ककोड़ा / कंकोडा / Spiny Gourd : – संस्कृत में इसे कर्कोटकी, पीतपुष्पा एवं महाजाली नाम से जानते है | यह जंगली औषधीय वनस्पति स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक है | ग्रामीण क्षेत्रों में जंगली ककोड़ा की सब्जी बना कर खाई जाती है | बरसात के मौसम में खेतों की मेड, खाली पड़ी जमीन, जंगल एवं पहाड़ी क्षत्रों में यह अपने आप उग आती है |
आयुर्वेद की द्रष्टि से भी यह अत्यंत स्वास्थ्यप्रद वनौषधि है जिसके पते, फल एवं जड़ का इस्तेमाल चिकित्सा कार्यों में किया जाता है | इसका प्रयोग मष्तिष्क विकार, पाइल्स, शुगर एवं गांठों के उपचार में किया जाता है | आज इस आर्टिकल में हम आपको आयुर्वेद की द्रष्टि से ककोड़ा के स्वास्थ्य लाभ, इसके पौषक तत्व, गुण धर्म एवं औषधीय प्रयोगों के बारे में बताएँगे |
चलिए सबसे पहले ककोड़ा का विभिन्न भाषाओँ में नाम जाल लेते है |
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ककोड़ा के विभिन्न भाषाओँ में नाम
इसे अंग्रेजी में Spine Gourd कहते है | ककोड़ा का वानस्पतिक नाम Momordica Dioica Roxb. ex Wild. है एवं इसका कुल CUCURBITACEAE है | यहाँ हमने देशी भाषाओँ में इसे किस – किस नाम से पुकारा जाता है उसके बारे में बताया है :
संस्कृत – कर्कोटकी , कर्कोटक, पीतपुष्पा एवं महाजाली |
हिंदी – खेकसा, ककोड़ा, कंकोडा, ककोरा आदि
गुजराती – कांटोला |
तेलुगु – आगाकर |
तमिल – एगारवल्ली |
बंगाली – बोनकरेला |
नेपाली – चटेल , कन्न, करलीकाई, युलूपावी, पलुपपाकाई |
पंजाबी – धारकरेला |
मराठी – कर्तोली, कंतोलें |
मलयालम – वेमपलव आदि
वानस्पतिक परिचय – यह भारत के सभी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बरसात के मौसम में पनपने वाली वनस्पति है | इसके फलों का प्रयोग साग – सब्जी के रूप में किया जाता है | इसकी सब्जी के स्वास्थ्य लाभों को देखते हुए एवं बाजार में मांग होने के कारण अब इसकी व्यावसायिक खेती भी की जाने लगी है |
ककोड़ा की लता दुर्गन्धयुक्त होती है जिसका काण्ड पतला, पते चौड़े अंडाकार हृदय के आकर के होते है | इसके फुल पीले रंग के दूर से ही दिखाई दे जाते है | लता पर जुलाई से अक्टूबर तक फुल एवं फल लगते है | पतों का प्रयोग विभिन्न रोगों की चिकित्सा में किया जाता है एवं फल का प्रयोग अधिकतर साग बनाने में करते है |
इसकी जड़ गाजर के समान मोटी एवं लम्बी होती है जिसका प्रयोग भी आयुर्वेद चिकित्सा में चिकित्सार्थ किया जाता है |
रासायनिक संगठन
कच्चे ककोड़ा में एस्कोर्बिक अम्ल, निआसिन, राइबोफ्लेविन, थाइमिन, खनिज लवण, लौह, कार्बोहाइड्रेट्स, विटामिन A, एवं मैंगनीज पाया जाता है | इसीलिए इसे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत स्वास्थ्यप्रद साग – सब्जी माना जाता है | इसके पंचांग में B – कैरटिन, लिनोलिक अम्ल, अलईक अम्ल आदि मिलते है |
ककोड़ा के औषधीय गुण धर्म
- यह स्वाद में कटु, मधुर एवं तिक्त होता है | ककोड़ा की तासिर गरम होती है अर्थात यह उष्ण वीर्य होता है | गुणों में लघु, त्रिदोषशामक, अग्निदीपक (भूख बढ़ाने वाला) एवं रक्तपित्त को दूर करने वाला होता है |
- यह कुष्ठ, भूख न लगने, श्वास, खांसी, बुखार, टीबी, शूल (दर्द), पेट के कीड़े एवं विष को ख़त्म करने वाला है |
- इसका फल कटु, दीपन एवं पाचन गुणों से युक्त होता है | जिसका प्रयोग साग – सब्जी बना कर किया जाता है |
- ककोड़ा की जड़ खुनी बवासीर में पीसकर चूर्ण बना कर खिलाई जाती है |
- पते रुचिकारक, वीर्यवर्द्धक एवं त्रिदोषशामक होते है अर्थात शरीर में तीनों दोषों का शमन करते है |
- साथ ही ककोड़ा जीवाणुरोधी भी होता है | अत: कृमि विकारों में लाभदायक होता है |
