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भिलावा (भल्लातक) / Markingnut in Hindi
परिचय – भिलावा आयुर्वेद में इसकी गणना क्षोभक विषों में की गई है | यह अति विषैला औषधीय फल है अत: इसका प्रयोग आयुर्वेद में शोधन करने के पश्चात ही किया जाता है | इसका वृक्ष हिमालय के आद्र और उष्ण प्रदेशो में पाया जाता है | हिमालय के निचले भाग में स्थित राज्यों जैसे – बिहार, बंगाल, उड़ीसा और आसाम आदि में अधिकतर पाया जाता है | वृक्ष की ऊंचाई 30 से 40 फीट होती है |
भल्लातक के तनों एवं शाखाओं की छाल धूसर रंग की होती है , तने व छाल को काटने पर काले रंग का दाहकारक रस निकलता है | इसके पते शाखाओं के अग्रिम भाग पर लगते है, जो समूहों में होते है | पते लम्बे गोलाकार एवं 1 से 30 इंची लम्बे और 5 से 12 इंची चौड़े होते है | इसके फल हरिताभ पीतवर्ण के होते है जो पुष्प मंजरी युक्त शाखाओं पर लगते है |
फल
भिलावा के फल विषैले होते है | ये हृदय के समान आकृति वाले चिकने, चमकीले एवं 1 इंच तक लम्बे होते है | फल अपनी कची अवस्था में हरे रंग के होते है और पकने के बाद काले रंग के हो जाते है | फल की मज्जा में गाढ़ा रस निकलता है, अगर यह रस शरीर को छू जाये तो छाले और सुजन हो जाता है | फल के अंदर बादाम की तरह के बिज होता है |
भिलावा का रासायनिक संगठन
इसके फल में एक रस अर्थात विशिष्ट तेल पाया जाता है जो ईथर में घुलनशील होता है एवं अगर वायु के सम्पर्क में आये तो यह अपना रंग काला कर लेता है | यह तेल सुजन दायक होता है | शरीर को छूते हो प्रभावित स्थान पर कंडू के साथ शोथ उत्पन्न हो जाता है | इसमें फेनोल भिलावनोल एवं सेमिकापोल आदि तत्व भी पाए जाते है |
भिलावा के गुण धर्म
इसका रस कटु, तिक्त और कषाय होता है | गुणों में यह लघु, स्निग्ध और तीक्षण होता है | भिलावा का वीर्य उष्ण होता है, अत: कफज विकारों में लाभकारी है | लेकिन फिर भी इसका प्रयोग कभी भी बिना चिकित्सक से सम्पर्क किये नहीं करना चाहिए , क्योंकि आयुर्वेद में भिलावा का प्रयोग अकेले नहीं किया जाता | पचने के पश्चात इसका विपाक मधुर होता है |
अपने इन्ही गुणों के कारण यह वात एवं कफ शामक होता है एवं उष्ण प्रक्रति और कटु एवं तिक्त होने के कारण पित्त को बढाता है | इसके अलावा मेध्य, दीपन, पाचन, मूत्रल (मूत्र बढाने), वृष्य, बाजीकरण, ज्वरघ्न एवं रसायन गुणों से परिपूर्ण होता है |
भिलावे (भल्लातक) का शौधन
इसका शौधन करने के लिए सबसे पहले अच्छी तरह से परीक्षित फलों को लेना चाहिए | अब इन फलों को फल के वृंत के पास से काटले | कटे हुए फलों को पकी हुई इंट के चूर्ण में 4 से 8 दिनों के लिए छोड़ दे | फलों को काटते और इंटों के चूर्ण में रखते समय ग्लव्स को पहन कर करना चाहिए |
8 दिनों पश्चात ईंटो के चूर्ण से कटे हुए भल्लातक फलों को निकाल ले और इन्हें गरम पानी से धो ले ताकि इन पर लगे हुए चूर्ण को हटाया जा सके | इसके पश्चात इन्हें धुप में अच्छी तरह सुखा ले | सूखने के बाद गाय के घी में इन्हें अच्छी तरह से हल्की आंच पर भुन ले | भूनते समय थोडा ध्यान रखे | अच्छी तरह भुनाने के बाद ये शौधित हो जाते है | शौधित फलों का उपयोग औषधीय प्रयोग में करना चाहिए |
भिलावा (गोडूम्बी) के फायदे और सेवन विधि
- भिलावा कफ एवं वात रोगों में लाभदायक होता है |
- यह कृमि नाशक होता है |
- यौन दुर्बलता को दूर करता है |
- रसायन और बाजीकरण गुणों से युक्त होने के कारण रसायन और बाजीकरण में उपयोगी है |
- श्वास एवं कास में लाभदायक है |
- इसके औषधीय प्रयोग से शुक्राणुओं की मात्रा बढती है |
- उचित मात्रा में सेवन से दीपन और पाचन का कार्य भी करता है |
- कैंसर आदि में भी इसके तेल का प्रयोग किया जाता है जो फायदेमंद होता है |
- आध्मान और विबंध में भिलावा फायदेमंद होता है |
- वातशूल में इसका प्रयोग लाभ देता है |
- वृष्य और मेध्य गुणों से युक्त होता है |
आयुर्वेद में इसका अकेले प्रयोग नहीं किया जाता | इसके साथ अन्य औषधियों का इस्तेमाल या कम से कम शुद्ध भाल्ल्तक को घी के साथ सेवन करवाया जाता है | अगर इसके सेवन से विषाक्त लक्षण प्रकट हो जाए जैसे – शोथ, दाह, स्फोट या तृषा आदि तो प्रतिषेध में नारियल का तेल एवं तिल का तेल का सेवन करना चाहिए |
सेवन में इसके तेल की मात्रा 1 से 2 बूंद और इसके बीजों के चूर्ण को अधिकतम 1 से 2 ग्राम गृहण करना चाहिए | चूर्ण के अनुपन स्वरुप शीतल जल का सेवन करना चाहिए |
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धन्यवाद |
Bhilawa ko kaise pisa jye krpiya bataane ki kripa kare