अग्नितुण्डी वटी आयुर्वेद की शास्त्रोक्त रस – रसायन प्रकरण की दवा है | रस – रसायन प्रकरण से तात्पर्य है कि इन दवाओं का निर्माण खनिज द्रव्यों, प्राणिज द्रव्यों एवं काष्ठऔषधियों आदि के सहयोग से किया जाता है | अग्नितुण्डी वटी में शुद्ध कुचला, शुद्ध गंधक, शुद्ध पारद एवं शुद्ध सुहागा जैसे घटक द्रव्य उपस्थित है |
यह दवा पाचन तंत्र की विकृति, हृदय विकार, वात विकार के रोगों में विशेष उपयोगी है | दीपन – पाचन गुणों से युक्त होने के कारण भूख की कमी, अपच एवं आफरा जैसे रोगों में प्रयोग की जाती है |
आज इस आर्टिकल में हम अग्नितुण्डी वटी के फायदे, उपयोग, घटक, निर्माण विधि एवं सेवन की विधि का वर्णन करेंगे | यह आर्टिकल आपके ज्ञान वर्द्धन के उद्देश्य से लिखा गया है | इसका प्रयोग किसी भी रोग की चिकित्सार्थ नहीं करना चाहिए |
यह हम इसलिए कह रहें है क्योंकि रस औषधियों में धातु उपधातु एवं विष आदि का प्रयोग किया जाता है अत: इनका सेवन चिकित्सक के परामर्श से ही किया जाना चाहिए |
Post Contents
अग्नितुण्डी वटी के घटक / Ingredients of Agnitundi Vati in Hindi
इसमें लगभग 16 आयुर्वेदिक द्रव्यों का इस्तेमाल किया जाता है | यहाँ इस टेबल के माध्यम से देख सकते है |
घटक का नाम | मात्रा |
---|---|
शुद्ध पारद | 1 भाग |
शुद्ध गंधक | 1 भाग |
शुद्ध वत्सनाभ | 1 भाग |
अजवायन | 1 भाग |
सज्जिक्षर | 1 भाग |
यवक्षार | 1 भाग |
चित्रकमुल छाल | 1 भाग |
सफ़ेद जीरा | 1 भाग |
सेंधा नमक | 1 भाग |
सौर्वचल नमक | 1 भाग |
समुद्र नमक | 1 भाग |
वायविडंग | 1 भाग |
शुद्ध सुहागा | 1 भाग |
हरीतकी | 1 भाग |
विभितकी | 1 भाग |
आमलकी | 1 भाग |
शुद्ध कुचला | 16 भाग |
जम्बीरी निम्बू | भावनार्थ |
अग्नितुण्डी वटी के चिकित्सकीय उपयोग / Therapeutic use of Agnitundi Vati in Hindi
निम्न रोगों में अग्नितुण्डी वटी का प्रयोग चिकित्सार्थ किया जाता है |
- कब्ज
- अपच
- अजीर्ण
- गैस
- पेटदर्द
- यकृत विकार
- दस्त
- आंतो की कमजोरी
- आंतो के कीड़े
- भूख न लगना
- आमवात
अग्नितुण्डी वटी के फायदे / Health Benefits of Agnitundi Vati in Hindi
यह दवा दीपन एवं पाचन गुणों वाली है | शरीर में अतिरिक्त वात को नष्ट करती है | इसका प्रभाव स्नायुमंडल, वातवाहिनी और मूत्रपिण्ड पर विशेष होता है | साथ ही मन्दाग्नि, आफरा, प्रमेह जैसे विकारों में फायदेमंद है |
- यकृत में विकार होने से जठराग्नि मंद हो जाती है | ऐसे में निम्बू के साथ अग्नितुण्डी वटी का इस्तेमाल करने से मन्दाग्नि की समस्या दूर होती है |
- अगर भूख नहीं लगती हो, पेट में भारीपन एवं कठोरता हो तो अग्नितुण्डी वटी का सेवन फायदेमंद रहता है | यह दीपन एवं पाचन गुणों वाली होने के कारण भूख को बढाती है एवं कफादी दोषों का शमन भी करती है |
- अग्नितुण्डी वटी को अजवायन अर्क के साथ सेवन करवाने से यकृत के विकारों में लाभ मिलता है |
- कफ के कारण होने वाले पेट के विकारों में अग्नितुण्डी वटी को महारास्नादी क्वाथ के साथ सेवन करवाने से फायदा मिलता है |
- दीपन एवं पाचन होने के कारण पाचन तंत्र के विकारों के लिए यह फायदेमंद औषधि है |
- यह दवा हृदय को बल देती है | वातवाहिनी नाड़ियों एवं स्नायुमंडल पर इस दवा का विशेष प्रभाव होता है |
- पुराने ज्वर के कारण आई कमजोरी में भी लाभदायक है | इसके सेवन से शरीर में ताकत आती है एवं कमजोरी दूर होती है |
- यह पचाकाग्नी को प्रदीप्त करती है | निम्बू स्वरस के साथ 1 -1 गोली का सेवन करने से पाचन तंत्र सुधरता है |
- प्रमेह रोग जैसे स्वप्नप्रमेह (स्वप्नदोष) में भी यह फायदेमंद औषधि है |
- यकृत वृद्धि में अग्नितुण्डी वटी 1 गोली एवं वज्रक्षार चूर्ण 1 माशा सेवन करने से रोग में काफी लाभ मिलता है |
सेवन विधि / Doses
इसका सेवन 1 – 1 गोली सुबह शाम गर्म जल के साथ करना चाहिए | इस दवा में कुचला एवं वत्सनाभ जैसे द्रव्य है , अत: इसका सेवन बैगर वैद्य परामर्श नहीं करना चाहिए | रसायन प्रकरण की दवा होने के कारण वैद्य परामर्श आवश्यक है |
नुकसान / Side Effects
अग्नितुण्डी वटी में विष द्रव्य की उपस्थिति होती है | अत: लम्बे समय तक सेवन करने से नुकसान हो सकते है | इसमें कुचला अंश विशेष है अत: अधिक मात्रा में सेवन करने या लम्बे समय तक नियमित सेवन करने के कारण शरीर में दुष्प्रभाव देखने को मिल सकते है |
इसका सेवन बैगर आयुर्वेदिक वैद्य नहीं करना चाहिए | सेवन के मामले में 7 से 15 दिन से अधिक नियमित सेवन नहीं किया जाना चाहिए |
अग्नितुण्डी वटी के बारे में सामान्य सवाल – जवाब / FAQ
धन्यवाद ||