स्वर्णमाक्षिक भस्म : आयुर्वेद के रसशास्त्र की यह क्लासिकल आयुर्वेदिक दवा है | भस्म प्रकरण की दवाएं अधिकतर खनिज पदार्थों, धातुओं एवं उपधातुओं का शोधन एवं मारण करके इनका निर्माण किया जाता है | पुरातन समय से ही इन औषधियों का प्रयोग होते आया है |
आयुर्वेदिक भस्मों को नैनो मेडिसिन कहा जा सकता है क्योंकि ये नैनो स्ट्रक्चर की आयुर्वेदिक दवाएं होती है | इन भस्मों का रोग पर असर अन्य काष्ठऔषधियों से अधिक एवं तीव्र होता है | पश्चिमी देशों में नैनो मेडिसिन पर रिसर्च अभी की जा रही है जबकि हमारे यहाँ ये दवाएं पुरातन समय से ही प्रयोग होती आई है |
स्वर्णमाक्षिक भस्म को पित्तकफज विकारों, मधुमेह, मोटापे, रक्त विकार, एनीमिया एवं खुनी बवासीर में विशेषकर प्रयोग करवाई जाती है | यह सौम्य प्रकृति की भस्म औषधि है अत: बालक, बुजुर्ग एवं महिलाओं को भी इसका प्रयोग बेझिझक करवाया जाता है | आज इस आर्टिकल में आपको स्वर्णमाक्षिक भस्म के घटक द्रव्य, बनाने की विधि एवं इसके फायदों के बारे में बताएँगे |
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स्वर्णमाक्षिक भस्म के औषधीय गुण
आयुर्वेद में विशेष रूप से पित एवं कफ के कारण उत्पन्न व्याधियों में इसे अत्यंत लाभदायक माना जाता है | यह विपाक में मधुर, तिक्त एवं कषाय होती है | इसे रसायन, बल्य, योगवाही, शक्तिवर्द्धक, पित्त का नाश करने वाली एवं ठंडी प्रक्रति की औषधि माना जाता है | खून की कमी, पीलिया रोग, मधुमेह, अर्श एवं अनिद्रा में इसके औषधीय गुण लाभदायक साबित होते है |
स्वर्णमाक्षिक भस्म के घटक द्रव्य
- शुद्ध स्वर्णमाक्षिक (सोनामक्खी उपधातु) – 1 भाग
- गंधक – 1/2 भाग (आधा)
- बिजौरा निम्बू रस
- घृतकुमारी रस
ऊपर निर्देशित सभी घटक द्रव्य इसकी भस्म बनाने के लिए प्रयोग होते है | भस्म बनाने से पहले इसे शुद्ध करना होता है | इसकी भस्म बनाने की सम्पूर्ण विधि यहाँ निचे देखें
भस्म बनाने की विधि
स्वर्णमाक्षिक को शोद्धित करना एवं भस्म निर्माण करना
स्वर्णमाक्षिक को शुद्ध करना
सबसे पहले सोनामक्खी उपधातु का खरल में डालकर महीन चूर्ण कर लिया जाता है | तत्पश्चात इसमें आधी मात्रा में सेंधा नमक मिलाकर कडाही में डाल दिया जाता है | ऊपर से बिजौरा निम्बू का स्वरस डालकर आंच पर चढ़ा कर कलछी से चलाया जाता है | जब चूर्ण आग के रंग का हो जाता है तब कडाही को निचे उतार कर ठंडा कर लिया जाता है | ठन्डे होने के पश्चात ठन्डे पानी से 4 से 5 बार धोते है जिससे सेंधा नमक का अंश निकल जाता है | इस प्रकार से स्वर्णमाक्षिक शुद्ध होता है |
भस्म बनाना
भस्म बनाने के लिए शोद्धित स्वर्णमाक्षिक एवं उससे आधी मात्रा में गंधक लेकर इसमें निम्बू का रस मिलाकर एक दिन तक मर्दन करके टिकिया बना ली जाती है | इन टिकियों को सरावसम्पुट में रखकर गजपुट में डालकर अग्नि दि जाती है | गजपुट पूरा होने के बाद टिकियों को ग्वारपाठे के रस के साथ घोंट कर फिर से टिकया बना ली जाती है | इन टिकियों को अब लघुपुट में रख कर आंच दि जाती है | इस प्रकार से लगभग 10 बार अग्नि देकर ठन्डे होने के पश्चात तैयार जामुनी रंग की भस्म को रख लिया जाता है | यह स्वर्णमाक्षिक भस्म कहलाती है |
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स्वर्णमाक्षिक भस्म के फायदे
यह लौह का सौम्य कल्प होने के कारण बच्चों, महिलाओं, कमजोर एवं बुजुर्गों के लिए अत्यंत फायदेमंद है | यहाँ हमने इस भस्म के स्वास्थ्य लाभों के बारे में बताया है | भले ही यह नुकसान रहित आयुर्वेदिक दवा है लेकिन बिना परामर्श एवं अनुचित मात्रा स्वास्थ्य के लिए नुकसान दायक हो सकती है . अत: वैद्य परामर्श से ही उपयोग में ले
1. सिरदर्द में स्वर्ण माक्षिक भस्म के फायदे
