Swarna Bhasma in Hindi: आज इस लेख में हम स्वर्ण भस्म के उपयोग के बारे में बताएंगे। जी हाँ, हम उसी स्वर्ण अर्थात सोने के बारे में बात कर रहे हैं जिसका सामाजिक जीवन में बहुत महत्व है परंतु सामाजिक जीवन के साथ-साथ शारीरिक व्याधि दूर करने में भी यह बहुत महत्व रखता है।
आयुर्वेद में इस सोने/स्वर्ण से अनेक प्रकार की दवाईयां बनायी जाती है जो अनेक रोगों में उपयोग की जाती है। इसी सोने से भस्म भी बनाई जाती है जो स्वर्ण भस्म के नाम से जानी जाती है। स्वर्ण भस्म में मृतप्राय रोगी को भी जीवन शक्ति प्रदान करने की अद्भुत शक्ति पाई जाती है।
दिल को ताकत (Strengthen Heart) पहुंचाने वाली औषधियों में स्वर्ण भस्म का सर्वप्रथम स्थान है। इसके साथ-साथ स्वर्ण भस्म राजयक्ष्मा (Tuber Culosis), पुरानी बुखार, स्नायु दौर्बल्य, संग्रहणी और नपुंसकता (Erectile dysfunction) आदि अनेक रोगों में भी बहुत उपयोगी है। तो चलिए जानते हैं कि दवाई बनाने के लिए किस प्रकार का सोना या स्वर्ण उपयोग में लिया जाता है |
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स्वर्ण का परिचय | Introduction of Gold 🤩
जो सोना तपने पर लाल (सुर्ख) हो जाए कसोटी के ऊपर कसने से केसरिया रंग का हो जाए, जिसमें तांबे और चांदी का अंश न मिला हो और जो स्निग्ध (चिकना), नर्म तथा भारी हो ऐसा सोना भस्म बनाने के लिए उत्तम होता है अर्थात दवाई बनाने के लिए उपयोग में लिया जाता है।
कौनसा स्वर्ण दवा बनाने के लिए प्रयोग होता है
- जिस सोने का विशिष्ट गुरुत्व 19.4 हो |
- द्रवणान्क 1064 सेल्सियस डिग्री हो |
- आयुर्वेद अनुसार 100 टंच सोना ही स्वर्ण भस्म बनाने के लिए उत्तम माना जाता है
स्वर्ण की शोधन विधि | Gold Purification Method for Making Swarna Bhasma in Hindi🌟
चट्टानों तथा खानों में मिलने वाला सोना /स्वर्ण औषधि बनाने के लिए उपयुक्त नहीं होता है इसके लिए पहले स्वर्ण का शोधन किया जाता है जिससे वह दवाई या औषधि बनाने के योग्य हो जाए। औषधि बनाने के योग्य होने पर ही उसे रसायन शाला में काम में लिया जाता है।
सोने को शोधन करने के कई तरीके हैं | यहाँ हम आपको दो विधियों के बारे में बता रहें है जिनका प्रयोग अधिकतर स्वर्ण शोधन में किया जाता है |
1. रसतरंगिणी के अनुसार सोने के शोधन की प्रथम विधि:-
स्वर्ण के पतले – पतले पत्रों को लेकर कैंची से काटकर इनके बहुत छोटे-छोटे टुकड़े बना ले। अब इन टुकड़ों से मिट्टी लिप्त किये कांच के पात्र में रखकर इस पात्र को त्रिपादिका पर रखकर इसके नीचे सुरादीपक जलायें और पात्र में थोड़ा-थोड़ा करके लवण युक्त द्रव और लवण युक्त द्रव से चौथा हिस्सा शोरका द्रव तब तक डाले जब तक संपूर्ण स्वर्ण/सोना(gold) गल न जाए।
Gold के अच्छी तरह गल जाने के बाद फिर इसको और पकाएं जिससे द्रव की अधिकता कम हो जाए। अब इसी पात्र में थोड़ा जल डालकर पकाएं। इसके अनन्तर इसमें थोड़ा-थोड़ा करके चणकाम्ल (oxalic Acid) तब तक डालें। जब तक कि स्वर्ण के अति सूक्ष्म कण कांच के पात्र के तल में ना बैठ जाए।
अब इसको अग्नि से अलग करके स्वर्ण के कणों को सावधानी से जल में तब तक धोए जब तक कि उनमें अम्लता रहे। अम्लता खत्म होने के बाद इन कणों को सुखाकर रख ले। यह शुद्ध स्वर्ण तैयार है। इसे किसी भी प्रकार की भसम या रस बनाने के लिए उपयोग में लिया जा सकता है।
