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पाचन तंत्र / Digestive System
(पाचन तंत्र को सरल शब्दों एवं चित्रों के माध्यम से समझे इस लेख में) मनुष्य द्वारा आहार में बहुत से पदार्थ ग्रहण किये जाते हैं। जब हम आहार को ग्रहण करते है तो यह ठोस रूप में होता है और विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व जैसे – प्रोटिन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, कैल्सियम आदि हमारे द्वारा ग्रहण किये जाने वाले आहार में उपस्थित होते हैं। लेकिन इन तत्वों को हमारा शरीर सीधे ही आहार से अलग नहीं कर सकता, इनके लिए हमारे शरीर को पाचन की विभिन्न क्रियाऐं करनी होती हैं। ये क्रियाऐं हमारे पाचन तंत्र द्वारा ही सम्पन्न होती हैं।
पाचन तंत्र को आसानी से समझने के लिए इसे मुख्यतः दो भागों में बाँटा जा सकता है-
- आहार नाल
- सहायक अवयव
आहार नाल / Alimentary Canal
मानव शरीर में आहार नाल 9 मीटर या 25 से 30 फिट लम्बी नलिका होती है जो मुख से शुरू होकर मलाशय से होती हुई , गुदा द्वार तक होती है। आहार नाल एक लम्बी नलिका ही होती है जो हमारे द्वारा ग्रहण किये गये आहार को ग्रासनाल, ग्रसनीका, अमाशय और बृहदान्त्र से होकर गुजारती है। एवं अंत में आहार के पचने के बाद अवशिष्ट पदार्थों को मलाशय और गुदा के माध्यम से शरीर से बाहर निकालने का कार्य करती है।
आहार नाल को पुनः अच्छे से समझने के लिए प्रमुख 9 भागों में बाँटा जा सकता है।
- मुख गुहा
- ग्रसनिका
- ग्रासनलिका
- आमाशय
- क्षुद्रान्त्र
- बृहदान्त्र
- मलाशय
- गुदनलिका
- गुदा
1 मुखगुहा / Mouth Cavity
मुखगुहा को भी कहते हैं। यह गुहा होठों से शुरू होकर पीछे की तरफ मुखग्रसनिका तक होती है। मुखगुहा के अन्तर्गत मुँह में आने वाले सभी अवयव जैसे तालु, जीभ, दांत, लालास्रावी ग्रन्थियाँ आदि होते हैं। मुखगुहा का शिखर भाग व कठिन तालु से बना होता है एवं आधार भाग यानि निचे का भाग जीभ व अधिजिहवा प्रदेश से बनता है। दान्तों के पीछे से लेकर मुखग्रसनिका के आगे तक के भाग को ही वास्तविक मुखगुहा कहा जाता है। मुखगुहा में निम्न अंग आते हैं।
- तालु / Plate – तालु का निर्माण दो प्रकार से होता है अर्थात यह दो प्रकार का होता है। कठिन तालु और मृदु तालु। कठिन तालु का निर्माण ताल्वास्थियों व ऊध्र्व हन्वस्थि के तालु प्रोसेस से होता है। एवं मृदु तालु का निर्माण श्लैष्मिक कला व माँसपेशियों के द्वारा होता है। यह तालु कठिन तालु के पीछे की ओर स्थित होती है।
- टाॅन्सिल्स / Tonsils – आहार में उपस्थित विजातिय पदार्थों से रक्षा करने में टाॅन्सिल्स की अहम भूमिका होती है। इसका निर्माण लिम्फाॅइड उतकों से होता है। जब कभी मानव संक्रामक और विजातिय पदार्थों का सेवन करता है तब ये रक्षात्मक भूमिका निभातें हैं।
- जिभ / Tongue – यह पाचन तन्त्र का एक मुख्य एवं महत्वपूर्ण अवयव है। इसका निर्माण पेशियों के द्वारा होता है। शरीर में यह बहुत से कार्यों का सम्पादन करती है। शब्दों के उच्चारण में और स्वाद पहचानने में महत्वपूर्ण होती है। अपनी पेशियों की क्रियाशिलता के द्वारा भोजन को चबाने मे सहायता करती है। जिभ पर श्लैष्मिक ग्रन्थियां होती है जो एक प्रकार का श्लैष्मिक स्राव छोडती है जिसका कार्य भोजन के विगलीकरण का होता है।
