जात्यादि तेल / Jatyadi Tailam :- आयुर्वेद चिकित्सा में रोगोंन्मुलन के लिए तेल का प्रयोग भी प्रमुखता से किया जाता है | घावों के लिए , दुष्टव्रण (ठीक न होने वाले घाव), त्वचा विकार एवं फोड़े – फुंसी आदि के उपचार के लिए यह आयुर्वेदिक तेल विशेष लाभदायक है | इस तेल का प्रयोग सिर्फ बाह्य इस्तेमाल के लिए किया जाता है |
बवासीर एवं फिस्टुला आदि में जात्यादी तेल के पिचू को धारण करने से जल्द ही फायदा मिलने लगता है | इस तेल का निर्माण लगभग 20 प्रकार की जड़ी – बूटियों के इस्तेमाल से किया जाता है | इन जड़ी – बूटियों को हमने निचे सूचिबद्ध किया है |
जात्यादि तेल के घटक द्रव्य
क्रम संख्या | औषध द्रव्य का नाम | मात्रा |
---|---|---|
1. | जातिपत्र | 10.66 ग्राम |
2. | निम्बपत्र | 10.66 ग्राम |
3. | पटोल पत्र | 10.66 ग्राम |
4. | सिक्थ | 10.66 ग्राम |
5. | कुष्ठ | 10.66 ग्राम |
6. | करंजपत्र | 10.66 ग्राम |
7. | मुलेठी | 10.66 ग्राम |
8. | कुटकी | 10.66 ग्राम |
9. | हरिद्रा | 10.66 ग्राम |
10. | करंज | 10.66 ग्राम |
11. | तुत्थ | 10.66 ग्राम |
12. | हरीतकी | 10.66 ग्राम |
13. | पद्माख | 10.66 ग्राम |
14. | सारिवा | 10.66 ग्राम |
15. | नीलोत्पल | 10.66 ग्राम |
16. | लोध्र | 10.66 ग्राम |
17. | मंजिष्ठ | 10.66 ग्राम |
18. | दारुहरिद्रा | 10.66 ग्राम |
19. | तिल तेल | 768 ग्राम |
20. | जल | 3.072 लीटर |
जात्यादि तेल बनाने की विधि
इसका निर्माण करने के लिए सबसे पहले तुत्थ एवं सिक्थ औषध द्रव्यों को अलग कर, बाकी सभी औषध द्रव्यों का चूर्ण बनाकर कल्क (लुग्दी) का निर्माण कर लिया जाता है | फिर तिल तेल को कडाही में गरम किया जाता है | अब तिल तेल में औषधियों के कल्क और पानी को डालकर तैलपाक किया जाता है | अच्छे से तैलपाक हो जाने पर यह सिद्ध हो जाता है | अब इस सिद्ध तेल को बारीक़ छलनी से छान लिया जाता है | अंत में बाकी बचे सिक्थ और तुत्थ (थोड़ा पानी मिलाया जाता है) को डालकर फिर से तेलपाक किया जाता है | अच्छे से पाक हो जाने पर आंच से उतार कर ठंडा कर लिया जाता है एवं छानकर कांच की शीशियों में भर लिया जाता है |
जात्यादि तेल के स्वास्थ्य उपयोग / फायदे
निम्न रोगों के उपचार स्वरुप जात्यादी तेल का बाह्य प्रयोग किया जाता है |
- शरीर पर किसी भी प्रकार के घाव में यह चम्ताकारिक लाभ देता है |
- दुष्टव्रण अर्थात जो घाव किसी अन्य औषधि से ठीक नहीं हो रहे , उनको आयुर्वेदिक जात्यादी तेल से ठीक किया जा सकता है |
- बवासीर एवं पाइल्स के घावों के लिए इसके पिचू का प्रयोग लाभ देता है | जात्यादि तेल फॉर फिस्टुला भी प्रयोग किया जाता है |
- किसी शस्त्र के प्रहार से हुए घावों के लिए भी यह उत्तम आयुर्वेदिक तेल है |
- दग्धव्रण के उपचार में यह फायदेमंद है |
- जात्यादि तेल के गुण सभी प्रकार के घावों में लाभदायक होते है |
- जलने एवं कटने आदि पर इस तेल की ड्रेसिंग करने से तीव्रतम लाभ मिलता है |
- फोड़े – फुंसियो के उपचारार्थ इसका प्रयोग किया जाता है |
बाजार में आसानी से बैद्यनाथ, पतंजलि और डाबर कंपनी का जात्यादि तेल उपलब्ध हो जाता है | आप इसे किसी भी आयुर्वेदिक स्टोर से खरीद सकते है | उपयोग से पहले हमेशां इसकी शीशी को हिला लेना चाहिए , क्योंकि तुत्थ तेल में अघुलनशील होता है अत: यह शीशी के तल पर जमा हो जाता है | आपके लिए अन्य महत्वपूर्ण आर्टिकल
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धन्यवाद |
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Nid
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सिक्थ और तुत्थ आयुर्वेदिक औषधी के और दुसरे नाम क्या हैं ?