चावल के औषधीय गुण एवं फायदे / Medicinal properties and benefits of Rice

चावल (Rice) :- इस नाम से आप सभी परिचित होंगे | यह चावल हमारे खान पान का एक अभिन्न अंग है, खासकर दक्षिण पूर्वी राज्यों में तो इसका उपयोग बहुत ज्यादा किया जाता है | हमारे त्योंहारो में चावल का भोग लगाया जाता है एवं पूजा पाठ में इसका विशेष स्थान है | प्रसिद्ध भारतीय व्यंजन बिरयानी चावल से बनती है एवं बहुत प्रचलित भी है | खाद्य पदार्थो में इतना प्रचलित होने के अलावा चावल का उपयोग औषधि के रूप में भी किया जाता है |

इस लेख में हम आयुर्वेदानुसार चावल के औषधीय गुण क्या हैं, इसमें कोनसे रासायनिक तत्व मौजूद हैं, हमारे शरीर पर चावल क्या प्रभाव डालता है, किन किन रोगों में चावल का प्रयोग किया जा सकता हैं एवं इसके क्या फायदे हैं आदि विषयों पर सम्पूर्ण जानकारी देंगे | आइये जानते हैं चावल के बारे में :-

नाम (Name) चावल (rice)
वानस्पतिक नाम (Botanical name)Oryza sativa Linn.
कुल (Family)Poaceae (पोएसी)
संस्कृत नाम (Sanskrit Name)शालिधान्यम, तंडूल, षष्टिका
उत्पति स्थान (Area)भारत में उष्ण कटिबंधीये प्रदेशों में
उपयोगी भाग (Useful part)मूल एवं बीज
रासायनिक संघटन (Chemical Compostion) ट्राईसिन, आइसोल्युसिन, वेलिन, मेथिओनीन
ग्लुकोट्राईसिन, कार्बोहायड्रेट, प्रोटीन, वसा,
कैल्शियम, निकोटिन, पोटेशीयम
औषधीय गुण (Medicinal Properties)त्रिदोषनाशक, रुचिकारक, बलवर्धक
मूत्रल, दीपन, पाचन, शुक्रजनक
चावल के प्रकार (types) (१) चावल
(२) शालि धान्य
(३) रक्तशालि धान्य
रोगानुसार उपयोग (uses)उदर रोग, अतिसार, रक्तार्श, मूत्रकृछ,
रक्त प्रदर, पैरो में जलन, चेहरे की झाई
चावल के औषधीय गुण

Post Contents

चावल : नाम, प्रकार, औषधीय गुण एवं प्रयोग / Rice : name, Types, Medicinal properties and uses according to ayurveda

यह मूलतः भारत एवं चीन में होने वाला अनाज है | इसकी सभी उष्ण कटिबंधीये देशो में खेती की जाती है | विश्व में लगभग सभी देशो में इसका उपयोग खाद्य पदार्थो में किया जाता है | भारत में उत्तर भारत, सिक्किम, पंजाब, राजस्थान के कुछ क्षेत्र, पश्चिम बंगाल और मध्य भारत के क्षेत्रो में इसकी खेती की जाती है | आयुर्वेद में चावल के कई प्रकार बताये गये हैं, इनमे से रक्तशालि चावल को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है |

चावल के औषधीय प्रयोग

सामान्य खान पान के अलावा चावल का उपयोग आयुर्वेद में औषधि के रूप में भी किया जाता है | अनेकों रोगों में इसका उपयोग दवा के रूप में किया जाता है | आइये जानते हैं इसके बारे में :-

चावल : वानस्पतिक एवं अन्य नाम एवं कुल / Rice : Botanical and other names, Family

  • Botanical name / वानस्पतिक नाम – Oryza sativa Linn.
  • family / कुल – Poaceae
  • Sanskrit Name / संस्कृत नाम – शालिधान्यम, तंडुल, षष्टिका
  • Hindi name / हिंदी में नाम – चावल, धान
  • gujarati / गुजराती – भात
  • tamil / तमिल – अरशी, नेल्लू
  • Udiya / उड़िया – चाउल, धान
  • Kannad/ कन्नड़ – भट्टा
  • Telagu / तेलगु – धान्युम
  • nepali / नेपाली – धान
  • Punjabi / पंजाबी – धाम, मुंजी, ताइ
  • Marathi / मराठी – तांदुल
  • English name / अंग्रेजी नाम – Rice या Asian rice
  • Arabi / अरबी – अर्रुज, अर्ज
  • फारसी – बिरांज

