स्नेहन स्वेदन: पंचकर्म के दो पूर्व कर्म (What is Snehan and Swedana)

स्नेहन स्वेदन: आयुर्वेद के पंचकर्म चिकित्सा पद्धति में पूर्व कर्म में स्नेहन एवं स्वेदन कर्म आता है । पंचकर्म चिकित्सा पद्धति में मुख्यत: 5 कर्म होते हैं प्रत्येक कर्म में पूर्व कर्म, प्रधान कर्म एवं पश्चात कर्म होते है । इन्ही पूर्व कर्मों में स्नेहन और स्वेदन कर्म आते हैं । आज के इस लेख में हम आपको स्नेहन स्वेदन के बारे में विस्तार से जानकार देंगे । अगर आप जानना चाहते हैं कि स्नेहन स्वेदन क्या होता है एवं कैसे किया जाता है तो इस लेख को अंत तक पढ़िए ।

स्नेहन स्वेदन

स्नेहन और स्वेदन कर्म क्या है ?

स्नेहन को आप आयलिंग (Oiling) से समझ सकते हैं । पंचकर्म में किसी भी कर्म को करने से पहले शरीर की आयलिंग की जाती है । जिससे दोष एक जगह इक्कठा हो जाएँ । यह बाहरी रूप एवं अभ्यंतर दोनों प्रकार से शरीर में स्नेहन किया जाता है । इसी प्रकार स्वेदन का अर्थ होता है शरीर को उष्णता देना एवं वाष्प आदि से शरीर को गरम करके पसीना बाहर निकालना । स्वेदन कर्म भी पंचकर्म के पूर्व कर्म का ही एक अंग है ।

चलिए अब हम आपको इनको अलग – अलग विस्तृत रूप से समझाते हैं कि स्नेहन और स्वेदन क्या हैं एवं इनमे क्या अंतर है ।

स्नेहन कर्म क्या है ?

यह उपचार का एक ऐसा तरीका है जिसके द्वारा शरीर में चिकनापन, स्निग्धता और मार्दव उत्पन्न किया जाता है । स्नेहन करने से शरीर में उपस्थित दोष पिघल कर इनका विलयन हो जाता है । जिस कारण इन्हें शरीर से बाहर निकालने में आसानी होती है । अगर आप साधारण भाषा में समझे तो स्नेहन से शरीर में चिपचिपापन उत्पन्न होता है और दोष एक जगह इक्कठा होकर बाहर निकालने में आसानी होती है ।

इसे मुख्यत: तो पंचकर्म का पूर्व कर्म ही माना जाता है परन्तु आचार्य चरक ने इसे चरकसूत्र स्थान में 6 प्रकार के चिकित्सा उपकर्मों में प्रधान कर्म भी बताया है । क्योंकि यह प्रधान कर्म एवं चिकित्सा भी है ।

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स्नेहन के प्रकार

स्नेहन के दो प्रकार माने गए है अर्थात स्नेहन दो प्रकार से किया जाता है –

  1. बाह्य स्नेहन अभ्यंग अर्थात मालिश के द्वारा स्नेहन करना ।
  2. आभ्यांतर स्नेहन अर्थात घी या तेल आदि अंदरूनी रूप से पीलाकर किया जाने वाला स्नेहन ।

स्नेहन करने की विधि

1.बाह्य स्नेहन (अभ्यंग): अभ्यंग अर्थात औषध युक्त घृत या तेल से शरीर की मालिश करना अभ्यंग कहलाता है । यह बाह्य स्नेहन के रूप में जाना जाता है । क्योंकि इसमें बाहरी रूप से शरीर में मालिश करके स्नेहन किया जाता है । इसमें मेडिकेटिड आयल, घी, उबटन या मर्दन आदि से स्नेहन किया जाता है । अच्छी तरह से अभ्यंग करने पर शरीर में इन औषधीय तेल या घी का अवशोषण होता है एवं शरीर में लचीलापन बढ़ता है ।

2. आन्तरिक स्नेहन (स्नेह्पान): इस प्रकार के स्नेहन में घी, तेल, आदि को पिलाकर अंदरूनी रूप से शोधन के यौग्य बनाया जाता है । इसे अधिकतम 7 दिन तक ही पिलाया जा सकता है । क्योंकि इससे अधिक स्नेहपान करवाने पर यह सात्मय होने लगता है । जिससे रोगों का शोधन सफल नहीं हो पाता । स्नेह्पान में घी का सेवन पित्त दोष में, तेल का सेवन वात दोष में एवं वसा का प्रयोग शरिर में बल वर्द्धन, वीर्य वर्द्धन के लिए करवाया जाता है ।