सोने के शोधन की द्वितीय विधि:-
दूसरी विधि अनुसार सोने के सूचि वेध पत्रों को कैंची से काटकर बहुत छोटे – छोटे टुकड़े कर लिए जाते है | इन टुकड़ों को मिटटी लिप्त किये गए कांच के पात्र में रख कर इस पात्र को त्रिपादिका पर रख कर इसके निचे सूरादीपक जलाया जाता है | इसके बाद इस स्वर्ण युक्त पात्र में थोडा – थोड़ा करके लवण द्रव्य और लवण द्रव्य से चतुर्थांश शोरकद्रव्य तब तक डाला जाता है | जब तक सोना गल न जाये |
अच्छी तरह गल जाने के बाद फिर इसको और पकाया जाता है ताकि द्राव की अधिकता कम हो जाये | इसके साथ ही इसमें Oxalic Acid तब तक डाला जाता है जब तक सोने के कण कांच के पात्र में निचे नहीं बैठ जाते |
अब इसे अग्नि से प्रथक करके स्वर्ण के कणों को सावधानी से जल से तब तक धोएं जब तक कि उनमे अम्लता रहे | इसके पश्चात इन कणों को सुखाकर रख लिया जाता है | यह शुद्ध स्वर्ण कहा जाता है |
स्वर्ण भस्म कैसे बनाई जाती है ? | Method of Making Swarna Bhasma in Hindi
स्वर्ण भस्म बनाने के लिए विशुद्ध स्वर्ण के सूचिवेध पत्रों को खरल में डाल उसमे संभाग शुद्ध पारद मिला, तीन दिन तक निम्बू के रस में मर्दन कर जल से अच्छी तरह धो लिया जाता है | अब इसमें सोने से आधा भाग श्वेतपाषाण (संखिया) का चूर्ण मिलाकर जम्बीरी निम्बू के रस में तीन दिन तक मर्दन करके द्रवभाग को सुखा कर चूर्ण करलें |
अब इस चूर्ण में स्वर्ण के बराबर भाग शुद्ध गंधक मिलाकर सम्पुट में बंद कर लघुपुट दिया जाता है | इस प्रकार तब तक पुट दिया जाता है | जब तक चन्द्रिका रहित भस्म तैयार न हो जाये | निश्चंद्र भस्म होने पर इसको कचनार की छाल के स्वरस की भावना देकर तीन पुट दिया जाता है | (पुट क्या होते हैं और पढ़ें)
इस तरह से स्वर्ण भस्म का निर्माण होता है | इस विधि से निर्मित भस्म का रंग पके हुए जामुन के रंग की तरह होती है | स्वर्ण भस्म बनाने की इसके अलावा भी अन्य दो विधियाँ है |
स्वर्ण भस्म के स्वास्थ्य उपयोग | Uses of Swarna Bhasma in Hindi🤹
यह भस्म स्निग्ध, मधुर, थोड़ी तिक्त, शीतवीर्य और रसायन गुणवाली है | पाककाल में मधुर, वृहन, हृद्य और स्वर शुद्धिकारक है | स्वर्ण भस्म प्रज्ञा, वीर्य, स्मृति, कांति और औज को बढ़ाने वाली है | इस भस्म के निम्न रोगों में चिकित्सकीय उपयोग किया जाता है –
- राजयक्ष्मा (Tuberculosis)
- धातुक्षीणता
- जीर्ण ज्वर (chronic fever)
- मंदज्वर (fever)
- त्रिदोष (Tridosha)
- मस्तिष्क की दुर्बलता (Brain weakness)
- पुराना श्वास (Asthma)
- कास (Cough)
- दाह / जलन (Burn)
- पित्त रोग
- विषविकार
- आँखों की कमजोरी (eye weakness)
- प्रदर (leucorrhoea)
- नपुंसकता (erectile dysfunction)
स्वर्ण भस्म के फायदे | Benefits of Swarna Bhasma in Hindi
👉क्रोनिक बिमारियों में फायदेमंद: स्वर्ण भस्म असाध्य एवं जीर्ण बिमारियों में विशेष फायदेमंद है | इसके सेवन से कष्टसाध्य रोगों में लाभ मिलता है | जो रोग असाध्य अवस्था में पहुँच जाता है उन सभी रोगों में स्वर्ण एवं हीरा भस्म अच्छा लाभ देती है |
