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पीलिया (Jaundice in Hindi)
परिचय – पीलिया यकृत की विकृति अर्थात यकृत के रोगग्रस्त होने के कारण होने वाला रोग है | यकृत के रोग ग्रस्त होने के बाद सबसे पहले लक्षण के रूप में पीलिया (Jaundice) ही प्रकट होता है | इसमें रोगी के त्वचा, नाखूनों, आँखों, एवं मूत्र में पीले रंग की अधिकता हो जाती है | इसका मुख्य कारण रक्त में पित रस की अधिकता (Bile Juice) होना होता है | वैसे दिखने में यह बहुत ही साधारण सा रोग प्रतीत होता है , लेकिन अगर सही समय पर उपचार एवं उचित आहार न लिए जाएँ तो पीलिया जानलेवा रोग बन जाता है |
कैसे होता है पीलिया ?
मानव शरीर में यकृत पित रस का निर्माण करता है | इस पित रस का कार्य होता है, भोजन को ठीक ढंग से पचाना | लेकिन जब यकृत में कोई विकार उत्पन्न हो जाए या यकृत पित का अधिक निर्माण करने लगे तो शरीर की रक्त नलिकाओं में बाधा उत्पन्न होकर रक्त में पित रस की अधिकता हो जाती है | इसी अवस्था को पीलिया (Jaundice) कहते है | आयुर्वेद के अनुसार पीलिया (कामला) को रक्तज एवं पितज विकारों में गिना जाता है | जब पांडू रोग से पीड़ित व्यक्ति यदि पित्त प्रकोपक द्रव्यों का अधिक मात्र में सेवन करता है तो उसका बढ़ा हुआ पित्त रक्त एवं मांस को जलाकर पीलिया रोग को उत्पन्न करता है |
पीलिया के प्रकार / Types of Jaundice
पीलिया के तीन प्रकार होते है – 1. ऑब्सट्रक्टिव पीलिया (Obstructive Jaundice) – इस प्रकार के पीलिया में पित नलिकाओं में बाधा उत्पन्न हो जाती है | एसी स्थिति में पित रस (Bile Juice) पाचन संसथान में नहीं पहुँच पाता और सीधे ही रक्त में चला जाता है , जिसके कारण पीलिया रोग हो जाता है 2. हिमोलाइटिक पीलिया (Hemolytic Jaundice) – जब रक्त में उपस्थित लाल रक्त कणिकाएँ अधिक नष्ट होने लगती है तो रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ने लगती है | बिलीरुबिन की अधिकता होने के कारण रक्त की कमी होने लगती है एवं पीलिया रोग हो जाता है | 3. हिपेटोसेल्युलर हेपेटाइटिस (Hepatocellular hepatitis) – यह पीलिया वायरस के संक्रमण अथवा विषाक्त दवाइयों एवं विषाक्त पदार्थो के सेवन से होता है | यकृत की कोशिकाएं इनके प्रभाव से निष्क्रिय हो जाती है तथा पीलिया रोग हो जाता है |
पीलिया रोग के कारण / Cause of Jaundice
अधिकतर पीलिये का कारण वायरस संक्रमण होता है | वर्तमान में अधिकतर लोग वायरस संक्रमण के कारण ही पीलिये की चपेट में आते है | इसे वायरल हेपेटाइटिस भी कहा जाता है | पीलिया रोग में रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा .2mg/100 ML से .8mg/100 ML हो जाती है , इससे न केवल त्वचा का रंग पिला हो जाता है बल्कि आंतरिक अंग के श्लेष्मिक झिल्ली भी पिली हो जाती है |
- वायरस संक्रमण के कारण |
- दूषित भोजन के सेवन से |
- अधिक शराब का सेवन करना |
- शरीर में अम्लता की अत्यधिक व्रद्धी |
- अधिक तीखे एवं मिर्च – मसाले वाले खाद्य पदार्थों का लम्बे समय तक सेवन करना |
- पित्त नलिका में पत्थरी के कारण |
- अधिक अम्लीय, क्षारीय, अति उष्ण, विरुद्ध एवं असात्मय भोजन के सेवन से भी पीलिया होने का खतरा रहता है |
पीलिया के लक्षण / Symptoms of Jaundice
पीलिया होने पर निम्नलिखित लक्षण प्रकट होते है |
- रोगी की त्वचा, नाख़ून एवं आँखों में पीलापन आने लगता है |
- भूख कम लगने लगती है |
- चक्कर आना, जी मचलाना एवं उलटी होना |
- पेट दर्द होना |
- सिरदर्द होना |
- पेशाब में पीलापन |
- शरीर कमजोर हो जाता है |
- रोगी को कब्ज एवं अरुचि जैसी समस्याएँ भी होने लगती है |
- अधिकतर शाम के समय रोगी को तीव्र बुखार आती है |
पीलिया का इलाज / Jaundice Treatment
