टाइफाइड की आयुर्वेदिक दवा – टाइफाइड बैक्टीरिया जनित बीमारी है | यह सालमोनेला बैक्टीरिया से पनपती है | इसका जीवाणु जल, मल-मूत्र, गंदगी एवं एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति में पहुँचता है | जब बैक्टीरिया शरीर में प्रवेश कर जाता है तब इसके लक्षण प्रकट होने लगते है | वैसे आयुर्वेद में टाइफाइड नाम की किसी बीमारी का वर्णन नहीं है |
यह विदेशों से भारत में आई बीमारी है | अत: प्राचीन समय के ग्रंथों में इस बीमारी का उल्लेख नहीं है | लेकिन इसके लक्षण आन्तरिक ज्वर के समान होते है अत: आयुर्वेद में वर्णित आन्तरिक ज्वर की चिकित्सा के अनुसार ही इसका उपचार किया जाता है एवं यह उपचार प्रभावी साबित होता है |
Typhoid होने पर रोगी को बुखार, सिरदर्द, भोजन में अरुचि, पेटदर्द, कब्ज एवं दस्त जैसी समस्याएं हो जाती है | इस बीमारी का उपचार आयुर्वेद के माध्यम से आसानी से किया जा सकता है | आयुर्वेद की कृमिघन औषधियां, लंघन चिकित्सा, शोधन चिकित्सा एवं अन्य आयुर्वेदिक औषधियों से इस व्याधि का उपचार आसानी से हो जाता है |
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आयुर्वेद अनुसार टाइफाइड / Typhoid According Ayurveda
आयुर्वेद में भी टाइफाइड को जीवाणु जनित व्याधि माना है | इसे आन्तरिक ज्वर या मंथरक ज्वर के नाम से जानते है | इसे एक विशेष प्रकार की त्रिदोषज औप्सर्गिक (जीवाणु जनित) ज्वर कहते है | इस व्याधि में तीनों दोषों के प्रकोप होने के कारण तीनों दोषों के लक्षण प्रकट होते है | इसमें जब जिस दोष की प्रबलता होती है उस समय वैसे ही लक्षण प्रकट होते है |
जैसे अगर टाइफाइड में वात प्रबल है तो बुखार के साथ अंगमर्द रहता है | आयुर्वेद चिकित्सा में इस व्याधि के शमन के लिए निदान परिवर्जन, शोधन विधि एवं आयुर्वेदिक दवाओं का प्रयोग किया जाता है |
टाइफाइड की आयुर्वेदिक दवा / Typhoid Ayurvedic Medicine in Hindi
इस आर्टिकल के माध्यम से हम टाइफाइड की आयुर्वेदिक दवा के बारे में आपको बताएँगे कि कौन – कौन सी आयुर्वेदिक दवाएं टाइफाइड में रोगी को दी जाती है | ध्यान दें – यह आर्टिकल महज आपके ज्ञान वर्द्धन के लिए है | अत: उपचार से पहले आयुर्वेदिक डॉ की सलाह लेना आवश्यक है |
क्योंकि रोग के शमन के लिए आयुर्वेद में विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं का योग बना कर दिया जाता है | ये दवाएं रोग की तीव्रता, रोगी की स्थिति एवं प्रकृति पर निर्भर करती है | अत: इन दवाओं का स्वयं द्वारा उपयोग कोई अधिक लाभ नहीं देता | साथ ही आयुर्वेद सिर्फ दवा देने की चिकित्सा नहीं है | इसमें आहार – विहार, निदान परिवर्जन, उत्तम परिचर्या एवं लंघन जैसी विधाएं सम्मिलित है जो रोग को कारण सहित ख़त्म करने में सहायक सिद्ध होती है |
तो चलिए जानते है टाइफाइड में काम आने वाली आयुर्वेदिक दवाओं के बारे में
1. संजीवनी वटी है टाइफाइड में उपयोगी
संजीवनी वटी आयुर्वेद चिकित्सा की शास्त्रोक्त दवा है | इसका निर्माण वायविडंग, सोंठ, पीपल, बच आदि जड़ी – बूटियों के सहयोग से किया जाता है | यह किसी भी प्रकार की बुखार में अतिआवश्यक आयुर्वेदिक दवा है | कीटाणु मारने वाली, पेशाब साफ लाने वाली, पसीना लाने वाली यह दवा टाइफाइड में उपयोग करने से अत्यंत लाभ मिलता है |
