बाकुची को बावची, बाबची, बाकुचीदाना या सोमराज आदि नामो से भी जाना जाता है | यह वनस्पति आयुर्वेद चिकित्सा में प्राचीन समय से ही प्रयोग होते आई है | साधारण सी दिखने वाली यह औषधि वर्षा ऋतू में सम्पूर्ण भारतवर्ष में अपने आप उग आती है | इसके बीज एवं तेल को चिकित्सार्थ औषधीय उपयोग में लिया जाता है |
इसका उपयोग श्वांस, कोढ़, प्रमेह, बुखार एवं कृमि रोग में किया जाता है | आज के इस आर्टिकल में हम बाकुची का वानस्पतिक परिचय, औषधीय गुण – धर्म, उपयोग एवं घरेलु उपायों के बारे में बताएँगे | तो चलिए सबसे पहले जानते है बाकुची का वानस्पतिक परिचय –
वानस्पतिक परिचय – इसके 1 से 4 फीट तक ऊँचे पौधे होते है | इसकी शाखाएं सख्त एवं गांठो से युक्त होती है | बाकुची के पते 1 से 3 इंच लम्बे गोलाकार होते है | पते चिकने एवं वृन्तो से युक्त होते है | इसके फुल डंडिया पतों के जोड़ो से शुरू होती है | फुल नीले एवं हलके बैंगनी रंग के होते है | पुष्पमंजरी पर 10 से अधिक फुल लगते है |
बाकुची की फली काले रंग की गोल एवं लम्बी होती है | फलियों में एक बीज निकलता है जो काले रंग का एवं बेलगिरी की तरह सुगन्धित होता है | यह वनस्पति सम्पूर्ण भारतवर्ष में उगती है | प्राय: इसके पौधे एक वर्ष तक जीवित रहते है |
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बाकुची का रासायनिक संगठन / Chemical Structure of Bakuchi
इसके बीजों में एक प्रकार का उड़नशील तेल, एक राल, एक स्थिर तेल, दो प्रकार के क्रिस्त्लाइन सत्व एवं सोरोलेन पाए जाते है | बाकुची के फल के छिलके में सोरोदोलिन तत्व भी पाया जाता है | अपने इन्ही तत्वों के कारण इसमें कुष्ठघन एवं कृमिहर गुण पाए जाते है |
बाकुची के औषधीय गुण धर्म / Bakuchi ke Aushdhiy Gun – Dharma
बाकुची मधुरा तिक्त: कटुपाका रसायनी |
विष्टम्भह्र्द्विमा रुच्या सरा श्लेश्माग्र पित्नुत |
रक्षा, हृद्य, श्वांस, कुष्ठ मेह्ज्वर कृमि प्रनुत: ||
भाव प्रकाश
रस | कटु एवं तिक्त रस प्रधान |
गुण | लघु एवं रुक्ष |
वीर्य | शीतल |
विपाक | कटु |
दोषकर्म | कफ एवं वात शामक एवं पित्त वर्द्धक |
रोगप्रभाव | कुष्ठ हर, कृमिहर, कफ नाशक, श्वांस, खांसी, सुजन एवं आम रोग में प्रभावी |
बाबची मधुर, कडवी, पाक में तिक्त एवं कटु रसायन है | यह रुचिकारक, दस्त लगाने वाली, हृदय को बल देने वाली, कफ , रक्तपित्त, कोढ़, प्रमेह, बुखार एवं कृमि को नष्ट करने वाली औषधि है | इसके फल पित्तवर्द्धक, बालों एवं त्वचा के लिए हितकारी होते है | बाबची कफ एवं वात शामक आयुर्वेदिक वनस्पति है | इसकी तासीर शीतल एवं गुणों में यह लघु एवं रुक्ष होती है |
बाकुची के औषधीय उपयोग / Medicinal uses of Bakuchi in Hindi
औषधीय उपयोग के रूप में बाकुची विभिन्न रोगों में काम आती है | यह श्वांस, अर्श, कुष्ठ, पीलिया एवं दस्त आदि रोगों में उपयोग की जाती है | यहाँ हम इसके विभिन्न रोगों में भिन्न – भिन्न औषधीय उपयोगों के बारे में बताएँगे | तो चलिए जानते है बाकुची / बाबची के औषधीय उपयोग एवं फायदे –
दांतों के कीड़ों में बाकुची के लाभ
- बावची की जड़ को पीसकर इसमें थोड़ी सी मात्रा में भुनी हुई फिटकरी मिलाकर सुबह – शाम मंजन करने से दांतों में लगे हुए कीड़े ख़त्म हो जाते है | साथ ही मुख का स्वाद नहीं बिगड़ता |
- जड़ के साथ नमक एवं हल्दी लगा कर मंजन करने से तीव्रता से दन्त पीड़ा से राहत मिलती है |
श्वांस रोग :- बाबची के आधा ग्राम बीजों के चूर्ण को अदरक के रस के साथ दिन में 2 से 3 बार सेवन करने से लाभ मिलता है | यह प्रयोग नूतन स्वांस रोग में बहुत फायदा देता है |
