गर्भविलास तेल गर्भिणी स्त्री के लिए अमृत समान औषधि है | इसके उपयोग से गर्भ पुष्ट होता है एवं शिशु भी स्वस्थ एवं दीर्घायु होता है | आयुर्वेद औषधियों में तेल प्रकरण की औषधियां भी बहुत गुणकारी मानी जाती हैं | बाह्य शरीर के विकारों, खाज-खुजली, फोड़े, संधि शूल, जोड़ो के दर्द, किसी अंग में विकृति एवं प्रमेह रोगों में तेल बहुत कारगर औषधि साबित होते हैं |
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गर्भविलास तेल (Garbhvilas Tail) क्या है, इसके घटक एवं बनाने की विधि ?
यह एक औषधीय तेल है | इसका उपयोग मुख्यतः गर्भाशय की कमजोरियों में किया जाता है | गर्भधारण के बाद इस तेल की मालिश करने से गर्भ पुष्ट होता है | इस तेल के घटक निम्न लिखित हैं :-
- विदारीकन्द, अनार के पत्ते
- हल्दी, हरड़
- बहेड़ा, आंवला
- सिंघाड़े के पत्ते, चमेली के फुल
- शतावर, नीलकमल
- सफ़ेद कमल
- तिल का तेल
गर्भविलास तेल को बनाने के लिए ऊपर बतायी गयी जड़ी बूटियों को समान मात्रा में लें | इन जड़ी बूटियों का कल्क बना लें | तिल के तेल का मूर्छन कर लें | अब तिल के तेल को सिद्ध कर लें | जब यह पाक सिद्ध हो जाए तो छान कर रख लें |
गर्भविलास तेल के फायदे एवं उपयोग / Garbhvilas Tail uses and Benefits in hindi
यह तेल गर्भिणी के लिए बहुत प्रसिद्ध औषधि है | गर्भधारण के बाद का समय माता के लिए बहुत कठिन होता है | उसे तमाम तरह के कष्टों से गुजरना होता है | ऐसे में अगर गर्भाशय की कमजोरी या किसी विकार के कारण गर्भस्राव होने लग जाये तो माता के लिए यह बहुत दुखदायक होता है |
बहुत बार इन कारणों से गर्भपात हो जाता है जो माँ के लिए अत्यंत कष्टदायी होता है | इन सब विकारों से बचने के लिए गर्भविलास रस बहुत कारगर औषधि है | Garbhvilas Tail के फायदे एवं उपयोग :-
- गर्भिणी को पेट में दर्द की समस्या बहुत कष्ट देती है |
- ऐसी अवस्था में Garbhvilas Tail से पेट के ऊपर तथा चारों और हल्के हाथ से मालिश करने पर दर्द कम हो जाता है |
- इस तेल से रोजाना मालिश करने पर गर्भ पुष्ट होता है |
- यह गर्भिणी को होने वाली पीड़ा कम कर देता है |
- इसकी लगातार मालिश से शिशु स्वस्थ एवं दीर्घायु पैदा होता है |
- गर्भविलास तेल की मालिश गर्भिणी के लिए बहुत उपयोगी है |
- कभी कभी योनी से खून बहने लगता हैं एवं गर्भस्राव के कारण गर्भपात का खतरा हो जाता है |
- ऐसे में एक रुई को Garbhvilas Tail में भिगो कर योनी मार्ग द्वारा गर्भाशय के मुख पर रखें |
- इससे गर्भस्राव बंद हो जाता है |
- गर्भस्राव का खतरा हो तो यह प्रयोग लगातार एक सप्ताह करना चाहिए |
Garbhvilas Tail का उपयोग कैसे करें ?
इस तेल की मालिश गर्भिणी के पेट पर हलके हाथों से करनी चाहिए | गर्भस्राव रोकने के लिए रुई को भिगो कर गर्भाशय के मुख पर रखें |
गर्भविलास तेल के नुकसान एवं सावधानियां |
यह तेल सिर्फ बाह्य उपयोग के लिए है, इसका सेवन नहीं करना चाहिए | मालिश करते समय ध्यान रखना चाहिए की ज्यादा दबाव पेट पर न पड़े | इसका उपयोग आयुर्वेद चिकित्सक से सलाह लेके ही करें |
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