ज्वरनाशक संजीवनी वटी आमदोष को पचाती है और उससे उत्पन्न होने वाले उपद्रवों जैसे बुखार आदि का नाश करती है | संजीवनी वटी में वत्सनाभ प्रधान जड़ी – बूटी होती है अत: यह उष्ण, स्वेदन एवं मूत्रल गुणों की आयुर्वेदिक दवा है | अपने इन्ही गुणों के कारण पसीने एवं पेशाब के माध्यम से बुखार के लिए जिम्मेदार कारणों को शरीर से बाहर निकाल कर रोग का शमन करती है |
2. महासुदर्शन घन वटी
यह एंटीवायरल आयुर्वेदिक दवा है | मलेरिया, वायरल फीवर, एवं कफवात प्रधान ज्वर में महासुदर्शन घन वटी बहुत उपयोगी दवा है | यह एंटीवायरल होने के साथ – साथ रोगप्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाने का कार्य करती है | आयुर्वेद के प्राचीन ग्रन्थ भैसज्य रत्नावली में इसका वर्णन मिलता है | इसे विषम ज्वर (कभी कम – कभी ज्यादा बुखार साथ ही नाड़ी गति भी विषम रहती है), संतत ज्वर (लगातार चलने वाली बुखार), सन्निपातज ज्वर (त्रिदोष प्रधान) में दिया जाता है | टाइफाइड की आयुर्वेदिक दवा के रूप में इसे उपयोग किया जाता है |
3. संसमनी वटी टाइफाइड की बुखार में उपयोगी
गिलोय सत्व, लौह भस्म, अभ्रक भस्म एवं सुवर्णमाक्षिक घटक द्रव्यों से बनने वाली यह आयुर्वेदिक दवा टाइफाइड फीवर में कारगर है | संसमनी वटी को संतत (लगातार) चलने वाले ज्वर, जीर्ण ज्वर, खून की कमी, धातुक्षीणता एवं निर्बलता आदि में उपयोग करवाई जाती है | टाइफाइड में रहने वाली हल्की बुखार को संसमनी वटी के सेवन से दूर किया जा सकता है |
बुखार ख़त्म करने के साथ – साथ निर्बल शरीर में बल का संचार करती है | धातुओं की क्षीणता, कमजोर स्मरण शक्ति एवं व्याकुलता को दूर करने में प्रभावी आयुर्वेदिक दवा है |
4. त्रिफला चूर्ण
त्रिफला चूर्ण तीन प्रकार के आयुर्वेदिक फलों का मिश्रण है | इसमें आंवला, हरड एवं बहेड़ा सामान मात्रा में होता है | प्रमुखत: यह कब्ज एवं पाचन के लिए प्रयोग होता है | लेकिन इस दवा में उपस्थित एंटीबैक्टीरियल गुण इसे टाइफाइड बुखार में भी उपयोगी बनाते है | त्रिफला का सेवन करने से इस रोग का बक्टिरिया कमजोर होने लगता है | रोगी को साफ मल त्याग होता है एवं शरीर की आन्तरिक सफाई होती है |
5. चन्द्रामृत रस
यह अतिप्रभावशाली सिद्ध औषधि है | वातपित्त प्रधान, वातश्लेश्मक प्रधान कास (खांसी), सुखी खांसी, कफ युक्त खांसी, स्वांस, दाह (जलन), प्लीहा एवं यकृत की विकृति, कृमि एवं जीर्ण ज्वर को ठीक करने वाली दवा है | टाइफाइड रोग में अगर फेफड़ों में कफ संचित हो गया है एवं बुखार भी हल्का – हल्का रहता है | एसे में चन्द्रामृत रस का सेवन अन्य औषध योगों के साथ करने से जल्द ही इन समस्याओं से राहत मिलती है |
6. स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण
टाइफाइड होने पर रोगी को मलबद्धता अर्थात कब्ज के लक्षण भी प्रकट होते है | रोगी को निरंतर कब्ज रहता है जिसके कारण अनिद्रा हो जाती है एवं नाड़ी गति भी मंद पड़ जाती है | एसी परिस्थिति में स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण या अन्य आयुर्वेदिक कब्ज नाशक योग जैसे पञ्चसकार चूर्ण, तरुणीकुसुमाकर चूर्ण आदि में से किसी एक का प्रयोग करवाना चाहिए |