- इसका फुल कुष्ठ रोग में फायदेमंद होते है |
ककोड़ा के औषधीय प्रयोग एवं फायदे
Spiny Gourd विभिन्न रोगों में चिकित्सार्थ प्रयोग किया जाता है | यहाँ हम इसके औषधीय प्रयोग एवं होने वाले स्वास्थ्य लाभों के बारे में बता रहे है | ककोड़ा मष्तिष्क विकार, सिरदर्द, बवासीर, श्वांस रोग, अरुचि एवं यकृत के विकारों में प्रयोग करने से लाभ देता है | निम्न रोगों में इसके सेवन से फायदे होते है | चलिए जानते है कौनसे रोग में किस प्रकार से ककोड़ा का प्रयोग करना चाहिए
मष्तिष्क विकार – ककोड़े की जड़ को घी के साथ घिसलें | अब इस घीसे हुए घी में थोड़ी सी चीनी मिला दें | इस घी की एक से दो बूंद नस्य देने से मष्तिष्क विकार जैसे अपस्मार (मिर्गी) की समस्या ठीक हो जाती है |
कान के रोग – ककोड़े की जड़ को अच्छे से पिसलें और इसे घी में पका लें | इस घी को ठंडा होने के पश्चात कान में डालने से कान में होने वाले दर्द एवं मवाद से छुटकारा मिलता है |
बवासीर – ककोड़ा की जड़ को पहले भुन लें | इस भुनी हुई जड़ को महीन पीसकर चूर्ण बना लें | इस चूर्ण का सेवन करवाने से 500 मिग्रा की मात्रा में करवाने से खुनी बवासीर में लाभ मिलता है |
श्वास रोग – 1 से 2 ग्राम बाँझ ककोड़ा के कंद के चूर्ण में 4 नग काली मरीच चूर्ण मिलाकर जल के साथ पीसकर पिलायें तथा एक घंटे पश्चात 1 गिलास दूध पिलाने से कफ का नि:सरण होकर श्वास रोग में लाभ मिलता है |
खांसी – खांसी की समस्या में ककोड़े के कंद के चूर्ण का सेवन बहुत लाभदायक होता है | इसके 1 ग्राम कंद के चूर्ण को गुनगुने जल के साथ प्रयोग करने से खांसी में आराम मिलता है |
उदर रोग – अगर आंतो में संक्रमण है तो 1 से 2 ग्राम कर्कोटकी के मूल चूर्ण का सेवन करने से अरुचि एवं आँतों के संक्रमण में लाभ होता है |
पीलिया रोग – पीलिया होने पर ककोड़े की जड़ का स्वरस निकालकर 1 से 2 बूंद नाक में डालने से पीलिया में लाभ होता है | दुसरे प्रयोग में इसकी जड़ के चूर्ण का नस्य देने से एवं गिलोय पत्र को छाछ में पीसकर पिलाने से लाभ मिलता है |
आधे सिर का दर्द – सबसे पीड़ादाई होता है | इसमें आधे सिर में दर्द रहता है | ककोड़े की मूल को घाय के घी के साथ पकाकर एवं घी को छानकर इसका नस्य देने से आधे सिरदर्द की समस्या में राहत मिलती है |
बालों की समस्या – इसकी जड़ को जल में घिसकर प्रभावित बालों की जड़ों में लगाने से बाल मजबूत बनते है एवं कम टूटते है |
दाद-खाज एवं खुजली :- ककोड़े के पतों को मसल कर लुगदी जैसा बना लें | इस लुगदी को तेल में डालकर पकाएं | जब जल उड़ जाये तो तेल को छान कर इसका प्रयोग करने से दाद एवं खाज – खुजली में राहत मिलती है |
ककोड़े की सब्जी बनाकर सेवन करने से शरीर में त्रिदोष संतुलित होता है | बुखार जैसी समस्या से राहत मिलती है एवं शरीर को भरपूर बल मिलता है | यह सब्जी पाचन को सुधरती है |
सामान्य सवाल – जवाब / FAQ
ककोड़ा का वानस्पतिक नाम क्या है ?
इसका वानस्पतिक नाम Momordica Dioica Roxb. ex Wild. है | अंग्रेजी में ककोड़ा को Spiny Gourd के नाम से जानते है |
ककोड़ा की जड़ किस काम में आती है ?
ककोड़ा की जड़ खुनी बवासीर, सिरदर्द, बुखार, आंतो के संक्रमण एवं सर्पदंश के कारण आई हुई सुजन एवं दर्द में काम आती है |
ककोड़ा के पते किस काम आते है |
इसके पते त्वचा विकारों जैसे दाद, खाज एवं खुजली में काम आती है |
ककोड़ा के क्या नुकसान है ?
इसके कोई ज्ञात दुष्प्रभाव नहीं है |
ककोड़े की तासीर क्या होती है ?
इसकी तासीर गरम होती है अर्थात उष्णवीर्य है |
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