वानस्पतिक विशेषताएं / Botanical information

  • स्वरुप – सीधा, छोटा, तृण जातीय पौधा
  • लम्बाई – ६० से १२० सेमी
  • रंग – हरा
  • पत्र – ३० से ६० सेमी लम्बे गेंहू की तरह
  • पुष्प – गुच्छे में ८ से १० मिमी लम्बे
  • फल – ७ से १० सेमी की बाली

चावल : रासायनिक संघटन / Rice : Chemical composition

इसके पौधे में ट्राईसिन, आइसोल्युसिन, वेलिन, मेथिओनिन और सेरिक पाया जाता है | पत्रों में ग्लुकोट्राईसिन पाया जाता है | चावल के बीज में कार्बोहायड्रेट, प्रोटीन, पोटैशियम, कैल्शियम, निकोटिन और पाएरोडोक्सीन पाया जाता है |

आयुर्वेदानुसार चावल के प्रकार / Types of rice according to ayurveda

भावप्रकाश निघंटु में चावल के निम्न प्रकार बताये हैं :-

  • कलम
  • शालि
  • रक्तशालि
  • पांडूक

इनमे रक्तशालि चावल सबसे अधिक उपयोगी माना जाता है |

प्रयोज्य अंग / Useful part

  • मूल
  • बीज
चावल के प्रकार

चावल के औषधीय गुण एवं प्रभावशीलता / Medicinal properties of rice

सामान्य खाद्य पदार्थो में शामिल यह अनाज बहुत गुणकारी औषधि का भी काम करता है | आइये जानते हैं इसके औषधीय गुणों के बारे में :-

  • गुण – मधुर एवं शीत प्रकृति
  • रस – कटु या कषाय
  • त्रिदोष प्रभाव – त्रिदोषहर
  • शालि चावल वातकफ़कारक एवं पित्तशामक होता है |
  • रक्तशालि चावल त्रिदोषशामक होता है |
  • चावल बलकारक एवं शुक्रजनक होता है |
  • यह रूचि बढ़ाने वाला एवं दीपन पाचन गुणों वाला है |
  • चावल का मूल शीतल, मूत्रल एवं ज्वरघ्न होता है |
  • यह तृष्णा, प्रमेह और मूत्रकृच्छ शामक है |

चावल के औषधीय प्रयोग, चावल खाने के फायदे एवं घरेलु नुश्खे / Rice medicinal uses and home remedies

चावल प्राचीन काल से हमारे खान पान का हिस्सा रहा है | यह आसानी से उपलब्ध एवं जल्दी पकने वाला अनाज है | इसी कारण से इसका उपयोग लगभग सभी क्षेत्रो में किया जाता है | चावल अपने औषधीय गुणों के कारण बहुत सी सामान्य समस्याओं एवं रोगों में उपयोगी होता है | इसका उपयोग उदर रोग, अतिसार, पाचन विकार, मूत्र रोग, महिलाओं के प्रदर रोग, रक्तपित्त एवं त्वचा रोगों में किया जाता है |

यहाँ पर हम आपको चावल के कुछ विशेष औषधीय उपयोग के बारे में बता रहें हैं |

स्तन्यवर्धन (दूध बढ़ाने के लिए) के लिए उपयोगी है चावल का यह नुश्खा :-

प्रसूता स्त्री को कम दूध आता हो तो चावल का उपयोग लाभकारी होता है | इस समस्या में चावल का चूर्ण दूध के साथ पका कर पिने से स्तन्य की वृद्धि होती है |

उदर विकारों में चावल का क्या औषधीय उपयोग किया जा सकता है ?

