संजीवनी वटी के फायदे , निर्माण विधि एवं सेवन करने का तरीका

संजीवनी वटी (Sanjivani Vati)

आयुर्वेद में विभिन्न योग एवं कल्पनाओं के माध्यम से औषध का निर्माण होता है | इसी में से वटी कल्पना भी एक प्रमुख औषध निर्माण की विधि है | संजीवनी वटी अर्थात संजीवनी टेबलेट , आयुर्वेद में टेबलेट को वटी नाम से पुकारा जाता है | प्राचीन समय से ही आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में टेबलेट्स का निर्माण किया जाता रहा है क्योंकि रोगी के लिए टेबलेट के माध्यम से औषध ग्रहण करना आसान होता है |

संजीवनी वटी

संजीवनी वटी / sanjivani vati मुख्यत: हैजा, ज्वर, जीर्ण ज्वर, एलर्जी , फ्लू, सर्दी, जुकाम, उदर कृमि (पेट के कीड़े), पेट दर्द एवं एंटीबायोटिक्स के रूप में उपयोग की जाती है | अजीर्ण, अपच एवं संक्रमण में भी इस संजीवनी दवा का प्रयोग प्रमुखता से किया जाता है |

संजीवनी वटी की निर्माण विधि 

बाजार में विभिन्न कंपनियों की संजीवनी वटी मिल जाती है | पतंजलि से लेकर, डाबर , बैद्यनाथ तक सभी कंपनियां इस दवाई का निर्माण करती है | आप पतंजलि दिव्या संजीवनी वटी (Divya Sanjivani vati) या डाबर एवं बैद्यनाथ किसी भी कंपनी की खरीद सकते है | इस औषध वटी के निर्माण में 10 औषध द्रवों का प्रयोग किया जाता है जो इस प्रकार है – संजीवनी वटी घटक द्रव्य 

  1. विडंग  –  1 भाग 
  2. पिप्पली –  1 भाग 
  3. विभीतक – 1 भाग 
  4. वचा  –  1 भाग 
  5. शुद्ध भलातक – 1 भाग 
  6. गुडूची (गिलोय)-  1 भाग 
  7. शुंठी  –  1 भाग 
  8. हरीतकी  – 1 भाग 
  9. आमलकी – 1 भाग 
  10. शु. वत्सनाभ – 1 भाग 
  11. गोमूत्र – भावना देने के लिए आवश्यकतानुसार 

सबसे पहले इन सभी द्रव्यों को सामान मात्रा में लिया जाता है एवं इनका प्रथक – प्रथक कूट पीसकर महीन चूर्ण बना लिया जाता है | चूर्ण इतना पतला होता है की इसे कपडे से छाना जा सकता है | अब इन्ही सभी चूर्ण को मिलाकर गोमूत्र की भावना देते हुए मर्दन किया जाता है | मर्दन करते समय जब योग की व्रती जैसा बनने लगे तब इसकी 1 – 1 रति अर्थात लगभग 125 mg की गोलिया बना ली जाती है | इन गोलियों को सुखाकर सुरक्षित रख लिया जाता है | इस प्रकार से संजीवनी वटी का निर्माण होता है |


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संजीवनी वटी सेवन विधि / लेने का तरीका 

संजीवनी वटी को 1 से 2 गोली जल या वासा स्वरस के साथ चिकित्सक के निर्देशानुसार लिया जाता है | अजीर्ण जैसे रोग में 1 रति की मात्रा में एवं सन्निपतज ज्वर आदि में 4 रति तक चिकित्सक की देख रेख में सेवन की जा सकती है |

संजीवनी वटी के फायदे / स्वास्थ्य लाभ / Sanjivani vati Benefits in Hindi

अजीर्ण, जीर्ण ज्वर, सर्प दंश, कास, प्रतिश्याय जैसे रोगों में संजीवनी वटी का उपयोग लाभ देता है | इसका निम्न रोगों में उपयोग करना फायदा पहुंचता है |

  • ज्वर एवं जीर्ण ज्वर में संजीवनी वटी तीव्र रूप से असर दिखाती है |
  • त्रिदोषों को संतुलित करने का कार्य भी करती है |
  • विभिन्न संक्रमण जैसे श्वांस नली का संक्रमण आदि में संजीवनी वटी का सेवन करने से फायदा मिलता है |
  • यह पाचन को भी सुचारू करती है एवं अजीर्ण जैसे रोग में इसका सेवन लाभ देता है |
  • सर्पदंश अर्थात सांप के काटने पर इसके सेवन से जहर का असर कम होता है |
  • विशुचिका रोग में भी इसका प्रयोग लाभ देता है |
  • पेट के कीड़े एवं पेट दर्द में संजीवनी वटी का सेवन लाभ देता है |
  • सर्दी-जुकाम एवं एलर्जी जैसी समस्या में भी आयुर्वेदिक चिकित्सक इसका सेवन बताते हैं |
  • लम्बे समय से चली आ रही अपच में अन्य औषध योगो के साथ संजीवनी वटी का सेवन बताया जाता है |

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