महालक्ष्मी विलास रस के उपयोग / Mahalakshmi Vilas Ras Uses in Hindi

महालक्ष्मी विलास रस आयुर्वेद चिकित्सा की बहुत ही विश्वनीय एवं प्रसिद्द दवा है | यह आयुर्वेद की शास्त्रोक्त दवा है जिसका वर्णन भैषज्य रत्नावली में प्राप्त होता है | यह मनुष्य की मांसपेशियों, फेफड़ो, नसल कैविटी, इन्द्रियों एवं पुरुष प्रजनन अंगो पर कार्य करने वाली रस – रसायन औषधि है |

यह फेफड़ों को मजबूती प्रदान करने में अहम् आयुर्वेदिक दवा है | पुराना कफज विकार जैसे श्वाँस, अस्थमा, टीबी, कफज बुखार आदि में प्रभावी चिकित्सकीय औषधि है | सामान्य तौर पर इसका उपयोग पुराने जुकाम एवं साइनस आदि रोगों के उपचार के लिए किया जाता है |

महालक्ष्मी विलास रस का निर्माण आयुर्वेद की विभिन्न भस्मों एवं जड़ी – बूटियों को मिलाकर किया जाता है | बाजार में यह पतंजलि महालक्ष्मी विलास रस, धूतपापेश्वर महालक्ष्मी विलास रस आदि फार्मेसियों की आसानी से उपलब्ध हो जाती है |

महालक्ष्मी विलास रस

यह दवा वटी रूप में अर्थात गोली के रूप में उपलब्ध है | यहाँ हमने भैषज्य रत्नावली (विनोदलाल सेन टिका) के अनुसार इसके घटक द्रव्यों की टेबल निचे उपलब्ध करवाई है देखें –

महालक्ष्मी विलास रस के घटक द्रव्य / Ingredients

क्रमांक घटक द्रव्य मात्रा
1. अभ्रक भस्म 48 ग्राम
2. शुद्ध गंधक 24 ग्राम
3. शुद्ध पारा 24 ग्राम
4.वंग भस्म 12 ग्राम
5.ताम्र भस्म 3 ग्राम
6. स्वर्ण माक्षिक भस्म 6 ग्राम
7. कपूर 24 ग्राम
8.जावित्री 12 ग्राम
9.जायफल 12 ग्राम
10.शुद्ध धतूरे के बीज 12 ग्राम
11.विधारे के बीज 12 ग्राम
12.स्वर्ण भस्म 6 ग्राम
13. पान का रस (घोंटने के लिए)

महालक्ष्मी विलास रस बनाने की विधि

इसे बनाने के लिए लगभग 12 प्रकार घटक द्रव्यों का इस्तेमाल किया जाता है | शुद्ध पारा एवं शुद्ध गंधक का इस्तेमाल भी किया जाता है | अत: सबसे पहले इन दोनों को मिलाकर कज्जली का निर्माण किया जाता है |

अच्छी तरह कज्जली बनने के पश्चात बाकि बची जड़ी – बूटियों एवं भस्मों को सभी को मिलाकर इस कज्जली में मिलाकर पान के रस में अच्छी तरह घोंट लिया जाता है |

अच्छी तरह घोंटकर 1 – 1 रति की गोलियां बना ली जाती है | इस प्रकार से महालक्ष्मी विलास रस का निर्माण होता है |

महालक्ष्मी विलास रस के उपयोग एवं गुण

यह दवा सन्निपातज जैसे भयंकर ज्वारों तथा वातज एवं कफज रोगों का शमन करने में उपयोगी है | इस रस रसायन प्रकरण औषधि का विशेष प्रभाव हृदय पर होता है | यहाँ निचे हमने इसके उपयोग एवं फायदों के बारे में विस्तृत रूप से बताया है |

हृदय रोग में महालक्ष्मी विलास रस के उपयोग

नाड़ी की गति क्षीण हो जाना, सम्पूर्ण शरीर का पसीने से तर हो जाना, हृदय तेज गति से धड़कना, रक्तवाहिनी शिराओं में रक्त की रूकावट, शरीर में कमजोरी के कारण चक्कर आना, आलस्य होना आदि विकारों में इस दवा को मोती पिष्टी या प्रवाल पिष्टी के साथ सेवन करवाने से इन हृदय विकारों से मुक्ति मिलती है |

यह दवा हृदय को बल प्रदान करती है | रक्त वाहिनियों की स्थिलता को दूर करती है | हृदय की तेज धड़कन को ठीक करती है |