- दान्त / Teeth – दांतो की पाचन में प्रमुख भागीदारी होती है। मनुष्य द्वारा ग्रहण किये गये भोजन को सबसे पहले चबाने की आवश्यकता होती है ताकि आगे के अंगो की कार्यकुशलता बनी रहे अर्थात प्रभावित न हो। दांत आहार को चबाकर एकसार करने में प्रमुख कार्यकारी होते है।
2 मुखग्रसनिका / Pharynx
ग्रसनिका या मुखग्रसनिका दानों एक ही अवयव होते हैं। इसे थ्रोट कैविटी भी कहते हैं। इसका प्रमुख कार्य भोजन को ग्रासनलिका तक पहुंचाना होता है।
3 ग्रासनली / Oesophagus
ग्रासनली पेशी से निर्मित एक नलिका होती है, जिसकी लम्बाई 25 से.मी. तक होती है। इसकी स्थिती मुखग्रसनिका से अमाशय तक होती है। इसका प्रमुख कार्य आहार को आमाशय तक ले जाना होता है।
4 आमाशय / Stomach
आमाशय का निर्माण भी मांसपेशियों द्वारा होता है। इसकी आकृति अंग्रेजी भाषा के जे अक्षर के समान होती है जो अन्दर से खाली थैलेनुमा होता है। आहार नाल का यह सबसे चैड़ा भाग होता है। इसके उपर का जो चैड़ा भाग होता है उसे फंडस कहते हैं। जब ग्रहण किया गया आहार आमाशय में पहुंचता है तो यह उपर से फैल जाता है। खाली अवस्था में संर्किण हो जाता है। अमाशय का कार्य आहार को मंथन करके आम रूप में लाना होता है। आमाशय में कई पेशियां होती है जो आहार का मन्थन करती है और उसे आम रूप में लाती है ताकि आगे चलकर छोटी आंत में उसका पाचन अच्छी तरह हो सके।
5 क्षुदान्त्र या छोटी आंत / Small Intestine
यह आमाशय के सबसे निचे के भाग जठरर्निग्म भाग से शुरू होकर शेषान्त्र उण्डूकद्वार तक होती है। एक मृत व्यक्ति के शरीर में इसकी लम्बाई 23 फीट तक हो सकती है। शुरूआत में इसकी चैड़ाई लगभग 3.8 से.मी. तक होती है । लेकिन जैसे-जैसे यह आगे बढती है इसकी चैड़ाई कम होती चली जाती है। क्षूदान्त्र के तीन प्रमुख भाग होते हैं अर्थात यह तीन भागों में बंटी रहती है।
- ग्रहणी / Duodenum – इसकी लम्बाई 25 से.मी. तक होती है। यह क्षुदान्त्र के तीनों भागों में से सबसे छोटा और मोटा भाग है। यह अमाशय के जठरर्निग्म द्वार से लेकर मध्यान्त्र तक लम्बी होती है।
- मध्यांत्र / Jejunam – मध्यांत्र की लम्बाई 2.2 मी. होती है। इसकी सीमा ग्रहणी से शुरू होकर शेषान्त्र तक होती है। मोटाई में यह शेषान्त्र से कुछ मोटी होती है लेकिन लम्बाई में यह इससे कम लम्बी होती है।
- शेषान्त्र / Ileum– क्षुदान्त्र का सबसे अन्तिम और सबसे लम्बा भाग होता है। इसकी लम्बाई लगभग साढे तीन मीटर तक होती है। यह अन्य दोनो अंगो से पतली होती है। जब आमाशय से भोजन छोटी आंत में आता है तो भोजन अणुओं मे टुटने लगता है और उसका पाचन होता है।
क्षुदान्त्र की वीली जिसमें अनेक छोटे-छोटे अंकुरों जैसी रचनाऐं होती है। इन अंकुरो में कई सौम्यरसवाहिका और सुक्ष्म रक्तवाहिका होती हैं। जिनका कार्य पचे हुए भोजन से उसके सार भाग को कोशिकाओं तक पहुंचाने का होता है। पाचन तंत्र के अंगो में क्षुदान्त्र की भी अपनी एक अलग महता होती है।
