गंधक के फायदे और नुकसान (Sulfur Benefits and Side Effects)

क्या आप गंधक के फायदे और नुकसान जानना चाहते हैं ? क्या आप चाहते हैं कि आपको गंधक के बारे में सम्पूर्ण जानकारी हो या फिर आप गंधक को किन – किन रोगों में कैसे – कैसे उपयोग कर सकते हैं जानना चाहते हैं । आज की इस पोस्ट में मैं आपको गंधक की सामान्य जानकारी और इसके फायदे एवं नुकसानों के बारे में जानकारी दूंगा ।

ताकि आप गंधक के बारे में ये जान सकें कि इसे आयुर्वेद चिकित्सा में कैसे प्रयोग किया जाता है और कौनसे रोगों में इसका इस्तेमाल करने से लाभ मिलता है । साथ ही गंधक का किस प्रकार प्रयोग नहीं करना चाहिए वरना यह नुकसान भी कर सकता है ।

तो चलिए जानते हैं सबसे पहले गंधक का सामान्य परिचय । यहाँ मैंने मेरे अनुभव एवं आयुर्वेद के ज्ञान के अनुरूप आपको समझाने की कोशिश की है ।

गंधक क्या है ? (What is Sulfur in Hindi)

आयुर्वेद में पारद के बाद गंधक का ही नंबर आता है । वास्तव में अगर देखा जाये तो रासायनिक चिकित्सा सृष्टि की रचना के लिए पारद और गंधक इन दोनों का संयोग होना परम आवश्यक है । गंधक को अंग्रेजी में Sulfur के नाम से जाना जाता है । आयुर्वेद की रासायनिक चिकित्सा गंधक के बैगर नहीं चल सकती ।

गंधक को गंधपाषाण, शुकपिच्छ, सुन्दर गंध वाला, पामारी, एवं शल्वरिपु (ताम्बे को मारता है, अत: इसे ताम्बे का शत्रु भी कहा जाता है) । पौराणिक हिन्दू ग्रंथों में गंधक को पार्वती रज माना गया है (जैसे पारद को शिवशुक्र कहा गया है ।)

आयुर्वेद अनुसार गंधक तीन प्रकार का होता है । कुछ लोग इसे 4 प्रकार का भी मानते है (श्वेत, रक्त, पीत और कृष्ण) । हालाँकि इसके तीन भेद ही सर्वमान्य हैं । जो इस प्रकार हैं :

  1. शुक – यह तोते की चौंच की तरह लाल रंग का होता है एवं आयुर्वेद में इसे उत्तम माना गया है ।
  2. पीत – यह पीतवर्ण अर्थात पीले रंग का होता है । औषधीय दृष्टि से इसे मध्यम उपयोगी माना गया है ।
  3. श्वेत – यह सफ़ेद रंग का होता है, जिसे आयुर्वेद में अधम अर्थात निम्न उपयोगी एवं ना के बराबर उपयोगी माना गया है ।

इन सभी में आंवलासार गंधक अर्थात शुकपिच्छ (जो पीले रंग का होता है) उसे रस – रसायन काम के लिए उपयोगी माना गया है । अर्थात आँवलासार गंधक से ही आयुर्वेदिक औषधियों का निर्माण किया जाता है । सफ़ेद गंधक को लेप करने और मारण के लिए उपयोग में लिया जाता है ।

गंधक के फायदे और उपयोग (Benefits of Sulfur)

गंधक को शुद्ध करके ही औषधीय उपयोग में लिया जाता है । अशुद्ध गंधक उपयोग में लेने से फायदों की बजाय नुकसान हो सकते हैं । अत: हमेंशा शौधित गंधक ही इस्तेमाल में लिया जाता है । क्योंकि शुद्ध गंधक रसायन में श्रेष्ट और रस में मधुर और पाक में कटु होता है । यह खाज – खुजली, विसर्प और दीपन एवं पाचन में बहुत उपयोगी माना जाता है । यहाँ मैंने शुद्ध गंधक के फायदे विभिन्न रोगों के अनुसार बताएं हैं ।

कुष्ठ रोग में गंधक के फायदे:

शुद्ध गंधक और काली मिर्च का चूर्ण समान भाग में ले और गंधक से सोलह गुणा त्रिफला लेकर इसमें मिलाकर सभी को एक साथ घोंट ले । फिर इस चूर्ण को अमलतास की जड़ के क्वाथ या स्वरस के साथ सेवन करने से कुष्ठ रोग ठीक हो जाता है । साथ ही इस औषधि को लेते समय अमलतास की जड़ को पानी में घिसकर घावों पर लेप करने से रोग में तीव्रता से लाभ मिलता है ।

त्वचा का फंगल इन्फेक्शन (सेहुआ) में गंधक:

यह के प्रकार का त्वचा का फंगल इन्फेक्शन होता है जिसमे हल्के चकते स्किन पर बन जाते हैं । इसमें गंधक और यवक्षार को सरसों के तेल में मिलाकर लेप करने से यह रोग ठीक हो जाता है ।

गण्डमाला में गंधक के फायदे:

