एरंड का सम्पूर्ण परिचय – इसके औषधीय गुण एवं फायदे

भारत वर्ष में सर्वत्र पाया जाने वाला औषधीय क्षुप है | सड़क किनारे, खेतों एवं खाली पड़े क्षेत्रों में अधिकतर अपने आप उगने वाली औषधि है | इसकी व्यावसायिक खेती भी की जाती है | आयुर्वेद में पुरातन समय से ही इस औषधीय वनस्पति का उपयोग होते आया है |एरंडी के पते एवं बीज अधिकतर आयुर्वेद में उपयोग किये जाते है | आज आपको इस आर्टिकल में एरंडी का परिचय, गुण, फायदे एवं आमयिक प्रयोग के बारे में जानने को मिलेगा |

चरक संहिता में “एरण्डमुलं वृष्यवातहरणं” कहा गया है | अर्थात वृष्य (वृद्धि) एवं वात्घ्न (बढ़ी हुई वात का शमन करना) में एरंड मूल का सर्वोतम है | बृह्म रसायन में भी एरंडमूल का वर्णन किया गया है |

वानस्पतिक परिचय

एरंड का पौधा
एरंड का पौधा

एरंड का क्षुप वर्षायु एवं चिकना होता है | यह झाड़ीरूपी एवं छोटे वृक्ष के समान भी प्रतीत होता है | इसके पते चौड़े, सात या अधिक खंडो में एकांतर, पत्रधार आरावत जो 2 से 5 सेमी. तक लम्बे होते है | निचे एरंड के पते की इमेज उपलब्ध करवाई गई है |

एरंड के पत्ते

पुष्प – एकलिंगी, 0.75 सेमी व्यास के अनेक पुन्केषर युक्त होते है | स्त्री पुष्प में गर्भाशय में तीन खंड, स्त्रीकेशर रक्तवर्ण (सुर्खलाल) का होता है | दोनों पुष्प एक ही पुष्पदंड में लगते है | पुष्प दंड के उपरी भाग में स्त्रीपुष्प एवं निचले भाग में पु. पुष्प लगते है |

एरंड के फल
एरंड के फल

फल – गोलाकार, पक्वास्था में हरितवर्णी एवं हलके कांटो से युक्त होते है | पकने पर अपने आप क्षुप से झड़ जाते है | यहाँ हमने पकने की अवस्था में तैयार फलों की फोटो उपलब्ध करवाई है | अधिकतर फल चार खंडो में विभक्त होते है | कच्ची अवस्था में फल को फाड़ने पर सफ़ेद वर्णी एवं कची अवस्था का बीज प्राप्त होता है |

एरंड के बीज
एरंड के बीज

बीज – फल पकने पर धुप के कारण फट जाते है और बीज भूमि में गिर जाते है | प्रत्येक फल में तीन बीज निकलते है | एरंड के बीज गोलाकार, चिपटे, 4 – 12 मिमी. लम्बे एक तरफ से चिपटे और दूसरी तरफ से कुच्छ गोल होते है |

एरंड के औषधीय गुण

इसका रस मधुर एवं गुण – गुरु, सूक्ष्म, स्निग्ध, तीक्षण होते है | विपाक कटु होता है एवं तासीर में उष्ण वीर्य होती है | अपने इन्ही गुणों के कारण यह कफ – वात शामक, शुल्घ्न (दर्द नाशक), रेचन आदि दोषकर्मो से युक्त होता है |

यह शूल, शोथ, कटि – बस्ती, शिर की पीड़ा, उदर रोग, ज्वर, श्वास, आनाह (आफरा), कास, कुष्ठ एवं आमवात नाशक गुणों से परिपूर्ण है |यहाँ हमने एरंड के विभिन्न प्रयोज्य अंगो के अनुसार उनके गुण धर्म बताये है |

  • एरंड पत्र – वात – कफ नाशक, पित्त – रक्त प्रकोपक (बढ़ाने वाला), कृमिघन (कीड़ों को मारने वाला) एवं मूत्रकृच्छ नाशक गुणों से युक्त होते है |
  • अरंडी पल्लव – इसके कोमल पते कफवात नाशक, गुल्म, बस्तिशूल नाशक, कृमिघ्न एवं सात प्रकार के वृद्धि रोगों को दूर करने वाले होते है |
  • एरंड फल – उष्ण वीर्य, गुल्म, शूल, वायु, यकृतप्लीहा, उदर रोग एवं अर्श (बवासीर) नाशक होते है |
  • अरंड फलमज्जा – मल भेदन, कफ वात नाशक एवं उदररोग नाशक होते है |

आयुर्वेद में एरंड के स्वास्थ्य उपयोग या फायदे

आयुर्वेद चिकित्सा के अनुसार अरंडी का उपयोग विभिन्न रोगों में किया जाता है | यह वातशूल, वातवृद्धि, कफनाशक, उदर रोग एवं अर्श आदि रोगों में फायदेमंद साबित होती है | घरेलु चिकित्सा में भी इसका प्रयोग दर्द जैसे संधि शूल , आमवात, साईटिका आदि में दर्द से राहत पाने के ली किया जाता है | यहाँ हमने आयुर्वेद के अनुसार एरंड के आमयिक प्रयोग एवं फायदे बताये है |

