सहजन या मोरिंगा नाम से जाना जाने वाला यह औषधीय पौधा बहुत ही प्रसिद्द है | सहिजन या शिग्रु को अधिकतर भारतीय पहचानते है | यह प्राय: सम्पूर्ण भारतवर्ष में होता है | वर्तमान में मोरिंगा के स्वास्थ्य लाभ को MLM कंपनियों ने प्रचार करके काफी विस्तृत कर दिया है |
अब इसकी औषधीय पौधे की किसानो द्वारा खेती भी की जाने लगी है | क्योंकि वर्तमान में यह काफी डिमांड में चल रहा है |
लेकिन यह तो इसके वर्तमान की बात हुई | आज हम बात करेंगे आयुर्वेद के द्रष्टिकोण से सहजन के स्वास्थ्य लाभ एवं औषधीय गुणों के बारे में …
वैदिक काल से सहजन को व्यवहार में एक उपयोगी वनस्पति के रूप में लिया गया है | कृमि रोग में पुराने समय से ही इसे नवनीत के साथ प्रयोग किया जाता रहा है |
बृहत्रयी में शिग्रु (मोरिंगा) को कृमिघन, स्वेदजनन, तथा शिरोरोगविरेचनार्थ इसके उपयोग का वर्णन मिलता है | इसकी छाल से कृमिरोग, बीज से नस्य एवं पतों से दर्द वाले स्थान पर स्वेदन किया जाता था | और आज भी यह इन परिस्थितयों में प्रचुरता से उपयोग होता है |
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सहजन का वानस्पतिक परिचय / Botanical Introduction of Moringa in Hindi
इसका वृक्ष मध्य्माकार का 20 से 25 फीट ऊँचा होता है | पौधे की त्वचा चिकनी, मोटी, भूरे रंग की एवं लम्बाई में फटी हुई होती है और इसका काष्ठभाग मृदु होता है |
इसके पते संयुक्त, पक्षाकर, 1 – 3 फीट लम्बे होते है | इसके पत्रक अंडाकार 6 -9 के युग्म में, अभिमुख क्रम में सलंग्न आधे से पौन इंच लम्बे होते है |
सहजन या मोरिंगा के फुल श्वेतवर्ण के शहद के समान गंध वाले होते है | पौधे पर फलियाँ लगती है जो 6 से 20 इंच लम्बी होती है | बीजों के बीच में पतली एवं 6 से 9 सिराओं से युक्त धूसर फलियाँ होती है |
सहजन के बीज सफ़ेद, सपक्ष, त्रिकोणाकार, लगभग 1 इंच लम्बे होते है | इसके बीजों को श्वेत मरीच भी बोला जाता है |
पौधे से गोंद भी प्राप्त होता है जो ताजा रहता तब दुधिया एवं पुराना होते ही लाल या गुलाबी रंग का हो जाता है |
आयुर्वेदिक ग्रन्थ भावप्रकाश निघंटु ने इसके तीन प्रकार बताये है | यह तीनो प्रकार रंग के आधार पर है |
- श्यामा
- श्वेत
- रक्त
सहजन के अन्य नाम / Sahjan Ke Anya Naam
हिंदी – सहजन, सहिजन
संस्कृत – शिग्रु, तीक्ष्णगंधा, अक्षिव, शोभांजन, मोचक एवं मधुशिग्रु
मराठी – शेवगा
English – DrumStick Plant, Horse Radish Tree
लेटिन नाम – Moringa Pterygosperma Gaertn.
सहजन के आयुर्वेदिक गुण / Ayurvedic Gun
औषधीय गुणों के आधार पर ही सहजन या मोरिंगा को इतना फायदेमंद जाना जाता है | भावप्रकाश निघंटु आयुर्वेदिक ग्रन्थ में कहा गया है कि –
शिग्रु: कटु: पाके तिक्ष्नोश्नो मधुरो लघु: |
दीपनो रोचनो रुक्ष: क्षारस्तिक्तो विदाहकृत ||
संग्राही शुक्रलो हृध्य पितरक्तप्रकोपन |
चक्षुश्य कफपित्तघनो विद्रधिअश्वायथूक्रिमिन ||
मेदोपचिविषप्लीहगुल्मगंडवर्णान हरेत ||
भा. नि. गुडूच्यादी वर्ग
अर्थात यह रस में मधु, तिक्त एवं कटु होता है | गुण में लघु है | सहिजन का विपाक पचने के पश्चात कटु ही होता है | एवं तासीर अर्थात वीर्य में उष्ण है |
अपने इसी गुणों के कारण यह कफवात शामक, पित्तप्रकोप करने वाला है | यह दीपन, पाचन, रोचन, शुक्रल, हृदय चक्षुष्य (आँखों) के लिए हितकारी, कीड़ों को खत्म करने वाला, सुजन एवं गुल्म रोगों में अत्यंत फायदेमंद है |
सहजन के फायदे / Health Benefits of Moringa in Hindi
- दीपन एवं पाचन के लिए सहजन लाभकारी है | यह अपने तिक्त एवं कटु रस के कारण पेट में उपस्थित पाचक रस का वर्द्धन करता है अत: खाया पिया जल्दी एवं अच्छे से पचता है |
- रोचन अर्थात खाने में अरुचि को दूर करता है | कटु एवं तिक्त गुणों के कारण जीभ से कफ को हटाकर जीभ का शोधन करता है | एवं भोजन में रूचि पैदा करता है |
- कीड़ो की समस्या अर्थात कृमि दूर करने में भी मोरिंगा बहुत फायदेमंद है | यह अपने औषधीय गुणों के कारण पेट में उपस्थित कीड़ों को खत्म करता है |
- वातव्याधियों में भी मोरिंगा बहुत लाभकारी है | यह कफ एवं वात हर आयुर्वेदिक द्रव्य है अत: वात प्रकोप के कारण होने वाली व्याधियों को शांत करने में अपना अलग महत्व रखती है |
- सहजन के काढ़े में शहद मिलाकर सेवन करवाने से पेट के कीड़े खत्म होते है |
- बाहरी चोट आदि में इसकी जड़ की छाल का लेप बना कर प्रयोग करवाने से घाव में काफी आराम मिलता है |
- नेत्राभिश्यंद में सहजन के पतों का कल्क बना कर आँखों पर बांधने से अत्यंत लाभ मिलता है | इसी लिए चक्षुष्य कहा गया है |
- यह शरीर के लिए पौषक की तरह कार्य भी करता है | इसमें उपस्थित तत्व शरीर का पौषण करते है |
- मूत्रसंस्थान के रोग जैसे अश्मरी में भी शिग्रु फायदेमंद औषधीय वनस्पति है |
- यह भरपूर मात्रा में एंटीओक्सिडेंट से परिपूर्ण है | अत: हृदय विकार, मधुमेह या प्रमेह रोगों में लाभ देता है |
सहजन के प्रयोज्य अंग / Uses in Hindi
औषध उपयोग में इसकी जड़, छाल, पते, पुष्प, फल, बीज, गोंद एवं तेल का प्रयोग किया जाता है | बाजार में भी यह कई रूपों में उपलब्ध है | जैसे पाउडर, गोंद, तेल आदि |
आयुर्वेद में इसके सहयोग से शिग्रु मूल क्वाथ एवं पत्रकल्क का निर्माण किया जाता है | प्रयोग की मात्रा के रूप में जड़ का चूर्ण 3 से 5 ग्राम एवं छाल का प्रयोग 2 ग्राम तक किया जा सकता है |
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