6 बृहदान्त्र / Large Intestine
बृहदान्त्र को पक्वाशय भी कहा जाता है। इसकी लम्बाई 5 फुट तक होती है। यह छोटी आंत से कुछ अधिक चैड़ी होती है। बृहदान्त्र में भी पाचन का कार्य चलता रहता है। बृहदान्त्र में उपस्थित उण्डुक जिसका कार्य पाचित भोजन को वापिस क्षुदान्त्र में न जाने देना और इसमें आने वाला पाचित आहार मलरूप में ही होता है। बड़ी आंत मे पाचन के रूप में सिर्फ आहार में उपस्थित जलियांश को सोखना होता है। अर्थात इस आंत में सिर्फ जलियांश का ही पाचन होता है।
7 गुदनलिका / Anal Canal
गुदनलिका बृहदान्त्र का अंतिम भाग होता है। इसकी लम्बाई 2.5 से 3.8 सेमी. तक होती है। इसका कार्य मलाशय को गुदाद्वार से जोड़ना होता है।
8 गुदा या गुदद्वार / Anus
आहार नाल का यह अन्तिम अंग होता है। पाचित और अवशोषित आहार का जो मल भाग होता है उसे शरीर से बाहर निकालने का कार्य गुदा के द्वारा किया जाता है।
सहायक अवयव
पाचन तंत्र में आहार नाल के अलावा सहायक अवयव भी प्रमुख कार्यकारी अवयव होते हैं। इनका कार्य आहार के पाचन में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सहायता करना होता है। सहायक अंगो में पिताशय, अग्नाशय और यकृत अंग आते हैं। जिनका कार्य भोजन के पाचन में सहायता करना होता है। इनसे निकलने वाले स्राव ही पाचन तंत्र को सक्रिय बनाते हैं।
1 पित्ताशय / Gall Bladder
यकृत के ठिक निचे एक नाशपाती की आकृति का थैलिनुमा अवयव है। इसकी लम्बाई 3 से 4 सेमी तक तथा चैड़ाई 1 इंच होती है। यकृत में निर्मित पित्तरस का संचय पित्ताशय में ही होता है। इसकी द्रव जमा करने की क्षमता 36 मि.ली तक होती है। इसके तीन भाग होते हैं। सबसे नीचे का भाग पिताशय बुध्न, पिताशय ग्रीवा और उपर का भाग पिताशय काय कहलाता है। पाचन तंत्र में पिताशय का कार्य पाचन के समय पित रस को जमा करना और पाचन क्रिया के दौरान आहार में पितरस का स्रावण करना होता है।
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2 अग्नाशय / Pancreas
यह हथौड़े के आकार की एक ग्रन्थी होती है। जो पीत-धूसर और हल्के गुलाबी रंग की होती है। अग्नाशय का भार 60 से 90 ग्राम होता है और लंबाई 12.5 सेमी एवं चैड़ाई 5 सेमी होती है। आहार को पचाने और शरीर मे शर्करा के स्तर को बनाये रखने के लिए अग्नाशय एवं इसकी बीटा कोशिकाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
3 यकृत / Liver
यह शरीर की सबसे बड़ी ग्रन्थी होती है जो रक्ताभ धूसर रंग की होती है। इसका निर्माण कई छोटे-छोटे खण्डो से मिलकर होता है। प्रत्येक खंड में यकृत कोशिकाओं की एक श्रंखला होती है, जिनके बीच में कोशिकाऐं रहती है। यकृत आहार में उपस्थित वसा, प्रोटिन व कार्बोहाईड्रेट के चयापचय का कार्य करती है। पाचन तंत्र मे इसका मुख्य कार्य पीतरस का निर्माण करना होता है। जिसके माध्यम से आहार का पाचन सरलता से हो सके। आहार में उपस्थित हानिकारक पदार्थो को छांटकर शरीर से बाहर निकालना भी होता है।
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