सप्तधातु वर्धक औषधि: आयुर्वेद में सप्त धातु, त्रिदोष एवं मल का सिद्धांत आपने पढ़ा होगा । आयुर्वेद अनुसार शरीर में सात धातुएं होती हैं जिनका पौषण होना अत्यंत आवश्यक होता है । क्योंकि ये सातों धातुएं शरीर का वर्द्धन और पौषण करती है । अगर सप्तधातुएं में से कोई भी धातु आपकी कमजोर है तो उतरोत्तर सभी धातुएं क्षीण होती जाएँगी । इसीलिए आयुर्वेद में विभिन्न आयुर्वेदिक दवाएं उल्लेखित की गई है जो सप्तधातुओं का वर्द्धन करने का कार्य करती है ।
आज के इस लेख में हम आपको आयुर्वेद की सप्तधातु वर्द्धक औषधि एवं आयुर्वेदिक दवाओं के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी देंगे जिनका प्रयोग करने से आप अपनी धातुओं की पौषण का ध्यान रख सकते हैं । परन्तु इससे पहले आपको सप्तधातु क्या होती है इसकी जानकारी होनी अत्यंत आवश्यक है ।
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शरीर में सप्तधातुएं कौनसी हैं ? (What is Saptadhatu Concept in Ayurveda and their types)
आयुर्वेद में वर्णित सप्तधातु कांसेप्ट शरीर से सम्बंधित है । आयुर्वेद अनुसार त्रिदोष के फल स्वरुप इन सप्त धातुओं का निर्माण शरीर में होता है और यही धातुएं शरीर को धारण करने का कार्य करती है । हमारे शरीर में मुख्यत: सात धातुएं होती हैं । जो इस प्रकार है –
- रस
- रक्त
- मांस
- मेद
- अस्थि
- मज्जा
- शुक्र
ये सभी धातुएं क्रमानुसार बनती हैं । सबसे पहले हम आहार ग्रहण करते है तो उससे रस का निर्माण होता है । रस से फिर रक्त बनता है और रक्त से मांस और फिर उतरोत्तर सभी धातुएं निर्मित होती हैं । सबसे अंत में शुक्र धातु का निर्माण होता है । इस प्रकार से सप्तधातुओं का निर्माण होता है । आयुर्वेद अनुसार इन सप्तधातुओं का नवीनीकरण भी होता रहता है, क्योंकि धातुएं स्थाई और अस्थाई दोनों ही प्रकार की होती है । अस्थाई धातुओं का तात्पर्य इनके गुणों से हैं क्योंकि इन धातुएं के गुणों में नवीनीकरण होता रहता है ।
आयुर्वेद की सप्तधातु वर्धक औषधियां | Saptadhatu Vriddhak Aushdhi
अब उपरोक्त में हमने आपको सप्तधातु के सिद्धांत का उल्लेख किया है । इसे आप समझ भी गए होंगे की सप्तधातुएं क्या होती हैं । इसलिए इन धातुओं के पौषण का ध्यान रखने के लिए भी आयुर्वेद में विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं का उल्लेख किया गया है । हालाँकि कोई भी स्पेसिफिक दवा इनके लिए नहीं है परन्तु कुछ दवाएं हैं जो सभी धातुओं का एकरूप से वृद्धन करती हैं । तो चलिए जानते हैं इन सप्तधातु वृद्धक औषधि के बारे में
1. धातुपौष्टिक चूर्ण है सप्तधातु वर्धक
धातुपौष्टिक चूर्ण को सभी धातुओं के पौषण के लिए उपयोग किया जाता है । आयुर्वेद अनुसार यह शरीर में कुपौषित धातुओं का संवर्द्धन करता है । इसके सेवन से रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा एवं शुक्र को पौषण मिलता है । आयुर्वेद में शुक्र के विकारों के लिए इसका इस्तेमाल होता है । जिसका मुख्य आधार यही है की धातुपौष्टिक चूर्ण उत्तरोत्तर धातुओं का पौषण करके अंत में शुक्र धातु का वर्द्धन एवं पौषण करता है ।
धातुपौष्टिक चूर्ण के फायदे:
- धातुपौष्टिक चूर्ण के इस्तेमाल से सप्तधातुओं का वर्द्धन होता है ।
- यह शुक्र धातु को पौषण प्रदान करता है ।
- शुक्र की कमजोरी के कारण होने वाले रोगों में लाभदायक है ।
- वीर्य विकारों में उपयोगी आयुर्वेदिक औषधि है ।
- शरीर में बल वर्द्धन का कार्य करता है ।
सेवन की विधि:
धातुपौष्टिक चूर्ण बिना डॉक्टर के पर्ची के मिलने वाली आयुर्वेदिक दवा है । इसका सेवन 3 से 5 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम दूध के साथ इस्तेमाल किया जाता है । हालाँकि इसे एक आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से रोग अनुसार सेवन कर सकते हैं । क्योंकि रोगअनुसार इसकी खुराक की मात्रा एवं अनुपान भिन्न – भिन्न हो सकते हैं ।