भेदन कर्म

अपने गुरु एवं मधुरपाक गुणों के कारण अरण्डी भेदन कर्म में उपयोगी है | भेदन कर्म से तात्पर्य है कि यह पुराने से पुरानी कब्ज को भी खत्म कर देती है | जिन्हें अधिक कब्ज रहती है एवं अन्य औषधियां देने पर भी कब्ज नहीं टूटती उनके लिए इसके सर गुणात्मक कर्म विरेचक का कार्य करते है |

अदरक के स्वरस के साथ मध्यम मात्रा में एरंड तेल सुखविरेचक होता है | लेकिन अधिक मात्रा एरंड स्नेह तीव्र विरेचक सिद्ध होता है | इसका संर्सन कर्म पक्वाशयागत तीनो दोषों का शमन करता है |

अरंडी है शूलहर (दर्दनाशक)

शरीर में वातवृद्धि के कारण होने वाले वातज शूल (दर्द) में यह अत्यंत उपयोगी है | यह मुख्यत: शरीर से विगुण वात का शमन करती है | एरण्डमूल क्वाथ हिंग और सैन्धव लवण के साथ लेना शूल में उपयोगी होता है |

अगर एरण्ड तेल को लहसुन, सैन्धव लवण और हिंग के साथ प्रयोग किया जाये तो यह दर्द, वातगुल्म, कमर दर्द एवं आमशूल में फायदेमंद साबित होती है | यह पसवाड़ों के दर्द एवं संधि शूल में भी अधिकतर प्रयोग करवाई जाती है |

आमवात में अरंडी के उपयोग

गठिया अर्थात आमवात में एरंड तेल का शुंठी क्वाथ के साथ उपयोग करना उपयोगी होता है | यह अपने गुणों (तिक्त, कटु एवं उष्णता) के कारण बढे हुए आम का पाचन करती है | इसमें एरंडी तेल और इसकी जड़ का इस्तेमाल किया जा सकता है |

गठिया के कारण होने वाले जोड़ो के दर्द में अरंडी के तेल से मालिश करना एवं इसके पतों से स्वेदन (सेक) करना लाभदायक होता है | साईटिका एवं कटीशूल (कमरदर्द) में इसके बीजों को पीसकर दूध के साथ सेवन करना लाभदायी साबित होता है | आमवात में एरंड स्वरस शहद के साथ लेना बहुत फायदेमंद साबित होता है | अरंडी गठिया की सर्वश्रेष्ठ औषधि मानी जाती है |

वातव्याधियों में उपयोग

वातरोगों में एरंड तेल प्रशस्त है | इसकी जड़ के क्वाथ को रसना और शुंठी के साथ प्रयोग करने से यह कटीशूल, पृष्ठशूल, साईटिका एवं संधिशूल का नाश करती है | इसके पतों की पोटली बना कर अंगो का स्वेदन करने से विविध प्रकार के वातरोगों में लाभ मिलता है |

इसका तेल स्निग्ध, गुरु एवं उष्ण वीर्य होने के कारण वातव्याधि का शमन करता है | तेल को गुग्गुलु के साथ सभी प्रकार के वात विकार में उपयोग करना लाभदायक होता है |

उदररोग एवं सुजन में एरंडी के फायदे

उदररोगों की उत्पति स्रोतोंमार्ग में अवरोध उत्पन्न होकर मल का संचय होने से होती है | इन स्रोतों के शोध्नार्थ अर्थात स्रोतों की शुद्धि करके मल को बाहर निकालने से उदररोगों का शमन होता है | कहा भी गया है कि पेट के रोग सभी रोगों की जड़ है अत: पेट के रोगों में एरंडी का प्रयोग करके इन्हें शांत किया जा सकता है |

पेट के दोषों का शोधन करने के लिए एरंड तेल को दूध के साथ 1 से 2 महीने तक प्रयोग करना चाहिए , जिससे दोषों का शोधन होकर शरीर का बलक्षय भी नहीं होता | सुजन में अरंड के पतों से तैयार क्वाथ और कल्क से स्वेदन (सेंकना) करना लाभदायक होता है , यह सुजन को खत्म करता है |

अर्श में एरंडी प्रयोग

स्रंसकर्मनार्थ एरण्ड तेल अर्शोरोग / बवासीर में उपयोगी है | यह वात-पित एवं कफ का अनुलोमन करके गुदरोग में हितकर है | अग्निदीपन (पाचन सुधार) एवं वातानुलोमनार्थ इसका प्रयोग फायदेमंद है |

आनाह – आध्मान

एरंड तेल को संधव के साथ गरम करके आनाह, आध्मान में सेवन करना लाभदायक होता है | एरंड के पतों या बीजकल्क को गरम करके पेट में बाँधने से भी आफरा की समस्या से छुटकारा मिलता है | हिंग मिलाकर बनाई गई गुदवर्ती गुदा में रखने से लाभ होता है एवं आध्मान खत्म होता है |

अन्य बाह्य प्रयोग

  • कटीशूल, साइटिका, पार्श्वशूल, आमवात एवं संधिशोथादी में दर्द और सुजन को कम करने के लिए एरंड के पतों को गरम करके बाँधने से लाभ होता है |
  • बवासीर में एरंड तेल और घृतकुमारी (एलोवेरा) स्वरस मिलाकर लगाने से जलन कम होती है |
  • सिरदर्द में इसके तेल की मालिश फायदा करती है |
  • दाहशमन में इसके तेल की मालिश फायदेमंद है |

धन्यवाद |

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