मंजीठ या मंजिष्ठा नाम से पहचाने जाने वाली आयुर्वेदिक जड़ी – बूटी है | यह मंजिष्ठ पौधे की जड़ है जिसका प्रयोग रक्तविकारों में प्रमुखता से किया जाता है | मंजिष्ठा के फायदे अगर देखें तो यह आयुर्वेदिक जड़ी – बूटी महत्पूर्ण रक्तशोधक है अर्थात रक्त की विकृति एवं असुद्धि में इसका प्रयोग आयुर्वेदिक चिकित्सक बताते है |
आज इस आर्टिकल में हम आपको मंजिष्ठा के बारे में सामान्य जानकारी उपलब्ध करवाएंगे | आचार्य चरक ने इस औषधि को वर्ण्य, विष्घन, ज्वरघन गणों में गिना है | साथ ही आचार्य सुश्रुत ने इस जड़ी – बूटी को पित्तसंशमन द्रव्यों में गणना की है | सामान्य रूप से देखा जाये तो यह त्वचा विकार, बुखार एवं रक्तविकारों में उपयोगी औषधि है |
मंजिष्ठा के अन्य नाम | Different Names of Manjishtha
इसे विकसा, जिंगी, समंगा, कालमेषिका, मंडूकपर्णी, भंडिरी, भंडी, योजन्नवल्ली, रसायनी, अरुणा, काला, रक्तांगी, रक्तयष्टिका, भंडीतकी, गंडरी एवं वस्त्ररंजिनी आदि नामों से भी इसे जाना जाता है | ये सभी नाम मंजिष्ठा के पर्याय है |
नाम | क्यों कहा जाता है ? |
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मंजिष्ठा | क्योंकि यह खुबसूरत होती है | |
विकसा | अनेक गण समूहों को समाहित रखती है | |
जिंगी | यह शरिर में फ़ैल जाती है | |
समंगा | रोगों को नष्ट करने के लिए शरिर में चारो और प्रसारित हो जाती है | |
कालमेषी | रसायनी होने के कारण काल से स्पर्धा करती है | |
मंडूकपर्णी | इसके पते मेंढक के सामान होते है | |
भंडीरी | यह उत्तम रंग बनाती है | |
भांडी | उत्तम वर्ण एवं अनेक गुणों को धारण करती है | |
योजनवल्ली | इसकी लता बहुत लम्बी एक योजन तक जा सकती है | |
वस्त्ररंजिनी | यह वस्त्रों को रंजने के काम आती है | |
मंजिष्ठा के औषधीय गुण | Medicinal Properties of Manjishtha
मंजिष्ठा मधुरा तिक्ता कषाया स्वरवर्ण कृत |
गुरुरुक्षना विषश्लेष्मशोथोयोन्यक्षीकर्णरुक |
रक्तातिसारकुष्ठस्त्रवीसर्पवर्णमेहनुत ||
भावप्रकाश निघंटु (हरितक्यादी वर्ग)
औषधीय कर्म
दोषकर्म: कफ-वात शामक
अन्यकर्म: वर्ण्य, स्वर्य, विषघ्न, रक्तप्रसादन
रोगघनता: रक्तातिसार, शोथ, योनी, अक्षि, कान के विकार, कुष्ठ, विसर्प, व्रण, मेह एवं मूत्रकृच्छ
मंजिष्ठा रसपंचक
- रस – मधुर, तिक्त, कषाय
- गुण – गुरु, रुक्ष
- विपाक – कटु
- वीर्य – उष्ण
मंजिष्ठा के फायदे | Benefits of Manjishtha
त्वचा विकार (मंजिष्ठा पाउडर फॉर फेस) – यह औषधीय जड़ी – बूटी उत्तम रक्तशोधक की श्रेणी में आती है | रक्त शुद्ध होने से त्वचा सम्बन्धी विकार भी अपने आप ठीक होने लगता है | कुष्ठ जैसी असाध्य बिमारियों में भी पुराने से समय से इसका उपयोग होते आया है | आचार्य सुश्रुत ने इसे कुष्ठ के लिए भी उत्तम माना है |
घाव में मंजिष्ठा के फायदे – आग से जलने पर त्वचा में घाव हो जाते है | इन घावों में मंजिष्ठा घृत का उपयोग बाह्य प्रयोग के रूप में किया जाता है | यह औषधीय जड़ी – बूटी घावों को ठीक करने के साथ – साथ घाव में होने वाली जलन आदि को तीव्रता से ठीक करती है | मंजिष्ठादि तेल के उपयोग से भी घाव में आराम मिलता है |
विसर्प रोग – मंजिष्ठा का उपयोग विसर्प रोग में फायदेमंद होता है | यह शतधौतघृत के साथ अगर प्रयोग की जाए तो विसर्प जैसे रोग तीव्रता से नष्ट होते है |
