वात रोग की पहचान, लक्षण एवं संतुलित करने के उपाय

दोष धातु मल मूलं हि शरीरम् ||

आयुर्वेद चिकित्सा में दोष, धातु एवं मल इन तीनो को शरीर कहा गया है | क्योंकि साम्य अवस्था में ये ही शरीर को धारण (पोषण) करते है | इनमे से दोष तीन प्रकार के है – वात पित्त एवं कफ | इनके बारे में आप सभी ने सुना भी होगा कि आयुर्वेद वात – पित्त एवं कफ की ही चिकित्सा है | वात – पित्त एवं कफ जब साम्य अवस्था में रहते है तो शरीर को धारण करते है |

लेकिन जब ये असाम्य अवस्था में धातु एवं मल आदि को दूषित करने लगे तो इन्हें दोष पुकारा जाता है | इसी कारण से इन्हें त्रिदोष नाम से पुकारते है | त्रिदोष की असाम्य अवस्था ही शरीर में रोग का कारण बनती है |

आज इस आर्टिकल में हम आपको वात रोग की पहचान, लक्षण एवं इसे शांत करने के उपचार के बारे में विस्तृत रूप से बताएँगे | तो चलिए जानते है वात दोष क्या है ?

वात रोग की पहचान
वात रोग की पहचान

वात रोग (दोष) की पहचान

आयुर्वेद अनुसार समस्त दोषों में वात ही प्रधान होता है | अर्थात बिना वायु के संसार का कोई भी प्राणी क्षण भर भी जीवित नहीं रह सकता | देहधारियों के लिए बाह्य और आन्तरिक दोनों ही वात की आवश्यकता होती है | क्योंकि बाहरी वायु प्राणियों को जीवित रखती है और भीतरी वायु शरीर के भीतर काम करती है |

शरीर में वात अन्य दोषों (कफ एवं पित्त) एवं धातुओं – रस, रक्त, मांस, मेद आदि को एक स्थान से दुसरे स्थान तक पहुँचाने का कार्य करती है | लेकिन जब यह अपनी प्राकृत अवस्था में नहीं होती तो इन कार्यों को सुचारू रूप से नहीं कर सकती | जिससे शरीर में वात दोष के कारण विभिन्न व्याधियां उत्पन्न हो जाती है |

इसकी पहचान का प्रधान लक्षण शारीरिक एवं मानसिक चलता एवं विक्षोभशीलता है | अर्थात जब किसी अंग को रक्त, ऑक्सीजन अथवा आहार द्रव्य कम मिलते हैं तो उसमे चलता, वेदना, चमचमाहट, सुप्ति आदि लक्षण होने लगते है | इन्ही लक्षणों से वात रोग की पहचान होती है क्योंकि ये लक्षण वायु विकृति के सूचक होते है |

वात की विकृति दो प्रकार से हो सकती है | वात की कमी एवं वात की अधिकता | शरीर में वायु का ह्रास होने पर शरीर में स्थिलता, उदासी, कम बोलना, प्रसन्नता की कमी, स्मरण शक्ति का ह्रास हो जाता है | जब वायु शरीर में बढती है तो यह त्वचा को कठोर कर देती है, दुबलापन, शरीर का फड़कना, गर्मी क इच्छा, नींद का आना, निर्बलता, मल का सुख जाना एवं कम आना आदि लक्षण प्रकट होते है |

वायु रोग के पहचान के लिए आप निचे दिए गए इसके लक्षणों को भी देख सकते है | ये लक्षण जब शरीर में प्रकट होते है तो समझ जाना चाहिए की वात रोग की समस्या है | तो चलिए जानते है सबसे पहले वात रोग के कारण एवं इसके पश्चात् इसके लक्षण क्या है

वात रोग के कारण क्या है ?

