टाइफाइड (Typhoid Fever) – जाने इसके कारण, लक्षण और इलाज के बेहतरीन उपाय

टाइफाइड बुखार / Typhoid Fever in Hindi

मियादी बुखार या टाइफाइड भारत में सामान्य रूप से होने वाली एक गंभीर बीमारी है | यह एक संक्रामक बीमारी है जो साल्मोनेला टाईफोसा (बेसिलस टाईफोसस) नामक बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होती है | इस बैक्टीरिया का स्वस्थ शरीर में संक्रमण दूषित भोजन, पानी या टाइफाइड से ग्रषित व्यक्ति के निकटतम रहने से होता है |

भारत जैसे विकासशील देश में यह रोग एक गंभीर बीमारी के रूप में सामने आता है | स्वच्छता की कमी और दूषित खाद्य पदार्थो के कारण इस रोग को नियंत्रित करने में कठिनाई महसूस होती है |

टाइफाइड

संक्रमण होने के पश्चात लगभग एक सप्ताह में टाइफाइड के लक्षण सामने आने लगते है | यह बैक्टीरिया संक्रमण के पश्चात मनुष्य की आंत और रक्त में उपस्थित रहता है | इस रोग की उदभवन अवधि 10 से 14 दिन होती है |

आयुर्वेद में टाइफाइड / Typhoid in Ayurveda Hindi

आयुर्वेद के आर्ष ग्रंथो में इस रोग को मंथर ज्वर , मौक्तिक ज्वर एवं आन्त्रिक ज्वर भी कहा जाता है, क्योंकि प्रमुख रूप से इसमें आंतो में विकार होता है | लोक भाषा में इसे निकाला या मोतीझरा के नाम से भी जाना जाता है | टाइफाइड बुखार में त्रिदोष प्रकोप होने के कारण इसकी गणना सन्निपातज ज्वर में की जाती है अर्थात इसमें तीनो दोषों के सम्मलित लक्षण प्रकट होते हैं |

आयुर्वेद मतानुसार वातशलेष्मीक सम्प्राप्ति के कारण आँतों में शोथ आकर ज्वर आता है , जोकि कभी – कभी तीनो दोषों के दूषित हो जाने के कारण सन्निपातज हो जाता है,  जिससे रोगी की मृत्यु भी हो जाती है |

टाइफाइड बुखार में रोगात्मक परिवर्तन (pathology) कैसे होता है ?

संक्रमण के पश्चात बेसिलाई आंतो में प्रविष्ट होते है | इसके पश्चात बुखार के साथ सेप्टीसीमिया हो जाता है |  मुख्यतया ये बैक्टीरिया छोटी आँतों में स्थापित होते है जहाँ ये प्रदाह के साथ अल्सर (घाव) पैदा कर देते है | ये बैक्टीरिया पिताशय और अस्थियों को भी प्रभावित कर सकते है , जिससे कभी – कभी फोड़े हो जाते है | इनसे उत्सर्जित होने वाले बैक्टीरियल टोक्सिन के द्वारा हृदय पर भी बुरा असर पड़ता है |

टाइफाइड के लक्षण क्या है ?

  1. इसका आरंभ सिरदर्द, बढ़ते हुए बुखार और अत्यधिक बैचेनी के साथ धीरे – धीरे होता है | शरीर के बढे हुए तापक्रम के कारण नाड़ी की गति भी धीमी हो जाती है |
  2. टाइफाइड में तीव्र बुखार आता है जो 104° फारेनहाईट से   भी अधिक चला जाता है |
  3. पेट फुला हुआ रहता है एवं साथ में दर्द भी होता है |
  4. रोग की शुरूआती अवस्था में कब्जियत की समस्या भी रहती है |
  5. सम्पूर्ण शरीर में दर्द रहता है |
  6. एक सप्ताह बाद बार – बार पानी जैसे पतले दस्त लगते है | कभी – कभी इन दस्तों के साथ खून की धाराएँ भी दिखाई देती है | दस्त के समय रोगी को अधिक बुखार, शरीर में पानी की कमी और थकान रहती है |
  7. तेज बुखार में रोगी बेहोश और भ्रमित हो जाता है |
  8. पेट पर गुलाबी रंग के दाने दिखाई देने लगते है जो छोटे, गोल और लाल क्षेत्रों के रूप में होते है |
  9. टाइफाइड का इलाज न करवाने और बढे हुए मामलों में कई प्रकार की जटिलतायें जैसे आँतों में रक्तस्राव , आँतों में छेद एवं हृदय विफलता (हार्ट अटैक) आदि की सम्भावना रहती है |

टाइफाइड के कारण

मियादी बुखार या टाइफाइड फीवर साल्मोनेला टाईफोसा नामक बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होता है | जब कोई संक्रमित व्यक्ति खुली जगह एवं सार्वजानिक जगहों पर शोच आदि कर देता है तो उस नदी नालों आदि में यह बैक्टीरिया मिलने और स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रविष्ट करने से टाइफाइड बुखार हो जाता है |

यह बैक्टीरिया व्यक्ति के शरीर में ठीक होने के पश्चात कई महीनो तक रह सकता है एवं मल के माध्यम से उत्सर्जित होता रहता है | जो आगे चलकर किसी स्वस्थ व्यक्ति को अपनी चपेट में ले सकता है |

संक्रिमत व्यक्ति के साथ मैथुन क्रिया के कारण भी स्वस्थ व्यक्ति टाइफाइड से ग्रषित हो सकता है |

साल्मोनेला टाईफोसा बैक्टीरिया से ग्रषित व्यक्ति के निकट सम्पर्क से |

टाइफाइड की जांच या टेस्ट / How to Diagnosis Typhoid in Hindi ?

