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प्राणायाम / Pranayama
अष्टांग योग में प्राणायाम का एक विशेष स्थान है | अष्टांग योग के चतुर्पद में “प्राणस्य आयाम: इति प्राणायाम:” लिखा है , इसका अर्थ है की प्राण का विस्तार ही प्राणायाम कहलाता है | नित्य रूप से प्राणायाम का अभ्यास करने से प्राणशक्ति में अत्यधिक वर्द्धि होती है | इसका अभ्यास करने से व्यक्ति को पूर्ण स्वास्थ्य मिलता है और उम्र बढती है | प्राणायाम के महत्व को आप एक छोटे से उदाहरण से भी समझ सकते है , जैसे – कछुआ 1 मिनट में 4 से 5 श्वास लेता है और उसकी उम्र होती है लगभग 200 से 400 वर्ष | वहीं मनुष्य 1 मिनट में 15 से 16 श्वास लेता है एवं लगभग 100 साल जीता है |
तस्मिन्सति श्वास प्रश्वास योगर्ती विच्छेद: प्राणायाम: ||
अर्थात आसन की सिद्धि होने के बाद श्वास – प्रश्वास की जो गति है उसे विच्छेद करना | विच्छेद करने का अर्थ है की श्वास की स्वाभाविक गति को रोककर नियमन या सम करना | अर्थात जो उदयाभाव होता है वही प्राणायाम कहलाता है |
प्राणायाम क्या है ? / What is Pranayama in Hindi
प्राणायाम को श्वास की क्रिया को संतुलित करने वाला योग कह सकते है | यह दो शब्दों से मिलकर बना है – प्राण + आयाम | यहाँ प्राण का अर्थ है ‘जीवन शक्ति’ जो पुरे ब्रह्मांड में किसी न किसी रूप में विद्यमान है और आयाम का अर्थ होता है – विस्तार , फैलाव या नियंत्रण | अत: प्राणायाम का अर्थ हुआ कि जीवन शक्ति का विस्तार करना या उसका नियंत्रण करना प्राणायाम कहलाता है |
प्राणायाम की अवस्थाएँ / States or Pranayama
बहुत से आचार्यों ने इसकीचार अवस्थाएँ बताई है, यथा – आरम्भक , घट , परिचय और निष्पति | यहाँ प्राणायाम की आरंभक अवस्था का अर्थ है साधक की जिज्ञाषा और रूचि प्राणायाम में जागृत होती है तब वह प्राणायाम में जल्दबाजी करता है | जिससे वह जल्दी थक जाता है और पूरा शरीर पसीने – पसीने हो जाता है | लेकिन जब साधक धर्य और विश्वास के साथ धीरे – धीरे प्राणायाम करता है एवं उसका शरीर थकान महसूस नहीं करता यह उसकी दूसरी अवस्था यानि की घट अवस्था कहलाती है | घट अवस्था का अर्थ है की मनुष्य घड़े के सामान होता है – जैसे अगर घड़े को आग में न पकाया जाए तो वह जल्दी नष्ट हो जाता है | उसी प्रकार अगर मनुष्य शरीर को प्राणा-याम की अग्नि में पकाया जाए तो वह जल्दी नष्ट नहीं होता |
तीसरी अवस्था परिचय की है | इसका अर्थ है की साधक का शरीर जब धीरे – धीरे प्राणायाम की आग में तप कर मजबूत एवं स्थिरता धारण कर लेता है तब वह परिचयात्मक अवस्था में होता है | अन्तिम अवस्था निष्पति की अवस्था है जो साधक की परम गति की अन्तिम अवस्था होती है , इसमें साधक को आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है जिससे की वह सम्पूर्ण गुणों से युक्त हो जाता है |
प्राणायाम के प्रकार / Types of Pranayama
महर्षि घेरंड ने इसके 8 भेद बताये है –
सहित: सूर्यभेदश्च उज्जायी शीतली तथा |
भस्त्रिका भ्रामरी मूर्छा केवली चाष्टकुम्भका ||
समझने की द्रष्टि से इसके निम्न भेद है –
- सूर्य-भेदी
- उज्जायी
- नाड़ी – शोधन
- शीतली
- भस्त्रिका
- भ्रामरी
- अनुलोम – विलोम
- केवली
- मूर्च्छा
- कपालभाती
- बाह्य
- प्रणव
- अग्निसार
- चन्द्र भेदन
- ओंकार जाप / उद्गीथ
- शीतकारी
प्राणायाम के लाभ / फायदे – Benefits of Pranayama
