Post Contents
नस्य कर्म / Nasya Karma
”नासायं भवं नस्यम्“
अर्थात औषधी या औषध सिद्ध स्नेहों को नासामार्ग से दिया जाना नस्य कहलाता है। नस्य का दूसरा अर्थ नासिका के लिए जो हितकर होता है वह भी होता है। आयुर्वेद की पंचकर्म चिकित्सा पद्धति में कई प्रकार के कर्म होते हैं उसी के अन्तर्गत नस्य कर्म भी एक प्रमुख कर्म होता है। यहां कर्म का अर्थ कार्य करना होता है, अर्थात पंचकर्म में शरीर से रोगों को दूर करने के लिए जो चिकित्सा विधि या कार्य प्रणाली अपनाई जाती है वह सभी कर्म कहलातें हैं।
नस्य कर्म क्या है ?
परिभाषा – शिरः शून्यता को हटाने, ग्रीवा, स्कन्ध, वक्ष स्थल को बढ़ाने और दृष्टि के तेज करने के लिए जिस स्नेहन नस्य का प्रयोग किया जाता है वह नस्य कहलाता है। नस्य कर्म में औषध सिद्ध तेलों , घृत या क्वाथ को रोगी मनुष्य के नासिका के माध्यम से शरीर में पहुंचाया जाता है जिससे कि रोगी के उतमांगों में स्थित दोष दूर हो सकें।
ऊध्र्वजत्रुविकारेषु विशेषान्नस्यमिष्यते। नासा हि शिरसो द्वारं तेन तद्व्याप्य हन्ति तान्।।
जत्रु के उपर रहने वाले अर्थात गर्दन से उपर के विकारों के लिए नस्य की विशेष उपयोगिता होती है क्योंकि नासिका को सिर का द्वार समझा जाता है और इस द्वार से नस्यौषध प्रविष्ट होकर संपूर्ण शिर में व्याप्त होकर, उन विकारों को नष्ट करती है। नस्य को शिरोविरेचन, शिरोविरेक या मूर्धविरेचन भी कहते हैं।
मोटापा घटना चाहते है तो इसे पढ़े
इस प्रकार किया जाता है नस्य कर्म
किसी भी रोगी का नस्य करने से पहले पंचकर्म विशेषज्ञ रोगी की प्रकृति और रोग के अनुसार औषध योग का निर्धारण करते हैं। औषध योग निर्धारण से तात्पर्य है कि उस रोगी की प्रकृति के अनुसार कौन – कौन सी जड़ी-बूटियां उपयुक्त हैं जिसका प्रयोग करके नस्य के लिए औषधी तैयार की जायेगी। अधिकतर पिप्पली, विडंग, सहिजन बीज, अपामार्ग बीज, घृत, दूग्ध, कटफल, त्रिकटु बहेडा या षड़बिन्दू, अणु या गुड़बिन्दू तेल का प्रयोग किया जाता है।
इसके पश्चात व्यक्ति के शिर का स्नेहन या स्वेदन किया जाता है। नस्य कर्म देते समय व्यक्ति को पीछे की तरफ सिर को छूकाकर बैठाया जाता है या लेटाया जाता है और फिर चिकित्सक के द्वारा धीरे-धीरे नासिका छिद्रों में औषध सिद्ध तेल या घृत को ड्रोपर के माध्यम से एक-एक बुंद डाला जाता है। अगर औषधी चूर्ण रूप में है तो इसे ट्यूब के माध्यम से नासिका में पहुंचाया जाता है। व्यक्ति को निर्देश दिये जाते हैं कि वह औषधी को अन्दर खींचे और मुंह के माध्यम से बाहर निकाल दे। इस प्रकार नस्य कर्म पूर्ण होता है।
नस्य कर्म के महत्व
- कफज रोगों में नस्य कर्म अतिउपयोगी होता है। श्वास नलिका और नासिका में स्थित ठहरे हुए कफ को नस्य कर्म के माध्यम से बाहर निकाला जा सकता है। नस्य कर्म करने से श्वास नलि में जमा हुआ कफ अपनी जगह छोड़ देता है जिससे श्वास नलि में विस्फारक प्रभाव पड़ते हैं।
- उत्तमांगो की क्रिया को सूचारू करने में नस्य कर्म का अपना अलग प्रभाव है। उत्तमांगो का अर्थ है जैसे – सिर, आंख, नाक गला, कान आदि। नस्यकर्म उतमांगो की व्यवस्था को सुचारू बनाकर सम्पूर्ण दैहिक क्रियाओं को सुव्यवस्थित करने में महान योगदान देता है।
- नस्य कर्म हमारी इन्द्रियों को बल और सुदृढता प्रदान करता है। नस्य कर्म करवाने से मुखमण्डल पर प्रसन्नता आ जाती है। व्यक्ति की आवाज स्थिर और स्निग्ध हो जाती है। ज्ञानेन्द्रियां भी सम्यक ढंग से काम करना शुरू कर देती हैं।
- शरीर में व्याप्त वातादि दोषों का शमन भी होता है। यह कर्म ग्रीवास्तम्भ, आदि वातव्याधि और ऊध्र्वजत्रुगत रोग और कफज रोगों में बृहंण और शमन का कार्य करता है।
- यह कर्म शरीर से त्रिदोषों को दूर करने मे भी सक्षम होता है। नस्य कर्म करवाने से शरीर में व्याप्त त्रिदोष का शोधन होता है। जिससे इनसे होने वाले रोगों से शरीर सुरक्षित रहता है।
- आंखों , बालों, नासिका और अन्य सिरादि अंगो का संवर्द्धन होता है। नस्य कर्म करवाने से प्रतिश्याय, पीनस, अर्धावभेदक, बालों का झड़ना, बालों का सफेद होना, शिरःशुल आदि रोगों में लाभ मिलता है और ये रोग खत्म हो जाते हैं।
धन्यवाद |
नस्य कर्म में पंचगव्य घी उत्तम औषधि है।
I am naturopath and Principal Yoga Instructor and. Conducting classes since last 15 years. Do you have any vacancy in your institution
Very useful and informative.
बहुत अच्छा इसमें नस्य सम्बन्धी विभिन्न औषधियों की निर्माण विधि भी उल्लेखनीय अपेक्षित है।