Abhayarishta Syrup (अभयारिष्ट सिरप) Details in Hindi

अभयारिष्ट सिरप आयुर्वेद चिकित्सा की क्लासिकल मेडिसिन है | इसका निर्माण फर्मेंटेशन विधि द्वारा किया जाता है | यह पाचन विकारों एवं कब्ज के लिए सुप्रशिद्ध आयुर्वेदिक दवा है | जिन्हें कब्ज, अजीर्ण, अपच की शिकायत रहती है उन्हें इसका प्रयोग करना चाहिए | अभयारिष्ट विरेचक औषधि होते हुए भी जमालघोटे की तरह शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाती |

शास्त्रों में इसे अर्श (बवासीर), उदर रोग, अजीर्ण, अपच, मन्दाग्नि (भूख कम लगना), पेशाब की समस्या (कम आना), यकृत एवं हृदय विकारो में लाभदायक बताया गया है | मुख्य रूप से यह कब्ज को ख़त्म करने वाली आयुर्वेदिक सिरप है | इसे बवासीर की समस्या में प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है |

बवासीर एवं कब्ज के अलावा भी यह दवा बहुत से रोगों में प्रभावी है | आँतों की समस्या, मूत्र न लगना, भूख की कमी, अजीर्ण, अपच एवं यकृत रोग में अभयारिष्ट काफी प्रभावी आयुर्वेदिक दवा है | इसका सेवन वैद्य के परामर्श से बचे, बूढ़े एवं महिलाऐं सभी कर सकती है | गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन निषेद्ध बताया गया है |

अभयारिष्ट सिरप
अभयारिष्ट सिरप

इस आर्टिकल में हम अभयारिष्ट सिरप के बारे में सम्पूर्ण जानकारी आपको उपलब्ध करवाएंगे | कृपया पूरा लेख पढ़ें | तो चलिए जानते है सबसे पहले अभयारिष्ट में पड़ने वाली आयुर्वेदिक जड़ी – बूटियों के बारे में

अभयारिष्ट सिरप के घटक द्रव्य / Ingredients of Abhayarishta Syrup

क्रमांक घटक नाम वजन
01हरीतकी2400 Gram
02वायविडंग240 Gram
03महुआ के फुल240 Gram
04निशोथ48 Gram
05धाय फुल48 Gram
06दाख960 Gram
07इन्द्रायण की जड़48 Gram
08चव्य48 Gram
09मोचरस48 Gram
10दस्तीमूल48 Gram
11सौंठ48 Gram
12मोचरस48 Gram
13धनिया48 Gram
14गोखरू48 Gram
15गुड़2400 Gram
अभयारिष्ट सिरप

अभयारिष्ट सिरप बनाने की विधि / Preparation Method of Abhayarisht Syrup in Hindi

सिद्ध प्रयोग संग्रह के अनुसार हरीतकी, दाख, वायविडंग, महुए के फुल इन सब को जौकूट कर लिया जाता है | अब इस जौकुट को 24 लीटर जल में डालकर मन्दाग्नि पर क्वाथ का निर्माण किया जाता है | जब जल एक चौथाई बचे अर्थात लगभग 6 लीटर बचे तब इसे छान कर अलग रख लिया जाता है |

क्वाथ के ठन्डे होने के पश्चात इसमें उपरोक्त निर्देशित मात्रा में गुड़, गोखरू, निशोथ, धनिया, धाय के फुल, इन्द्रायण की जड़, च्वय, सौंफ, सोंठ, दंतिमुल एवं मोचरस इन सब का जौकुट चूर्ण करके मिलादिया जाता है | एवं इसे संधान पात्र में महीने भर के लिए निर्वात स्थान जहाँ सीधी धुप एवं हवा न लगती हो एसी जगह रखा जाता है |

एक महीने पश्चात संधान परिक्षण के माध्यम से परीक्षित करके छान कर तैयार अभयारिष्ट सिरप को सहेज लिया जाता है | इस प्रकार से अभयारिष्ट का निर्माण होता है |

अभयारिष्ट सिरप के फायदे या स्वास्थ्य लाभ / Health Benefits of Abhayarisht Syrup

यह अग्नि को प्रदीप्त करने वाली अर्थात भूख बढ़ाने वाली, अर्श रोग में उपयोगी, बवासीर में उपयोगी औषधि है | अभयारिष्ट को आयुर्वेद में उत्तम सारक, मूत्रल एवं पाचक औषधि माना है | चलिए जानते है अभयारिष्ट के विभिन्न रोगों में स्वास्थ्य उपयोग :-