मधुमेह रोग – मंजिष्ठा क्वाथ का प्रयोग करना फायदेमंद है | यह क्वाथ पित्तशामक एवं रक्तशोधक होने से मधुमेह एवं प्रमेह में चाहे वह रक्तज हो या पित्तज सभी फायदे देता है |
योनी रोग में मंजिष्ठा के फायदे – यह उष्णवीर्य वाली औषधि है | अत: गर्भाशयोतेजक एवं शोधन का कार्य करती है | कष्टार्तव (माहवारी का रुक – रुक के आना), अनार्तव (माहवारी का न आना), प्रसव पश्चात (बच्चे के जन्म के पश्चात) गर्भाशय का शोधन करने में उपयोगी साबित होती है |
रक्तशोधक – अर्थात यह औषधीय जड़ी बूटी रक्तप्रसादन का कार्य करती है | यह अपने तिक्त, कषाय एवं मधुर रस के कारण खून की खराबी को ठीक करने का कार्य करती है | यह रक्त में उपस्थित सभी तीनो दोषों का हरण करती है | साथ ही रक्तगत विष का शोधन भी करती है | रक्तगत विष से अभिप्राय खून में उपस्थित गंदगियाँ |
कैंसर रोग में मंजिष्ठा के फायदे – मंजीठ में कैंसर रोधी तत्व विद्यमान रहते है | यह कैंसर की कोशिकाओं के विस्तार को रोकने का कार्य करती है | इसमें Mollugin नामक यौगिक होता है | जो कौलन कैंसर से रक्षा करता है | कैंसर सेल की बढ़ोतरी को रोकने के लिए यह लाभदायक है |
आँखों के लिए है फायदेमंद – आँखों में होने वाली जलन, दर्द एवं सुजन में मंजिष्ठा बहुत फायदेमंद है | इसका लेप बनाकर आँखों पर लगाने से आँखों में होने वाली जलन, दर्द एवं सुजन में आराम मिलता है |
मंजिष्ठा का पौधा कैसा होता है ?
यह लता श्रेणी का पौधा है अर्थात इसकी बेल होती है | यह शाखा प्रशाखायुक्त अरोहिनी लता है जो दूर तक बहुत विस्तार में फैलती है | इसका काण्ड अर्थात तना कई योजन लम्बा एवं खुरदरा होता है | जड़ की तरफ से यह कठोर होता है आगे – आगे हल्का मालूम पड़ता है |
इसकी त्वचा सफ़ेद रंग की होती है | आगे का भाग लाल रंग में होता है | मंजिष्ठा के पते ग्रंथि पर चार – चार के चक्करों में लगते है | जिसमे से दो बड़े होते है | इनकी लम्बाई 1 से 4 इंच तक लम्बी हो सकती है | बेल पर फुल सफ़ेद रंग के गुच्छों में लगते है |
मंजिष्ठा के फल रंग में काले चने के आकार के गोलाकार, मांसल, बैंगनी एवं दो बीज युक्त होते है |
मंजिष्ठा की जड़ लम्बी एवं गोल ताजा अवस्था में लाल रंग की एवं सूखने पर कुछ काली हो जाती है | औषध उपयोग में इसकी जड़ों का ही इस्तेमाल होता है | जिसकी सहायता से विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण किया जाता है |
कौन – कौन से आयुर्वेदिक योगों में मंजिष्ठा का प्रयोग होता है ?
इसके उपयोग से आयुर्वेद में महामंजिष्ठादी क्वाथ, मंजिष्ठारिष्ट, खदिरारिष्ट, महामंजिष्ठाध्यासव आदि का निर्माण किया जाता है | साथ ही मंजिष्ठा चूर्ण का निर्माण भी मंजिष्ठा की जड़ों को पीसकर किया जाता है |
सेवन की मात्रा एवं नुकसान
इसका सेवन वैद्य सलाह से ही करना चाहिए | सेवन के लिए इसकी मूल का चूर्ण उपयोग में लिया जाता है | यह औषधि अभ्यंतर एवं बाह्य दोनों रूपों में प्रयोग में ली जाती है | वैद्य सलाह से ही इसका सेवन करना अधिक फायदेमंद साबित होता है | मंजिष्ठा के फायदे के साथ – साथ कुछ नुकसान भी हो सकते है | अत: निर्देशित मात्रा एवं अनुपान अनुसार ही इस औषधि को ग्रहण करना चाहिए |