पित्तज सिरदर्द या कफज सिरदर्द अर्थात जिस सिरदर्द में उल्टी, उबकाई, मुंह का स्वाद कषैला हो गया हो एवं भोजन में रूचि न हो तो एसे में स्वर्णमाक्षिक भस्म का सेवन फायदेमंद रहता है | साथ ही अगर सिरदर्द काफी पुराना है एसे में भी आयुर्वेदिक चिकित्सक इसका प्रयोग करते है | यह पुराने सिर के दर्द में अत्यंत फायदेमंद साबित होती है |
2. अम्लपित रोग में फायदे
पेट के अन्दर अमाशय बढ़ जाने या भीतर की त्वचा विकृत हो जाने एवं पेट में घाव हो जाने से अम्लपित की समस्या होती है | एसी समस्या में सिर्फ पेट के घाव को छोड़कर सभी प्रकार के अम्लपित में इस दवा के सेवन लाभ मिलता है | यह अम्लपित विकार में बहुत लाभदायक है |
3. नाक से खून आना एवं चक्कर में स्वर्णमाक्षिक भस्म के फायदे
अगर रक्त विकृति के कारण नाक से खून आता हो या चक्कर की समस्या हो | यह दवा इन सबमे बहुत लाभप्रद है | स्वर्ण माक्षिक में लौह के अंश होते है जो रक्त को शुद्ध करके इन समस्याओं से छुटकारा दिलाते है |
4. पुराने बुखार में करती है फायदा
पुराना बुखार अर्थात जीर्ण ज्वर में रोगी के शरीर में कमजोरी आ जाती है | वह चलने, उठने – बैठने एवं अन्य कार्यों को करने में असक्तता महसूस करता हो तो स्वर्ण माक्षिक भस्म 2 रति के साथ प्रवाल भस्म 2 रति एवं सितोपलादि चूर्ण का सेवन करवाने से बुखार के कारण आई कमजोरी दूर होती है एवं स्वास्थ्य लाभ मिलता है |
5. हृदय रोग में फायदेमंद
हृदय में घबराहट हो, चंचल हो, पसीना अधिक आता हो साथ ही पुरे शरीर में कम्पन हो एसी अवस्था में स्वर्ण माक्षिक भस्म का प्रयोग करवाना बहुत लाभदायक होता है | यह भस्म हृदय को बल देने वाली है एवं हृदय की चंचलता को दूर करने वाली है |
6. खून की कमी एवं पीलिया रोग में फायदेमंद
रक्त की कमी यानि एनीमिया रोग एवं पीलिया रोग में यह लाभदायक है | खून की कमी स्वर्ण माक्षिक भस्म 250 mg के साथ मंडूर भस्म 125 mg मिलाकर शहद के साथ सेवन करने से शरीर में खून की कमी दूर होने लगती है | साथ ही पीलिया रोग में भी इसक सेवन किया जाता है | इसे मुली के रस के साथ प्रयोग करवाया जाता है |
7. खुनी बवासीर में फायदेमंद
बवासीर रोग में अगर खून भी आता हो तो स्वर्णमाक्षिक भस्म 250 mg के साथ नागकेशर, तेजपता एवं छोटी इलाइची का चूर्ण प्रत्येक 250 mg की मात्रा में मिलाकर सेवन करने से खुनी बवासीर में बहुत लाभ मिलता है |
सेवन की विधि एवं सावधानियां
इसका सेवन 125 mg से लेकर 250 mg तक रोगों के अनुसार भिन्न – भिन्न अनुपान के साथ सेवन किया जा सकता है | अनुपान (किसके साथ लेनी होती है) के रूप में शहद, घी, गिलोय सत्व, मक्खन या मिश्री का प्रयोग रोग के अनुसार किया जाता है |
वैसे यह भस्म सौम्य एवं नुकसान रहित है लेकिन स्वर्णमाक्षिक का सेवन निपुण वैद्य के परामर्श से ही करना चाहिए | क्योंकि आपके रोग एवं रोग की स्थिति के अनुसार इसका प्रयोग अन्य औषध योगो के साथ वैद्य ही निर्देशित करता है |
अत: बिना आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्श इसका सेवन करना न तो लाभदायक है और दूसरा शारीरिक नुकसान भी हो सकता है | अत: आयुर्वेदिक फिजिशियन का परामर्श अवश्य लें |
सामान्य सवाल – जवाब / FAQ
स्वर्णमाक्षिक भस्म के क्या फायदे है ?
यह पित्त एवं कफज विकार, सिरदर्द, पुराने बुखार, अम्लपित, बवासीर, हृदय विकार एवं खून की कमी में फायदेमंद है |
स्वर्णमाक्षिक भस्म का मूल्य क्या है ?
धूतपापेश्वर स्वर्णमाक्षिक भस्म (10 Gram) का मूल्य 126 रूपए है |
कहाँ से उपलब्ध होगी ?
यह सभी आयुर्वेदिक मेडिकल स्टोर एवं ऑनलाइन स्टोर पर उपलब्ध हो जाती है |
क्या बिना वैद्य परामर्श सेवन कर सकते है ?
जी नहीं, किसी भी आयुर्वेदिक उत्पाद को बिना वैद्य परामर्श सेवन नहीं करना चाहिए |
धन्यवाद |