आयुर्वेद में नौसादर का उपयोग सैंकड़ो सालों से होते आया है | लगभग आठवी शताब्दी से यह द्रव्य चिकित्सार्थ प्रचलन में है अर्थात 8वीं शताब्दी से इसे चिकित्सा के लिए आयुर्वेद पद्धति में प्रयोग किया जाता रहा है |
आज इस आर्टिकल में आपको नौसादर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध होगी | जैसे नौसादर किसे कहते है ?, इसके क्या आयुर्वेदिक उपयोग है एवं सेवन से क्या फायदे और नुकसान हो सकते है आदि |
नौसादर क्या है ?
आयुर्वेद चिकित्सा में इसे साधारण रसों में गिना जाता है | यह सफ़ेद रंग का दानेदार लवण द्रव्य होता है, जो करीर और पीलू वृक्षों के कोष्ठों को जलाने पर क्षार के रूप में प्राप्त होता है | ईंटो के भट्टे से प्राप्त राख से भी यह क्षार रूप में प्राप्त किया जाता है | पुराने समय में ऊंट की लीद जलाकर भी क्षार रूप में इसको प्राप्त किया जाता था |
आधुनिक विज्ञानं अनुसार यह एक अकार्बनिक यौगिक है जिसका सूत्र NH4CL होता है | यह श्वेत रंग का क्रिस्टलीय पदार्थ होता है जो केमिकल उपयोग एवं औषधि उपयोग दोनों में काम में लिया जाता है |
नौसादर के अन्य नाम
इसके विभिन्न भाषाओँ में नौसादर के पर्याय विभिन्न है –
हिंदी – नौसादर, नरसार आदि |
संस्कृत – नवसादर: , नवसर, इष्टिकालवण, नृसार आदि |
अंग्रेजी – अमोनियम क्लोराइड / Ammonium Chloride
सूत्र – NH4CL
नौसादर का शोधन
आयुर्वेद चिकित्सा में रस, उपरस, विष, उपविष एवं खनिज पदार्थों आदि का शोधन करके चिकित्सा उपयोग में लिया जाता है अर्थात इन द्रव्यों में उपस्थित अशुद्धियों को दूर करके इन्हें दवा बनाने के उपयोग में लिया जाता है |
प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसके शोधन का वर्णन प्राप्त नही होता | इसका शोधन करने के लिए नवसादर 1 भाग एवं जल 3 भाग लेकर ; इसे जल में घोलकर मोटे एवं साफ़ वस्त्र से दो बार छान लिया जाता है |
अब उस छने हुए जल को अग्नि पर चढ़ा कर पाक किया जाता है | पात्र में से जब जल भाप बन कर उड़ जाए तो पैंदे में शुद्ध नौसादर प्राप्त होता है | इसी नौसादर का आयुर्वेदिक उपयोग किया जाता है | अर्थात चिकित्सा के लिए उपयोग में लिया जाता है |
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नौसादर के क्या फायदे है ?
इसे त्रिदोषघन औषधि माना जाता है | यह दीपन, पाचन, गुल्म, प्लीहा रोग एवं मुखशोष में विशेषकर उपयोग में ली जाती है | अन्य उपयोग इन बिन्दुओं के माध्यम से बताएं गए है |
- अपच एवं अजीर्ण के कारण पेट दर्द हो तो नौसादर के साथ सुहागा एवं सौंफ मिलाकर चूर्ण बना कर सेवन करने से आराम मिलता है |
- इसके साथ सुहागा एवं सौंफ मिलाकर सेवन करने से यह दीपन एवं पाचन का कार्य भी करती है |
- दांतों की अधिकतर समस्याओं में नौसादर के साथ, संधव नमक एवं फिटकरी (स्फटिका) मिलाकर मलने से दांतों का दर्द, सुजन एवं कीड़ों की समस्या से निजात मिलती है |
- श्वाँस या अस्थमा की दिक्कत में आयुर्वेदिक वैद्य नौसादर को पान में रखकर खाना बताते है |
- नवसादर के साथ बराबर मात्रा में चुना एवं कपूर मिलाकर एक कांच की शीशी में रख लें | जुकाम में इसे सूंघने से बंद नाक खुलता है | नकसीर में भी यह उपयोग करने से नाक से खून आना बंद हो जाता है |
- सुजन एवं गाँठ की समस्या में नौसादर को पीसकर लगाने से सुजन दूर होती है एवं गाँठ पिघल जाती है |
- गर्भनिरोधक के रूप में भी यह कार्य करता है | आयुर्वेदिक चिकित्सा अनुसार नौसादर एवं फिटकरी को समान मात्रा में मिलाकर योनी में रखने से स्त्री को गर्भ नहीं ठहरता |
नौसादर के बारे में अन्य जानकारी
नौसादर के क्या उपयोग है ?
यह त्रिदोषघन औषधि है | पेट के रोग, दीपन – पाचन, प्लीहा रोग, सुजन एवं दांतों की समस्या में उपयोगी औषधि है |
क्या इसका मारण किया जाता है ?
मारण अर्थात आयुर्वेद में भस्म बनाने को मारण पुकारा जाता है | नौसादर का मारण का वर्णन आयुर्वेदिक ग्रंथो में उपलब्ध नहीं है |
सेवन की विधि एवं मात्रा कितनी होनी चाहिय ?
शुद्ध नौसादर का सेवन करना चाहिए | इसका अधिकतम उपयोग 2 से 8 रति तक आयुर्वेदिक चिकित्सा अनुसार किया जा सकता है |
नौसादर के नुकसान क्या है ?
यह एक अकार्बनिक खनिज द्रव्य है | अत: चिकित्सक निर्देशित मात्रा से अधिक उपयोग करने पर नुकसान पहुंचा सकता है |
किन आयुर्वेदिक दवाओं में इसका प्रयोग किया जाता है ?
इससे क्षारपर्पटी, शंखद्रावक रस एवं वृश्चिकदंश हर लेप आदि आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण किया जाता है |
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