अष्टांग योग में इसका एक विशेष स्थान है | मनुष्य जीवन को सुखायु देने व उम्र भर निरोगी बनाए रखने में इसका अलग महत्व है | आज कल की तनाव भरी जिन्दगी में स्वास्थ्य को बनाये रखना अपने आप में एक चुनोती है | प्राणायम के प्रयोग से मनुष्य अपने ज्यादातर समस्याओं का हल कर सकता है | इस जीवनी शक्ति योग को अपना कर आप निम्न लाभों से फलीभूत हो सकते है – और पढ़े – भुजंगासन के फायदे
- यह दीर्घायु प्रदान करने वाला होता है |
- शरीर में ओज , तेज, और बल को बढाता है |
- इसका अभ्यास करने वाले सभी प्रकार के विषय – विकारो से दूर रहते है | अर्थात काम-वासना , क्रोध, लोभ एवं मोह से वे निजात पा लेते है |
- शरीर में स्थित वात, पीत व कफ को संतुलित करता है , जिससे व्यक्ति बीमार नहीं पड़ता |
- यह बुढ़ापे को दूर करने वाला होता है | इसके अभ्यास से बुढो में रक्तसंचार की गति सामान्य होती है एवं उन्हें पूर्ण ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है जिससे की उनका शरीर युवा बना रहता है |
- तनाव , चिंता से मुक्ति मिलती है |
- नाड़ी-शोधन प्राणायम का अभ्यास करने से दूषित नाड़ियो का शोधन होता है | प्राणायाम के फायदे व लाभ
- कब्ज, अपच एवं पाचन सम्बन्धी सभी समस्याओ से छुटकारा मिलता है |
- अस्थमा के रोगियों के लिए यह बहुत फायदेमंद है | इसके आसनों में परिपक्व होने के बाद अस्थमा बिलकुल ठीक हो सकता है |
- शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है |
- प्राणायम के लाभ पाचन तंत्र को सुचारू रूप से काम करने में भी फायदेमंद है | प्राणायाम के लाभ
- हृदय और फेफड़ो से सम्बन्धित सभी रोग दूर होते है |
- पुर्नाभ्यसी साधक को आत्मज्ञान हो जाता है | अर्थात सभी इन्द्रियां वस में आकर व्यक्ति अतीन्द्रिय या जितेन्द्रिय हो जाता है जिससे उसे मानव जीवन के सार का ज्ञान प्राप्त होता है |
प्राणायाम करते समय बरते ये सावधानियां / Precautions during Pranayama
प्राणायाम करते समय निम्न सावधानियों एवं नियमो का ध्यान रखना चाहिए |
- साधक को अभ्यास करते समय मच्छर , मक्खी , कीट – पतंगों से बचने के लिए पूरी व्यवस्था पहले ही कर लेनी चाहिए |
- इसका अभ्यास पद्मासन या सिद्धासन में बैठ कर करना चाहिए |
- जो भी स्थान चुने वहां शुद्ध हवा का आगमन हो और शोर-सराबा भी न हो |
- साधक को नशे पते से दूर रहना चाहिए | शराब , तम्बाकू, मांसाहार आदि का त्याग करने से इसका अधिक लाभ मिलता है | और पढ़े – पेट कम करने वाले योगासन
- समय , स्थान और दिशा निश्चित करे |
- प्राणायाम का अभ्यास सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद निर्धारित है , लेकिन फिर भी कभी अन्य समय करना पड़े तो खाना खाने के 3-4 घंटे बाद करना चाहिए |
- नेत्रों को नाक पर केन्द्रित करके व आँखे बंद करके अभ्यास करना चाहिए |
- मन को पूर्ण रूप से श्वास क्रिया पर लगा लेना चाहिए | इससे एकाग्रता , स्मरण शक्ति और मानसिक शांति का विकास तेज गति से होता है |
- जल्दबाजी में न करे |
- कभी भी किसी मुत्रादी के वेग में इसे नही करना चाहिए | हमेशां वेगो से निवर्त होकर ही इसे करना चाहिए |
- अभ्यासी को मेरुदंड में स्थिरता लानी चाहिए, अर्थात अभ्यासी को मेरुदंड को सीधा रखना जरुरी होता है |
- प्राणायाम का चयन अपनी शारीरक परिस्थिति के अनुसार करे | क्योंकि कुछ शीतलता प्रदान करते है व कुछ गर्मी पैदा करते है |
- गर्भवती स्त्रियों को योग्य योग गुरु की देख रेख में प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए |
- उपवास, खाली पेट या भोजन करने के तुरंत बाद कभी भी प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए |