शतपुष्पा / Shatpushpa : एक औषधीय वनस्पति है, जो भारतवर्ष में प्राचीन समय से ही औषध एवं घरेलु प्रयोग में ली जाती रही है | आचार्य चरक ने शतपुष्पा को आस्थापनोपग एवं अनुवासनोपग गणों में गिनती की है |
चरक संहिता में शतपुष्पादि से सिद्ध तेल का प्रयोग पार्श्वशूल (पसलियों का दर्द) में लेपन के लिए बताया गया है | काश्यपसंहिता में शतपुष्पा शतावरीकल्प नामक एक स्वतंत्र अध्याय का वर्णन प्राप्त होता है |
अत: इन सब बातों को जानकर हम कह सकते है कि यह प्राचीन औषधीय वनस्पति है जिसका प्रयोग आयुर्वेद चिकित्सा में विभिन्न रोगों के चिकित्सार्थ किया जाता है |
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शतपुष्पा (सोआ) वानस्पतिक परिचय
इसका पौधा 1 से 3 फीट ऊँचा क्षुप होता है | पते अत्यंत कोमल, बहुविभक्त 5 से 6 इंच लम्बे होते है | पुष्प पीताभ वर्ण के छत्राकार लगते है | फल अंडाकार, पिचटे, उन्नतोदर, सपक्ष एवं प्राय: दोनों अर्धखंड मिले हुए किनारे होते है |
हमारे भारत में यह सर्वत्र उगाया जाता है | विशेषकर गरम एवं शीतोष्ण प्रदेशों में इसकी खेती की जाती है | इस पौधे की जाति यूरोपीय होती है |
विभिन्न नाम
हिंदी – सोया, सोआ
संस्कृत – शतपुष्पा, शाताह्वा, मधुरा, कारवी, मिसी, अतिलंबी, सितछ्त्र
मराठी – शेप, बालंतशेपा
English – Dill Seed
लैटिन – Anethum Sowa Kurz.
Family – Umbelliferae
शतपुष्पा के औषधीय गुण धर्म
शतपुष्पा लघुस्तिक्ष्ना पित्तकृद्दिपनी लघु: |
उष्णा ज्वरानिलश्लेषमव्रणशुलाक्षीरोगहृत ||
भावप्रकाश निघंटु, हरितक्यादिवर्ग
रस – कटु एवं तिक्त
गुण – लघु, रुक्ष एवं तीक्षण
विपाक – कटु
वीर्य – उष्ण
दोषकर्म – वात एवं कफ शामक
शतपुष्पा के फायदे / Health Benefits of Shatpushpa / Soa
यह उत्तेजक, स्तनों में दूध बढ़ाने वाला, दीपन, पाचन, वातानुलोमन, ज्वर, व्रण (घाव), शूल (दर्द) एवं आँखों के रोगों में अत्यंत लाभदायक औषधीय वनस्पति है | आयुर्वेद चिकित्सा में इसके बीजों एवं सिद्ध तेल का प्रयोग रोगों के उपचारार्थ किया जाता है |
- दीपन एवं पाचन गुणों से युक्त होने के कारण इसका प्रयोग अरुचि, अजीर्ण एवं भूख की कमी में प्रमुखता से किया जा सकता है |
- आफरा एवं पेट दर्द में भी यह अत्यंत लाभदायक औषधि है | बच्चों के पाचन विकार एवं आफरा और पेटदर्द में शतपुष्पा का अर्क बनाकर चुने के पानी के साथ सेवन करवाया जाता है |
- शतपुष्पा चूर्ण को शहद के साथ सेवन करवाने से भूख खुलकर लगती है |
- पेट में मरोड़ आती हो तो शतपुष्पा चूर्ण को विरेचन औषधियों के साथ सेवन करवाने पर विरेचन के समय पेट में मरोड़ आना बंद हो जाता है |
- अतिसार अर्थात दस्त की समस्या में शतपुष्पा चूर्ण या क्वाथ का सेवन फायदेमंद रहता है | यह कोष्ठ में लघुता लाती है | वातातिसर एवं प्रवाहिका में शतपुष्पा लाभदायक है |
- बुखार की समस्या में शतपुष्पा अपने गुणों उष्ण एवं तिक्त होने के कारण रसगत पित्त का अनुलोमन करके आमपाचन एवं स्वेदजनन कार्य करके बुखार को उतार देती है |
- गर्भाशय शोधन में भी सोआ काफी फायदेमंद है | यह प्रसूता में वमन, अजीर्ण एवं हिक्का, दर्द और स्तनों में दूध की वृद्धि में लाभ देती है |
- बाह्य प्रयोग के रूप में भी शतपुष्पा काफी फायदेमंद औषधि है | सोआ के पतों एवं जड़ को पीसकर लुग्दी बनाकर जोड़ो की सुजन और दर्द में प्रभावित अंग पर लेप करने से अत्यंत लाभ मिलता है |
- दर्द वाले भाग पर सोआ को दूध में पीसकर लगाने से आराम मिलता है |
- पक्षाघात एवं जोड़ो के दर्द में सोया तेल की मालिश करने से भी फायदा होता है |
- अगर शरीर पर कंही कोई घाव है तो इसके पतों को तेल से चुपड़ कर गरम करके घाव पर बंधने से आराम मिलता है | घाव जल्दी भरते है |
- अस्थिवात, कटिवात एवं संधिवात में शतपुष्पा, देवदारु, सैन्धव और हिंगू के चूर्ण को अर्कक्षीर में भिगोकर सुजन वाले भाग पर लगाना फायदेमंद रहता है |
शतपुष्पा (सोआ) का प्रयोज्य अंग एवं सेवन विधि
औषध उपयोग में शतपुष्पा चूर्ण अर्थात इसके बीजों का पर्योग किया जाता है | साथ ही शतपुष्पा से सिद्ध तेल का प्रयोग भी आयुर्वेद चिकित्सा में प्रचलित है | इसके चूर्ण की मात्रा 1 से 2 ग्राम तक ली जा सकती है |
शतपुष्पा के योग से बनने वाली विभिन्न आयुर्वेदिक योग
- अर्कशतपुष्पा
- रज: परिवर्तिनी वटी
- एरंडपाक
- सौभाग्यशुंठी पाक
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