वायु विकृति के कारण चरक संहिता आदि आयुर्वेदिक ग्रंथों में बताये गए है | इन कारणों के कारण ही शरीर में स्थित वात प्रकुपित होकर वात रोग को जन्म देती है | चलिए जानते है आयुर्वेद अनुसार वात रोग के क्या कारण है अर्थात वात प्रकुपित होने के क्या कारण होते है |

  • रूखे, हलके एवं ठन्डे पदार्थों के अधिक सेवन से वायु विकृत हो जाती है |
  • अधिक श्रम या व्यायाम करने से भी |
  • अधिक उल्टी होने या अधिक दस्त होने से भी शरीर में वायु विकृत हो जाती है |
  • अस्थापन बस्ती का अधिक उपयोग करने से |
  • अधारणीय वेगों को धारण करने से अर्थात मल – मूत्र एवं जम्भाई के वेग को रोकने से भी वायु विकृत होती है |
  • अति स्त्रीसम्भोग
  • खून का निकलना, घबराहट एवं अधिक चिंता करने से |
  • रुखी, कडवी एवं चटपटी चीजों का अधिक सेवन करने से |
  • वृषा ऋतू के समय स्वाभाविक ही वायु की अधिकता होती है इस समय वात वृद्धि करने वाले आहार का सेवन करने से जल्द ही वात दोष प्रकुपित हो जाता है |
  • मैसूर, मटर, मोंग, बथुआ, जौ, ज्वार आदि आहार का अधिक सेवन करने से भी वात विकृत हो जाता है |

वात दोष (रोग) के लक्षण क्या है ?

आयुर्वेदिक ग्रन्थ चरक संहिता एवं हरित संहिता में वात रोग के लक्षण बताये गए है | इन्ही के अनुसार हम यहाँ पर वात रोग के लक्षण बता रहें है | वात दोष के लक्षण बढ़ने एवं कम होने के आधार पर अलग – अलग प्रतीत होते है | अर्थात अगर शरीर में वात दोष बढ़ी हुई अवस्था में है तो लक्षण अलग होंगे एवं अगर वात की कमी है तो लक्षण भिन्न प्रकट होते है |

इसीलीए हमने यहाँ पर अलग – अलग लक्षण बताएं है –

वात दोष बढ़ने के लक्षण

अगर शरीर में वात दोष बढ़ा हुआ है तो निम्न लक्षण प्रकट होंगे | अगर इन लक्षणों में से कोई 3 – 4 लक्षण आपमें दिखाई दें तो समझ जाएँ की आपका वात रोग बढ़ा हुआ है |

  • चरक संहिता के अनुसार अगर वात दोष बढ़ा हुआ है तो अंगो में अंग भेद अर्थात जकड़न एवं रूखापन रहता है |
  • सुई चुभोने जैसा दर्द होता है |
  • अनिवार्य तृषा अर्थात प्यास अधिक लगना |
  • अंगो को मरोड़ने जैसी पीड़ा रहती है |
  • मल कठोर आता है |
  • शरीर में कम्पन हो सकता है |
  • मुंह का स्वाद कैषेला हो जाता है |
  • शरीर सूखने लगता है |
  • सम्पूर्ण शरीर या अंगों में दर्द रहता है |
  • शरीर में थकान रहती है |
  • वात दोष बढ़ने पर मल – मूत्र का प्रमाण कम हो जाता है |
  • आँखों में नशा सा रहता है |
  • नींद की कमी अर्थात अनिद्रा हो जाती है |
  • वात दोष बढ़ने पर पेट फुल सकता है |
  • हाथ पैर के जोड़ों में दर्द रहता है |
  • साथ ही सिर, छाती एवं कनपटियों में भी दर्द हो सकता है |

वात दोष की कमी के लक्षण

शरीर में वात की कमी होने पर लक्षण कुछ अलग प्रकट होते है | इन बिन्दुओं से आप समझ सकते है कि शरीर में वात अर्थात वायु की कमी हो गई है |

  • वात की कमी होने पर मंद चेष्टा अर्थात सूनापन होने लगता है |
  • शरीर में स्थिलता आ जाती है |
  • मन उदास रहने लगता है |
  • रोगी के बोलने में कमी आ जाती है |
  • प्रसन्नता की कमी हो जाती है | अर्थात रोगी प्रसन्न नहीं हो पाता |
  • याददास्त कमजोर हो जाती है |
  • चरक संहिता में वात दोष की कमी होने पर रोगी के प्रलाप करने, आलस, भारीपन एवं ज्वर आदि लक्षण भी बताएं है |

