निशोथ बहुवर्षायु औषधीय लता है | यह तीव्र विरेचक गुणों से युक्त आयुर्वेदिक औषधीय वनस्पति है | इसे त्रिवृत, निसोत, पितोहरी आदि नामों से भी जाना जाता है | आयुर्वेदिक ग्रन्थ चरक एवं सुश्रुत संहिता में श्याम एवं अरुण दो प्रकार की निशोथ का वर्णन मिलता है |
यह जंगल एवं बाग़ बगीचों में पाई जाती है | लतास्वरूप वनस्पति है एवं सफ़ेद फूलों से आच्छादित रहती है | निशोथ से कम ही लोग परिचित है | यह ज्वर, उदररोग, सुजन, पीलिया, कब्ज, यकृत एवं प्लीहा के रोगों में काफी फायदेमंद आयुर्वेदिक द्रव्य है |
निशोथ का सामान्य परिचय
वर्षायु लतास्वरूप वनस्पति है | इसका कांड तीन धारयुक्त, लम्बी एवं आरोहिणी होता है | काण्ड पुराना होने पर कुछ कड़ा एवं भूरे रंग का हो जाता है | निसोत के पते 2.5 इंच लम्बे एवं 1 से 3 इंच चौड़े होते है |
त्रिवृत अर्थात निशोथ में वर्षा ऋतू में फुल आते है | इसके फुल गोलाकार घंटी के आकर के होते है | रंग में सफेद, पत्रवृंत 1 इंच लम्बा एवं आयताकार होते है | इसके फल गोलाकार आधा से एक इंच बड़ा होता है | जब फल पक जाता है एवं फल का बाहरी आवरण फट जाता है तब इसमें से 4 काले एवं चिकने 2 इंच लम्बे बीज निकलते है |
पर्याय
हिंदी – निशोथ, निसोत, पित्तोहरी, त्रिभंडी, त्रिपुट, सरला, निशोत्रा, रेचनी |
मराठी – निशोतर, तेंड, फुटकरी, शेतवड
English – Turpeth, Indian Jalap
लेटिन – Operculina turpethum Silva
Family – Convolvulaceae
निरुक्ति
- त्रिवृत – इसकी डंडियों का आवर्तन तीन प्रकार से होता है |
- त्रिपुट – इसके तीन पुट होते है |
- सरला – यह विरेचन होने के कारण सारक है |
- सर्वानुभुती – इसका सब लोग अनुभव लेते है |
- त्रिभंडी – तीनों दोषों को उत्क्लिष्ट करके बाहर निकाल देती है |
- श्यामा – रंग में श्याम वर्ण की होती है
- काल्मेषिका – तीव्र विरेचक गुण के कारण काल के साथ स्पर्धा करती है |
निशोथ के औषधीय गुण
श्वेता त्रिवृदेचनी स्यास्त्यदुरुष्णा समीरहृअत |
भा. निघंटु
रक्षा पित्तज्वरश्लेष्मपित्तशोथोदरापहा ||
रसपंचक
रस -=- तिक्त, कटु |
गुण -=- लघु, रुक्ष एवं तीक्षण |
विपाक -=- कटु |
वीर्य -=- उष्ण
दोषकर्म – कफपित्त संशोधन एवं वातवर्द्धन |
अन्यकर्म – रेचक |
रोगहरण – ज्वर, उदररोग, शोथ, कामला, विबंध, प्लीहा रोग |
विशेष – सुखविरेचक, अधोभागहर, जालप सदृश गुण युक्त
निशोथ के उपयोग / फायदे
- त्रिवृत के सूक्षम चूर्ण को द्राक्षा के साथ ज्वर होने पर देना चाहिए |
- रक्तपित्त में मधु और शर्करा के साथ त्रिवृत चूर्ण को विरेचानार्थ प्रयोग किया जाता है | इससे रक्तपित्त की समस्या में राहत मिलती है |
- निशोथ के चूर्ण को घी, दूध, उष्णजल, द्राक्षारस के साथ देने से विसर्प में लाभ होता है |
- वातजन्य शोथ में एक महीने तक निशोथ के चूर्ण का सेवन करवाना फायदेमंद रहता है |
- पीलिया होने पर इसके चूर्ण को मिश्री मिलाकर देने से लाभ मिलता है |
- निशोथ की जड़ से साधित तेल को बाह्यप्रयोग में उपयोग किया जाता है | यह तेल घाव में मवाद आदि की समस्या को ठीक करने में अच्छे परिणाम देता है |
- बुखार आदि में दोषपाचनार्थ निशोथ की जड़ का विरेचन दिया जाता है | इससे दोष का शोधन होकर बुखार उतर जाती है |
- अर्श या बवासीर में आंत्रगत दोषों को दूर करने के लिए त्रिफला क्वाथ के साथ इसका प्रयोग करवाते है ताकि अर्श में आराम मिल सके |
- विरेचन करवाने के लिए त्रिवृत का प्रयोग प्रमुखता से किया जाता है | यह सुखविरेचन एवं मूलविरेचन द्रव्यों में सर्वश्रेष्ट है |
प्रयोज्य अंग – मूल अर्थात जड़ |
विशिष्ट कल्प – त्रिवृतादी चूर्ण, त्रिवृतादी घृत, अश्वगंधारिष्ट, अविपत्तिकर चूर्ण, पुनर्नवादी मंडूर, दशमूलारिष्ट, चंद्रप्रभावटी, अभयारिष्ट आदि |
धन्यवाद ||