स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण मृदु विरेचक है | अत: आंतों की सफाई करने में अत्यंत लाभदायक है | टाइफाइड का जीवाणु आंतों में भी इन्फेक्शन करता है | अत: स्वादिष्टविरेचन चूर्ण का प्रयोग करने से आँतों की सफाई होती है एवं साथ ही टाइफाइड के कारण कब्ज की समस्या से भी राहत मिलती है |
7. शिलाजत्वादी लौह टाइफाइड की कमजोरी में उपयोगी
शिलाजत्वादी लौह शिलाजीत, लौह भस्म, सुवर्णमाक्षिक भस्म, मुलैठी, मरिच, सौंठ आदि द्रव्यों से निर्मित होने वाली रसायन बाजीकरण औषधि है | यह शरीर में नविन उर्जा का संचार करती है | टाइफाइड होने पर शरीर में काफी कमजोरी आ जाती है | इसके सेवन से शरीर में बल एवं वीर्य की वृद्धि होती है अर्थात रोगप्रतिरोधक क्षमता का वर्द्धन होता है |
यह दवा टाइफाइड में आई कमजोरी को दूर करने के साथ – साथ ज्वर को उतारती है, रक्त की कमी को दूर करती है, श्वांस रोग एवं प्रमेह में भी उपयोगी है |
टाइफाइड रोग का आयुर्वेदिक उपचार है उचित आहार – विहार
इससे पहले बताई गई सभी आयुर्वेदिक दवाएं टाइफाइड में लाक्षणिक प्रयोग करवाई जाती है | अर्थात रोग में जैसे लक्षण प्रकट हो रहें है उसी प्रकार से दवा का प्रयोग आयुर्वेदिक वैद्यों द्वारा करवाया जाता है | इन दवाओं के साथ – साथ आहार – विहार (Diet & Lifestyle) का टाइफाइड के उपचार में बहुत महत्व है |
यहाँ हम आपको टाइफाइड में उचित आहार – विहार के बारे में बताएँगे |
- निदान परिवर्जन एवं नियमित सफाई का विशेष ध्यान दिया जाना चाहए |
- हाथों को साबुन से धोना चाहिए |
- उबला हुआ साफ पानी पीना चाहिए |
- रोगी को अपने बर्तनों को अन्य से अलग रखना चाहिए |
- अधिक रेशेदार फल एवं सब्जियों का सेवन नहीं करना चाहिए |
- बाजार के खाद्य पदार्थों का प्रयोग बिलकुल बंद कर देना चाहिए |
- घरेलु संतुलित आहार को अपनी डाइट में शामिल करना चाहिए |
- डिब्बा बंद भोजन, कोल्ड ड्रिंक्स, शराब, सिगरेट से परहेज करें |
- ठन्डे भोजन से बचना चाहिए | जितना हो सके ताजा बना गरम भोजन ही अपने आहार में शामिल करना लाभदायक रहता है |
- अनार, मौसमी, पपीता एवं चीकू को नियमित आहार में लेना बहुत फायदेमंद है |
- देर से पचने वाले आहार से बचना चाहिए |
- एकसाथ भरपेट भोजन के बजाय बार – बार कम मात्रा में भोजन करना लाभदायक है |
- रोगी को आराम करना चाहिए एवं शारीरिक श्रम एवं व्यायाम आदि से बचना चाहिए |
- पानी में तुलसी के पते डालकर एवं उबाल कर बार – बार सेवन करना लाभदायक रहता है |
टाइफाइड में काम आने वाली आयुर्वेदिक दवाओं की सूचि
रस औषधियां | वटी औषधियां | आयुर्वेदिक चूर्ण | भस्म प्रकरण की दवाएं |
चन्द्रामृत रस | संजीवनी वटी | त्रिफला चूर्ण | शिलाजत्वादी लौह |
सूतशेखर रस | सुदर्शन घन वटी | गिलोय चूर्ण | गोदंती भस्म |
कर्पुर रस | संसमनी वटी | बिल्वचूर्ण | लौह भस्म |
महावातविध्वंसक रस | मधुरान्तक वटी | सितोपलादि चूर्ण | अभ्रक भस्म |
प्रवाल पंचामृत | सौभाग्य वटी | स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण | |
वातचिंतामणि रस | पंचसकार | ||
चिंतामणि चतुर्मुख रस | नागकेशर चूर्ण | ||
तलिशादी चूर्ण |
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