यवक्षार भस्म आयुर्वेदिक मेडिसिन है | यह क्लासिकल आयुर्वेदिक फार्मूलेशन है जिसका निर्माण यव अर्थात जौ को जला कर किया जाता है | यहाँ इस लेख में हम आपको यवक्षार से संबधित सभी जानकारियों से अवगत करवाएंगे |
इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है | यवक्षार को जौखार, जवाक्षार, यवाग्रज, पक्ष्यक्षार आदि नामों से भी पुकारा जाता है | इस लेख में हम आपको यवक्षार बनाने की विधि, यवक्षार के उपयोग, इसके संभावित नुकसान एवं फायदों के बारे में बताएँगे | तो चलिए सब्सिड पहले यवक्षार की सामान्य जानकारी इस टेबल के माध्यम से समझते है |
दवा का नाम | यवक्षार |
सन्दर्भ ग्रन्थ | सिद्ध प्रयोग संग्रह |
अन्य नाम | जवाक्षार, जौखार, यवाग्रज, पाक्ष्यक्षार |
दवा का प्रकार | भस्म |
घटक | जौ |
उपलब्धता | आयुर्वेदिक मेडिकल स्टोर एवं ऑनलाइन स्टोर |
मूल्य | रूपए 100 से लेकर |
मुख्य उपयोग | भूख की कमी, पाचन सुधार, सुजन दूर करने वाला, मूत्रल |
मुख्य गुण | मूत्रल, एंटासीड, शोथहर, भूख बढ़ाने में गुणकारी |
दोष प्रभाव | वात एवं कफ नाशक |
यवक्षार क्या है ? (What is Yavakshar in Hindi)
मुख्यत: यह आयुर्वेद की एक शास्त्रोक्त दवा है जिसका वर्णन विभिन्न आयुर्वेदिक ग्रंथो में मिलता है | सिद्धप्रयोग संग्रह में यवक्षार के बारे में विस्तृत रूप से लिखा गया है | यव को हिंदी में जौ कहते है एवं क्षार का अर्थ शोरा या नमक से समझ सकते है |
अर्थात जौ के पंचांग को जलाने से जो शोरा प्राप्त होता है उसे यवक्षार कहते है | इसकी विस्तृत जानकारी एवं बनाने की विधि हमने निचे बताई है |
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यवक्षार बनाने की विधि | Making Process of Yavakshar
उत्तम जौ की अर्थात पूर्णत: आर्गेनिक जौ की गांठे जिसे इसकी जड़े, फल, पते, तना एवं फुल आदि सभी पंचाग आ जाते है को एक साफ़ कड़ाही में डालकर जला देते है | इसे जलाने से जौ की भस्म बन जाती है | इस भस्म को मिटटी के पात्र में डाल, छ: गुना जल मिलाकर हाथ से खूब मसला जाता है |
अच्छी तरह से मसलने के पश्चात इसे रात भर के लिए छोड़ दिया जाता है | दुसरे दिन ऊपर के साफ जल को निथार कर अलग रख दे | अब इस जल को गाढे कपडे से 21 बार छान लिया जाता है | हर बार छानते समय वस्त्र को जल से धोया जाता है ताकि गन्दगी हटती रहे |
अब इस जल को मिटटी के बर्तन में हलकी मंद आंच पर पकाएं एवं जल को हिलाते रहें | जब जल सूखने योग्य हो जाये तो पात्र को निचे उतार कर ठंडा होने दिया जाता है | जब यह अच्छी तरह से ठंडा हो जाता है तो बचे हुए क्षार को खुरच कर इकट्ठा कर लिया जाता है |
यह प्राप्त पदार्थ यवक्षार कहलाता है |
यवक्षार के विभिन्न रोगों में उपयोग | Yavakshar uses in Hindi
इस औषधि का निम्न रोगों में उपयोग होता है | उपयोग से पहले निम्न रोगों के लिए इसे अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि वैद्य दिशा निर्देशों में ही औषधि का सेवन अधिक फलदाई होता है |
यह औषधि उष्ण वीर्य की है अर्थात इसकी तासीर गरम होती है | कफज रोग, मूत्र रोग, पाचन की गड़बड़ी, यूरिक एसिड, अस्थमा एवं यकृत प्लीहा वृद्धि में लाभदायक है |
अस्थमा रोग में यवक्षार का उपयोग: अस्थमा रोग में यह लाभदायक औषधि है | यवक्षार के आधा ग्राम चूर्ण को अडूसा के पतों के रस के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है | इसके साथ लौंग एवं सोंठ का एकचौथाई ग्राम चूर्ण भी मिलाकर प्रयोग कर सकते है |
खांसी में यवक्षार के उपयोग: पंचकोल चूर्ण के साथ आधा से एक ग्राम की मात्रा में यवक्षार को लेने से खांसी में तुरंत राहत मिलती है | अनुपान में गरम जल का सेवन करना चाहिए |
मूत्र विकारों में यवक्षार का उपयोग: गोखरू चूर्ण के साथ 1/2 ग्राम की मात्रा में यवक्षार का प्रयोग करने से मूत्र विकारों में लाभ मिलता है | अगर आपको पत्थरी की समस्या है तो इसके साथ मिश्री मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है |
यकृत वृद्धि: यवक्षार, पिप्पली एवं हरीतकी इन तीनो को 1:2:3 की मात्रा में मिलाकर दिन में दो बार गरम जल के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है |
हाई ब्लड प्रेशर: यवक्षार के साथ खुरासानी अजवायन एवं गिलोय सत्व मिलाकर सेवन करने से ब्लड प्रेशर की समस्या दूर होती है |
यवक्षार के नुकसान | Side Effects of Yavakshar
यह औषधि सुरक्षित है अगर इसका सेवन वैद्य निर्देश अनुसार उचित मात्रा में किया जाये | वैसे यह पित्त की शरीर में वृद्धि करती है अत: जिन्हें पित्त की शिकायर रहती है उन्हें वैद्य सलाह से ही इस दवा का प्रयोग करना चाहिए |
अगर निर्धारित मात्रा में औषधि का सेवन किया जाये तो इसके कोई भी नुकसान सामने नहीं आते | लेकिन अधिक मात्रा में सेवन करने से पेट में जलन, सीने में जलन आदि हो सकती है | गर्भावस्था में इस औषधि का प्रयोग नहीं करना चाहिए |
धन्यवाद |
Proceedure is very useful