दशमूलारिष्ट / Dashmoolarishta इन हिंदी – आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में आसव एवं अरिष्ट कल्पनाओं से निर्मित दवाओं का अपना एक अलग स्थान होता है | ये एक प्रकार के टॉनिक स्वरुप होते है एवं उत्तम गुणों के साथ – साथ दुष्प्रभाव रहित होते है | दशमूलारिष्ट में दशमूल के साथ कुल 69 औषधियों का योग होता है (औषधियों आभाव के आधार पर इन्हें घटाया भी जा सकता है) | स्त्री के स्वास्थ्य के लिए उत्तम औषधि है | प्रसव के पश्चात आई कमजोरी, गर्भाशय शोधन एवं सुजन जैसे विकारों में इसका प्रयोग प्रमुखता से किया जाता है | वात व्याधियां जैसे – जोड़ो का दर्द, सुजन, गठिया एवं अन्य सभी वात शूल में लाभदायक परिणाम देती है | कफज विकारों में भी इस दवाई का प्रयोग लाभदायक होता है | शारीरिक कमजोरी, शुक्राणुओं की कमी, धातु दुर्बलता, गुल्म एवं भगंदर जैसे अन्य रोगों में भी दशमूलारिष्ट के फायदे बहुत उपयोगी दवा है |
बाजार में विभिन्न कंपनियों जैसे पतंजलि, बैद्यनाथ, डाबर एवं धूतपापेश्वर आदि की दशमूलारिष्ट आसानी से उपलब्ध हो जाती है | यह लेख ज्ञानवर्द्धन के उद्देश्य से लिखा गया है, उपचार के लिए चिकित्सक का परामर्श आवश्यक है |
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दशमूलारिष्ट बनाने की विधि
दशमूलारिष्ट का निर्माण दशमूल के साथ अन्य बहुत सी जड़ी – बूटियों के सहयोग से होता है | इसकी निर्माण विधि को समझने से पहले इसके घटक द्रव्यों को जानना आवश्यक है –
1. | शालिपर्णी | 240 ग्राम |
2. | पृश्नीपर्णी | 240 ग्राम |
3. | वृहती | 240 ग्राम |
4. | कंटकारी | 240 ग्राम |
5. | गोक्षुर | 240 ग्राम |
6. | बिल्वमूल | 240 ग्राम |
7. | अग्निमंथ | 240 ग्राम |
8. | श्योनाक | 240 ग्राम |
9. | पाटला | 240 ग्राम |
10. | गम्भारी | 240 ग्राम |
11. | चित्रकमूल | 1.200 किलोग्राम |
12. | पुष्करमूल | 1.200 किलोग्राम |
13. | लोध्र त्वक | 960 ग्राम |
14. | गिलोय | 960 ग्राम |
15. | आमलकी | 768 ग्राम |
16. | यवाशक | 576 ग्राम |
17. | खदिरकाष्ठ | 384 ग्राम |
18. | विजयसार | 384 ग्राम |
19. | हरीतकी | 384 ग्राम |
20. | कुष्ठ | 96 ग्राम |
21 | मंजिष्ठा | 96 ग्राम |
22. | देवदारु | 96 ग्राम |
23. | विडंग | 96 ग्राम |
24. | मधुयष्टी | 96 ग्राम |
25. | भारंगी | 96 ग्राम |
26. | कपित्थ | 96 ग्राम |
27. | विभितकी | 96 ग्राम |
28. | पुनर्नवा | 96 ग्राम |
29. | चव्य | 96 ग्राम |
30. | जटामांसी | 96 ग्राम |
31. | प्रियंगु | 96 ग्राम |
32. | सारिवा | 96 ग्राम |
33. | कृष्ण जीरक | 96 ग्राम |
34. | त्रिवृत | 96 ग्राम |
35. | रेणुका | 96 ग्राम |
36. | रास्ना | 96 ग्राम |
37. | पिप्पली | 96 ग्राम |
38. | सुपारी | 96 ग्राम |
39. | कचूर | 96 ग्राम |
40. | हरिद्रा | 96 ग्राम |
41. | शतपुष्पा | 96 ग्राम |
42. | पद्मकाष्ठ | 96 ग्राम |
43. | नागकेशर | 96 ग्राम |
44. | नागरमोथा | 96 ग्राम |
45. | इन्द्र्यव | 96 ग्राम |
46. | शुंठी | 96 ग्राम |
47. | जीवक | 96 ग्राम |
48. | ऋषभक | 96 ग्राम |
49. | मेदा | 96 ग्राम |
50. | महामेदा | 96 ग्राम |
51. | काकोली | 96 ग्राम |
52. | क्षीरकाकोली | 96 ग्राम |
53. | ऋदी | 96 ग्राम |
54. | वृद्धि | 96 ग्राम |
क्वाथ के लिए जल = 100.608 लीटर (आठ गुना) अवशिष्ट क्वाथ = 25.152 लीटर (चौथा भाग)
इसके अलावा द्राक्षा – 3.07 किलोग्राम और इसके क्वाथ के लिए 12.288 लीटर जिसका क्वाथ बनाने के पश्चात अवशिष्ट जल – 9. 216 किलोग्राम बचना चाहिए |
इन सब द्रव्यों के अलावा निम्न प्रक्षेप द्रव्य भी पड़ते है – प्रक्षेप द्रव्य
- मधु (शहद) – 1.536 KG
- गुड – 19.200 किलोग्राम
- धातकीपुष्प – 1.440 किलोग्राम
- शीतलचीनी – 96 ग्राम
- श्वेत चन्दन – 96 ग्राम
- जायफल – 96 ग्राम
- लवंग – 96 ग्राम
- दालचीनी – 96 ग्राम