वात रोग (दोष) को संतुलित करने के उपाय

वैसे आयुर्वेद में वात रोग को शांत करने के लिए बहुत सी शास्त्रोक्त दवाएं है जो वात रोग के लक्षणों के आधार पर सेवन करवाके वात रोग का शमन कर देती है | लेकिन दवाओं से अच्छा परिणाम आहार – विहार को सुधारना है | इसलिए हम यहाँ पर वात दोष के बढ़ने एवं कम होने पर संतुलित आहार – विहार के बारे में बताएँगे |

वात दोष की वृद्धि को शांत करने के उपाय

आयुर्वेद में कुपित वायु की मीठे, खट्टे, खारे, चिकने एवं गर्म द्रव्यों द्वारा चिकित्सा करने का विधान है | रोगी को पसीना दिलाना, तेल की मालिश करना तथा जिस जगह वायु कम आती हो वहाँ पर रखना, भारी भोजन करवाना, सिर में तेल की मालिश करना आदि क्रियाएं करके वात दोष को शांत किया जाता है | वात दोष बढ़ने पर निम्न खान – पान रखना चाहिए –

  • घी, तेल एवं चिकने आहार को अपनाना चाहिए |
  • गेंहू, मुंग, घी, नया उड़द आदि बढ़ी हुई वात को शांत करने वाले आहार है |
  • लहसुन, मुन्नका, मीठा अनार आदि भी वात रोग को शांत करते है |
  • पके हुए आम, आंवला, हरड, गाय का दूध आदि का सेवन वात रोग में करना चाहिए |
  • गरिष्ठ भोजन, चीनी, मिश्री एवं सेंधा नमक को आहार में प्रयोग करना लाभदायक होता है |
  • पनीर, मक्खन, दही, सोयाबीन का दूध आदि वात दोष को शांत करने वाले आहार है |

वात की कमी होने पर संतुलन के उपाय

जैसे वात दोष की वृद्धि होती है वैसे ही शरीर में वात दोष की कमी भी हो जाती है | जब रोगी में वात दोष की कमी हो जाती है तब सुश्रुत संहिता अनुसार व्यक्ति आलसी, शरीर में स्थिलता, उदासी, कम बोलना एवं याददास्त की कमी जैसी समस्याओं से घीर जाता है | एसे में वात दोष की कमी को दूर करने के लिए वात वृद्धि वाले आहार – विहार को अपनाना चाहिए | चलिए जानते है कौनसे आहार – विहार को अपनाने से वात दोष की कमी दूर होती है |

  • वात दोष की वृद्धि होने पर जो आहार लिया जाता है उसके विपरीत वात की कमी होने पर लेना चाहिए |
  • ठन्डे, रूखे एवं तीखे भोजन का सेवन करें |
  • अधिक हवादार जगह पर रहना चाहिए |
  • घी, तेल एवं चिकने पदार्थों से परहेज रखना चाहिए |
  • व्यायाम नियमित करना चाहिए |
  • बाजरा, मक्का एवं जौ आदि को आहार में शामिल करें |

वात रोग की पहचान, लक्षण एवं संतुलन के उपाय को यहाँ से PDF में डाउनलोड करें

आपके लिए अन्य महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक जानकारियां

वात रोग के बारे में पूछे जाने वाले सामान्य सवाल – जवाब

वात दोष (रोग) वातज प्रकृति के मनुष्यों को जल्दी होता है | शरीर में तीव्र सुई चुभने जैसी पीड़ा होना, त्वचा का कड़ापन, मुंह का स्वाद कैशैला होना, कम्पन होना, कब्ज होना, थकान आदि होने को वात रोग के पहचान के लक्षण माने जा सकते है |

आयुर्वेद अनुसार शरीर में वायु को 5 प्रकार की माना गया है | 1. उदान वायु 2. प्राण वायु 3. समान वायु 4. अपान वायु 5. व्यान वायु |

शरीर में वात की वृद्धि करने वाले आहार – विहार का अधिक सेवन करना वात रोग के कारण कहे जा सकते है | जैसे सूखे, हलके एवं ठन्डे पदार्थों का अधिक सेवन, शारीरिक वेगों को रोकना, व्रत – उपवास अधिक करना आदि कारण होते है |

धन्यवाद |

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