अपामार्ग क्षार – चिरचिटा / लटजीरा अर्थात अपामार्ग औषधीय पौधे से बनने वाला क्षार है | आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में क्षार कल्पना भी औषध निर्माण की एक विधि है | इसमें औषधीय पौधों से क्षार का निर्माण किया जाता है |
यह क्षरणकर्म करने में सक्षम औषधि होती है अर्थात क्षार कल्पना की दवाएं त्वचा, मांस आदि का क्षरण (काटना) करती है |
आचार्य चरक ने क्षार की रसों में गणना न करके इसे द्रव्य कहा है | क्योंकि किसी भी पौधे के क्षार में विभिन्न रस (स्वाद) विद्यमान होते है |
आचार्य चक्रपाणी के अनुसार जो निचे की ओर गमन करे उसे क्षार कहते है | यह दूषित मांस आदि को काट – काट कर अधोमार्ग से शरीर से बाहर निकलता है | यह क्षार कल्पना की दवाओं का गुण होता है |
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अपामार्ग क्षार क्या है ?
चिरचिटा या लटजीरा जिसे अपामार्ग भी कहते है | इस जंगली वनस्पति पौधे के सभी अंगो को जलाकर राख तैयार की जाती है, इस राख से फिर क्षार निर्माण विधि से तैयार की जाने वाली दवा को अपामार्ग क्षार कहते है | यह क्रोनिक अस्थमा, पेटदर्द, पत्थरी एवं गुल्म जैसे रोगों में काम आती है |
प्रयोज्य अंग
इसके निर्माण में अपामार्ग पौधे के सभी अंगों (पंचांग) का प्रयोग किया जाता है –
- अपामार्ग की जड़
- अपामार्ग का तना
- अपामार्ग के फुल
- अपामार्ग के फल
- अपामार्ग की पतियाँ
अपामार्ग क्षार कैसे बनता है ?
सर्वप्रथम अपामार्ग क्षार बनाने की विधि जानने से पहले यह जानना जरुरी है कि इस क्षार का निर्माण करने के लिए लटजीरा के सूखे पंचांग का इस्तेमाल किया जाता है |
सबसे पहले इसके शुष्क पंचांग को 1किलो की मात्रा में लिया जाता है | अब इसे लौहे की कडाही में डालकर अग्नि पर कडाही को गरम करके जला लिया जाता है | इस प्रकार से अपामार्ग की भस्म निर्माण हो जाती है |
इस भस्म को 4 लीटर जल में भिगोकर रात भर के लिए रख दिया जाता है | दुसरे दिन प्रात: काल साफ जल को निथार कर सूती वस्त्र से छान लिया जाता है |
अब स्वच्छ जल को कडाही में डालकर पकाया जाता है | जब पंक्वत गाढ़ा हो जाये तो इसे आंच से उतारकर धुप में सुखाया जाता है |
पूरी तरह सूखने पर बर्तन के पेंदे में सफ़ेद रंग का पाउडर जमा मिलता है जिसे अच्छी तरह से संगृहीत कर लिया जाता है |
यह सफ़ेद वर्ण का पाउडर ही अपामार्ग क्षार कहलाता है | इस प्रकार से अपामार्ग क्षार का निर्माण होता है |
अपामार्ग क्षार के गुण
अर्थात यह तीक्षण होता है | इसका प्रयोग श्वास, गुल्म, पेटदर्द आदि रोगों का नाश करने के लिए किया जाता है | आयुर्वेद के अनुसार यह बाधिर्य नाशक औषधि है |
अपामार्ग क्षार के फायदे
यह गरम तासीर की दवा है, इसलिए कफज विकारों में काफी फायदेमंद साबित होती है | इससे श्वास, खांसी एवं जमे हुए कफ में आराम मिलता है | इसका प्रयोग बाह्य लेप के रूप में एवं आन्तरिक दवा के रूप मे दोनों प्रकार से किया जाता है |
- पुराने दमा या श्वास रोग में इसका प्रयोग फायदेमंद रहता है | यह फेफड़ों की सफाई करती है एवं जमे हुए कफ को निकाल कर श्वसन को सुचारू करती है | श्वांस रोग में इसका प्रयोग शहद के साथ किया जाता है | चिकित्सक निर्देशित मात्रा 125 mg से 250 mg को शहद के साथ मिलकर सेवन करना चाहिए |
- सफ़ेद दाग में इसका प्रयोग लेप के रूप में करना अत्यंत लाभदायक होता है | शुद्ध मन:शिला के साथ इसका लेप बना कर प्रभावित जगह पर लगने से जल्द ही सफ़ेद दाग से छुटकारा मिलता है |
- कान से कम सुनना – में अपामार्ग क्षार से सिद्ध किये गए तेल को कान में डालना लाभदायक है | यह बधिरता की समस्या में फायदेमंद दवा है |
- अर्श या जीर्ण लिंगार्श में समभाग हरताल एवं जल के साथ मिलाकर लेप करना फायदेमंद है |
- पेटदर्द में त्रिफला चूर्ण के साथ सेवन करवाना लाभदायक है |
- गुल्म एवं प्लीहा रोग में त्रिकटू चूर्ण व सैन्धव नमक के साथ सेवन करवाने से फायदा मिलता है |
- पत्थरी में भी अपामार्ग क्षार अत्यंत लाभदायक है | यह अपने क्षरण गुण यानी काटने के गुण के कारण पत्थरी में काफी फायदेमंद औषधि साबित होती है | पत्थरी या पेशाब की रूकावट में इसके साथ यवक्षार मिलाकर सेवन करवाया जाता है |
- पेट में आफरा आने पर गरम जल के साथ इसका प्रयोग लाभदायक है |
- भूख न लगने एवं अरुचि जैसी सम्स्य में अपामार्ग क्षार को त्रिकटु चूर्ण के साथ गुनगुने जल के साथ सेवन करवाया जाता है |
- त्वचा विकारों में लेप के रूप में प्रयोग करवाया जाता है |
सेवन विधि
यह क्षार कल्पना की दवा है | इसका प्रयोग आयुर्वेदिक वैद्य के परामर्श से ही करना चाहिए | गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन बिना वैद्य परामर्श कभी नहीं करना चाहिए |
इसका सेवन एवं प्रयोग बाह्य एवं आन्तरिक दोनों रूपों में किया जाता है |
आभ्यांतर प्रयोग में इसकी खुराक 125 mg से 250 mg अधिकतम है | इससे अधिक अपामार्ग क्षार का सेवन नहीं करना चाहिए |
अनुपान के रूप में शहद या जल का प्रयोग किया जाता है | आयुर्वेद चिकित्सा में इसका प्रयोग अन्य दवाओं के साथ औषध योग स्वरुप किया जाता है |
धन्यवाद ||
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