पारा, गंधक, आक का दूध, सेंधा नमक और हल्दी पीसकर लेप लगाने से गण्डमाला की गाँठ बैठ जाती है । इस प्रकार से प्रयोग करने पर आपको गण्डमाला रोग में गंधक के फायदे मिलते हैं ।

खुजली:

अगर आपको खुजली की समस्या है और आप इस रोग से परेशान हैं तो शुद्ध गंधक लेकर इसमें थोड़ी मात्रा में सरसों का तेल मिला लीजिये । इस लेप को प्रभावित स्थान पर मलने से खुजली ठीक हो जाती है । अगर इससे आपको कम फायदा मिल रहा है तो साथ में आप शुद्ध गंधक 4 रति की मात्रा में 3 ग्राम त्रिफला चूर्ण मिलाकर सुबह – शाम लगातार 21 दिन तक सेवन करने से खुजली की समस्या जड़ से खत्म हो जाती है ।

हिचकी रोग में गंधक के फायदे:

हिक्का या हिचकी अगर रुक नहीं रही हो तो शुद्ध गंधक और शुद्ध पारद को समान मात्रा में लेकर ताम्बे के बर्तन में घोंट कर कज्जली बना लीजिये । अब इसे पान के रस या शहद के साथ सेवन करने से सब प्रकार की हिचकी ठीक हो जाती है ।

प्रमेह रोग:

शुद्ध गंधक 1 रति को 4 रति गुड़ मिलाकर इसे जयंती रस के साथ प्रयोग करें । इस प्रकार से सेवन करने से सभी प्रकार के प्रमेह रोग में आराम मिलता है ।

फैलने वाली खुजली:

इसे आयुर्वेद में विसर्चिका कहते हैं । अगर आपकी खुजली फ़ैल रही है तो शुद्ध गंधक को 4 रति की मात्रा में एक माशा मिश्री मिलाकर एक पाव धारोष्ण गाय के दूध के साथ 21 दिन तक सेवन करने से फैलने वाली खुजली ठीक हो जाती है ।

प्रमेह पीडिका में गंधक के फायदे:

प्रमेह पीडिका की समस्या में भी गंधक के विशेष फायदे मिलते हैं । इस रोग में 4 रति शुद्ध गंधक को एक माशा गुड़ के साथ मिलाकर खाने से प्रमेह पीडिका रोग में फायदा मिलता है ।

फोड़े – फुंसी में गंधक के फायदे:

फोड़े – फुंसियों में गंधक का इस्तेमाल करना विशेष लाभदायक है । 3 माशा शुद्ध गंधक के महीन चूर्ण को 2 तोला सरसों के तेल में मिलाकर धुप में रख दें । एक दिन की बराबर धुप लगने दें । दुसरे दिन इस तेल की मालिश धुप में बैठकर करें । इस प्रकार से प्रभावित स्थान पर एक सप्ताह तक मालिश करने से फोड़े – फुंसियों की समस्या ठीक हो जाएगी ।

पेशाब की रूकावट में:

मूत्रकृच्छ में शुद्ध गंधक, जीरा और बड़ी कटेरी के बीज क्रमश: 1, 2, 3 रति की मात्रा में लेकर महीन चूर्ण बना लीजिये । इसे सहजन के स्वरस के साथ सेवन करने से मूत्रकृच्छ रोग ठीक हो जाता है ।

गंधक के नुकसान (Side Effects of Sulfur)

देखिये गंधक एक रासायनिक खनिज है । जिसे आयुर्वेद में शोधन के पश्चात ही उपयोग में लिया जाता है । अशुद्ध गंधक सेवन करने से शारीरिक नुकसान की सम्भावना अधिक रहती है । अत: हमेंशा वैद्य द्वारा शौधित गंधक ही इस्तेमाल में लिया जाना चाहीये । साथ ही रासायनिक द्रव्य होने की वजह से आयुर्वेद में इसकी सेवन की सिमित मात्रा ही बताई गई है । अत: बिना चिकित्सकीय सलाह शुद्ध गंधक का इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए ।

वैद्य द्वारा निर्देशित मात्रा में ही गंधक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए । अधिकतम खुराक 2 से 3 रति ही बताई गई है । जिन व्यक्तियों की प्रकृति उष्ण एवं पित्तज है उन्हें आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से ही गंधक का सेवन करना चाहिए । गलत मात्रा एवं अनुपान में इसका सेवन करने से शरीर में उष्णता, पित्त दोष की वृद्धि एवं जी मचलाना जैसे साइड इफेक्ट्स देखने को मिल सकते हैं ।

गंधक सेवन के समय रखी जाने वाली सावधानियां (Precautions)

गंधक उष्णवीर्य होता है, अत: इसके सेवन काल में तेल, गुड़, लाल मिर्च, लहसुन, राई, एवं गरम मसाला आदि गरम स्वाभाव के पदार्थों से परहेज किया जाना चाहिए । इस समय दूध, गेंहू, चावल, घी, चीनी, गेंहू का दलिया, एवं जौ आदि की रोटी खानी चाहिए । साथ ही गरम स्वाभाव वाले खाद्य पदार्थों से परहेज रखा जाना चाहिए ।

धन्यवाद ।

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