कायफल – इसे कट्फल, कुम्भी या रोहिणी नाम से भी जाना जाता है | यह पंजाब, हिमाचल प्रदेश एवं हिमालय के गरम इलाकों में पाई जाने वाली औषधीय वनस्पति है | आम लोगों ने इसके बारे में कम ही सुना होता है | लेकिन आयुर्वेद चिकित्सा में इस औषधीय वनस्पति का प्रयोग पुरातन समय से ही होते आया है |
कफ एवं वात शामक यह औषधीय पौधा श्वांस रोग, सिर के रोग, खुजली एवं सुजन के लिए प्रयोग होता है | नाक, कान एवं आँखों की समस्या में कायफल के सेवन से आराम मिलता है | कायफल का वानस्पतिक परिचय निचे दी गई सारणी से समझ सकते है –
वनस्पति का नाम | कायफल (कट्फल) |
अन्य भाषाओँ में नाम | कुम्भी, महाब्ल्कल,रोहिणी, कफर, करिपल, कैटर्य भद्रा |
लेटिन नाम | Myrica Esculenta |
जातियां | दो जातियां – काली और सफ़ेद |
पौधे की ऊंचाई | 10 से 15 फीट |
तना | मोटा धूसर रंग का उखड़ी हुई छाल |
टहनियां | टहनियों पर छोटे – छोटे रोम होते है |
पत्र (पते) | आगे से नुकीले 3 से 6 इंच लम्बे |
पुष्प | इसके फुल मंजरियों में लगते है | |
फल | अंडाकार आधे से पौन इंच लम्बे, खट्टे एवं मीठे होते है | |
रासायनिक संगठन | छाल में पीले रंजक, मिरीसेटिन एवं टेनिक होता है | |
कायफल (कट्फल) के औषधीय गुण
यह कषाय, कटु एवं तिक्त रस की औषधीय वनस्पति है | गुणों में लघु एवं तीक्षण होती है | कायफल उष्ण वीर्य अर्थात गरम तासीर की होती है | पाचन के पश्चात इसका विपाक कटु होता है | दोष प्रभाव के रूप में इसे कफ एवं वातशामक माना जाता है | कायफल वात एवं कफ के कारण होने वाले रोगों में लाभ देता है | वायु की अधिकता के कारण होने वाले दर्द में इसके सेवन से लाभ मिलते है |
कायफल सिरदर्द, साइटिका, जोड़ो के दर्द, गठिया रोग, श्वांस रोग एवं मधुमेह में कायफल बहुत उपयोगी है | यह अपने औषधीय गुणों के कारण ही इन रोगों के शांत करने में इतना कारगर साबित होता है |
रस | गुण | वीर्य | विपाक |
---|---|---|---|
कषाय, कटु एवं तिक्त | लघु एवं तीक्षण | उष्ण | कटु |
कायफल के फायदे एवं रोगोपयोग / Health Benefits of KayPhal in Hindi
यह औषधीय वनस्पति विभिन्न रोगों में आयुर्वेद चिकित्सा में प्रयोग की जाती है | अस्थमा, सिरदर्द, जोड़ो के दर्द, कमर का दर्द, नपुंसकता, हृदय विकार, सुजन एवं अन्य सभी वातशूल (वायु की विकृति के कारण होने वाले दर्द में) में कट्फल फायदेमंद होता है | यहाँ निचे हमने विभिन्न रोगों में इसके फायदे एवं रोगोपयोग के बारे में बताया है |
- अस्थमा रोग – कायफल, दालचीनी, कालीमिर्च, काकड़ाश्रंगी, पोहकरमूल एवं पिप्पल इन सभी का महीन चूर्ण करके शहद के साथ चाटने भर से अस्थमा ठीक होने लगता है | यह प्रयोग शरीर में बढे हुए कफ को ख़त्म करने का कार्य करता है |
- इसके पेड़ की छाल का काढ़ा बना कर एवं इसमें मिश्री मिलाकर सेवन करने से भी दमा रोग में आराम मिलता है |
- गठिया रोग – गठिया रोग में कायफल के तेल से प्रभावित अंगो पर मसाज करने से दर्द से छुटकारा मिलता है |
- सिरदर्द – अगर आप सिरदर्द से पीड़ित है तो कायफल का तेल 2 -4 बूंद लेकर सिर पर मालिश करने से आराम मिलता है |
- सुजन – सुजन की समस्या में कायफल का काढ़ा बना लें | इस काढ़े से सुजन वाले स्थान की सिकाई करें या धोएं | इससे सुजन उतर जाती है