स्वेदन क्या है (What is Swedana)

शरीर में गर्मी देने पर पसीना अर्थात स्वेद आता है । जब यह कार्य क्रत्रिम रूप से ऊष्मा देकर पसीना लाया जाता है तो इसे स्वेदन कर्म कहते हैं । स्वेदन भी पंचकर्म का पूर्वकर्म है इसे अधिकतर पंचकर्म के कर्मों से पहले करवाया जाता है । यह रोग निदान की एक प्रक्रिया है जिसमे स्नेहन के पश्चात इक्कठा हुए रोगों को एवं स्वेद में स्थित दोषों का शमन किया जाता है ।

वैसे स्वेदन भी रोगों का शमन करता है अत: इसे भी प्रधान कर्म माना जाता है । यह शरीर की जकड़ाहट, भारीपन एवं ठंडापन दूर करता है ।

चरक के अनुसार स्वेदन के 13 प्रकार बताये गएँ है जो निम्न प्रकार है –

चरक अनुसार स्वेदन के प्रकार

संकर: प्रस्तरो नाडी परिषेचकोअवगाहनम |
जेन्तोकोअश्मघ्न: कर्शु: कुटी भू: कुम्भीकैव च ||
कुपो होलाक इत्यदे स्वेदयनति त्रयोदश: ||

चरक सूत्र 14/39-40
  1. संकर
  2. प्रस्तर
  3. नाड़ी
  4. परिषेक
  5. अवगाहन
  6. जेन्ताक
  7. अश्मघन
  8. कर्षू
  9. कुटी
  10. भू
  11. कुम्भी
  12. कूप
  13. होलाक

स्वेदन कर्म कैसे किया जाता है ?

सबसे पहले स्वेदन के लिए आये रोगी या स्वस्थ व्यक्ति कर परिक्षण करके उनके लिए स्वेदन का समय एवं प्रकार निर्धारित किया जाता है । इसे आप स्पा में होने वाले स्टीम therapy से बिलकुल तुलना नहीं कर सकते । यह चिकित्सा की एक विधि है जिसमे आयुर्वेदिक चिकित्सक द्वारा रोग के आधार पर स्वेदन का प्रकार निर्धारित किया जाता है ।

इसके साथ ही समय का भी निर्धारण होता है कि कितने समय तक स्वेदन कर्म किया जायेगा । उसके पश्चात स्वेदन से पहले रोगी को पानी पिलाया जाता है । अगर चिकित्सक ने आपके लिए वाष्प स्वेदन निर्धारित किया है तो आपको निश्चित समय तक वाष्प देकर स्वेदन करवाया जाता है ।

आयुर्वेद में स्वेदन की अन्य विधियाँ भी जो इसके प्रकारों पर आधारित है । स्वेदन के प्रकार हमने ऊपर बताएं है उनके अनुसार ही स्वेदन की विधियाँ होती है । अगर संकर स्वेदन करना है तो उसके लिए तिल्ल, उड़द आदि स्वेदन द्रव्यों को पोटली बनाकर सुखोष्ण करके पसीना निकला जाता है । इस प्रकार से स्वेदन होता है ।

सारांश

इस लेख में हमने स्नेहन स्वेदन के बारे में आपको विस्तृत रूप से समझाया है । आप इसे पढने के पश्चात आसानी से स्वेदन स्नेहन को समझ गए होंगे । वैसे स्वेदन एवं स्नेहन एक बहुत बड़ा अध्याय है | यह आयुर्वेद में चिकित्सा की विधियाँ है जिनके द्वारा पंचकर्म पद्धति में उपचार किया जाता है । अत: आप इसे पढ़कर आसानी से पता लगा सकते हैं कि स्नेहन एवं स्वेदन में क्या अंतर है । इन्हें किस प्रकार से किया जाता है एवं इनके कितने प्रकार है । यहाँ पर हमने सभी जानकारियां आपको समझने के लिए निश्चित शब्दों में लिखने की कोशिश की है ।

धन्यवाद ।

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