वात नाशक 10 आयुर्वेदिक औषधि | Ayurvedic Aushdhi for Vata Dosha in hindi

वात नाशक आयुर्वेदिक औषधि: आज की जीवन शैली में हर कोई मनुष्य वात यानी शरीर में भरने वाली गैस के कारण परेशान है। क्योंकि शरीर में जब वायु अत्यधिक बढ़ जाती है तो यह अनेक रोगों को पैदा करती है । आयुर्वेद में अनेक वात नाशक आयुर्वेदिक औषधि और योग के बारे में बताया गया है जो शरीर में वायु को भरने ही नहीं देते और यदि वायु भर भी जाय तो हम इन औषधियों का प्रयोग करके वात से छुटकारा पा सकते हैं ।

तो चलिए आज हम यहां आपको वात नाशक आयुर्वेदिक औषधियों के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे जो आपके शरीर में बढ़ी हुई वात को खत्म कर देंगे। दवाओं के अलावा भी योग के माध्यम से भी वात को बढ़ने से रोका जा सकता है |

वात नाशक आयुर्वेदिक औषधि

आयुर्वेद के अनुसार शरीर में तीन प्रकार के दोष होते हैं। वात, पित्त और कफ इन तीनों में वात दोष प्रधान होता है।

“पित्त पंगु कफ पंगु पंगवो मलधातव: ।
वायुना यत्र नीयन्ते गच्छन्ति तत्र मेघवत “।।

अर्थात शरीर की सभी प्रकार की क्रियाओं के संपादन में वात दोष का सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता है। जैसे बादल बिना वायु के गति नहीं कर सकते उसी प्रकार शरीर में वात दोष ही पितृ व कफ दोष और मल व धातुओं के कार्य में सहायक होता है ।

वात दोष क्या है? | What is Vata Dosha

वायु को ही वात के रूप में मानते हैं। वात का अर्थ है गति करना। सृष्टि में सभी क्रियाएं गति पर ही आधारित है या यूं कहें कि गति के बिना जीवन संभव नहीं हैं । शरीर में सभी प्रकार की गति वायु के कारण ही होती है। वैसे तो संपूर्ण शरीर में ही वात रहती है फिर भी पक्वाशय में मुख्य रूप से वात का स्थान माना गया है। जब यह वात अर्थात वायु सम अवस्था में रहती है तो शरीर को धारण करती है और जब यह अपनी सामान्य अवस्था से अधिक बढ़ जाती है तो यह रोगों का कारण बनती है इसे ही वात दोष कहते हैं।

वात बढ़ने के कारण व लक्षण | Symptoms and Cause of Vata Dosha

वात क्या है यह जानने के बाद अब हम यह जानेंगे की वात किन कारणों से बढ़ती है और वात बढ़ने के बाद कौन-कौन से लक्षण हमारे शरीर में दिखाई देते हैं तो चलिए जानते हैं वात बढ़ने के कारण व लक्षण_

वात वृद्धि के कारण:

  • मल व मूत्र के वेग को रोक कर रखना।
  • रात को देर तक जागना।
  • खांसी व छीकं के वेग को रोकना।
  • अधिक भोजन करना व पहले खाए हुए भोजन का पाचन न होने पर भी फिर से भोजन करना।
  • सवारी करते समय अधिक झटके लगना।
  • बासी भोजन ग्रहण करना।
  • मसाले व तले – भुने भोजन का अधिक सेवन करना।

आदि अनेक कारणों के कारण शरीर में वायु बढ़ जाती है जो बाद में वह दोष का रूप ले लेती है। वायु बढ़ने के बाद शरीर में अनेक लक्षण उत्पन्न होते हैं जो इस प्रकार हैं

वात की वृद्धि के लक्षण:

  • वाणी में कर्कशता होना।
  • गर्म आहार व विहार की इच्छा होना।
  • इंद्रियों में दुर्बलता होना ।
  • मल का गाढ़ा व कठिन हो जाना।
  • रंग मे श्यामलता आना।
  • बल की कमी आना।

आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं।

वातनाशक आयुर्वेदिक औषधियाँ | Vat Nashak Ayurvedic Aushdhi in Hindi

अब तक हमें यह तो समझ में आ गया है कि वात क्या है, यह किस कारण से बढ़ती है और वात बढ़ने के बाद हमारे शरीर में क्या लक्षण दिखाई देते है तो चलिए अब हम वात को दूर करने के लिए आयुर्वेद की वातनाशक आयुर्वेदिक औषधि एवं योग के बारे में जानेंगे। तो चलिए जानते हैं वात नाशक आयुर्वेदिक औषधि के बारे में

चिंतामणि चूर्ण: वात रोगों के लिए वात चिंतामणि चूर्ण आयुर्वेद की सुप्रसिद्ध औषधि है। यह रस 80 प्रकार के वात रोगों के लिए उपयोगी है। इस चूर्ण का प्रयोग विभिन्न वात व्याधियों में वातनाशक औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है |

हिंग्वाष्टक चूर्ण: यह चूर्ण आयुर्वेद चिकित्सा की क्लासिकल औषधि है | यह वात व्याधियों एवं गैस की समस्या को दूर करने के लिए आयुर्वेद में प्रमुखता से प्रयोग होती है | इसमें हिंग, सून्ठी, लौंग, पिप्पली जैसे घटक द्रव्य है जो वात को बढ़ने से रोकते है | साथ ही कब्ज आदि समस्याओं में भी फायदा करती है |