- घाव – घाव की समस्या में भी इसके काढ़े का इस्तेमाल धोने के लिए किया जा सकता है |
- बवासीर – सबसे पहले कायफल के महीन चूर्ण में हिंग और कपूर थोड़ी मात्रा में मिलाकर देशी घी मिलाकर एक लेप जैसा तैयार करलें | इस लेप को प्रभावित स्थान पर लगायें | बवासीर ठीक होने लगेगा |
- अगर कफ के कारण सिरदर्द हो रहा है तो कायफल के चूर्ण को नाक के माध्यम से सूंघने से कफ पिघल कर निकलने लगता है एवं कफ जनित सिरदर्द में आराम मिलता है |
- कायफल के तेल की एक दो बूंद नाक में डालने से भी सिरदर्द से छुटकारा मिलता है |
- दांतों में दर्द होने पर कट्फल का काढ़ा बना कर कुल्ला करें | आराम मिलेगा | या फिर कट्फल के तने की छाल को दांतों से चबाकर मुंह में रखें दन्त दर्द में राहत मिलती है |
- कायफल का चूर्ण 1 से 2 ग्राम खाने से बुखार उतर जाती है |
कायफल का तेल बनाने की विधि
इसका तेल बनाने के लिए सबसे पहले 1 लीटर तिल का तेल लें | इस तेल को लोहे की कडाही में गरम करें | अब एक बर्तन में कायफल का चूर्ण, दालचीनी का चूर्ण एवं आक के जड़ की छाल का चूर्ण लें | इन सब को मिलाकर इस गरम तेल में डालदें | जब अच्छी तरह पाक हो जाये तब कडाही को आंच से उतार कर ठंडा करके कपडे से छान लें |
तेल के ठंडा होने के पश्चात इसमें कपूर का थोडा चूर्ण मिलादें | इस प्रकार से कायफल का तेल तैयार होता है | यह तेल सभी प्रकार के दर्द में मसाज के लिए प्रयोग कर सकते है |
कायफल के दुष्प्रभाव / Side Effects of KayPhala in Hindi
अगर चिकित्सा निर्देशित मात्रा में सेवन किया जाये तो इसके कोई ज्ञात दुष्प्रभाव नहीं है | लेकिन अधिक मात्रा में सेवन करने से लीवर के लिए नुकसान दायक हो सकता है | साथ ही पेटदर्द होना या उल्टी होना जैसी शिकायते हो सकती है | अत: कायफल चूर्ण का सेवन चिकित्सक के परामर्श से निर्देशित मात्रा में ही सेवन करना चाहिए |
सामान्य सवाल – जवाब / Faq
कट्फल चूर्ण को 3 से 5 ग्राम की मात्रा में या वैद्य के द्वारा निर्देशित मात्रा में सेवन करना चाहिए |
यह शिरोरोग (आँख, नाक, गला, कान के रोग), श्वांस रोग, खाज – खुजली, सुजन एवं वात वृद्धि के कारण होने वाले दर्द में कायफल के रोगप्रभाव माने गए है |
इसकी छाल की त्वचा अधिकतर औषधीय उपयोग में ली जाती है | अर्थात कायफल का चूर्ण इसकी छाल से निर्मित किया जाता है | लेकिन इसके फुल, बीज एवं जड़ का प्रयोग भी औषधि के लिए किया जाता है |
इसके सहयोग से मुख्य कट्फल नस्य एवं कट्फलादी क्वाथ, पुष्यानुग चूर्ण, अरिमेदादी तेल, खादिरादी गुटिका आदि दवाओ का निर्माण किया जाता है | साथ ही कायफल का तेल भी बनता है |
इसके काढ़े का सेवन 20 से 40 मिली की मात्रा तक वैद्य के दिशा निर्देशों में सेवन कर सकते है |
सन्दर्भ / Reference
Myrica esculenta Buch.-Ham. ex D. Don: A Natural Source for Health Promotion and Disease Prevention
आपके लिए अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां
- सहजन के औषधीय गुण धर्म एवं फायदे
- वरुण का पौधा एवं रोगोंपयोग
- शतपुष्पा के स्वास्थ्य लाभ
- गुग्गुल का पौधा एवं स्वास्थ्य उपयोग
- मांसरोहिणी क्या है ?
धन्यवाद ||