चव्य (Java Long Pepper) : इसे आम भाषा में चाभ के नाम से भी जाना जाता है | भारत में यह आसाम, केरल, नीलगिरी की पहाड़िया एवं पश्चिमी बंगाल के कुछ क्षेत्रो में पाया जाता है | यहाँ पर इसकी खेती की जाती है | पौराणिक आयुर्वेद ग्रंथो में इसका वर्णन मिलता है, जिनमे इसे दीपनीय, अर्शोघं एवं कटु गुण वाला बताया गया है | सुश्रुत संहिता में इसकी गणना पिप्पली के गुणों के साथ की गयी है |
चव्यम विशेषाद गुद्जापहम ||
इस लेख में हम चव्य या चाभ के औषधीय गुण एवं प्रयोग, रोगानुसार इसके फायदे, रासायनिक संगठन आदि के बारे में बतायेंगे |
चव्य क्या है इसको किन किन नामों से जाना जाता है / Botanical and other names of Java Long Pepper (Chavya) ?
यह एक लता स्वरुप का पौधा है जो भारत में दक्षिण पूर्वी पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है | इसकी शाखाएं टेढ़ी मेढ़ी एवं कठोर होती हैं | चव्य के पत्ते लम्बे, हरे रंग के चमकदार कुछ कुछ पान के पत्ते के जैसे होते हैं | यह एक औषधीय पौधा है जिसका उपयोग अनेक आयुर्वेद दवाओं एवं रोगों के लिए किया जाता है |
चव्य (Java Long Pepper) :-
- वानस्पतिक नाम / Botanical name – Piper retrofractum Vahl, Piper chaba Hunter
- कुल – Piperaceae
- अंग्रेजी नाम / English Name – Java long pepper
- संस्कृत नाम – चव्यम, चविका, उषणा
- मलयालम – चव्यम
- गुजराती – चवक
- तेलगु – सवासु, चायिकामा
- बंगाली – चई, चोई
- नेपाली – चाबो
- मराठी – मिरविला, चाबचीनी
- अरबी – दार फुलफुल
- फारसी – बड़ी पिप्पली
चव्य के प्रयोज्य अंग :-
- फल
- मूल
चव्य के औषधीय गुण / Medicinal properties of Java long pepper
चव्यम स्यादुष्णकटुकम लघु रोचनदीपनम | जन्तुदेकापहम कासश्वासशुलार्तीकृन्तम ||
यह दीपनीय, अर्शोघं, शूलनाशक एवं तृप्तिघं गुणों से युक्त लता है | इसके औषधीय गुण इस प्रकार हैं :-
- यह लघु, उष्ण, कटू एवं तीक्ष्ण होती है |
- कफ एवं वातशामक है |
- इसमें पित्तवर्धक गुण होते हैं |
- यह दीपन और पाचन को बढाता है |
- शुलनाशक (दर्दनाशक) गुणों से युक्त है |
- तृप्तिघं एवं अर्शोघं गुणों से भरपूर है |
- इसके फल वातानुलोमक एवं कफ़ निसारक होते हैं |
- इसकी मूल विषनाशक होती है |
- इसके फूल श्वास कास (खांसी) एवं क्षय नाशक होते हैं |
रासायनिक संघटन / Chemical Composition
इसमें निम्न रासायनिक तत्व पाए जाते हैं :-
- फल – प्रोटीन, पाईपेरिन, अवाष्पशील तेल, स्टार्च
- काण्ड – पाईपेरिन, पिपलार्टिन, फिलफिलीन, ग्लूकोस, फ्रक्टोस
रोगानुसार चव्य के औषधीय प्रयोग, फायदे एवं सेवन की विधि / Medicinal uses and benefits of chavya
दीपन, पाचन, कफ़ एवं वातनाशक गुणों से युक्त यह वनस्पति अनेको रोगों में उपयोग ली जाती है | इसके इन्ही गुणों को ध्यान में रख कर औषधि का निर्माण करने में इसका उपयोग किया जाता है एवं रोगानुसार इसका प्रयोग किया जाता है | आइये जानते हैं इसके रोगानुसार उपयोग एवं फायदे :-
नजला-जुखाम एवं खांसी में फायदेमंद है चव्य :-
सर्दी खांसी की समस्या में यह बहुत उपयोगी है | इस अवस्था में 500 मिलीग्राम चव्य मूल चूर्ण में 250 मिलीग्राम सोंठ चूर्ण एवं 250 मिलीग्राम चित्रक चूर्ण मिलाकर शहद के साथ लेने पर नजला एवं खांसी की समस्या में लाभ होता है |
गले की खराश मिटाने में लाभकारी है चाभ :-
इसकी मूल का काढ़ा बनाकर पिने से गले की खराश की समस्या में लाभ होता है | गले में खराश होने पर 10 मिलीग्राम चव्य मूल का काढ़ा बना के पीना चाहिए |
