग में फुर्ती आती है | यह सभी प्रकार के वात विकार में प्रयोग करवाई जाती है | मानसिक विकार, उन्माद, तनाव एवं थकान में भी बहुत फायदेमंद साबित होती है |

  • मानसिक विकार जैसे – तनाव, उन्माद, चिंता एवं याददास्त की कमजोरी में लाभदायक |
  • शरीर में अतिरिक्त वात का नाश करती है |
  • वात व्याधियों के कारण होने वाले दर्द जैसे – घुटनों का दर्द, मांसपेशियों का दर्द एवं आमवात आदि रोगों में फायदेमंद है |
  • पुरुषों के लिए रसायन के रूप में प्रयुक्त होती है |
  • शुक्राणुओं की कमी एवं नपुंसकता में फायदेमंद है |
  • शरीर में बल एवं शक्ति का संचार करती है |
  • शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है | अत: इसे इम्युनिटी बूस्टर कह सकते है |
  • नींद न आने एवं बेहोशी में लाभदायक है |
  • अश्वगंधारिष्ट पाचन को सुधारती है |
  • भोजन से अरुचि में लाभदायक है |
  • माईग्रेन एवं सिरदर्द में फायदेमंद है |
  • महिलाओं में प्रसूताकाल में उपयोगी औषधि है | यह महिलाओं की शारीरिक कमजोरी को दूर करने में फायदेमंद है |
  • तंत्रिका तंत्र की कमजोरी में उपयोग करने से लाभ मिलता है |
  • तनाव एवं थकान को दूर करने वाली प्रशिद्ध आयुर्वेदिक दवा है |
  • इसके सेवन से शरीर में रोगो से लड़ने की शक्ति का संचार होता है |
  • बल्य एवं रसायन के रूप में भी उपयोगी आयुर्वेदिक दवा है |
  • मष्तिष्क को तेज करने वाली दवा है |
  • यह शरीर में शुक्र अर्थात वीर्य की वर्द्धि करती एवं सहवास के समय को भी बढाती है |
  • वातज विकारों को दूर करती है | जीर्ण आमवात में लाभदायी दवा है |

अश्वगंधारिष्ट की सेवन मात्रा एवं विधि

इसका सेवन चिकित्सक के निर्देशानुसार करना चाहिए | इसे 15 से 30 मिली की मात्रा में दिन में दो बार सेवन बराबर मात्रा में पानी मिलाकर कर करना चाहिए | बच्चों में यह मात्रा आधी रखी जानी चाहिए |

बाजार में बैद्यनाथ अश्वगंधारिष्ट, डाबर एवं पतंजलि आदि कंपनियों के अश्वगंधारिष्ट आसानी से मिल जाते है | डाबर अश्वगंधारिष्ट का मूल्य (Price) 185 रूपए है जो 450 मिली के लिए है |

सावधानियां

दवा का सेवन आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्शानुसार करना चाहिए | निर्देशित मात्रा में सेवन करने पर कोई दुष्प्रभाव नहीं होते | गर्भवती महिलाओं को चिकित्सक के परामर्श पश्चात ही दवा का सेवन करना चाहिए |

धन्यवाद |

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