प्रसारिणी तेल (Prasarini Taila) : लंगड़ेपन की आयुर्वेदिक दवा

प्रसारिणी तेल कमजोर हाथ पांव और अन्य शारीरिक अंगो को शक्ति प्रदान करने एवं शरीर की कांति सुधारने वाली आयुर्वेदिक औषधि है | टूटी हुयी हड्डी, सुजन, उन्माद एवं मिर्गी जैसे रोगों में यह तेल बहुत उपयोगी माना जाता है | इसका उपयोग शरीर पर मालिश करने, नस्य कर्म एवं खाने के लिए भी किया जाता है |

इस तेल में मुख्य घटक प्रसारिणी होती है इसे गंध प्रसारिणी के नाम से भी जाना जाता है | भारत में यह देहरादून और बंगाल में ज्यादा होती है | प्रसारिणी एक बदबूदार लता होती है | इसमें एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी इन्फ्लेमेटोरी (सुजन कम करने वाली) गुण होते हैं | इसलिए इसका उपयोग अस्थि विकारों जैसे आर्थराइटिस, शोथ, अस्थिभंग एवं अपस्मार आदि के दवा के रूप में किया जाता है | राजस्थान में होने वाली खींप को भी प्रसारिणी की जगह उपयोग में लिया जा सकता है |

प्रसारिणी तेल क्या है / Prasarini Taila kya hai ?

यह आयुर्वेद में तेल प्रकरण की औषधि है | इसमें प्रमुख द्रव्य प्रसारिणी या खींप होती है | इस औषधि का उपयोग हड्डियों के विकार, आर्थराइटिस, शोथ, उन्माद जैसे विकारों में किया जाता है | प्रसारिणी तेल का उपयोग नस्य देने में, मालिश करने और खाने के रूप में किया जाता है | अपने विशिष्ट गुणों के कारण यह तेल हाथ पैरो की कमजोरी, चलने में समस्या जैसे विकारों में बहुत उपयोगी दवा का काम करता है | इस लेख में हम प्रसारिणी तेल के घटक, बनाने की विधि और फायदे के बारे में बतायेंगे |

प्रसारिणी तेल के घटक द्रव्य / Prasarini taila ingredients

खींप या गंध प्रसारिणी लता को इस तेल के मुख्य घटक के रूप में प्रयोग में लिया जाता है | इसके सभी घटक द्रव्य निम्न हैं :-

  • गंध प्रसारिणी या खींप
  • दही
  • मूर्छित तिल तेल
  • कांजी
  • गौदुग्ध
  • मुलेठी, पीपलामूल
  • चित्रक जड़, सेंधा नमक
  • बच, देवदारु
  • रास्ना, गजपीपल
  • भिलावा, सौंफ
  • जटामांसी, लालचंदन

प्रसारिणी तेल बनाने की विधि / Prasarini taila kaise banate hai

गंध प्रसारिणी के तेल को बनाने के लिए आप निम्न विधि का उपयोग करें :-

  • प्रसारिणी को पानी में अच्छे से उबाल लें |
  • जब पानी एक चौथाई शेष रह जाइये |
  • अब अन्य जड़ी बूटियों का कल्क बना इसमें मिला लें |
  • इस मिश्रण का अब विधिपूर्वक तेल बना लें |

प्रसारिणी तेल का उपयोग कैसे करें / How to use Prasarini taila ?

इस तेल का उपयोग नस्य, अनुवासन बस्ती, मालिश करने के लिए किया जाता है | वात दोष के कारण उत्पन्न अस्थि विकारों और चोट लगने या गिरने पड़ने से हड्डी टूट जाने पर इसकी मालिश करें और खाने में दें | अपस्मार, मिर्गी और उन्माद की समस्या में इससे नस्य कर्म करें |

प्रसारिणी तेल के फायदे

प्रसारिणी तेल के फायदे / Prasarini tel benefits

यह तेल रक्त और मांस को पुष्ट करने वाला और कमजोर अंगो (हाथ, पांव) को पुष्ट करने वाला है | इसकी मालिश करने से रक्त संचार सही से होता है | इस तेल से निम्न फायदे होते हैं :-

  • इस तेल की मालिश करने पर हाथ पैरो में ताक़त आती है |
  • यह सोजन कम करता है |
  • हड्डी टूट जाने पर इसका उपयोग करने पर जल्दी लाभ मिलता है |
  • आर्थराइटिस की समस्या होने पर इसकी मालिश करनी चाहिए |
  • यह तेल नस्य कर्म में भी उपयोग में लिया जाता है |
  • उन्माद और मिर्गी की समस्या में इसका उपयोग करने से जल्दी लाभ होता है |
  • अपस्मार की समस्या में भी प्रसारिणी तेल का उपयोग फायदेमंद रहता है |
प्रसारिणी तेल के घटक

नुकसान और सावधानियां / Prasarini tail side effects

इस तेल के सामान्यतः कोई दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिलते हैं |

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सन्दर्भ/ reference

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