- इलायची – 96 ग्राम
- तेजपता – 96 ग्राम
- नागकेशर – 96 ग्राम
- पिप्पली – 96 ग्राम
- कस्तूरी – 3 ग्राम
- कतक फल – आवश्यकतानुसार
कैसे बनाया जाता है
सबसे पहले क्रम संख्या 1 से लेकर 54 तक की सभी जड़ी – बूटियों को दरदरा कूट कर यवकूट कर लेते है | अब लगभग 100 लीटर पानी में (1 से 54 तक के द्रव्यों का आठ गुना जल) इन जड़ी – बूटियों को डालकर मन्दाग्नि पर क्वाथ (चौथा भाग बचने पर) का निर्माण किया जाता है | अब किसी अन्य पात्र में द्राक्षा का क्वाथ बनाया जाता है | द्राक्षा का क्वाथ बनाने के लिए द्राक्षा के कुल वजन का चार गुना जल लेकर मन्दाग्नि पर पाक करते है , जब एक तिहाई पानी बचे तब इसे निचे उतार कर ठंडा कर लिया जाता है | फिर संधान पात्र में दोनों क्वाथों को डालकर उसमे गुड को घोल कर मिश्रित किया जाता है | प्रक्षेप द्रव्यों का भी यवकूट चूर्ण कर लिया जाता है | संधान पात्र के तैयार घोल में प्रक्षेप द्रव्यों के यवकूट चूर्ण को डालकर इसका मुंह अच्छी तरह बंद कर दिया जाता है | इसे 1 महीने तक किसी निर्वात स्थान पर रख देते है | महीने भर पश्चात् संधान परिक्षण के माध्यम से परीक्षित करके इसे महीन छलनी से छान लिया जाता है | इस प्रकार से दशमूलारिष्ट का निर्माण होता है | सेवन मात्रा सामान्यत: इसका सेवन 20 से 30 ml सुबह एवं शाम भोजन करने के पश्चात समान मात्रा में जल मिलाकर चिकित्सक के परामर्श अनुसार किया जाता है | किसी भी औषधि को ग्रहण करने से पहले चिकित्सक से दिशा निर्देश अवश्य लेना चाहिए, क्योंकि रोग एवं रोगी की प्रकृति के अनुसार औषध योग का निर्धारण होता है |
दशमूलारिष्ट के फायदे
- दशमूलारिष्ट के सेवन से प्रसूता स्त्रियों में गर्भाशय का शोधन एवं स्तनों में दूध की व्रद्धी होती है |
- यह सभी प्रकार की वात व्याधियों में लाभदायक औषधि है |
- वात के कारण होने वाले रोग जैसे गठिया, आमवात, संधिवात आदि में इसके सेवन से फायदा मिलता है |
- कफज विकारों को दूर करने में कारगर आयुर्वेदिक दवा है |
- श्वास , कास आदि रोगों में सेवन से लाभ मिलता है |
- महिलाओं को प्रसवोतर होने वाले सभी समस्याओं में इसका सेवन फायदा देता है |
- गर्भपात (पढ़ें बार – बार गर्भपात का आयुर्वेदिक इलाज) से पीड़ित महिलाओं के लिए दशमूलारिष्ट फायदेमंद होती है | निश्चित समय के लिए चिकित्सक के निर्देशानुसार सेवन करने से गर्भपात की सम्भावना कम हो जाती है |
- अस्थमा के रोगियों को भी दशमूलारिष्ट का सेवन करवाने से लाभ मिलता है |
- शरीर में वायु के कारण होने वाले सभी प्रकार के दर्द से राहत देता है |
- भूख न लगने या भोजन में अरुचि की समस्या को भी इसके सेवन से सुधार जा सकता है |
- पुरुषों के लिए भी यह फायदेमंद होता है | जिन पुरुषों में शुक्र के विकार या धातुक्षय की समस्या है वे इसके चिकित्सकीय सेवन से अपनी समस्याओं को दूर कर सकते है |
- गृहणी की समस्या में भी यह फायदेमंद साबित होती है | क्योंकि पाचन को बढ़ा कर यह मन्दाग्नि को ठीक करती है जिससे गृहणी रोग में भी फायदा मिलता है |
- रक्त की कमी के रोग जैसे पांडू में भी इसका चिकित्सकीय सेवन किया जाता है |
- शरीर को बल प्रदान करने वाली औषधि है |
- रक्त अशुद्धि में फायदेमंद है |
- शुक्रशोधन के लिए भी इसका सेवन किया जाता है |
दशमूलारिष्ट के चिकित्सकीय उपयोग या स्वास्थ्य प्रयोग
निम्न रोगों में इसका चिकित्सकीय प्रयोग किया जाता है –
- गर्भप्रद अर्थात गर्भाशय शोधन एवं गर्भ को ताकत देने में |
- पुष्टिकारक – शरीर को पौषित करने के लिए |
- बल्य
- शुक्रल
- धातुक्षय में
- श्वास
- वातज कास
- अरुचि
- संग्रहणी
- गुल्म
- भगंदर
- समस्त वात व्याधि
- क्षय
- छ्र्दी
- पांडू
- कामला
- कुष्ठ
- अर्श
- प्रमेह
- मन्दाग्नि
- मूत्रकृच्छ
- अश्मरी
- उदर विकारों में
- प्रसूता ज्वर
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धन्यवाद ||