चावल अपने शीतल, दीपन और पाचक गुणों के कारण उदर रोगों में बहुत लाभकारी सिद्ध होता है | आइये जानते हैं इसके प्रयोग –

  • उल्टी होने पर – धान के लावे से बने सतु में शहद मिलाकर पिने से उल्टी बंद हो जाती है |
  • भूख कम लगने पर – धान का लावा, पिप्पली मूल चूर्ण, कपित्थ को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है |
  • अतिसार (दस्त) – चावल, शक्कर को घी में भुनकर मिश्री और मधु के साथ सेवन करने से जल्द लाभ होता है |
  • चावल को पकाकर छाछ के साथ सेवन करने पर गर्मी, जी मतलाना आदि समस्या में फायदा होता है |
  • चावल को भुनकर उनको रातभर पानी में भिगो दें, सुबह इस पानी को पि लें इससे पेट के कीड़े मर जाते हैं |

बवासीर में भी फायदेमंद है चावल का सेवन करना :-

बवासीर की समस्या में पथ्य अपथ्य का ध्यान रखना बहुत जरुरी होता है | शालि एयर साठी चावल इस समस्या में पथ्य आहार में आते हैं | खुनी बवासीर में इनका सेवन पथ्य के रूप में किया जा सकता है |

मुत्रकृच्छ रोग में चावल का यह घरेलु नुश्खा अपनाएं :-

चावल मूत्रल गुणों वाला होता है | मूत्रकृच्छ रोग होने पर शतावर, काश, कुश, विदारीकन्द, शालिधान, ईख, और कसेरू से निर्मित हिम में मधू और शक्कर मिलाकर सेवन करना लाभदायी होता है |

महिलाओं के लिए गुणकारी है चावल का सेवन करना :-

महिलाओं में प्रदर रोग बहुत कष्टदायी होते हैं | रक्त प्रदर की समस्या में चावल बहुत उपयोगी होता है | इस समस्या में लाल शालि चावल को भिगोकर उन्हें पीसकर शहद के साथ रोजाना सेवन करना चाहिए | इस नुश्खे से रक्तप्रदर में जल्द लाभ मिलता है |

हड्डी टूट जाने पर भी होता था चावल का उपयोग :-

प्राचीन समय पर हड्डी टूट जाने पर शालि चावल के आटे और शतधौत घृत को मिलाकर इस का लेप बनाकर लगाया जाता था | इसका उपयोग प्लास्टर की तरह होता था |

पैरो में जलन होने पर करे चावल का उपयोग :-

शालि चावल के पानी से पैरो को धोने से जलन कम होती है | पैरो में सुजन होने पर इनको पीस कर लेप बना कर लगाने से सुजन और जलन में लाभ मिलता है |

त्वचा रोगों में चावल का औषधीय उपयोग :-

  • आग से जले हुए स्थान पर शालि चावल को पीस कर लेप बना कर लगाने से जलन कम होती है |
  • फोड़े फुंसी हो जाने पर भी यह लेप लाभ करता है |
  • चेहरे पर झाई पड़ जाने पर सफेद चावल के पानी से धोने पर झाई मिट जाती है |

रक्तपित्त रोग में बहुत गुणकारी है चावल का सेवन करना :-

रक्तपित्त रोग में धान के लावा का चूर्ण गाय के घी और शहद के साथ सेवन करने से लाभ होता है | इस समस्या में शालि और साठी चावल पथ्य आहार में आते हैं |

चावल से होने वाले नुकसान / Side effects

यूँ तो चावल अत्यंत गुणकारी आहार है | लेकिन विभिन्न रोगों एवं शरीर की अवस्थाओं में इसका सेवन करना हानिकारक हो सकता है | यह मूत्रल एवं शीत वीर्य होता है | डायबिटीज के रोगियों के लिए इसका सेवन करना हानिकारक होता है | पथरी की समस्या में भी यह अपथ्य आहार में आता है |

चावल से जुड़े आपके सवाल / FAQ

Oryza sativa Linn. इसका वानस्पतिक नाम है एव यह Poaceae कुल का है |

इसे संस्कृत में शालिधान्यम, षष्टिका, तंडूल आदि नामो से जाना जाता है |

यह मधुर कषाय, शीत, त्रिदोषहर, मूत्रल, शुक्रल,दीपन एवं पाचन गुणों वाला है |

आयुर्वेदानुसार यह कलम, शालि, रक्तशालि, पांडूक आदि प्रकार का होता है |

डायबिटीज रोग में यह अपथ्य आहार है इसका सेवन नहीं करना चाहिए |

पत्थरी की समस्या में चावल का सेवन नहीं करना चाहिए |

अतिसार, दाह, रक्तप्रदर, खुनी बवासीर, पैरो में जलन, ज्वर आदि में इसका सेवन किया जा सकता है |

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