पीलिया के रोगी के उपचार के लिए औषधि के साथ – साथ उचित आहार व्यवस्था भी जरुरी होती है | पूर्ण विश्राम एवं संतुलित आहार से इस रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है | इस रोग में सुधार धीरे – धीरे होता है | अत: रोगी की आहार व्यवस्था पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए | आहार ऐसा हो की की रोगी आसानी से उस आहार को ग्रहण कर ले | अगर अधिक परिवर्तन कर दिया जाए तो भी यह नुकसान दायक सिद्ध होता है | रोगी को आहार में उचित मात्रा में प्रोटीन, वसा एवं कार्बोज देना चाहिए ताकि उसे उचित कैलोरी मिल सके | अगर आहार में लापरवाही बरती जाए तो यह रोग पुन: बढ़ने लगता है | रोगी को कुशल एवं योग्य चिकित्सक से जांच करवाकर समय पर दवाइयां देनी चाहिए | चिकित्सक द्वारा बताई गई सलाह एवं निर्देशों का पालन अवश्य करे , तभी इस रोग से छुटकारा मिलता है | शारीरक एवं मानसिक विश्राम भी इस रोग में अत्यंत आवश्यक होता है | विश्राम से रोगी को काफी आराम एवं स्वास्थ्य लाभ मिलता है |
पीलिया में क्या खाएं / Jaundice Diet
दवाइयों से ज्यादा आहार की व्यवस्था इस रोग में आराम पहुंचती है | हमेशां रोगी के लिए क्या खाना है और क्या नहीं खाना की एक लिस्ट होनी चाहिए उसी के अनुसार रोगी को आहार देना चाहिए | बहुत से भोजन एसे है जो रोग को कम करने की बजाय और अधिक बढ़ा देतें है | इस रोग में निम्न आहार को अपनाना लाभदायक होता है |
- इस रोग में गन्ने का रस लेना सर्वोतम सिद्ध होता है | हमेशां साफ़ एवं स्वच्छ गन्ने का रस सेवन करे , इससे जल्द ही पीलिया कम होने लगता है |
- प्रात: के समय गन्ने के रस के साथ नारंगी का जूस भी सेवन करना फायदेमंद होता है |
- संतरे का सेवन करे | संतरे का जूस निकाल कर भी सेवन कर सकते है |
- पीलिया रोग में कच्चे नारियल का पानी पीना बहुत लाभकारी होता है | नित्य सुबह एवं शाम नारियल के पानी का सेवन करे |
- अनार का रस लिया जा सकता है |
- डाभ एवं जौ के पानी से भी पीलिया उतरने लगता है |
- मूली के साफ़ सुथरे पतों को लेकर इनका जूस निकाल ले | इसका सेवन प्रात: काल के समय करना चाहिए |
- दही में पानी मिलाकर इसकी छाछ बना ले एवं सेवन करे |
- रात के समय एक गिलास पानी में मुन्नका को भिगों दे | सुबह मुन्नका के बीज निकाल कर इन्हें खालें और ऊपर से बच्चा हुआ पानी पीलें |
- अनार , संतरा, अंगूर आदि फलों का सेवन इस रोग में लाभकारी होता है |
- पपीता का सेवन करें |
- मौसमी, पपीता, चीकू, अनार, संतरा आदि फलों का या इनके रस का सेवन करना चाहिए |
- हमेशां पौष्टिक एवं सुपाच्य भोजन लें |
- उष्ण, तीक्षण और अम्लीय पदार्थों का त्याग कर दें , अन्यथा रोग को गंभीर होते समय नहीं लगता |
- शराब एवं अन्य प्रकार के नशे से दूर रहना ही अच्छा रहता है |
पीलिया में क्या खाएं की जानकारी के लिए आप इस टेबल को देख सकते है | यह तालिका पीलिया से ग्रसित एक वयस्क व्यक्ति के एक दिन के आहार की तालिका है –
रात 8 बजे | चपाती, टमाटर आलू की रसेदार सब्जी, वसा रहित दूध, फलों का सलाद, मल्टी विटामिन गोली | चपाती – 2 / सब्जी – आधा कटोरी / दूध – 1 कटोरी / फलों का सलाद – आधा प्लेट / गोली – 1 |
शाम 6 बजे | मौसमी का रस | 1 गिलास |
शाम 4 बजे | संतरे का रस | 1 गिलास |
दोपहर 1.30 बजे | पका हुआ चावल, चपाती, लौकी की सब्जी, वसा रहित दही , टमाटर एवं गाजर का सूप | पका हुआ चावल – 1/2 प्लेट / चपाती – 1 / लौकी की सब्जी – आधा कटोरी/ दही – 1 कटोरी / सूप – 1 कप |
सुबह 11 बजे | अन्नानास का ज्यूस | 1 गिलास (लगभग 200ml) |
सुबह 8.15 बजे | ब्रेड , जैम, पपीता | ब्रेड – 2 स्लाइड / जैम – 2 चम्मच / पपीता – 100 ग्राम |
सुबह 6 बजे | मौसमी का रस नमक डालकर | 1 गिलास |
आयुर्वेद के अनुसार पीलिया में आहार व्यवस्था (पथ्य एवं अपथ्य)
