यष्टिमधु (मुलेठी) के औषधीय गुण धर्म एवं रोगोपयोग

यष्टिमधु को मुलेठी, जेठीमध या जेष्ठीमध आदि नामों से भी जाना जाता है | यह आयुर्वेदिक औषधीय जड़ी – बूटी है जिसका प्रयोग कफज विकार, पित्तज विकार, घाव, सुजन एवं क्षय रोग के उपचार में किया जाता है |

आज इस आर्टिकल में हम यष्टिमधु के औषधीय गुण, फायदे एवं रोगों में उपयोग के बारे में बात करेंगे |

चलिए सबसे पहले जानते है इसके पर्याय अर्थात विभिन्न भाषाओँ में इसे किस – किस नाम से पुकारा जाता है |

यष्टिमधु के अन्य नाम

  • संस्कृत – यष्टिमधु, मधुयष्टी, क्लीतक, मधुक
  • हिंदी – मीठी लकड़ी, मुलेठी, जेठीमध्
  • मराठी – ज्येष्टि मध्
  • तेलगु – यष्टि मधुकम
  • तमिल – अम्र मधुरम
  • अरबी – अस्स्लुसुस, इर्कुस्सुस
  • फारसी – बेख महक, महक मतकी
  • अंग्रेजी – Liqourica
  • लेटिन – Glycyrrhiza Glabra

यष्टिमधु का वानस्पतिक परिचय

मुलेठी विशेषकर मिश्र, तुर्की, ईरान, अरब, भारत, चीन आदि जगहों पर पाए जाते है | हमारे यहाँ इसकी व्यावसायिक खेती की जाती है | इसका पौधा 5 से 6 फीट ऊँचा झाड़ीनुमा होता है | यह बहुवर्षायु पौधा है अधिकतर हरा भरा बना रहता है |

पत्र – इसके पते अंडाकार 5 से 11 की गणना में एक पत्रक पर लगे रहते है | पते आकार में अंडाकार, आगे से थोड़े नुकीले होते है |

पुष्प – यष्टिमधु के फुल मंजरी के रूप में गुलाबी एवं बैंगनी रंग के लगे होते है | ये पुष्प मंजरी पर एक कर्म में लगे होते है |

फली – इसकी फली 2 इंच तक लम्बी एवं चपटी होती है | इस फली में 3 से 4 की मात्रा में बीज रहते है |

यष्टिमधु की जड़ – इसकी जड़ धूसर रंग की अन्दर से पीलापन लिए हुए रहती है | जड़ मीठी होती है इसीलिए इसे मधुक नाम से पुकारा जाता है | आयुर्वेद चिकित्सा में इसकी जड़ का ही अधिकतर औषधि निर्माण के लिए प्रयोग किया जाता है |

यष्टि मधु के गुण धर्म

यह के बहुत ही उपयोगी एवं प्रशिद्ध जड़ी – बूटी है | किराने की दुकान या पंसारी के पास आसानी से उपलब्ध हो जाती है |

मुलेठी लम्बे समय तक न ख़राब होने वाली जड़ी – बूटी है | इसके प्रयोग से विभिन्न आयुर्वेदिक योग जैसे मधु यष्टादि चूर्ण, क्वाथ, यष्टिमधु तेल आदि का निर्माण किया जाता है |

यष्टि हिमा गुरु: स्वाद्वी चक्षुषया बलवर्णकृत |

सुस्निग्धा शुक्रला केश्या स्वर्या पित्तानिलास्त्रजित ||

व्रणशोथ विषच्छर्दीतृष्णाग्लानीक्षयापहा ||

भा.नि. हरित्क्यादी वर्ग
  • रस – मधुर
  • गुण – गुरु, स्निग्ध
  • वीर्य – शीत
  • विपाक – मधुर

यष्टिमधु की प्रजातियाँ

आयुर्वेदिक ग्रंथो में मुलेठी की दो प्रजातियाँ बताई गई है

  1. जलज (मधुलिका)
  2. स्थलज

यूनानी चिकित्सा में इसे तीन प्रकार का माना है जिसमे उतरोतर मधुरता कम होती जाती है

  1. मिश्र – उत्तम प्रकार की मुलेह्ठी
  2. अरेबिक – मध्यम प्रकार की
  3. तुर्की – निम्न प्रकार की