बवासीर (अर्श) में अभयारिष्ट के फायदे

अर्श में यह अत्युतम आयुर्वेदिक औषधि है | यह कब्ज को तोडती है | कब्ज के कारण बवासीर में बहुत तकलीफ होती है | सबसे महत्वपूर्ण यह है कि यह कब्ज को तोडती है लेकिन जमालघोटे की तरह आंतो को नुकसान नहीं पहुंचती जिससे अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन नहीं होती | इसलिए अर्श में कठोर मल की समस्या को दूर करने एवं कब्ज से राहत पाने के लिए इसका उपयोग बहुत अधिक लाभदायक सिद्ध होता है |

यकृत के कार्य को सुचारू करने में फायदेमंद

liver

यकृत विकार में भी अभयारिष्ट लाभदायक है | इसे लीवर एवं किडनी दोनों के लिए लाभदायक माना जाता है | यह यकृत के ठीक ढंग से कार्य न करने पर उपयोग करवाने से यकृत सुचारू रूप से कार्य करता है | यह यकृत के शैथिल्य को नष्ट करने में कारगर दवा है | वैद्य के परामर्श से रोज रात्रि में सेवन करने से लाभ मिलता है |

कब्ज में लाभदायक

अभयारिष्ट सिरप

आयुर्वेद में इसे प्रमुख रूप से विरेचक औषधि के रूप में जाना जाता है | यह पुरानी से पुरानी कब्ज को भी कुछ समय के सेवन से ही तोड़ देती है | विरेचक औषधि होने के साथ – साथ दीपन एवं पाचन का कार्य भी करती है | कोष्ठबद्द्ता में अभयारिष्ट सिरप के साथ घी का सेवन और अधिक फायदेमंद साबित होता है | अगर तीव्र प्रकार की कब्ज है तो पहले घी का सेवन करके ऊपर से अभयारिष्ट सिरप का सेवन करने से स्नेहन होकर कब्ज आसानी से टूट जाती है एवं आंते सुचारू रूप से कार्य करने लगती है |

मलमूत्र शुद्धि में फायदेमंद

इस औषधि के सेवन से मलमूत्र शुद्धि उचित प्रकार से होती है | अगर पेशाब कम आता है तो इसके सेवन से अधिक मात्रा एवं अधिक बार लगता है | अग्निमंध्य दूर करती है | आंतो में विस्फोट एवं जल की वृद्धि नहीं होती | इस कारण ही कोष्ठ में बल की वृद्धि होती है एवं कब्ज की पुनरावृति नहीं बनती |

भूख बढाती है अभयारिष्ट सिरप

पेट दर्द की दवा

भूख न लगने या कम लगने को आयुर्वेद में अग्निमंध्य कहते है | अर्थात जब पेट की अग्नि कमजोर होगी तो भूख अपने आप कम हो जाएगी | यह पेट की अग्नि को बढाती है ; जिससे खुलकर भूख लगती है | अपच एवं अजीर्ण के कारण होने वाली कम भूख की समस्या भी इसके सेवन से ख़त्म हो जाती है |

अजीर्ण में पहले का अपक्व आहार रहता है जो समयांतराल के पश्चात सड़ने लगता है एवं कई प्रकार के रोग प्रकट करता है | इसमें अभयारिष्ट सिरप का सेवन करने से खाया पिया सब पचता है और सड़े हुए आहार को शरीर से बाहर निकलने का कार्य करती है |

अभयारिष्ट सेवन की विधि एवं सावधानियां

इसका सेवन 10 से 20 मिली की मात्रा में सामान मात्रा में जल मिलाकर सुबह – शाम सेवन किया जा सकता है | आमतौर पर यह पूर्णत: सुरक्षित दवा है | इसके सेवन से किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती | लेकिन दवा का सेवन उचित मात्रा एवं बलाबल अनुसार करना चाहिए |

गर्भवती महिलाओं एवं कमजोर बल वाले रोगियों को वैद्य के परामर्श से ही सेवन किया जाना चाहिए | मुख्य रूप से गर्भवती महिलाएं इसका सेवन न करें |

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