मांसरोहिणी / Mansrohini क्या है ? फायदे एवं नुकसान

मांसरोहिणी एक जंगली वृक्ष है जो आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में पुरातन समय से ही उपयोग होते आया है | इसे विभिन्न नामों से पुकारा जाता है जैसे रोहिणी, रोहण आदि | चरक संहिता में मांसरोहिणी को बल्य माना गया है |

मांसरोहिणी
मांसरोहिणी का पौधा

पर्याय

हिंदी – मांसरोहिणी, रोहन एवं रोहिनी

संस्कृत – अतिरुहा, वृन्ता, चर्मकशा, प्रहारवल्ली, विक्षा, वीरवती आदि |

मराठी – रोहिणी

अंग्रेजी – Red Wook Tree

लेटिन – Soymida febrifuga A. Juss.

मांसरोहिणी का वानस्पतिक परिचय

इसका वृक्ष बहुत ऊँचा होता है | तने की त्वचा अर्थात छाल 1/3 इंच मोटी होती है | इसकी छाल का रंग नीलापन लिए कुछ धूसर रंग की देखने को मिलती है | त्वक को काटने पर लाल रंग का तरल पदार्थ निकलने लगता है | और शायद इसी कारण इसका नाम मांसरोहिणी पड़ा |

पते 9 से 18 इंच लम्बे पक्ष्वत एवं पत्रक 2 से 4 इंच लम्बे अंडाकार एवं चिकने होते है | पौधे पर छोटे, हरिताभ स्वेत फुल लगते है जो पकने के पश्चात काले रंग में बदल जाते है |

रासायनिक संगठन देखा जाये तो इसमें Lupeol, Sitasterol, Febrifugin, Methyl angolensate आदि होते है |

मांसरोहिणी के औषधीय गुण – धर्म / Properties

मांसरोहिणी वृष्या सरा दोषत्रयापहा: |

भा.वि. गुदुच्यादी वर्ग

रस – कटु एवं कषाय

गुण – लघु एवं रुक्ष

विपाक – कटु

वीर्य – शीत

दोषकर्म – त्रिदोषहर

अन्य कर्म – वृष्य, पौष्टिक, संधानीय, घावभरने वाल

मांसरोहिणी के फायदे या स्वास्थ्य उपयोग / Mansrohini ke Fayde

यह औषधीय वनस्पति बहुत ही गुणकारी है | यह मधुर, तिक्त , कषाय एवं शीत होने के साथ – साथ शरीर में बल का वर्द्धन करने वाली, घावों को ठीक करने वाली, रुचिकारक, एवं कंठशोधक गुणों से युक्त होती है |

विभिन्न रोगों में इसका प्रयोग फायदेमंद रहता है | यहाँ निचे हमने विभिन्न रोगों में इसके फायदों एवं उपयोगों का वर्णन किया है |

  • जीर्णज्वर – मलेरिया जैसे रोगों में मांसरोहिणी अच्छे परिणाम देती है | इसकी छाल का 1 ग्राम चूर्ण गुनगुने जल के साथ सेवन करवाने से मलेरिया रोग में आराम मिलता है |
  • अतिसार – अर्थात दस्त की समस्या में आधा ग्राम इसकी छाल का चूर्ण ठन्डे जल के साथ किया जाता है तो अतिसार में लाभ मिलता है |
  • मूत्र विकारों – मूत्र विकारों में इसकी छाल के चूर्ण में थोड़ी मात्रा में सेंधा नमक मिलाकर सेवन करवाने से आराम मिलता है |
  • स्तन्य विकारों में – स्तन्य विकार दूर करने के लिए इसके क्वाथ का 10 मिली की मात्रा में सेवन करने से लाभ मिलता है |
  • गठिया रोग में भी इसकी छाल का क्वाथ बनाकर सेवन करने से अत्यंत लाभ मिलता है |
  • घाव भरने के लिए – इसके क्वाथ से घाव को धोने से घाव जल्दी भरता है |

नुकसान / Side Effects

वैद्य के दिशानिर्देशों में इसका सेवन करना चाहिए | बताई गई मात्रा से अधिक सेवन नहीं करना चाहिय | वैसे इस औषधीय पौधे के कोई साइड इफेक्ट्स नहीं है लेकिन फिर भी अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से विपरीत प्रभाव हो सकते है |

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