👉कैंसर में फायदेमंद: स्वर्ण भस्म शरीर को बल देने एवं असाध्य रोगों को ठीक करने के लिए विशेषकर लाभकारी है | कैंसर की समस्या में भी इस भस्म का प्रयोग आयुर्वेदिक वैद्यों द्वारा करवाया जाता है |
👉रोगप्रतिरोधक क्षमता बढाती है स्वर्ण भस्म: स्वर्ण भस्म को उत्तम Immune Booster दवा माना जाता है | यह शरीर में रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाकर रोगों से लड़ने की शक्ति का संचार शरीर में करती है | जिसकी वजह से संभावित रोगों से बचा जा सकता है |
👉हृदय रोगों में फायदेमंद: स्वर्ण भस्म में एसे तत्व मिलते है जो हृदय को बल देने एवं रोगमुक्त करने में विशेष लाभकारी है |
👉धातुदुर्बलता में फायदेमंद: आयुर्वेद अनुसार शरीर में 7 धातुएं होती है | धातु शरीर को धारण करने का कार्य करती है | अगर धातुएं कमजोर होंगी तो शरीर का वर्द्धन अच्छे से नहीं होता एवं रोगों से ग्रषित हो जाता है | इस स्थिति में स्वर्ण भस्म का प्रयोग करने से धातुक्षीणता दूर होती है |
👉आँखों की कमजोरी में फायदेमंद: स्वर्ण भस्म आँखों की कमजोरी में भी फायदेमंद है | इसका प्रयोग करने से आँखों की रोशनी बढती है एवं आँखों के अन्य रोगों में भी लाभ मिलता है |
👉यौन विकारों में फायदेमंद है स्वर्ण भस्म: यौन विकारों में जैसे शीघ्रस्खलन, स्वप्नदोष एवं इरेक्टाइल डिसफंक्शन में स्वर्ण भस्म के सेवन से लाभ मिलता है |
स्वर्ण भस्म के सेवन की विधि एवं मात्रा | Dosage of Swarna Bhasma in Hindi
आयुर्वेद अनुसार आधा रति (62.5 mg) की मात्रा में स्वर्ण भस्म को लिया जाता है | अनुपान स्वरुप शहद, मक्खन, मलाई, गिलोय सत्व, एवं च्यवनप्राश आदि का प्रयोग किया जाता है | इस औषधि का प्रयोग बिना वैद्य सलाह नहीं करना चाहिए | वैद्य सलाह अनुसार निर्देशित मात्रा में सेवन करने से स्वर्ण भस्म अधिक लाभदायक साबित होती है |
बिना चिकित्सकीय सलाह लेने से संभावित नुकसान भी हो सकते है | अत: निर्धारित मात्रा में ही सेवन करें |
विभिन्न रोगों में स्वर्ण भस्म का प्रयोग कैसे करें? (अनुपान)
रोग का नाम | कैसे प्रयोग करें |
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वातप्रकोप युक्त ज्वर (Fever) | स्वर्ण भस्म को रससिंदूर में पीसकर बेल की छाल के स्वरस के साथ प्रयोग करना चाहिए |
पित्तज्वर | स्वर्ण भस्म में रससिंदूर मिलाकर पित्तपापड़ा के स्वरस के साथ |
सभी अन्य ज्वर (बुखार) | स्वर्ण भस्म को रससिंदूर में मिलाकर तुलसीपत्र स्वरस में मिलाकर सेवन करना चाहिए |
एनीमिया रोग (Anemia) | गुर्च सत्व, स्वर्ण भस्म और लौह भस्म सभी को मिलाकर शहद के साथ प्रयोग करें |
राजयक्ष्मा (Tuberculosis) | स्वर्ण भस्म, अभ्रक भस्म, रससिंदूर और मुक्तापिष्टी सभी को शहद के साथ |
गर्भधारण के लिए (Pregnancy) | नागकेशर चूर्ण में स्वर्ण भस्म मिलाकर ऋतुकाल में सेवन करना चाहिए |
स्मरणशक्ति की वृद्धि के लिए (Memory) | बच, गिलोय, सोंठ एवं शतावरी चूर्ण के साथ स्वर्ण भस्म मिलाकर सेवन किया जाता है |
अंडकोष की सुजन (Testicular Swelling) | स्वर्ण भस्म में समभाग कज्जली और पुनर्नवा चूर्ण मिलाकर गोमूत्र के अनुपान से |
श्वांस रोग (Asthma) | सोंठ चूर्ण के साथ स्वर्णभस्म मिलाकर सेवन करना चाहिए |
धन्यवाद |