वानस्पतिक द्रष्टि के आधार पर यष्टिमधु तीन प्रकार की है

G. glabra Var. typica Regel & Hard (Spenish Liquorice)

  • इस प्रकार की मुलेठी सबसे अधिक मीठी एवं तिक्त रहित होती है | इसे सर्वोतम प्रकार माना जाता है | इसमें एक विशष्ट गंध रहती है |
  • यह प्रकार मुख्यत: स्पेन में पाया जाता है |

G. glabra Var. Glandulifera Waldst & Kit (Russian liquorice)

  • यह यष्टिमधु मधुर तो होती है लेकिन इसमें कुछ तिक्तता रहती है |
  • यह विशेषकर जंगलों में पाई जाती है |

G. Glabra Var. Violacea Boiss (Persian liquorice)

  • यह अन्य से थोड़ी कम मधुरता वाली होती है |
  • मुख्यत: इराक में घाटियों में मिलती है |
  • अन्य से अधिक मोटी होती है |

यष्टिमधु के रोगोपयोग

यह वात एवं पित्त का शमन करने वाली हर्ब है | इसका प्रयोग विभिन्न आयुर्वेदिक औषध योगों के निर्माण में प्रमुखता से किया जाता है | घाव, सुजन, वमन, तृष्णा, जहर, ग्लानी एवं क्षयज विकारों में लाभदायक है |

इसके औषधीय गुणों के आधार पर इसे आँखों के लिए अच्छा, बल वर्द्धक, पुरुषों में शुक्र की व्रद्धी करने वाली माना जाता है |

चलिए जानते है कि मुलेठी को किन – किन रोगों में उपयोग किया जाता है

पुरुषों में शुक्रवृद्धि करती है मुलेठी

यह रसायन एवं वृष्य देने वाली जड़ी – बूटी है | शीत वीर्य और मधुर रस होने के कारण पित्त एवं दाह का शमन करती है | रसधातु का वर्द्धन, रक्त का प्रसादन, रक्तगत पित्त का शमन करके रक्त धातु की वृद्दि करती है | अपने इन्ही गुणों के कारण वृष्य माना जाती है |

इसके चूर्ण को घी या शहद के साथ चाटने से पुरुषों में शुक्र की वृद्धि होती है |

आँखों के लिए उपयोगी

आयुर्वेद चिकित्सा में मांसधातु की दुर्बलता के कारण उत्पन्न होने वाले रोग जैसे कम दिखाई देना, आँखों की कमजोरी आदि की समस्या में यष्टिमधु चूर्ण का इस्तेमाल करवाया जाता है |

मुलेठी अपने मधुर एवं शीत गुणों से नेत्रगत मांस का पोषण करता है और आखों को पोषण देता है एवं रोगों को दूर करती है |

घाव में उपयोग यष्टिमधु

इसके गुरु और पिच्छिल गुणों के कारण घावभरने की प्रर्किया तेज होती है | शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्तियों के घाव में यष्टिमधु चूर्ण को घी और शहद के साथ प्रयोग करवाने से उनमे धातु की वृद्धि होती है एवं घाव जल्दी भरते है |

इसका प्रयोग घाव पर लेप करने एवं अभ्यान्त्र दोनों रूपों में घाव के लिए फायदेमंद होता है |

स्वर सुधारने में उपयोगी

मुलेठी अपने मधुर और स्निग्ध गुणों के कारण कंठ के लिए हितकर है | विशेषत: वातपित्त्ज स्वरभेद में इसके क्वाथ का प्रयोग करते है | अतिभाषण के कारण होने वाले स्वरभेद में ओजोवर्धनार्थ एवं स्वर सुधारने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है |

श्वाँस एवं खांसी में मुलेठी के रोगोपयोग

कफ को निकालने में उत्तम आयुर्वेदिक औषधि है | इसमें कफनिस्सारक गुण होते है |अपने इन्ही गुणों के कारण कफज विकार जिसे श्वांस , खांसी आदि में उपयोगी साबित होती है |

सेवन की मात्रा एवं योग

प्रयोज्य अंग – मूल

मात्रा – जड़ का चूर्ण 1 से 2 ग्राम , क्रोनिक समस्याओं में 3 से 5 ग्राम

विशिष्ट योग – कासवटी, मधुयष्टि चूर्ण, मधुयष्टादी चूर्ण, एलादी वटी, अश्वगंधारिष्ट आदि |

धन्यवाद ||

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