निशोथ / Operculina turpethum – औषधीय गुण एवं फायदे

निशोथ बहुवर्षायु औषधीय लता है | यह तीव्र विरेचक गुणों से युक्त आयुर्वेदिक औषधीय वनस्पति है | इसे त्रिवृत, निसोत, पितोहरी आदि नामों से भी जाना जाता है | आयुर्वेदिक ग्रन्थ चरक एवं सुश्रुत संहिता में श्याम एवं अरुण दो प्रकार की निशोथ का वर्णन मिलता है |

यह जंगल एवं बाग़ बगीचों में पाई जाती है | लतास्वरूप वनस्पति है एवं सफ़ेद फूलों से आच्छादित रहती है | निशोथ से कम ही लोग परिचित है | यह ज्वर, उदररोग, सुजन, पीलिया, कब्ज, यकृत एवं प्लीहा के रोगों में काफी फायदेमंद आयुर्वेदिक द्रव्य है |

निशोथ का सामान्य परिचय

वर्षायु लतास्वरूप वनस्पति है | इसका कांड तीन धारयुक्त, लम्बी एवं आरोहिणी होता है | काण्ड पुराना होने पर कुछ कड़ा एवं भूरे रंग का हो जाता है | निसोत के पते 2.5 इंच लम्बे एवं 1 से 3 इंच चौड़े होते है |

निशोथ
By J.M.Garg – Own work, CC BY-SA 4.0, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=5706090

त्रिवृत अर्थात निशोथ में वर्षा ऋतू में फुल आते है | इसके फुल गोलाकार घंटी के आकर के होते है | रंग में सफेद, पत्रवृंत 1 इंच लम्बा एवं आयताकार होते है | इसके फल गोलाकार आधा से एक इंच बड़ा होता है | जब फल पक जाता है एवं फल का बाहरी आवरण फट जाता है तब इसमें से 4 काले एवं चिकने 2 इंच लम्बे बीज निकलते है |

पर्याय

हिंदी – निशोथ, निसोत, पित्तोहरी, त्रिभंडी, त्रिपुट, सरला, निशोत्रा, रेचनी |

मराठी – निशोतर, तेंड, फुटकरी, शेतवड

English – Turpeth, Indian Jalap

लेटिन – Operculina turpethum Silva

Family – Convolvulaceae

निरुक्ति

  1. त्रिवृत – इसकी डंडियों का आवर्तन तीन प्रकार से होता है |
  2. त्रिपुट – इसके तीन पुट होते है |
  3. सरला – यह विरेचन होने के कारण सारक है |
  4. सर्वानुभुती – इसका सब लोग अनुभव लेते है |
  5. त्रिभंडी – तीनों दोषों को उत्क्लिष्ट करके बाहर निकाल देती है |
  6. श्यामा – रंग में श्याम वर्ण की होती है
  7. काल्मेषिका – तीव्र विरेचक गुण के कारण काल के साथ स्पर्धा करती है |

निशोथ के औषधीय गुण

श्वेता त्रिवृदेचनी स्यास्त्यदुरुष्णा समीरहृअत |
रक्षा पित्तज्वरश्लेष्मपित्तशोथोदरापहा ||

भा. निघंटु

रसपंचक

रस -=- तिक्त, कटु |

गुण -=- लघु, रुक्ष एवं तीक्षण |

विपाक -=- कटु |

वीर्य -=- उष्ण

दोषकर्म – कफपित्त संशोधन एवं वातवर्द्धन |

अन्यकर्म – रेचक |

रोगहरण – ज्वर, उदररोग, शोथ, कामला, विबंध, प्लीहा रोग |

विशेष – सुखविरेचक, अधोभागहर, जालप सदृश गुण युक्त

निशोथ के उपयोग / फायदे

  • त्रिवृत के सूक्षम चूर्ण को द्राक्षा के साथ ज्वर होने पर देना चाहिए |
  • रक्तपित्त में मधु और शर्करा के साथ त्रिवृत चूर्ण को विरेचानार्थ प्रयोग किया जाता है | इससे रक्तपित्त की समस्या में राहत मिलती है |
  • निशोथ के चूर्ण को घी, दूध, उष्णजल, द्राक्षारस के साथ देने से विसर्प में लाभ होता है |
  • वातजन्य शोथ में एक महीने तक निशोथ के चूर्ण का सेवन करवाना फायदेमंद रहता है |
  • पीलिया होने पर इसके चूर्ण को मिश्री मिलाकर देने से लाभ मिलता है |
  • निशोथ की जड़ से साधित तेल को बाह्यप्रयोग में उपयोग किया जाता है | यह तेल घाव में मवाद आदि की समस्या को ठीक करने में अच्छे परिणाम देता है |
  • बुखार आदि में दोषपाचनार्थ निशोथ की जड़ का विरेचन दिया जाता है | इससे दोष का शोधन होकर बुखार उतर जाती है |
  • अर्श या बवासीर में आंत्रगत दोषों को दूर करने के लिए त्रिफला क्वाथ के साथ इसका प्रयोग करवाते है ताकि अर्श में आराम मिल सके |
  • विरेचन करवाने के लिए त्रिवृत का प्रयोग प्रमुखता से किया जाता है | यह सुखविरेचन एवं मूलविरेचन द्रव्यों में सर्वश्रेष्ट है |

प्रयोज्य अंग – मूल अर्थात जड़ |

विशिष्ट कल्प – त्रिवृतादी चूर्ण, त्रिवृतादी घृत, अश्वगंधारिष्ट, अविपत्तिकर चूर्ण, पुनर्नवादी मंडूर, दशमूलारिष्ट, चंद्रप्रभावटी, अभयारिष्ट आदि |

धन्यवाद ||

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