वर्तमान में टाइफाइड टेस्ट करने के लिए निम्न जांच की जाती है |

1. टाइफीडॉट टेस्ट (एंटीबॉडीज) IgM और IgG .

2. Blood culture (रक्त संवर्द्धन) – प्रथम सप्ताह के दौरान टाइफाइड बेसिलाई रक्त प्रवाह में परिसंचरित होते रहते है | अत: टाइफाइड की आशंका होने पर रक्त के कई नमूने Blood Culture के लिए प्रयोगशाला में भेजने चाहिए |

3. Widal एंटीजन Test – संक्रमण होने के एक सप्ताह बाद रोगी के रक्त में टाइफाइड बेसिलाई की एंटीबाडीज विकसित होने लगती है | ये एंटीबाडीज रोगी के शरीर में प्रयाप्त मात्रा में होती है तब इन्हें विडाल प्रतिक्रिया के द्वारा नापा जाता है |

4. मल का परिक्षण – मल के परिक्षण से टाइफाइड बेसिलाई की उपस्थिति का पता चलता है |

5. मूत्र का परिक्षण – अगर मल परीक्षण से पता नहीं चलता तब यूरिन टेस्ट के माध्यम से भी टाइफाइड बुखार का पता लगाया जाता है |

टाइफाइड के कारण शरीर पर होने वाले प्रभाव या कमजोरी 

जैसा की उपर बताया गया है कि यह रोग बैक्टीरिया के कारण होता है | बैक्टीरिया रक्त के माध्यम से संचरित होकर छोटी आंत के लसिका ग्रंथियों में संचित होकर रोगोप्ति करते है | टाइफाइड से प्रभावित होने वाले अंग निम्न है –

1. लसिका ग्रन्थियो की व्रद्धी (Enlargement of lymph glands)

2. यकृत प्लीहा व्रद्धी (Hepato – splenomegaly)

3. पिताशय शोथ (Cholecystitis)

4. वृक्क शोथ (Nephritis)

5. रक्तभार मंदता (Low B.P.)

6. नाड़ी गति मंदता (Low pulse rate)

7. श्वेत रक्त कण में कमी (Leucopaenia)

8. लिंफोसाईट में व्रद्धी (lymphocytosis)

टाइफाइड का इलाज या उपचार

वैसे तो यह रोग एक आम बुखार की तरह लगता है पर इसके उपचार में विशेष सावधानिया बरतनी चाहिए |  आयुर्वेद तथा आधुनिक चिकित्सा पद्धति दोनों से ही इसका इलाज सम्भव है आज इस पोस्ट में हम टाइफाइड बुखार के आयुर्वेदिक इलाज तथा अंग्रेजी या एलोपथी इलाज दोनों की जानकारिया प्रदान कर रहे है |

टाइफाइड का इलाज अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति में अधिकतर एंटीबायोटिक्स के द्वारा किया जाता है | दवा के रूप में उपयोग में ली जाने वाली प्रमुख अंग्रेजी दवाए cefixime, azithromycine, ofloxacin, ceftriaxone तथा ciprofloxacin है |

आजकल प्रभावी एंटीबायोटिक्स उपलब्ध होने के कारण इस रोग का इलाज आसानी से हो जाता है लेकिन रोगी को पथ्य-अपथ्य का ध्यान रखकर भोजन ग्रहण करना चाहिए, अगर रोग के दौरान रोगी अपथ्य अर्थात अशुद्ध आहार का सेवन करता है तो रोग गंभीर रूप ले लेता है तथा यह असाध्य हो जाता है और रोग के निदान में कठिनाई होती है कभी कभी समय पर सही इलाज नहीं करने और उचित देखरेख के अभाव में रोगी की मर्त्यु भी हो सकती है |

टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज या दवा 

आयुर्वेद में इस रोग से निपटने के लिए विभिन्न प्रकार की औषधिया उपलब्ध है |

टाइफाइड रोग के इलाज के लिए उपयोग किये जाने वाले आयुर्वेदिक रस –

  1. सूत शेखर रस
  2. कर्पुर रस
  3. प्रवाल पंचामृत
  4. रामबाण रस
  5. चिंतामणि चतुर्मुख रस
  6. बील पर्पटी