कुष्ठ रोग या त्वचा विकार में बावची के औषधीय उपयोग
- बावची के बीज चार भाग लेकर, एक भाग तबकिया हरताल दोनों का महीन चूर्ण करके गोमूत्र में घोंटकर सफ़ेद दागों पर लगाने से सफ़ेद दाग ठीक होने लगते है | ध्यान दें यह बाह्य रूप से ही प्रयोग करना है | इस नुस्खे का आन्तरिक प्रयोग न करें |
- बाबची एवं पवाड दोनों को समान भाग लेकर इसे सिरके में पीसकर लेप जैसा तैयार करलें | इस लेप को सफ़ेद दाग पर लगाने से सफ़ेद दाग जाने लगते है |
- शुद्ध गंधक, बावची एवं गुडमार इन तीनो को बराबर मात्रा में लेकर रात भर के लिए जल में भिगों दे | सुबह ऊपर का जल निथर कर सेवन करलें एवं निचे बचा हुआ गाढ़ा लेप प्रभावित त्वचा पर लेप के रूप में लगायें | यह प्रयोग कोढ़ को ठीक करने लगता है |
- सामान्य त्वचा रोग में बावची का तेल, तुबरक का तेल एवं चदन का तेल इन तीनो को मिलाकर त्वचा पर लगाने से रोग ठीक होने लगता है | साथ ही कुष्ठ रोग के कारण त्वचा पर पड़े सफ़ेद दागों में भी लाभ देता है |
- बाकुची, धतूरे के बीज एवं कलौंजी इन तीनो को समान मात्रा में लेकर आक के पतों के रस में पीसकर सफ़ेद दागों पर लगाने से सफ़ेद दाग ठीक होने लगते है |
- शुद्ध बाकुची 1 ग्राम एवं काले तिल 3 ग्राम दोनों को मिलाकर शहद के साथ प्रयोग करने से स्वित्र रोग नष्ट होने लगता है |
बवासीर में बाकुची के फायदे : – 2 ग्राम हरड, 2 ग्राम सौंठ एवं 1 ग्राम शुद्ध बाकुची को पीसकर चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को नियमित रूप से गुड़ के साथ सेवन करने से बवासीर में लाभ मिलता है |
अतिसार : – अतिसार की समस्या में बाकुची के पतों का साग 2 – 3 रोज खिलने से अतिसार में बहुत लाभ मिलता है |
गर्भधारण रोकने के लिए :- महिलाओं के मासिक धर्म से शुद्ध होने के पश्चात बाकुची के बीजों को तेल में पीसकर योनी में रखने से गर्भधारण नहीं होता |
पेट के कीड़े : – पेट के कीड़ों में भी बाकुची बहुत उपयोगी है | इसके औषधीय गुण इसे कृमि नाशक बनाते है | शुद्ध बाकुची चूर्ण का सेवन करने से पेड़ के कीड़े नष्ट होते है |
पीलिया :- पीलिये की समस्या में पुनर्नवा के रस में बाकुची मिलाकर नियमित कुच्छ दिन सेवन करने से पीलिया ठीक होने लगता है |
बाकुची के बारे में पूछे जाने वाले सामान्य सवाल – जवाब / Frequently asked questions about Bakuchi
बाकुची को बावची, बाबची, बकुची, कुष्ठ्घ्नी, हबुच, सोमराज, तुख्मरेहा, भावंची आदि नामों से पुकारा जाता है | इसका लेटिन नाम Psoralea Seed है | अंग्रेजी में बाकुची को malaya Tea नाम से पुकारा जाता है |
यह खांसी, मधुमेह, बवासीर, अतिसार (दस्त), श्वांस एवं पेट के कीड़ों की समस्या में लाभदायक है | साथ ही कुष्ठ रोग एवं त्वचा विकृति में बहुत अधिक लाभदायक है | इसलिए इसे कुष्ठ्घनी नाम से भी जानते है |
इसके बीजों का तेल, बीज एवं जड़ का प्रयोग आयुर्वेद चिकित्सा में औषधीय प्रयोग के लिए किया जाता है | लेकिन साथ ही सम्पूर्ण पंचाग का इस्तेमाल देहाती चिकित्सा में होता है | इसके पते आदि का प्रयोग भी किया जाता है |
वैद्य निर्देशानुसार 1 से 2 ग्राम तक चूर्ण को सेवन किया जा सकता है | एवं बीजों से प्राप्त तेल को 2 से 4 बूंद प्रयोग कर सकते है | अधिक जानकारी के लिए वैद्य से परामर्श करके सेवन करें |
सीधे तौर पर इस औषधीय वनस्पति के कोई ज्ञात दुष्प्रभाव नहीं है | फिर भी चिकित्सा निर्देशित मात्रा एवं समय तक ही इसका सेवन करना चाहिए | अधिक मात्रा में सेवन करने से जी घबराना, उलटी एवं सिरदर्द जैसी शिकायते हो सकती है |
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