कांकायन वटी शास्त्रोक्त निर्माण विधि के अनुसार दो प्रकार की होती है | कांकायन वटी अर्श प्रमुख रूप से खुनी एवं बादी दोनों प्रकार की बवासीर के लिए बहुत ही अच्छी दवा है | यह बवासीर के मस्सों को सुखाने का कार्य करती है |
आन्तरिक एवं बाह्य बवासीर के मस्सों को सुखाने में यह उपयोगी आयुर्वेदिक दवा है | साथ ही यह पाचन तंत्र को मजबूत बनाती है | मन्दाग्नि (भूख की कमी), पेट दर्द एवं कब्ज आदि बवासीर के मूल कारणों को ठीक करने में कांकायन वटी उपयोगी है | तो चलिए जानते है कांकायन वटी के बारे में…
कांकायन वटी क्या है ? / What is Kankayan Vati in Hindi
यह आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति की गुटिका प्रकरण की शास्त्रोक्त टेबलेट है | भैसज्य रत्नावली में इस गुटिका का वर्णन प्राप्त होता है | यह दो प्रकार की होती है एक अर्श के लिए एवं दूसरी गुल्म रोग के लिए | इसी प्रकार से इनका नामकरण किया गया है | अर्श एवं बवासीर के लिए उपयोगी कांकायन वटी को कांकायन वटी अर्श नाम से जाना जाता है |
बाजार में यह बनी बनाई बैद्यनाथ कांकायन वटी, दिव्य फार्मेसी, डाबर, धूतपापेश्वर आदि की उचित मूल्य पर मिल जाती है |
कांकायन वटी के घटक द्रव्य / Ingredients of Kankayan vati
इस गुटिका के निर्माण निम्न औषध जड़ी – बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है | इस टेबल के माध्यम से हमने घटक द्रव्यों का नाम एवं मात्रा का वर्णन किया है |
क्रमांक | घटक जड़ी – बूटी का नाम | मात्रा |
---|---|---|
01 | हरड (Terminalia Chebula) | 48 ग्राम |
02 | जीरा (Cumin Seeds) | 48 ग्राम |
03 | पिप्पला मूल (Long Pepper Roots) | 96 ग्राम |
04 | कालीमिर्च (Black Pepper) | 48 ग्राम |
05 | पिप्पली (Long Pepper) | 48 ग्राम |
06 | चव्य (Java Long Pepper) | 144 ग्राम |
07 | चित्रक (Plumbago Zeylanica) | 192 ग्राम |
08 | सोंठ (Ginger Rhizome) | 240 ग्राम |
09 | शुद्ध भिलावा (Marking Nut) | 384 ग्राम |
10 | यवक्षार | 96 ग्राम |
11 | जिमीकंद (Elephant Foot Yam) | 768 ग्राम |
12 | गुड (jaggery) | 2112 ग्राम |
कांकायन वटी कैसे बनती है / How is it Made
ऊपर बताई गई सभी जड़ी – बूटियों को निर्देशित मात्रा में ले ली जाती है | अब इन सबका बारीक़ महीन कपडछान चूर्ण कर लिया जाता है |
इस महीन चूर्ण को मिलाकर इसमें गुड मिलाकर अच्छी तरह घोंटा जाता है | जब गुड़ जड़ी बूटियों में एकसार होकर वटी बनाने लायक हो जाता है | तब इसकी 250 mg की गोलियां बना ली जाती है | इस प्रकार से कांकायन वटी का निर्माण होता है |
किसी भी आयुर्वेदिक दवा का निर्माण निपुण वैद्य, उपवैद्य या फार्मासिस्ट द्वारा किया जाता है |
कांकायन वटी के उपयोग / Kankayan vati uses in hindi
खुनी एवं बादी बवासीर : इस दवा का विशेष उपयोग अर्श के उपचार में किया जाता है | यह मुख्य रूप से अर्श के बाह्य और आन्तरिक मस्सों को सुखाने का कार्य करती है | जब मस्से कोमल हो रोगी को मस्सों में खुजली चलती हो या मवाद आती हो तब इस आयुर्वेदिक गुटिका का प्रयोग करने से कोमल मस्से धीरे – धीरे सूखने लगते है | इसके साथ अभ्यारिष्ट आदि आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है |
पाचन विकार : पाचन की गड़बड़ी होने से ही अर्श की समस्या अधिकतर होती है | ऐसे में कांकायन वटी पाचन को सुधारने का कार्य करती है | यह के उदर विकार को दूर करके आंतो की सफाई का कार्य करती है |
कब्ज (कोष्ठबद्धता) : कब्ज अर्श का प्रमुख कारण होता है | कांकायन वटी अर्श पाचन विकृति को सुधार कर कब्ज को ठीक करने का कार्य करती है | यह मल त्याग को आसन बनाती है एवं आँतों को साफ़ करती है | इससे अर्श में काफी लाभ मिलता है | इसके साथ अभ्यारिष्ट, कर्व्यद रस आदि औषधियों का इस्तेमाल भी किया जाता है |
भूख की कमी को दूर करती है : कमजोर पाचन अर्थात अपच एवं अजीर्ण के कारण मन्दाग्नि हो जाती है | व्यक्ति को भूख नही लगती इस प्रकार की समस्या भी अर्श में देखने को मिलती है | इसलिए इसके उपचार के लिए भी कांकायन वटी अर्श काफी फायदेमंद है | यह पेट के सामान्य विकार अपच, अजीर्ण को दूर करके भूख बढ़ाती है एवं मन्दाग्नि को ठीक करती है |
कांकायन वटी के चिकित्सकीय उपयोग
यह दवा उष्ण वीर्य है अर्थात कफ एवं वात का शमन करने वाली आयुर्वेदिक दवा है एवं पित्त का वर्द्धन करती है | निम्न रोगों में इसक चिकित्सकीय उपयोग उल्लेखित है –
- बवासीर या अर्श (मुख्य संकेत)
- कब्ज (कोष्ठबद्धता)
- भूख की कमी
- खून की कमी
- सुजन
- कफ एवं वात के कारण होने वाला पेट दर्द
- पेट में मरोड़ उठना
- गैस
- आँतो के कीड़े
कांकायन वटी की सेवन विधि
इसक सेवन 2 से 4 गोली सुबह – शाम छाछ के साथ करना चाहिए | बवासीर रोग में कांकायन वटी के साथ अन्य आयुर्वेदिक योगों का इस्तेमाल भी किया जाता है | अत: अपने वैद्य के दिशानिर्देर्शों के अनुसार इस गुटिका का उपयोग करना चाहिए |
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धन्यवाद |