अजमोदादी चूर्ण: जीर्ण आमवात की यह बहुत प्रभावी औषधि है | आमवात जैसा रोग वात विकृति के कारण पैदा होता है | इसे गठिया रोग के नाम से भी जानते है | यह वात नाशक आयुर्वेदिक औषधि वात की वृद्धि को दूर करती है एवं आमवात, कटिवात एवं वात वृद्धि के कारण शरीर में होने वाले दर्द से छुटकारा दिलाती है |

वज्रक्षार चूर्ण: समुद्री लवण, काला नमक, सैन्धव, सुहागा, कांच लवण एवं सज्जीक्षार जैसे घटकों से इस वातनाशक औषधि का निर्माण होता है | यह गैस बढ़ना अर्थात शरिर में वायु का बढ़ना, दीपन, पाचन एवं दर्द को दूर करने में लाभदायक है | अगर शरीर में वात अधिक बढ़ी हुई हो तो उसको खत्म करने के लिए निवाये जल के अनुपान से इसे लेना चाहिए |

स्वादिष्ट पाचन चूर्ण: यह वातनाशक आयुर्वेद की शास्त्रोक्त औषधि है | इसे दीपन एवं पाचन के लिए प्रयोग में लिया जाता है | स्वादिष्ट पाचन चूर्ण दीपन एवं पाचन गुणों के कारण वात नाशक भी है | यह वात वृद्धि में गुनगुने जल के साथ प्रयोग करने से लाभ मिलता है |

महारास्नादी क्वाथ: यह क्लासिकल आयुर्वेदिक काढ़ा ग्रुप की दवा है | इसमें रास्ना, अरंडी, देवदारु, कचूर, बच, अदुसे के पट्टे, सौंठ एवं हरड जैसी घटक द्रव्य है जो वात शामक होने के कारण इसे उत्तम आयुर्वेदिक वातनाशक औषधि साबित करते है | इस काढ़े का प्रयोग नित्य 10 मिली की मात्रा में सेवन करने से वात वृद्धि का रोग खत्म होता है |

महावात विध्वंसन रस: यह रस प्रकरण की शास्त्रोक्त दवा है | इसे वातविकार, शूल, कफ, ग्रहणी एवं अपस्मार रोग में प्रमुखता से प्रयोग में लिया जाता है | वात व्याधियों में महावात विध्वंसन रस का प्रयोग नित्य करने से जल्द ही वात वृद्धि का रोग शांत होता है |

अश्वागंधादी चूर्ण: यह विभिन्न प्रकार के वात रोगों में उपयोग होने वाली आयुर्वेद की सुप्रशिद्ध वात नाशक आयुर्वेदिक औषधि है | इसमें अश्वगंधा जड़ी – बूटी है जो वात व्याधियों में अच्छा कार्य करती है | यह दिमाग को शांत करने, तनाव, अपस्मार एवं वाटी व्याधियों में इस्तेमाल होता है |

वातकुलान्तक रस: यह विविध वातरोगों में उपयोग होने वाली क्लासिकल दवा है | इसे उत्तम वात नाशक आयुर्वेदिक औषधियों की श्रेणी में गिना जाता है | इसमें मनैशिला, नागकेशर, पारा, गंधक एवं जायफल जैसी काष्ठ एवं खनिज द्रव्य है जो वात नाशक का कार्य करते है | वात कुलान्तक रस की 1 – 1 गोली का सेवन वैद्य निर्देशानुसार करने से लाभ होता है |

वातगंजाकुश रस: यह उत्तम वात नाशक गुणों से युक्त आयुर्वेदिक रस प्रकरण की दवा है | इसमें रस सिंदूर, लौह भस्म, सुवर्णमाक्षिक भस्म, शुद्ध गंधक, शुद्ध हरताल, हरड, काकड़ासिंगी, सौंठ, कालीमिर्च, पीपल आदि घटक द्रव्य है | ये घटक द्रव्य अनेक वात व्याधियों को दूर करने का कार्य करते है | वातगंजाकुश रस का इस्तेमाल चिकित्सकीय सलाह से सुबह – शाम 1 – 1 गोली की मात्रा में करना चाहिए |

सामान्य सवाल – जवाब

वात नाशक आयुर्वेदिक औषधियों से सम्बंधित सामान्य पूछे जाने वाले सवाल जवाब

वात रोगों की आयुर्वेदिक दवा कौनसी है?

अश्वागंधादी चूर्ण, चिंतामणि चूर्ण, अजमोदादी चूर्ण एवं हिंग्वाष्टक चूर्ण आदि आयुर्वेदिक दवाएं वात रोगों में उपयोगी है |

शरीर में वात वृद्धि किस कारण से होती है?

मल-मूत्र को रोकने, रात्रि जागरण, बासी भोजन करने एवं अधिक मिर्च मसाले युक्त फ़ास्ट फ़ूड का इस्तेमाल करने से शरिर में वात रोग हो जाता है |

वात रोग में क्या खाना चाहिए?

वात वृद्धि में एसे भोजन को अपनाना चाहिए जो वात को संतुलित करें | घी, दूध, मावा, पनीर, मीठे फल, हरी पत्तेदार सब्जियां, गेंहू, तिल, नमकीन एवं मक्खन आदि को खाना चाहिए |

वात बढ़ने की पहचान क्या है?

वात रोग होने पर कब्ज, गैस, एसिडिटी, जोड़ों में दर्द, वाणी में कर्कशता, बैचेनी, चक्कर आना एवं शरीर में कमजोरी आ जाती है |

धन्यवाद |

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