ज्वर रोग में महालक्ष्मी विलास रस के फायदे

वात जनित एवं कफ जनित ज्वर रोग में इस दवा को श्रंग भस्म के साथ सेवन करवाने से यह त्रिदोषों को संतुलित करके ज्वर का अंत करती है | इसके साथ ही शरीर में ढीलापन, जोड़ो में दर्द होना, निद्रा, शरीर का भारी प्रतीत होना आदि विकारों में भी इसका उपयोग करवाया जाता है |

सुखी खांसी में उपयोग

सुखी खांसी अर्थात वात जनित खांसी में महालक्ष्मी विलास रस को शुद्ध टंकण भस्म या अपामार्ग क्षार के साथ शहद मिलाकर चटाने से खांसी से तुरंत राहत मिलती है | वात जनित खांसी में रोगी बहुत कमजोर हो जाता है | साथ ही कफ प्रकोप होने से अग्नि भी मंद हो जाती है | रोगी को कुच्छ भी अच्छा नहीं लगता उसका स्वाद बिगड़ जाता है |

एसे में यह दवा रोग को ख़त्म करके इसके उपद्रवों को शांत करने का कार्य करती है |

जलोदर रोग में महालक्ष्मी विलास रस

यकृत और प्लीहा की वृद्धि हो कर पेट में जल का संचय होकर यह रोग उत्पन्न हो जाता है | इस रोग में दिल बहुत ही कमजोर हो जाता है | रोगी का मन घबराता है; वह थोड़े से कार्य करने से ही थकन महसूस करता है | अधिक पसीना आता है | इसके अलावा पेट में दर्द, रक्त की कमी, हाथ पैर में सुजन एवं सिर भरी होना आदि उपद्रव होते है |

एसे में महालक्ष्मी विलास रस को पुनर्नवाषटक क्वाथ के साथ इसका उपयोग करवाया जाता है | यह जलोदर रोग एवं इसके उपद्रवों को शांत करने का कार्य करती है |

अन्य रोगों में उपयोग

  • न्युमोनिया रोग के साथ इन्फ्लुएंजा, खांसी, श्वास एवं बुखार आदि अभ्रक भस्म या गोदंती भस्म के साथ इसका उपयोग करवाया जाता है |
  • आंतो के विकारों को दूर करने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है | पाचन की कमजोरी के कारण आंते कमजोर हो जाती है | फिर ज्वर हो जाना, सम्पूर्ण शरीर में दर्द आदि उपद्रवो में महालक्ष्मी विलास रस के साथ शंख भस्म का प्रयोग फायदेमंद रहता है |
  • शारीरिक कमजोरी में जीवनीय शक्ति का ह्रास होना एवं निर्बल हो जाने पर भी इस दवा का उपयोग लाभदायक रहता है | यह मंडूर भस्म के साथ प्रयोग करने से निर्बलता दूर करके शरीर में नै शक्ति का संचार करती है |
  • प्रमेह रोग नपुंसकता, धातु विकार एवं महिलाओं के श्वेत प्रदर रोग में महालक्ष्मी विलास रस को 2 रति शिलाजीत एवं दूध के साथ सेवन करने से इन रोगों में लाभ मिलता है |
  • वात व्याधियों में दशमूल क्वाथ के साथ सेवन फायदेमंद है |

महालक्ष्मी विलास रस के नुकसान

इस आयुर्वेदिक दवा का उपयोग बैगर वैद्य परामर्श नहीं करना चाहिए | क्योंकि इसमें गंधक एवं पारा आदि द्रव्यों का इस्तेमाल किया गया है अत: गलत अनुपान एवं मात्रा में सेवन स्वास्थ्य के लिए नुकसान दाई साबित हो सकता है |

यह रस औषधि है अत: लम्बे समय तक अर्थात 2 से 3 सप्ताह से अधिक तक सेवन नहीं करना चाहिए |

सेवन विधि एवं मात्रा

इसका सेवन आयुर्वेदिक चिकित्सक के दिशा निर्देशों में 1 – 1 गोली सुबह शाम करना चाहिए | विभिन्न रोगों में इसका अनुपान भी भिन्न है | जैसे प्रमेह रोग में शिलाजीत एवं दूध के साथ सेवन करवाया जाता है | टीबी में चौंसठ प्रहरी पीपल और शहद के साथ | शारीरिक कमजोरी में बल वर्द्धन के लिए मक्खन एवं मिश्री के साथ सेवन करवाया जाता है |

बाजार में यह पतंजलि महालक्ष्मी विलास रस, धूतपापेश्वर, बैद्यनाथ आदि कंपनियों की आसानी से उपलब्ध हो जाती है | लेकिन बैगर वैद्य परामर्श इनका सेवन नहीं करना चाहिए |

धन्यवाद |

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