भारत के प्रत्येक राज्य में सत्यानाशी के पौधे देखने को मिल जाते है | ये खाली पड़ी जमीन, जंगल, बंजर भूमि एवं मैदानों में अपने आप ही उग आते है | राजस्थान, पंजाब, हरियाणा में गर्मियों में सत्यानाशी के पौधों की बहुतायत रहती है |
सत्यानाशी का वानस्पतिक परिचय
इसे संस्कृत में स्वर्णक्षीरी, कटुपर्णी, हेमक्षीरी आदि नामों से पुकारा जाता है | आयुर्वेद चिकित्सा में प्राचीन समय से ही इसके उपयोग का वर्णन प्राप्त होता है | सत्यानाशी का पौधा 2 से 4 फीट तक लम्बा अनेक शाखाओं वाला होता है | इसके सम्पूर्ण पौधे पर कांटे लगे रहते है |
सत्यानाशी का पौधा – 2 से 4 फीट लम्बा, अनेक शाखाओं वाला एवं काँटों से युक्त |
पत्र (पते) – स्वर्णक्षीरी के पते 3 से 7 इंच लम्बे, तीखे काँटों से युक्त एवं पतों पर सफ़ेद रंग के धब्बे दिखाई पड़ते है |
फुल – पीले रंग के 5 से 7 पंखुड़ियों वाले होते है |
फल – लम्बे एवं गोल होते है ; जिनमे से काले रंग के बीज निकलते है |
सत्यानाशी के अन्य नाम
सत्यानाशी का वानस्पतिक नाम :- Argemone mexicana Linn. है | यह Papaveraceae फैमिली का पौधा है |
india biodiversity
https://indiabiodiversity.org/species/show/32953
हिंदी – सत्यानाशी
संस्कृत – स्वर्णक्षीरी, कटुपर्णी, हैमवती, हिमावती, पितदुग्धा आदि |
मराठी – काटे धोत्रा |
असामी – सियाल-कांटा, कुहुम कांटा |
तेलगु – ब्रह्मदंडी |
English – Mexican Prickly Poppy
सत्यानाशी के औषधीय गुण धर्म
हेमाहा रेचनी तिक्ता भेद्न्युत्क्लेशकारिणी |
कृमिकंडूविषानाह कफपित्तास्त्रकुष्ठनुत ||
भावप्रकाश निघंटु
रस :- कटु एवं तिक्त
गुण :- लघु एवं रुक्ष
विपाक :- कटु
वीर्य :- उष्ण
दोषकर्म – कफ एवं पितहर
अन्यकर्म – तृषानिग्रहण, ग्राही
सत्यानाशी के फायदे एवं सेवन की विधि
सत्यानाशी कौनसे रोगों में उपयोगी है ?
बुखार (Fever)
तृषा / अधिक प्यास लगना (thirst disease)
रक्तपित रोग (blood-borne disease)
अतिसार / दस्त (Diarrhea)
छर्दी (Cardiovascular disease)
त्वचा के रोग (Skin Disease)
मानसिक विकार (Mentol Disorder)
पुराना घाव (Chronic wound)
कुष्ठ रोग (leprosy)
अस्थमा (Asthma)
सत्यानाशी के उपयोगी अंग कौनसे है ?
इसकी जड़, पते, फुल, तना एवं बीज सभी उपयोगी है | अर्थात सत्यानाशी का पंचांग चिकित्सार्थ उपयोग में लिया जाता है |
सत्यानाशी का इस्तेमाल कैसे किया जाता है अर्थात सेवन की मात्रा ?
इसके पंचांग का इस्तेमाल किया जाता है |
चूर्ण का सेवन :- 1 से 3 ग्राम
दूध :- 5 से 10 बूंद
तेल :- 5 से 15 बूंद
स्वरस – 5 मिली.
काढ़ा :- 10 मिली.
सत्यानाशी के सेवन में कौनसी सावधानियां बरतनी चाहिए ?
आयुर्वेद चिकित्सक के देख – रेख में इसका सेवन करना चाहिए | इसके बीज विषैले होते है अत: इनका उपयोग आन्तरिक रूप अर्थात खाने के काम में नहीं लेना चाहिए | बीजों का उपयोग केवल बाहरी रूप में ही करना चाहिए |
किसी भी प्रकार से स्वयं द्वारा किया गया नुस्खा नुकसान दायक हो सकता है अत: सर्वप्रथम सत्यानाशी का प्रयोग करने से पहले वैद्य या उपवैद्य से सलाह अवश्य लेनी चाहिए |
धन्यवाद |
Mere 26 mm ki pathi h kripya sahi dwai batane jisse pathi nikal jaye
pl also inform as to how this can be cultivated like any other crop
हमारे समक्ष अभी तक सत्यानाशी की व्यवसायिक खेती के बारे में कोई उदहारण उपलब्ध नहीं है या तो इसकी व्यवसायिक खेती नहीं की जाती या फिर हमें विदित नहीं है |