2. अश्वागंधादि घृत
अश्वगंधा के सहयोग से इस सप्तधातु वर्धक औषधि का निर्माण होता है । यह आयुर्वेद की घृत प्रकरण की औषधि है । जिसमे अश्वगंधा और गाय का घी मिला होता है । अश्वगंधा आयुर्वेद की पॉवरफुल जड़ी बूटी है जिसका इस्तेमाल विभिन्न शारीरिक समस्याओं के दौरान किया जाता है । अश्वागंधादि घृत के सेवन से शरीर की सप्तधातुओं का वृद्धन होता है । यह औषधि सभी धातुओं का पौषण करने में लाभदायक है ।
अश्वगंधादि घृत के फायदे:
- अश्वगंधादि घृत के सेवन सप्तधातुओं का वृद्धन होता है ।
- अश्वगंधादि घृत के सेवन करने से शारीरिक क्षीणता में लाभ मिलता है ।
- इसका सेवन करने से तनाव दूर होता है ।
- शरीर में बल की वृद्धि होती है ।
- वीर्य विकारों में भी लाभदायक औषधि है ।
- शुक्र धातु का वृद्धन करता है ।
अश्वगंधादि घृत की खुराक:
इस सप्तधातु वृद्धक औषधि की आमतौर पर खुराक 10 से 15 मिली की मात्रा मे सुबह शाम किया जा सकता है । इसे दूध में मिलाकर खाया जा सकता है । विशेष लाभ के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से सेवन करना चाहिए ।
3. रसायन चूर्ण
रसायन चूर्ण भी आयुर्वेद की क्लासिकल औषधि है । इस चूर्ण का इस्तेमाल करने से सप्तधातुओं का वर्धक आवश्यक रूप से होता है । इसमें आंवला, गोखरू और गिलोय ये तीन अति उत्तम आयुर्वेदिक जड़ी – बूटियां होती हैं । सभी जड़ी – बूटियों का इस्तेमाल आयु को बढ़ाने, दोषों का नाश करने एवं धातुओं के वृद्धन के लिए होता है । इसलिए रसायन चूर्ण के सेवन से सबसे पहले रस धातु का वृद्धन होता है उसके पश्चात उतरोत्तर सभी धातुओं का वृद्धन होते हुए शुक्र धातु तक का पौषण बराबर मिलता है ।
रसायन चूर्ण के फायदे:
- रसायन चूर्ण अत्यंत बलवान आयुर्वेदिक दवा है ।
- यह शरीर में सप्तधातुओं का पौषण करने में लाभदायक है ।
- शुक्र धातु को पौषित करती है एवं इसके कारण होने वाले रोगों में लाभ मिलता है ।
- इसके सेवन से सप्तधातुओं का वृद्धन होता है और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया धीमी होती है ।
- यह एंटी एजिंग प्रॉपर्टीज से युक्त आयुर्वेदिक दवा है ।
- बल एवं वीर्य का वर्द्धन करती है ।
रसायन चूर्ण की खुराक:
सामान्यत: रसायन चूर्ण को 3 से 5 ग्राम की मात्रा में सुबह – शाम जल, शहद या दूध के साथ किया जा सकता है । हालाँकि रोग के आधार पर आयुर्वेदिक चिकित्सक द्वारा यह खुराक कम या ज्यादा एवं अनुपान का परिवर्तन किया जा सकता है ।
4. शिलाजीत रसायन
इसे भी सप्तधातु वर्धक औषधि माना जाता है । आयुर्वेद में शिलाजीत को उत्तम किस्म का औषधीय द्रव्य माना गया है । यह शरीर का वृद्धन करने एवं जरा का नाश करने वाली औषधि है । आयुर्वेद अनुसार यह तीन धातुओं के तो बराबर मानी जाती है, जिसमे रक्त, मज्जा और वीर्य इन तीनों धातुओं के समक्ष शिलाजीत को माना जाता है । इसके अलावा इसके से बुढ़ापे एवं जीर्ण रोगों का नाश होता है । शिलाजीत का नियमित सेवन करने से शरीर की सभी धातुओं का वर्धन होकर शरीर का कायाकल्प होता है ।
शिलाजीत के फायदे:
- शिलाजीत रसायन के शरीर में अनगिनत फायदे हैं ।
- इसके सेवन से शरीर बलवान और रोगमुक्त बनता है ।
- बुढ़ापे या बीमारी के कारण आई कमजोरी में भी शिलाजीत रसायन अपने जरानाशक एवं बल वृद्धक गुणों के कारण बहुत उपयोगी साबित होती है ।
- सप्तधातु वर्धक औषधि के रूप में भी इसका सेवन आयुर्वेदिक चिकित्सकों द्वारा करवाया जाता है ।
- यह आयुर्वेदिक औषधि बहुत से रोगों का काल मानी जाती है ।
- रोगप्रतिरोधक क्षमता का विकास करने के लिए इसे सेवन करने से लाभ मिलता है ।
खुराक:
शिलाजीत रसायन की आमतौर पर खुराक 1 – 1 गोली है । इसका सेवन दूध के साथ नियमित रूप से किया जा सकता है । इस प्रकार से सेवन करने से शरीर की सप्तधातुओं का वृद्धन होता है । रोगानुसार खुराक के लिए आपको नजदीकी आयुर्वेदिक चिकिसक से परामर्श लेना आवश्यक है ।
धन्यवाद ।