श्वास एवं क्षय रोग में चव्य का सेवन करना उपयोगी होता है :-
दमा और क्षय रोग होने पर चव्य का सेवन करना फायदेमंद होता है |
- श्वास (दमा) – चव्य मूल का काढ़ा बना के पिने से सुजन कम होती है एवं साँस नहीं फूलता |
- क्षय रोग – चव्य. सोंठ, मरीच, पीपल, वायविडंग को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर ३ से ४ ग्राम शहद के साथ सेवन करने से लाभ होता है |
उदर (पेट) के विकारों में लाभकारी है चव्य :-
अपने दीपन एवं पाचन गुणों के कारण उदर रोगों में इसका उपयोग फायदेमंद रहता है | आइये जानते हैं :-
- चव्यादी घृत (5 से 10 ग्राम) का सेवन करने से प्रवाहिका, मूत्रकृच्छ, उदर शूल आदि रोगों में फायदा होता है |
- चव्य, चित्रक, शुंठी एवं देवदारु को समान मात्रा में लेकर क्वाथ बनाकर पिने से उदर रोगों में लाभ होता है |
- इसकी मूल का काढ़ा बना के पिने से अजीर्ण, पेटदर्द, अतिसार आदि रोगों में लाभ होता है |
- चव्य फल के चूर्ण (500 मिलीग्राम) को शहद के साथ लेने से पेट में भारीपन की समस्या में लाभ होता है |
संग्रहणी में भी उपयोगी है चव्य का सेवन करना :-
यह बहुत जटिल रोग है | इस रोग में पाचन पूरी तरह विकृत हो जाता है | ऐसे में चव्य, चित्रक, बेलगिरी, सोंठ का चूर्ण समान मात्रा में लेकर छाछ के साथ (2 से 3 ग्राम) सेवन करने से लाभ होता है |
अतिसार/ दस्त की समस्या में भी फायदेमंद है चाभ :-
चव्य फल चूर्ण एक से दो ग्राम आम की गुठली की गिरी के चूर्ण के साथ गर्म पानी में मिलाकर पिने से दस्त रुक जाते है |
भूख बढाने में भी उपयोगी है चव्य :-
भूख नही लगने या कम लगने की समस्या में चव्य फल चूर्ण के को अदरक स्वरस या शहद के साथ लेने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है एवं भूख बढती है |
प्रमेह रोग में लाभकारी है चव्य :-
प्रमेह विकार में चव्य, अरणी, त्रिफला एवं पाठा समान भाग में लेकर क्वाथ बनाकर सेवन (10 से 15 ml) करने से लाभ होता है | कफज प्रमेह में ही यह लाभकारी है |
अर्श / बवासीर में भी गुणकारी है यह वनस्पति :-
- इसके फल का चूर्ण बनाकर सेवन करने से लाभ होता है | एक से दो ग्राम चूर्ण शहद के साथ सेवन करें |
- चव्य मूल का काढ़ा बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पिने से लाभ होता है |
चव्य के उपयोग से बनने वाली औषधियों के नाम / Medicines prepared with Java long pepper
इस वनस्पति के फल एवं मूल का उपयोग अनेको आयुर्वेदिक दवाओं के घटक के रूप में किया जाता है | इनमे से कुछ के नाम निचे दिए हैं :-
- प्राणदा गुटिका
- चंद्रप्रभा वटी
- कांकायन वटी (अर्श)
- पुनर्नवादि मंडूर
- योगराज गुग्गुलु
- गर्भपाल रस
- चव्यादि घृत
- कृव्याद रस
चव्य से जुड़े सवाल जवाब / FAQ related to Chavya
भारत में यह पश्चिमी बंगाल, केरल, आसाम में पाया जाता है |
यह लता स्वरुप वनस्पति है | इसके औषधीय प्रयोग के कारण इसकी खेती की जाती है |
यह वात एवं कफ़नाशक है | दीपन एवं पाचन गुणों से युक्त है |
इसके फल एवं मूल का उपयोग अनेको रोगों में किया जाता है |
इसका उपयोग उदर रोग, बवासीर, कफ़, अस्थमा, मेदोविकार, भूख की कमी आदि समस्याओं में किया जाता है |
इस वनस्पति का उपयोग आयुर्वेद दवाओं में किया जाता है | इसके कोई ज्ञात दुष्प्रभाव नहीं है |
इसमें प्रोटीन, पाईपेरिन, स्टार्च, सिसामिन, ग्लूकोस, फ्रक्टोस, फिलफीलीन जैसे रासायनिक घटक होते हैं |
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