निम्न तालिका से आप आयुर्वेद के अनुसार पीलिया में क्या खाना चाहिए एवं क्या नहीं खाना चाहिए को समझ सकते हैं |
तालमखाना, छाछ, जीवन्ति, पका हुआ आम, हर्ड आदि खाएं जा सकते है | | मटर, देर से पचने वाले पदार्थ एवं परिश्रम से बचे | |
पुराने चावल, जौ, मुंग, अरहर, मैसूर, गाय का घी एवं गाय का दूध अल्प मात्रा में खाएं जा सकते है | | धुम्रपान, शराब, मांस एवं मछली को न खाएं , रोग अधिक बिगड़ सकता है | |
कच्चा पपीता, कच्चा केला, आलू, अनार, मुन्नका एवं अंजीर आदि का सेवन किया जा सकता है | चने व उड़द की दाल , केक, बेसन के बने पदार्थ एवं जलन पैदा करने वाले भोज्य पदार्थ न खाएं | |
आंवला, टमाटर, पुराने गेंहू की रोटी एवं जौ का सतु ले सकते है | | राई, हिंग, तिल, गुड़, बेसन व अरबी आदि का सेवन अपथ्य है | |
परवल, चौलाई, तोरई, टिंडे, पोदीना, धनिया आदि खाए जा सकते है | | अचार एवं पूर्ण रूप से खट्टे पदार्थों का सेवन न करे | |
पालक, लौकी, बथुआ, मूली, लौकी,आलू आदि | विदाही एवं गुरु पदार्थों का सेवन न करे – घी, तेल , हल्दी, लालमिर्च एवं गरम मसाले |
पीलिया रोग का घरेलु इलाज
घरेलु उपचार में कुच्छ नुस्खे जिन्हें आप पीलिया को ठीक करने के लिए अपना सकते है |
- पीपल के पेड़ के चार नए पतें (जो बिलकुल साफ़ सुथरे एवं ताजा हो) ले | इन्हें पानी से धोकर साफ़ कर ले | साफ पतों को पत्थर की शिला पर बारीक़ पिसलें | अब इन्हें एक गिलास पानी में डालकर साथ में मिश्री मिलाकर इस पानी को छान कर सेवन करे | नित्य सुबह – शाम सेवन करने से पीलिया जड़ से चला जाता है | साथ में पथ्य एवं अपथ्य आहार का ध्यान रखें |
- मूली के ताजे हरे पतों को लेकर इन्हें शिला पर पिसकर इनका रस निकाल ले | इस रस में मिश्री मिलाकर सुबह – शाम सेवन करने से जल्द ही रोग ठीक हो जाता है |
- 5 ग्राम मूली के पतों का रस, 3 ग्राम पालक का रस और 5 ग्राम गाजर का रस – इन तीनो को मिलाकर सेवन करने से भी पीलिया ठीक हो जाता है |
- अनार का आधा गिलास ज्यूस का सेवन करने से भी लाभ मिलता है |
- एक गिलास गन्ने के रस में थोडा निम्बू डालकर नित्य सेवन करने से रोग कम होने लगता है |
- अगर तरबूज का मौसम हो तो इसका रस निकाल कर एक चुटकी सेंधा नमक डालकर सेवन करने से पीलिया में लाभ मिलता है |
- टमाटर का ताजा रस सेंधा नमक डालकर नित्य सेवन करने से लाभ मिलता है |
- कडवी तोरई का रस निकाल कर सुबह एक समय नाक के दोनों नथुनों में कुच्छ मात्रा में डालें | थोड़ी देर नाक में रखने के बाद नाक को निचे करके पानी निकाल दे | नाक से पीले रंग का पानी गिरना शुरू होजाता है | इसे अपनाने से भी रोग ठीक होता है |
- गिलोय का रस नित्य सेवन से भी पीलिया की समस्या जाती रहती है |
पीलिया में पीलिया नाशक काढ़ा
पीलिया नाशक काढ़ा बनाने के लिए निम्न सामग्री की आवश्यकता होती है –
- सफ़ेद पुनर्नवा की जड़
- नीम की हरी छाल
- सोंठ
- गिलोय (ताजा)
- हल्दी
- कुटकी
- देवदारु
- हरड
इन सभी को तीन – तीन माशे ले | अब इन आठों द्रव्यों को कुचल कर रात्रि के समय आधा सेर पानी में भिगों दें | सुबह इसे आग पर चढ़ा कर काढ़ा बनावे | जब पानी चौथाई बचे तब इसे निचे उतार ले और ठंडा करके छानले | अब इस काढ़े में 6 माशा शहद मिलाकर सेवन करें | इस काढ़े का सेवन 50 ML तक नित्य करने से कामला ठीक होने लगता है | Note – यह जानकारी महज आपके ज्ञान वर्द्धन के लिए लिखी गई है | इन उपायों को अपनाने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श आवश्यक है | क्योंकि रोग की अवस्था एवं रोगी की प्रकृति के आधार पर ही औषधि अपना कार्य करती है | अत: अपने चिकित्सक से परामर्श आवश्यक है | References : Dr. Brinda Singh / Dr. Avtar Singh / Dr. Ajit Singh धन्यवाद |