टाइफाइड रोग के इलाज के लिय आयुर्वेदिक वटी-

  1. मधुरान्तक वटी
  2. सोभाग्य वटी
  3. संशमनी वटी
  4. संजीवनी वटी

टाइफाइड रोग के इलाज के लिय आयुर्वेदिक चूर्ण –

  1. सितोपलादि चूर्ण
  2. यवानी षाडव चूर्ण
  3. बिल्व चूर्ण
  4. नागकेशर चूर्ण
  5. तालिशादी चूर्ण

भस्म प्रयोग 

  1. गोदंती भस्म
  2. अभ्रक भस्म

इन औषधियों के अलावा भोजन करने के बाद 20 मिली. अमृतारिष्ट सिरप को बराबर पानी में मिलाकर सेवन करवाई जाती है | यहाँ बताई गई सभी आयुर्वेदिक दवा का प्रयोग चिकित्सक रोगी की प्रकृति और रोग की अवस्था के आधार पर तय करते है | किसी भी आयुर्वेदिक दवा का प्रयोग करने से पहले अपने निजी चिकित्सक से परामर्श अतिआवश्यक है |

टाइफाइड रोग में क्या खाएं

इस रोग में खाने पीने में परहेज करना बहुत जरुरी है | इसमें  मौसमी, अन्नार , अंगूर आदि फलों के रस का सेवन करना चाहिए तथा हल्का भोजन करना चाहिय | दूध  और दूध से बने पेय का सेवन करना चाहिए | इसके अलावा इसमें कम फाइबर वाले खाद्य पदार्थ जैसे धूलि हुई दाल, उबला हुवा आलू और अच्छी तरह से पक्की हुई सब्जियों का सेवन करना चाहिए |

टाइफाइड में निम्न खाद्य पदार्थो का सेवन करना उचित रहता है , इसे आप निम्न सूचि से समझ सकते है |

  1. दलिया
  2. पतला दूध अर्थात दूध में पानी मिलाकर सेवन करना चाहिए |
  3. सोयाबीन की खिचड़ी
  4. घिया एवं तुरई की सब्जी |
  5. सुखी रोटी |
  6. अनार |
  7. मौसमी |
  8. पपीता |
  9. चीकू |
  10. बाजार से खरीद कर लाइ गई सब्जियों को पानी में उबाल कर प्रयोग में लेने चाहिए |

टाइफाइड बुखार में क्या न खाएं ?

इस रोग के दौरान चाट पकोड़ी, पिज़्ज़ा बर्गर, समोसा, कचोरी, हलवा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए तथा रोगी को आराम करना चाहिए उसे व्ययाम या श्रम नहीं करना चाहिए |

टाइफाइड से बचाव कैसे करें ?

यह रोग ग्रीष्म तथा वर्षा ऋतू में अधिकतर होता है | अत: इस रोग से बचने के लिए ग्रीष्म और वर्षा ऋतू में खान – पान का ध्यान रखना चाहिए एवं जंक फ़ूड एवं बाजार में खुली बिकने वाले खाद्य पदार्थो से परहेज करना चाहिए | पानी को सेवन से पहले तुलसी के पते डालकर उबालें और ठंडा करके प्रयोग में लें | पहले से कटे हुए फल एवं सब्जियों का सेवन न करें |

रोग की सम्भावना होने पर जल्द से जल्द चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए एवं उचित जांच पड़ताल के बाद नियमित दवा का सेवन करना चाहिए |

टाइफाइड का टिका 

कुछ देशो में जहा पर स्वच्छता नहीं रहती यह रोग होने की सम्भावना ज्यादा होती है इन जगहों पर जाने से पहले टाइफाइड का टीकाकरण करना चाहिए | आधुनिक चिकित्सा में इस रोग से बचने के लिए टिका (vaccine) भी उपलब्ध है , जो मुख्यत: तीन प्रकार का होता है | टाइफाइड टिके का नाम 

  1. Typhoid conjugate Vaccine (TCV) – inactivated
  2. A Live Vaccine (Ty21a) – use by orally
  3. Vi Capsular Polysaccharide vaccine (ViPS) – Injectable

टाइफाइड के बाद क्या सावधानियां बरतनी चाहिए 

यह एक संक्रामक रोग है, इस रोग के ठीक हो जाने के बाद भी इसके बैक्टीरिया पूरी तरह से समाप्त नही होते | अतः इसके पुनः होने या इसके फैलने की सम्भावना बनी रहती है इन सब से बचने के लिय रोगी को ठीक हो जाने के बाद भी कुछ दिनों तक आहार विहार का ध्यान रखना चाहिए | विशेषतः बाहर का खाना नहीं खाना चाहिए व् कठिन श्रम नहीं करना चाहिए |

रोग से ग्रसित रोगी के ठीक हो जाने के बाद इसकी प्रभावकारी असंक्राम्यता बनाये रखने के लिय प्रति वर्ष इसका टीकाकरण अवश्य करना चाहिए ताकि रोग के पुनरावृति न हो |

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धन्यावाद |

 

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